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Born of Saturday: बुद्धिमान, व्यावहारिक, अनुशासनप्रिय, धुन का पक्का और भी बहुत कुछ

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Born on Saturday:

शनिवार को जन्मे लोग दृढ़निश्चयी होने के साथ ही साथ वे मेहनती और जीवन के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुशासन प्रिय तथा बुद्धिमान और पेशेवर होते हैं जिनके लिए जीवन का खास महत्व होता है। एस्ट्रोलॉजी और विज्ञान के अनुसार शनि गृह अपने पथ पर काफी धीमी गति से घूमता है और जाहिर है कि शनिवार को जन्म लेने वाले लोगों पर शनि ग्रह का काफी इन्फ्लुएंस रहते है.  जानिये शनिवार को जन्म लेने वाले लोगों के व्यक्तित्व से जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में मोटिवेटर और एस्ट्रोलॉजर हिमांशु रंजन शेखर से.

अनुशासनप्रिय होते हैं 

वे धीमे होने के साथ  स्थिर, मेहनती, अनुशासित और दूसरों से अलग होते हैं। शनिवार को जन्मे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे  बुद्धिमान और व्यावहारिक होते हैं साथ हीं इनके जीवन में सख्त सीमाएँ  और अनुशासनप्रिय होते हैं शनिवार को जन्मे लोग शनि ग्रह के प्रभाव में पैदा होते हैं और जाहिर  है कि उनका जीवन शनि ग्रह के प्रभाव के अनुसार होता है। उनका संघर्ष निरंतर रहता है जो उन्हें मजबूत बनाता है और हर चीज से उबरने के लिए दृढ़ संकल्पित होना होता है अर्थात  उनके जीवन मे संघर्ष लगा रहता है । वे के साथ ही वे अत्यधिक अनुशासित हैं।

मेहनती और धुन का पक्का

शनि के प्रभाव से व्यक्ति काफी मेहनती और धुन का पक्का होता है. भले ही सफलता मिलने में कुछ देरी हो सकती है लेकिन वह व्यक्ति  धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होते हैं. ये लोग थोड़े गंभीर प्रवृति के होते हैं और खुलने में काफी वक्त ले ले सकते हैं.  लेकिन परिवार के लोगों के साथ इनके संबंधों में कई बार मतभेद देखने को मिलते हैं. शनिवार को जन्मे लोग हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं. वैसे इनका स्वभाव क्रोधी हो सकता है. 


क्रोधी, धैर्य की काफी कमी 
गुस्से पर काबू पाने में अक्सर ये लोग काफी असफल होते हैं और शायद यही वजह है कि इनके अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी काफी काम निभती है. ऐसे जातक अगर अपनी गुस्से पर नियंत्रण करना सीख लें तो जीवन में काफी आगे जा सकते हैं. 







प्यार व्यक्त करने में होते हैं कंजूस
जिन जातकों का जन्म शनिवार को होता है वो सामान्यत:  अंतर्मुखी प्रतिभा के धनी होते है. एकांतप्रिय होने के साथ ही वो अपनी बातों को व्यक्त करने में जल्दीबाजी कभी नहीं करते. यही वजह होता है कि प्रेम के मामलों में भी वो अपने बातों को व्यक्त नहीं कर पाते हैं. अपने प्यार का इजहार करने में काफी विलम्ब करते हैं और चाहते हैं कि  उनका पार्टनर उनके फीलिंग्स को पहचान ले... 

परिस्थितियों के गुलाम नहीं होते 
शनिवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति परिस्थितियों के स्वामी होते हैं और कभी भी उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देते.... भले ही उनके जीवन में कितने भी संघर्ष वाले दिन या संकट आये, वे उससे निकलने के लिए सही वक्त का इन्तजार करते हैं और हिम्मत नहीं हारते.... 

दृढ निश्चय के मालिक 
शनिवार को जन्म लेने वाले जातक दृढ इच्छा शक्ति के स्वामी होते हैं और अपने कार्यों को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं. अपने लक्ष्य को पाने के लिए संसाधनों की कमी हो तो भी ये इन्हे जुटाने की क्षमता रखते हैं.  जिस किसी क्षेत्र में इन्हे कार्य का अवसर प्रदान की जाए, उसमे हीं ये सफलता के नए सोपान प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं. 

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर ज्योतिषीय सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा अपने ज्योतिषी या पेशेवर ज्योतिष/कुंडली सुझाव प्रदाता से अवश्य परामर्श करें।





saavan 2024: जाने भगवान शिव ने प्रमुख अवतारों के बारे में; Facts in Brief

Lord Shankar Avtaar Shivpuran

हिन्दू धर्म में सावन का महीना बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है  जो देवों के देव महादेव की पूजा के लिए पूरी तरह से समर्पित होता है। हिन्दू देवताओं में भगवान शिव को सर्वोच्च भगवान माना जाता है भगवान सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवी-देवताओं में से भी एक है. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह मान्यता है कि सावन के पावन महीने में विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने और उनके निमित्त व्रत रखने से वे अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं. बाबा भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का भी भक्तों को आशीर्वाद मिलता है। 

शिव के 19 अवतार

 शिव के 19 अवतारों का वर्णन शिव पुराण में मिलता है निम्नलिखित में कुछ महत्वपूर्ण शिव अवतारों के बारे में जानकारी दी गई है.  हिंदू पंचांग के अनुसार, शिव पुराण एक प्रमुख हिंदू पुराण है, जो भगवान शिव के महत्वपूर्ण कथाओं, अवतारों और उपास्य रूपों के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है। शिव के 19 अवतारों का वर्णन शिव पुराण में मिलता है निम्नलिखित में कुछ महत्वपूर्ण शिव अवतारों के बारे में जानकारी दी गई है :शिव के इन 19 अवतारों ने सभी प्राणियों को कष्टों से मुक्त किया है और उन्हें सुख और समृद्धि प्रदान की है. वे सभी भक्तों के लिए पूजनीय हैं और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करते हैं.

 हिन्दू पञ्चाङ्गे और अन्य स्रोतों के अनुसार भगवान शिव के प्रमुख अवतार हैं-वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि । 

शिव के 19 अवतारों का वर्णन शिव पुराण में मिलता है. इनमें से कुछ प्रमुख अवतार हैं:

विश्वरूप अवतार: इस अवतार में भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय विष और अमृत पीने वाले देवता-असुरों के सामने अपनी विश्वरूप दिखाई थी। इससे उन्होंने अपने भक्तों को प्रेरित किया और दुर्योधन के पक्ष से द्रोणाचार्य को मदद करने का भी वादा किया था।

भैरव अवतार: भगवान शिव के इस अवतार में उन्होंने अश्वत्थामा के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भैरव रूप धारण किया था। उन्होंने अश्वत्थामा को प्रतिज्ञा की थी कि उन्हें उसके श्राप से मुक्ति मिलेगी।

दक्षिणामूर्ति अवतार: इस अवतार में भगवान शिव ने गुरुपूर्वक ज्ञान को प्रदान किया था। उन्होंने चारों दिशाओं के देवताओं को ज्ञान दिया था और संसार की माया और अविद्या का नाश करने की महत्वपूर्ण उपदेश दिया था।

महाकाल: महाकाल भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध अवतार है. वे काल का देवता हैं और मृत्यु के अधिपति हैं. वे सभी प्राणियों के अंत के जिम्मेदार हैं.

अर्धनारीश्वर अवतार: इस अवतार में भगवान शिव और पार्वती के सम्मिलित रूप में व्यक्त होते हैं, जो प्रकृति और पुरुष के सम्मिलन को प्रतिष्ठित करता है। इस रूप में उन्हें सृष्टि, स्थिति और संहार का सार्वभौमिक अधिकार होता है।

जानें चार धामों के बारे में: बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम और द्वारका

तारक: तारा भगवान शिव का एक अन्य प्रसिद्ध अवतार है. वे तारा देवी के अवतार हैं, जो एक शक्तिशाली देवी हैं जो सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति देती हैं.

भुवनेश: भुवनेश भगवान शिव का एक अवतार है जो समस्त ब्रह्मांड का स्वामी है. वे सभी प्राणियों के संरक्षक हैं और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से बचाते हैं.

षोडश: षोडश भगवान शिव का एक अवतार है जो सभी प्रकार के ज्ञान और शक्ति का भंडार है. वे सभी भक्तों को ज्ञान और शक्ति प्रदान करते हैं.

गौरीशंकर अवतार: इस अवतार में भगवान शिव ने भक्ता पार्वती के साथ गौरीशंकर के रूप में जन्म लिया था। यह अवतार पर्वतीश्वरी देवी के श्रद्धावान भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए धारण किया गया था।

कालभैरव अवतार: इस अवतार में भगवान शिव ने कालभैरव रूप धारण किया था और दक्ष यज्ञ का विनाश किया था। उन्होंने देवी सती के दुख को दूर करने के लिए अपना शक्तिशाली रूप प्रदर्शित किया था।

धूम्रवान: धूम्रवान भगवान शिव का एक अवतार है जो सभी प्रकार के रोगों और बीमारियों को दूर करने वाला है. वे सभी भक्तों को रोगों और बीमारियों से मुक्त करते हैं.

बगलामुख: बगलामुख भगवान शिव का एक अवतार है जो सभी प्रकार के शत्रुओं और विरोधियों को हराने वाला है. वे सभी भक्तों को शत्रुओं और विरोधियों से मुक्त करते हैं.

मातंग: मातंग भगवान शिव का एक अवतार है जो सभी प्रकार के सुख और समृद्धि का भंडार है. वे सभी भक्तों को सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं.

कमल: कमल भगवान शिव का एक अवतार है जो सभी प्रकार के ज्ञान और मोक्ष का मार्गदर्शक है. वे सभी भक्तों को ज्ञान और मोक्ष प्रदान करते हैं.

यह केवल कुछ शिव पुराण में वर्णित अवतार हैं, लेकिन इस पुराण में भगवान शिव के अन्य अवतारों का भी वर्णन है। शिव पुराण के अलावा भी अन्य हिंदू पुराणों में भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का वर्णन मिलता है।

शिव के अनेक अंशावतार भी हुए

शिव के अंश ऋषि दुर्वासा, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनर्तक, द्विज, अश्वत्थामा, किरात, नतेश्वर आदि जन्मे. इन अंशावतार का उल्लेख ‘शिव पुराण’ में भी मिलता है.

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा अपने पेशेवर सुझाव प्रदाता से अवश्य परामर्श करें।




देवों के देव महादेव: जानें क्या क्या है भगवान शिव का रहस्य- त्रिपुंड, नंदी बैल, अर्धनारीश्वर, रुद्र और अन्य

lord shiva lord shankar facts in brief

 सावन का पावन महीना आखिरकार शुरू हो गया है और  इस साल अर्थात सावन 2024 के लिए सबसे खास बात यह है कि सावन का महीना  का आरंभ ही सोमवार से हुआ है।  हिन्दू धर्म में सावन का महीना बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है  जो देवों के देव महादेव की पूजा के लिए पूरी तरह से समर्पित होता है। हिन्दू देवताओं में भगवान शिव को सर्वोच्च भगवान माना जाता है भगवान सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवी-देवताओं में से भी एक है. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह मान्यता है कि सावन के पावन महीने में विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने और उनके निमित्त व्रत रखने से वे अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं. बाबा भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का भी भक्तों को आशीर्वाद मिलता है। 

भगवान शिव के रहस्य 
भगवान शिव के रहस्य को समझना आसान नहीं है  और सच तो यह है कि यह एक निरंतर खोज है जो भक्तों को आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाती है। शिव पुराण और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है जिनका न कोई आदि है और न ही कोई अंत। उन्हीं के होने से ये समस्त संसार गतिमान है। जबकि विष्णु पुराण में भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के द्वारा हुआ है। भगवान शिव के निराकार रूप की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar Shivling) माना जाता है। भगवान शिव का रहस्य एक जटिल और बहुआयामी विषय है, जिसमें कई पहलू हैं।

विनाश और रचना का चक्र:

भगवान शिव का रहस्य विनाश और रचना का चक्र है। यह चक्र हमें जीवन के नैसर्गिक क्रम को समझने और इसके साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। भगवान शिव को अक्सर विनाश के देवता के रूप में देखा जाता है, लेकिन वे रचना के देवता भी हैं। वे 'सृष्टि चक्र' का प्रतीक हैं, जिसमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म शामिल हैं। भगवान शिव को अक्सर 'महाकाल' या 'काल' कहा जाता है, जो समय का देवता है। समय सभी चीजों को नष्ट कर देता है, और भगवान शिव इस विनाशकारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

भगवान शिव 'नाटराज' के रूप में भी जाने जाते हैं, जो 'नृत्य' के देवता हैं। उनका 'तांडव' नृत्य ब्रह्मांड के विनाश का प्रतीक है, लेकिन यह एक नए ब्रह्मांड के निर्माण का भी प्रतीक है।

 ज्ञान और ध्यान:

 ज्ञान और ध्यान जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्ञान हमें सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद करता है, और ध्यान हमें शांत और एकाग्र रहने में मदद करता है। भगवान शिव को ज्ञान और ध्यान का देवता भी माना जाता है। वे योग, तपस्या और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं। भगवान शिव को 'ज्ञान का भंडार' माना जाता है। वे 'वेद', 'शास्त्र', और 'ज्ञान' के सभी रूपों के ज्ञाता हैं। भगवान शिव 'ध्यान' के प्रतीक हैं। वे 'समाधि' की अवस्था में रहते हैं, जो 'आत्म-ज्ञान' की प्राप्ति का मार्ग है।

त्रिपुंड:

त्रिपुंड भगवान शिव के माथे पर लगाई जाने वाली तीन क्षैतिज रेखाएं हैं। यह भस्म, चंदन या मिट्टी से बनाया जा सकता है। त्रिपुंड का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है और इसे भगवान शिव के कई पहलुओं का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के माथे पर लगा त्रिपुंड तीन गुणों (सत्व, रज, तम) का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि वे इन तीनों गुणों से परे हैं।

त्रिपुंड के तीन अर्थ हैं:

सृष्टि, संरक्षण और विनाश: त्रिपुंड की तीन रेखाएं ब्रह्मांड के तीन गुणों का प्रतीक हैं: सृष्टि, संरक्षण और विनाश। भगवान शिव को इन तीनों गुणों का स्वामी माना जाता है।

अतीत, वर्तमान और भविष्य: त्रिपुंड की तीन रेखाएं भी समय के तीन पहलुओं का प्रतीक हैं: अतीत, वर्तमान और भविष्य। भगवान शिव को समय का देवता माना जाता है।

आत्मा, मन और शरीर: त्रिपुंड की तीन रेखाएं मनुष्य के तीन पहलुओं का प्रतीक हैं: आत्मा, मन और शरीर। भगवान शिव को इन तीनों पहलुओं का स्वामी माना जाता है।

 नंदी बैल:

नंदी बैल भगवान शिव का वाहन है। यह शक्ति, धैर्य और भक्ति का प्रतीक है। नंदी को आमतौर पर शिव मंदिरों के द्वार पर बैठा हुआ देखा जाता है। भगवान शिव का वाहन नंदी बैल, 'शक्ति' और 'धैर्य' का प्रतीक है।

गंगा नदी:

भगवान शिव अपनी जटाओं में गंगा नदी धारण करते हैं। यह दर्शाता है कि वे 'पवित्रता' और 'शुद्धि' का प्रतीक हैं।

अर्धनारीश्वर:

भगवान शिव 'अर्धनारीश्वर' रूप में भी दर्शाए जाते हैं, जिसमें वे आधे पुरुष और आधी स्त्री हैं। यह दर्शाता है कि वे 'स्त्री-पुरुष समानता' और 'संपूर्णता' का प्रतीक हैं।

 मृत्युंजय:

भगवान शिव को 'मृत्युंजय' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'मृत्यु को जीतने वाला'। यह दर्शाता है कि वे 'अमरता' और 'जीवन शक्ति' का प्रतीक हैं।

त्रिनेत्र:

भगवान शिव के तीन नेत्र हैं, जो 'अतीत, वर्तमान और भविष्य' का प्रतीक हैं। यह दर्शाता है कि वे 'सर्वज्ञ' और 'सर्वव्यापी' हैं।

 नाग:

भगवान शिव अपने गले में नाग धारण करते हैं। यह दर्शाता है कि वे 'विष' और 'बुराई' पर विजय प्राप्त करते हैं।

रुद्र:

भगवान शिव को 'रुद्र' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'विनाशकारी'। यह दर्शाता है कि वे 'अन्याय' और 'अधर्म' का नाश करते हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


सावन सोमवार 2024 : जानें क्यों भगवान् शंकर को चढ़ाते हैं बेलपत्र

Savan Somvar: Why Belpatra Used to Worship Lord Shankar

सावन सोमवार 2024 : सावन, जिसे आमतौर पर श्रावण के रूप में जाना जाता है, भगवान शिव की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। हिंदुओं के बीच सावन का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की अपार भक्ति और समर्पण के साथ प्रार्थना करते हैं। 2024 मे सावन का सुभारम्भ 22 जुलाई 2024 से हो रहा है और इस महीने मे कुल पाँच सोमवार पड़ेंगे। श्रावण मास का पूरा दिन भगवान शिव या भगवान शंकर की पूजा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हालाँकि हिंदू पंचांग के अनुसार, पवित्र महीने सावन का सोमवार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक उत्कृष्ट दिन है। सावन महीने का सोमवार महत्वपूर्ण दिन माना जाता है जिस दिन भक्त उपवास करते हैं और इसे आमतौर पर सोमवार, या श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में जाना जाता है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पूजन के तौर पर  श्रदालु  भगवान शिव के लिंग को फूल, फल पानी (जल जिसे जलाभिषेक के रूप में जाना जाता है) के साथ चढ़ाते हैं। फूल और फलों के अलावा, भक्त भगवान शिव को प्रसन्न  करने के लिए भांग और धतूरा भी चढ़ाते हैं। हालाँकि, बेलपत्र सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है जो सावन सोमवार के दिन भगवान शिव लिंग को अर्पित की जाती है। क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर को बेलपत्र क्यों चढ़ाई जाती है ?
सावन के सोमवार को भगवान् शिव की विशेष पूजा अर्चना कर और बेलपत्र अर्पित कर, भक्तजन उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है और आज भी श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है।

वैदिक शास्त्र और शिव पुराण कहते हैं कि भक्त माघ या फाल्गुन के महीने में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन बेलपत्र के साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं जो भगवान शिव को अधिक आनंद प्रदान करते हैं।

बेलपत्र को भगवान् शंकर को चढ़ाने के कारण:

पवित्रता और शुद्धता: बेलपत्र को पवित्र और शुद्ध माना जाता है। यह तीन पत्तियों वाला होता है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का प्रतीक माना जाता है। इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से तीनों देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

शिव का प्रिय: धार्मिक कथाओं के अनुसार, बेलपत्र भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे चढ़ाने से भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

एक और कारण है जिसका विभिन्न पवित्र पुस्तकों में उल्लेख किया गया है कि बेलपत्र जो तीन पत्रों (तीन पत्तों का सेट) का संग्रह है, त्रिनेत्र जैसा दिखता है ... जो भगवान शिव का दूसरा नाम है जिन्हें भगवान के रूप में जाना जाता है त्रि नेत्र के साथ (तीन आंखें।)

औषधीय गुण: बेलपत्र में औषधीय गुण होते हैं जो वातावरण को शुद्ध करते हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। यह एक प्रकार से भगवान् शिव को उनकी तपस्या और त्याग की याद दिलाने का प्रतीक भी है।

आध्यात्मिक महत्व: बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से मानसिक शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह भक्त के मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है।

 वैदिक शास्त्रों और शिव पुराण के अनुसार,ऐसी मान्यता है कि  भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा था कि जब भक्त फाल्गुन महीने (हिंदी महीने के 12 वें महीने का अंतिम महीना) में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन उनकी पूजा करते हैं, तो  इस पूजन से उन्हे अत्यधिक प्रसन्नता प्राप्त होती है और उन श्रदालुओ और भक्तों पर  भगवन शिव काफी उदार होते हैं ।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।




सावन सोमवार 2024 : जाने क्यों चढ़ाई जाती है शिवलिंग पर बेलपत्र, क्या कहते हैं वैदिक शास्त्र और शिव पुराण

Mahashivratri Why Belpatra Being Used to worship Lord Shiva
Saavan Somvaar 2024:  सावन, जिसे आमतौर पर श्रावण के रूप में जाना जाता है, भगवान शिव की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। हिंदुओं के बीच सावन का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की अपार भक्ति और समर्पण के साथ प्रार्थना करते हैं। इस महीने के दौरान, लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और मानते हैं कि इससे उनके जीवन में समृद्धि और खुशियाँ आएंगी।2024 मे सावन का सुभारम्भ 22 जुलाई 2024 से हो रहा है और इस महीने मे कुल पाँच सोमवार पड़ेंगे। 

श्रावण मास का पूरा दिन भगवान शिव या भगवान शंकर की पूजा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हालाँकि हिंदू पंचांग के अनुसार, पवित्र महीने सावन का सोमवार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक उत्कृष्ट दिन है। सावन महीने का सोमवार महत्वपूर्ण दिन माना जाता है जिस दिन भक्त उपवास करते हैं और इसे आमतौर पर सोमवार, या श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में जाना जाता है।

 ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र जो तीन पत्र (तीन पत्तों का सेट) का संग्रह है, त्रिनेत्र जैसा दिखता है ... जो भगवान शिव का दूसरा नाम है जिन्हें भगवान के रूप में जाना जाता है त्रि नेत्र के साथ (तीन आंखें।) हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बेहद खास महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का त्योहार हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यताएं है कि इस दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था और इसके उपलक्ष में महाशिवरात्रि का पर्व मनाई जाती है. 

हिन्दू धर्म में सावन सोमवार  का विशेष महत्व है जिस दिन लोग भगवन शिव या शंकर की पूजा करते हैं. 

 महाशिवरात्रि के दिन श्रदालु  माता पार्वती और शंकर शंकर  की पूजा करते हैं और हैं और इस अवसर पर भगवन शिव लिंग पर पवित्र जल के साथ फूल, फल चढ़ाते हैं जिसे जलाभिषेक के रूप में जाना जाता है.

लोग उपवास रखते हैं और केवल फल और दूध से संबंधित उत्पादों का सेवन करते हैं। भक्त महाशिवरात्रि के अवसर पर किसी भी प्रकार का अनाज लेने से बचते हैं और उपवास का उपयोग करते हैं जो समझा जाता है कि उपवास से शरीर और हमारी चेतना भी शुद्ध होती है।

 फूल और फलों के अलावा, भक्त भगवान शिव को प्रभावित करने के लिए भांग और धतूरा भी चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र भगवन शिव को बहुत प्रिय है इसलिए श्रदालु जो महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव लिंग को अवश्य अर्पित  करते हैं. 

महा शिवरात्रि के अवसर पर सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा के लिए के लिए लोग मंदिरों को जाते हैं. 

वैदिक शास्त्र और शिव पुराण कहते हैं कि भक्त माघ या फाल्गुन के महीने में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन बेलपत्र के साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं जो भगवान शिव को अधिक आनंद प्रदान करते हैं।

वैदिक शास्त्रों और शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि जब भक्त फाल्गुन महीने (हिंदी महीने के 12 वें महीने का अंतिम महीना) में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन उनकी पूजा करते हैं,  इसे अर्पित करते हैं तो इससे भगवन शिव को  अधिक खुशीहोती है ।

एक और कारण है जिसका विभिन्न पवित्र पुस्तकों में उल्लेख किया गया है कि बेलपत्र जो तीन पत्र (तीन पत्तों का सेट) का संग्रह है, त्रिनेत्र जैसा दिखता है ... जो भगवान शिव का दूसरा नाम है जिन्हें भगवान के रूप में जाना जाता है त्रि नेत्र के साथ (तीन आंखें।)

कैसे चढ़ाएं बेलपत्र: 

ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग पर बेलपत्र हमेशा उल्टा चढ़ानी चढ़ानी चाहिए अर्थात बेलपत्र के चिकनी सतह वाली भाग को शिव लिंग से स्पर्श होनी चाहिए. बेलपत्र को चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि बेलपत्र को हमेशा हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं। 

अन्य पवित्र ग्रंथ में यह उल्लेख है कि भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन हुआ था और तभी से यह पर्व मनाया जाता है।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


Sawan Somwar Vrat 2024: कल है सावन माह का पहला सोमवार, जानें पूरा लिस्ट, व्रत विधि और अन्य

 


सावन, जिसे आमतौर पर श्रावण के रूप में जाना जाता है, भगवान शिव की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। हिंदुओं के बीच सावन का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे साल का सबसे पवित्र और पवित्र महीना माना जाता है। भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की अपार भक्ति और समर्पण के साथ प्रार्थना करते हैं। इस महीने के दौरान, लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और मानते हैं कि इससे उनके जीवन में समृद्धि और खुशियाँ आएंगी।

22 जुलाई, 2024 से शुरू होने वाले इस सावन में पाँच सोमवार व्रत शामिल हैं। आप इस साल सावन 2024 के सभी सोमवार या सोमवार की सूची प्राप्त कर सकते हैं।

सावन 2024: सावन सोमवार व्रत तिथियां

  • पहला सावन सोमवार: 22 जुलाई 2024
  •  दूसरा सावन सोमवार: 29 जुलाई 2024
  • तीसरा सावन सोमवार: 5 अगस्त 2024
  • चौथा सावन सोमवार: 12 अगस्त 2024
  •  पांचवां सावन सोमवार: 19 अगस्त 2024

 श्रावण 2024: सोमवार का व्रत

श्रावण मास का पूरा दिन भगवान शिव या भगवान शंकर की पूजा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हालाँकि हिंदू पंचांग के अनुसार, पवित्र महीने सावन का सोमवार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक उत्कृष्ट दिन है। सावन महीने का सोमवार महत्वपूर्ण दिन माना जाता है जिस दिन भक्त उपवास करते हैं और इसे आमतौर पर सोमवार, या श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में जाना जाता है।

श्रावण 2024: 16 सोमवार का व्रत

कुछ भक्त लगातार 16 सोमवार का व्रत भी रखते हैं, जिसे सोलह सोमवार व्रत कहा जाता है। लोगों का मानना ​​है कि इससे उन्हें एक आदर्श जीवन साथी और एक आनंदमय विवाहित जीवन का आशीर्वाद मिलता है। कई भक्त सोलह सोमवार के लिए उपवास करते हैं, जिन्हें सोलह सोमवार के रूप में जाना जाता है, जो सावन कैलेंडर महीने के पहले सोमवार से शुरू होता है।

श्रावण 2024: जानिए इन अन्य त्योहारों के बारे में  

सावन का महिना पूर्ण रूप से भगवान शिव कि आराधना कि लिए होता है और भक्त पूरे महीने विशेष पूजा अनुष्ठान और समारोह करते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं।  हालांकि सावन का महिना भगवान शंकर कि आराधना के अतिरिक्त की अन्य त्यौहार के लिए प्रसिद्ध है जिसमें शामिल हैं श्रावण सोमवार व्रत, हरियाली तीज, नाग पंचमी, श्रावण शिवरात्रि और रक्षा बंधन तथा अन्य हिन्दू पंचांग के अनुसार जहां श्रावण मे सोमवार को भगवान शंकर कि पूजा के लिए माना जाता है वहीं मंगलवार को भी महत्वपूर्ण माना जाता है और यह देवी पार्वती को समर्पित है।

 श्रावण 2024: काँवड़ यात्रा

सावन के महीने की शुरुआत कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी होती है। इस वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से कांवड़िए भगवान शिव को समर्पित तीर्थस्थलों पर गंगाजल (पवित्र जल) चढ़ाने के लिए जाते हैं। झारखंड स्थितः देवघर अर्थात बाबा वैद्यनाथ धाम का भी प्रमुख महत्व है जहां भक्त गण सुलतानगंज स्थितः गंगा नदी से पवित्र जल लेकर देवघर मे भगवान शंकर को जल अर्पित करते हैं। इसके बाद कांवड़िए स्थानीय शिव मंदिरों में गंगाजल चढ़ाने के लिए अपने गृहनगर लौटते हैं।

रक्षा बंधन 2024: इंडिया पोस्ट के साथ समय पर अपने प्रियजनों तक राखी और गिफ्ट पहुंचाने की कर लें तैयारी, पढ़ें अपडेट

Raakhi importance how to send Rakhi and gifts

रक्षा बंधन के अवसर पर, इंडिया पोस्ट आपको अपनी निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय मेल सेवाओं का उपयोग करके दुनिया भर में अपने प्रियजनों को राखी भेजने के लिए आमंत्रित गाइड्लाइन जारी किया है। तो फिर देरी किस बात कि, आप अपने प्रियजनों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं समय पर पहुंचाने के लिए, इंडिया पोस्ट गाइड लाइन के मुताबिक खुद को तैयार कर लें और  आप 31 जुलाई तक अपनी राखी शिपमेंट की योजना बना लें।

इन बातों का रखें ध्यान: 

अंतर्राष्ट्रीय मेलिंग की जटिलताओं से निपटने तथा विलंब और सीमा शुल्क संबंधी परेशानियों की संभावना को न्यूनतम करने के लिए, निम्नलिखित बातों का पालन करना आवश्यक है:

अपनी राखियों को सुरक्षित तरीके से पैक करें, ताकि उन्हें परिवहन के दौरान संभावित क्षति से बचाया जा सके।

उचित पता लेबल का उपयोग करें और सटीक ज़िप कोड/पोस्ट कोड के साथ पूरा पता साफ़-साफ़ लिखें/टाइप करें। अपने मोबाइल नंबर का उल्लेख ज़रूर करें।

निकासी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सीमा शुल्क घोषणा फॉर्म पर अपने पैकेज की सामग्री का सही-सही विवरण दें।

प्रतिबंधित वस्तुएं, जैसे ज्वलनशील पदार्थ, तरल पदार्थ या शीघ्र खराब होने वाले सामान भेजने से बचें, क्योंकि उन्हें जब्त किया जा सकता है।

कस्टमज़ क्लीयरेंस और पार्सल डिलीवरी में बेहतर सुविधा हेतु, राखी से संबंधित वस्तुओं के लिए हार्मोनाइज्ड सिस्टम (एचएस) कोड शामिल करने पर विचार करें। हालांकि गैर-वाणिज्यिक शिपमेंट के लिए एचएस कोड अनिवार्य नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनके शामिल होने से कस्टमज़ प्रक्रियाओं में काफी आसानी हो सकती है।

 राखी से संबंधित उत्पादों के लिए कुछ प्रासंगिक एचएस कोड इस प्रकार हैं:

* राखी रक्षा सूत्र: 63079090

* नकली आभूषण: 71179090

* हैंड सीव्ज़ और हैंड रिड्ल्ज़(राखी सहित): 96040000

* उबली हुई मिठाइयां, चाहे भरी हुई हों या खाली: 17049020

* टॉफी, कारमेल और इसी तरह की मिठाइयां: 17049030

* ग्रीटिंग कार्ड: 49090010

इन आवश्यक दिशानिर्देशों का पालन करके और इंडिया पोस्ट की प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मेल सेवाओं का लाभ उठाकर, आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपकी राखियां सीमाओं को पार कर जाएं और विदेश में आपके प्रियजनों तक समय पर और सुरक्षित तरीके से पहुंच जाएं। (Souce PIB)

नजरिया जीने का: फादर्स डे को कैसे खास बनाएं, अपनाएं ये 5 तरीके- महत्वपूर्ण Quotes


फादर डे 2024:
फादर्स डे 2024 को  एक विशेष और यादगार पल बनाने क लिए सबसे जरूरी यह है कि आप अपने पापा को यह महसूस कराएं कि वह आपके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और आप उनसे कितना प्यार करते हैं। याद रखें, भले ही कोई भी पिता सच्चे सुपरहीरो होते हैं जो अपने परिवार के लिए  दिन हो या रात , सर्दी हो या गर्मी या बरसात, अपने कर्तव्य पथ  पर चल रहे होते हैं । क्योंकि उन्हे यह पता होता है कि उनके लगातार चलते कदम उस परिवार के लिए उम्मीद होती है जो घर बैठे उनके इंतजार कर रहे होते हैं। भले कि किस भी पिता के पास  शक्तियों का भंडार नहीं होता है लेकिन उनके पास हमेशा एक महापुरुष होता है।

फादर्स डे हर साल दुनिया भर में हमारे जीवन में पिता के योगदान को याद करने और हमारे जीवन में उनकी उपस्थिति की सराहना करने के लिए मनाया जाता है। जीवन की कल्पना पिता के बिना नहीं की जा सकती, जिन्हें हमारे जीवन में हर मुस्कान का कारण माना जाता है और यही कारण है कि लोग अपने पिता के बलिदान को सरप्राइज पार्टी आयोजित करने, हाथ से बने उपहार बनाने, उनका पसंदीदा भोजन पकाने या उन्हें किसी यात्रा पर ले जाने जैसे यादगार इशारों से स्वीकार करते हैं। भारत सहित कई देश जून के तीसरे रविवार को यह त्यौहार मनाते हैं।

बदलें खुद को: "नजरिया जीने का" के साथ 

जैसा कि पूरी दुनिया फादर्स डे मनाने के अपने-अपने तरीके देख रही है...निश्चित रूप से हमारे लिए पिता के योगदान को याद करने के लिए एक नए जोश और जीत के साथ, यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जिनसे हम इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बना सकते हैं। हाँ, फादर्स डे मनाने के लिए, हमें यह सोचना चाहिए कि कुल मिलाकर आप इस फादर्स डे को खास बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? 

1. पिता के साथ समय बिताना: 

सबसे पहले हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अपने प्यारे पिता के साथ समय बिताना एक पिता के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपहार होगा...हां, इसमें कोई संदेह नहीं है कि बहुत सारे अतिरिक्त तनाव और काम हैं जिन्हें पूरा करना है, लेकिन पिता के साथ समय बिताना एक पिता के लिए उपयुक्त और संतोषजनक उपहार हो सकता है।

2. उनके योगदान को याद रखें: 

किसी के योगदान को याद करने का सबसे उपयुक्त तरीका उसकी प्रशंसा करना है। आपको परिवार के लिए उनके नैतिक और भावनात्मक समर्थन को याद रखना चाहिए, जिस पर हमारे परिवार की मजबूत इमारत खड़ी हुई है। पिता के भावनात्मक और नैतिक और शारीरिक समर्थन के मजबूत कंधों के बिना परिवार की मजबूत इमारत का निर्माण कैसे किया जा सकता है। निश्चित रूप से आपको उनके योगदान को याद रखना चाहिए और उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।

3. अपने भावनात्मक क्षणों को साझा करें: 

वास्तव में फादर्स डे केवल एक दिन को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि यह उनके साथ अपनी भावनाओं और भावनाओं को साझा करने का दिन है। हां, अपने भावनात्मक और भावुक भावनाओं को उनके साथ महत्वपूर्ण क्षणों में साझा करना न भूलें। आपको अपने परिवार के साथ बिताए जीवन के सभी शानदार पलों को साझा करना चाहिए, खास तौर पर अपने पिता के साथ। आपको उनके सम्मान, प्यार और पूरे जीवन में उनके समर्थन को भी याद रखना चाहिए, जिसके लिए हमारा परिवार उनके साथ खड़ा है।

4. पिता की बात सुनें: 

बेशक पिता हमेशा के लिए आपके परिवार के शारीरिक रूप से मजबूत व्यक्ति नहीं होते, लेकिन वे अभी परिवार के लिए अधिक सम्मान और आदर के हकदार हैं। हां, एक पिता अपने पूरे युवा और महत्वपूर्ण दिन को परिवार के स्तंभ के रूप में खड़ा करने में बिताता है और इसलिए यह आपका कर्तव्य है कि आप हमारे परिवार के लिए इन संघर्षों और संघर्षों के पीछे उनके संघर्षों और कहानियों को सुनें। हो सकता है कि उनके पास हर बार की तरह शारीरिक रूप से मजबूत न हो, लेकिन उनके पास आपके साथ साझा करने के लिए कई कहानियाँ हैं और इसलिए पहले उनकी बात सुनें और फिर अपनी भावनाओं को साझा करें।

5. उन पर ध्यान दें-

चूंकि यह परिवार के साथ पिता के योगदान को याद करने का सबसे अच्छा दिन है, इसलिए अपने पिता की पसंद और शौक का ध्यान रखें। निश्चित रूप से यह पिता का दिन है, इसलिए उन्हें अपने हिसाब से दिन मनाने का फैसला करने दें। हां, आप बस उनका ख्याल रखें और उनका साथ दें, लेकिन उन्हें दिन की योजना के बारे में फैसला करना होगा।

Father  Day महत्वपूर्ण उद्धरण

  • कोई भी व्यक्ति पिता बन सकता है, लेकिन पिता बनने के लिए किसी विशेष व्यक्ति की आवश्यकता होती है। – ऐनी गेडेस
  • पिता आपको यह नहीं बताता कि वह आपसे प्यार करता है। वह आपको दिखाता है। – दिमित्री द स्टोनहार्ट
  • एक बच्चे के जीवन में पिता की शक्ति बेजोड़ है। – जस्टिन रिकलेफ़्स
  • पिता वह होता है जो आपको गिरने पर पकड़ना चाहता है, लेकिन इसके बजाय वह आपको उठाता है, आपको झाड़ता है, और आपको फिर से प्रयास करने देता है। – अज्ञात
  • उसके लिए, पिता का नाम प्रेम का दूसरा नाम था। – फैनी फ़र्न
  • पिता न तो हमें रोकने वाला लंगर है, न ही हमें वहाँ ले जाने वाला पाल, बल्कि एक मार्गदर्शक प्रकाश है जिसका प्रेम हमें रास्ता दिखाता है। – अज्ञात
  • पिता सच्चे सुपरहीरो होते हैं। उनके पास भले ही महाशक्तियाँ न हों, लेकिन उनके पास हमेशा एक महापुरुष होता है। – अज्ञात
  • पिता की मुस्कान एक बच्चे के पूरे दिन को रोशन करने के लिए जानी जाती है। – सुसान गेल
  • पिताजी, आपका प्यार और समर्थन मेरे मार्गदर्शक सितारे रहे हैं। हैप्पी फादर्स डे!
  • मैं जितना बड़ा होता जा रहा हूँ, मेरे पिता उतने ही समझदार होते जा रहे हैं। - जेम्स मैकलॉगलिन
  • कोई भी मूर्ख बच्चा पैदा कर सकता है। पिता बनने के लिए एक आदमी की जरूरत होती है। - फ्रैंकलिन पी. जोन्स
  • पिता वह होता है जिसे आप चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ, सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। - अज्ञात
  • मेरे पिता ने मुझे वह सबसे बड़ा उपहार दिया जो कोई भी किसी दूसरे व्यक्ति को दे सकता है; उन्होंने मुझ पर विश्वास किया। - जिम वाल्वानो
  • एक पिता सौ से अधिक स्कूल मास्टर होते हैं। - जॉर्ज हर्बर्ट
  • पिता सबसे साधारण व्यक्ति होते हैं जिन्हें प्यार ने नायक, साहसी, कहानीकार और गीतकार बना दिया है। - पाम ब्राउन
  • पिता की मुस्कान बच्चे के पूरे दिन को रोशन करने के लिए जानी जाती है।" - सुसान गेल
  • एक अच्छा पिता हमारे समाज में सबसे अनसुना, अप्रशंसित, अनदेखा और फिर भी सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है। - बिली ग्राहम

नजरिया जीने का: बुद्ध पूर्णिमा कब है और इसे क्यों मनाया जाता है?


बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वेसाक या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, इस वर्ष यह 23 मई, 2024  को मनाई जा रही है। बुद्ध पूर्णिमा खासतौर पर बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु (या परिनिर्वाण) का दिन है और इस कारण से इस महत्वपूर्ण दिवस का खास पहचान है। हिन्दू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा जो प्रत्येक माह मे मनाई जाती है, इसका खास महत्व है।  यह भारतीय और बौद्ध कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने की पूर्णिमा को आता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई के महीने में पड़ता है। 

किसी कवि ने गौतम बुद्ध के बारे मे क्या खूब लिखा है-
"गौतम के दूसरा गौतम नहीं हुआ,
निकले  तो बेशुमार हैं घरबार  छोड़कर "

बुद्ध पूर्णिमा  केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी है। यह हमें सिखाता है कि हम कैसे अच्छे जीवन जी सकते हैं और दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं। 
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी। 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और  इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था।

बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति

 बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

गौतम बुद्ध का जन्म:

गौतम बुद्ध का जन, 563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को  नेपाल के लुंबिनी, शाक्य राज्य  में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में 'कुशनारा' में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय 'कुशनारा' था। 

 बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध के नाम से जाने गए। उनके जन्म को एक दिव्य घटना के रूप में माना जाता है। कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके शरीर पर 32 शुभ लक्षण थे, जो उन्हें एक महान व्यक्ति के रूप में दर्शाते थे।

ज्ञान प्राप्ति: 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही बोध गया में बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।बुद्ध पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसी दिन गौतम बुद्ध को बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह घटना उन्हें 'बुद्ध' (जाग्रत) बना देती है, और इसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों के साथ साझा किया।

महापरिनिर्वाण:

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व तीसरे कारण से भी है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (वर्तमान में उत्तर प्रदेश, भारत) में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था, जो उनके जीवन के अंतिम क्षणों को दर्शाता है।

Hanuman Jayanti: हनुमान जयंती कब है? जानिए सही तिथि, पूजन विधि और महत्व


Hanuman Jayanti
: हनुमान जयंती, जिसे हनुमान जन्मोत्सव भी कहा जाता है, चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मनाई जाती है। इस साल 23/24 अप्रैल, 2024 को यह पर्व पूरे धूम धाम से मनाई जाएगी। धर्मग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं और भगवान श्री राम के प्रबल भक्त हैं। 

भगवान हनुमान का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था और देश भर में लोग हनुमान जन्मोत्सव के रूप में इस दिन को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। आम तौर पर, त्योहार चैत्र माह (अप्रैल-मई) में मनाया जाता है। 

यदि आप भारत भूमि का भ्रमण करें, तो आपको अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीकों से भगवान हनुमान की पूजा करते हुए पाएंगे। यह उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा के रूप में सबसे अधिक मनाया जाता है।

भगवान हनुमान जी व्यक्तित्व कि विशालता और उनके अनगिनत कारनामों ने हमेशा से दुनिया भर के विद्वानों, विचारकों और पौराणिक कथाओं का केंद्र बिन्दु रहा है। 

भगवान हनुमान सबसे प्रसिद्ध देवताओं में से एक हैं और ऐसी मान्यता है कि वह आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। कहा जाता है कि प्रभु हनुमान इस घोर कलयुग मे एक मात्र देवता हैं जो अपने भक्तों के द्वारा कम पूजन पर भी आसानी से उनका कल्याण करते हैं ।

हनुमान जयंती 2024: तिथि और समय

पूर्णिमा तिथि आरंभ - 23 अप्रैल, 2024 - 03:25 पूर्वाह्न

पूर्णिमा तिथि समाप्त - 24 अप्रैल, 2024 - 05:18 पूर्वाह्न

हनुमान जयंती कैसे मनाएं? 

भगवान हनुमान केसरी और अंजना के पुत्र हैं और उनका जन्म नाम अंजनेय (अंजना का पुत्र) था, लेकिन जीवन भर उन्हें उनके वीरतापूर्ण कार्यों से प्राप्त नामों से संबोधित किया गया था। 

हनुमान जयंती पर सभी भक्तगन प्रभु हनुमान को पूजन करते हैं और उनकी प्रसन्नता के लिए हम भगवान हनुमान के शुभ जन्म की पूजा करते हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के भक्ति कार्यक्रम आयोजन कि जाती है साथ ही प्रभु हनुमान की दिव्यता की पूजा करने के साथ ही उनकी बचपन की लीलाओं, वीरतापूर्ण कृत्यों को याद किया जाता है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान हनुमान अपने गुरु रामचंद्र के चरण कमलों के प्रति काफी समर्पित रहते हैं और इसलिए प्रभु राम को प्रसन्न करके भी लोग भगवान हनुमान को खुश और प्रसन्न करने के लिए मंदिरों और घरों मे पूजन आयोजित करते हैं। भगवान हनुमान की पूजा करने के दो तरीके हैं; पारंपरिक पूजा और हनुमान के गुणों का ध्यान।  

ऐसी मान्यता है कि भगवान इस लोक मे तब तक  तक गुप्त रूप से पृथ्वी पर रहेंगे जब तक भगवान राम का नाम गाया जाएगा , महिमामंडित और स्मरण और पूजा किया जाएगा।

हनुमान जयंती 2024: अनुष्ठान

  • सबसे पहले भक्तगन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें जो कि किसी भी पूजन के आरंभ के लिए प्राथमिक शर्त होती है ।
  •  पूजन स्थल पर या किसी भी पवित्र जगह पर भगवान हनुमान की मूर्ति रखें और देसी घी का दीया जलाएं।
  •  उसके उपरांत भगवान हनुमान के मूर्ति पर लाल फूल चढ़ाएं और हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का जाप करें।
  •  हनुमान मंदिर जाएं और भगवान हनुमान को चोला चढ़ाएं जिसमें - चमेली का तेल, वस्त्र और सिन्दूर शामिल हों।
  • ज्यादातर लोग घर में सुंदर कांड का पाठ कराते हैं।
  •  इस शुभ दिन पर रामायण का पाठ करना भी लाभकारी होता है।


चैत्र नवरात्रि 2024 : जानें माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों का पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

 

Chaitra Navtarti 2024 Shailpurti and Nine form of Goddess Durga

चैत्र नवरात्रि 2024 तिथि:
चैत्र नवरात्रि  2024 का आरंभ इस वर्ष  8 अप्रैल की देर रात  से शुरू हो चुकी  है अर्थात पहली पूजन 09 अप्रैल  2024 से आरंभ हुई। चैत्र नवरात्र का पावन अवसर है जब  देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा कि जाती है जो आम तौर पर नवरात्र शैलपुत्री या प्रतिपदा, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री सहित नौ देवी की पूजा की  जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष मां भगवती  घोड़े पर सवार होकर नवरात्र में आ रही हैं जिसे कल्याणकारी नहीं माना जाता है लेकिन मां की विदाई  इस वर्ष नर वाहन पर होगी जिसे शुभ माना जाता है। 
चैत्र नवरात्रि खासतौर पर ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं शारदीय नवरात्रिउत्सव भारत भर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर पश्चिमी भारत में। नवरात्रि के इन दिनों में, लोग धार्मिक परंपराओं, रस्मों, और उत्सवों में भाग लेते हैं, जिनमें दंगल, रास लीला, गरबा, दंडिया रास, और दुर्गा पूजन शामिल हैं।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, चैत्र नवरात्रि आम तौर पर हर साल मार्च या अप्रैल में आती है।

चैत्र नवरात्रि 2024  Date 

  • शैलपुत्री: 09 अप्रैल 2024 
  • ब्रह्मचारिणी: 10 अप्रैल 2024 
  • चंद्रघंटा: 11  अप्रैल 2024 
  • कुष्माण्डा: 12  अप्रैल 2024 
  • स्कंदमाता:  13 अप्रैल 2024 
  • कात्यायनी:  14 अप्रैल 2024 
  • कालरात्रि: 15अप्रैल 2024 
  • महागौरी:  16  अप्रैल 2024 
  • सिद्धिदात्री: 17 अप्रैल 2024 


चैत्र नवरात्रि 2024 के अनुसार, माता दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन निम्नलिखित है:

शैलपुत्री : 

पहला रूप शैलपुत्री है, जो शैल (पर्वत) की पुत्री कहलाती हैं। इस रूप में माता का ध्यान शुद्धता और त्याग में होता है। वह एक कमंडलु और लोटा धारण करती हैं। देवी शैल पुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं जिन्हें भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के रूप में जाना जाता है। शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है जिसका उल्लेख पुराण में किया गया है। ऐसा कहा गया है कि देवी दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में शैपुत्री प्रथम हैं। जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख किया गया है, शैलपुत्री को सती का पुनर्जन्म माना जाता है और वह दक्ष शैलपुत्री की बेटी थीं।

ब्रह्मचारिणी:

 दूसरे रूप में माता ब्रह्मचारिणी हैं, जो तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा करती हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का नाम नवदुर्गा माता के नौ रूपों में से एक है। इस रूप में माँ दुर्गा को तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा का दर्शाया जाता है। 

ब्रह्मचारिणी का स्वरूप उत्तम ध्यान, तपस्या, और संयम का प्रतीक है।  ब्रह्मचारिणी के हाथों में माला और कमंडलु होती है। माला का प्रतीक है ध्यान और मनन, जबकि कमंडलु तपस्या और ब्रह्मचर्य के प्रतीक होती है। वे साधारणतः सफेद वस्त्र पहनती हैं जो उनकी शुद्धता और सात्विकता को दर्शाता है।

चंद्रघंटा: 

तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा हैं, जो चंद्र के आकार की स्थापना करती हैं। वह चंद्रमा के रूप में विशेष आसन पर बैठती हैं।  वे चाँद से प्रकाशित होती हैं और उनके मुख पर एक विशालकाय चंद्रमा की प्रतिमा होती है।

चंद्रघंटा माँ के चेहरे की दृष्टि शांतिप्रद होती है, लेकिन उनका रूप विक्रमी और महान होता है। वे अपने दो हाथों में वीणा धारण करती हैं और अपने चेहरे पर चंद्रमा के रूप का चंद्रकोटि धारण करती हैं। चंद्रघंटा माँ के चंद्रकोटि के बीच एक तिरंगा होता है, जो अभिनवता और शक्ति का प्रतीक होता है। उनके साथ अक्षमाला, बेल, और धूप-दीप का सामान होता है, जो पूजन के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। चंद्रघंटा माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उन्हें भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि माँ चंद्रघंटा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

कुष्माण्डा देवी:

नवदुर्गा माता के चौथे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को जीवन की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है। कुष्माण्डा माँ का स्वरूप बहुत ही भयंकर और प्रभावशाली होता है। उनकी आंखों का रंग लाल होता है और उनके मुख पर एक उग्र मुस्कान होती है। उनके मुख के एक स्वरूप में उनके आंतरिक शक्तियों को दर्शाता है। कुष्माण्डा माँ के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में कमंडलु होती है। वे एक शूल और एक बिखरी चाकू धारण करती हैं, जो उनकी उत्पत्ति की प्रतीक हैं। कुष्माण्डा माँ का वाहन एक शेर होता है, जो उनकी शक्ति और साहस को प्रतिनिधित करता है। कुष्माण्डा माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्त समस्याओं और बाधाओं का निवारण प्राप्त करते हैं, और उन्हें सार्थक और समृद्धिशाली जीवन प्राप्त होता है। उनकी पूजा भक्तों को शक्ति और साहस का आशीर्वाद प्रदान करती है।

स्कंदमाता: 

पांचवे रूप में माता स्कंदमाता हैं, जो स्कंद (कार्तिकेय) की माँ हैं। स्कंदमाता, नवदुर्गा माता के पांचवे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को स्कंद (कार्तिकेय) की माँ के रूप में पूजा जाता है। स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत प्रसन्न और सुंदर होता है। वह एक बालक को अपने गोद में ले कर बैठती हैं, जो कार्तिकेय (स्कंद) को प्रतिनिधित करता है। उनकी विगति आध्यात्मिक और आनंदमयी होती है, और वे आकर्षक साध्वी के रूप में विशेषता दिखाती हैं।स्कंदमाता माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में बच्चों की संतान, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

कात्यायनी: 

छठे रूप में माता कात्यायनी हैं, जो महिषासुर के वध के लिए उत्तर कुमार की पूजा करती हैं। कात्यायनी देवी का स्वरूप अत्यंत महान और उदार होता है। वह चेहरे पर प्रसन्नता और सौम्यता का प्रतीक होती हैं, लेकिन उनकी दृष्टि उग्र और प्रभावशाली होती है। कात्यायनी देवी के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वीणा होती है। उनके दो हाथ और एक मुद्रा में विशेषता दिखाते हैं, जो उनके शक्ति को प्रतिनिधित करते हैं। कात्यायनी देवी का वाहन सिंह होता है, जो उनकी शक्ति और वीरता को प्रतिनिधित करता है। कात्यायनी माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता के लिए संयम और निर्णय देती हैं। 

कालरात्रि: 

सातवें रूप में माता कालरात्रि हैं, जो कालरात्रि की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी हैं।कालरात्रि देवी का स्वरूप अत्यधिक उग्र और भयंकर होता है। वह काली के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं, जिनका चेहरा उग्रता और अद्भुतता से भरा होता है। उनके मुख पर विशालकाय चाकु की प्रतिमा होती है, और उनके आंखों में अग्नि की ज्वाला लगती है। कालरात्रि देवी के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में काले रंग का घड़ा होता है। उनकी तीसरी हाथ में दमरू होता है, और चौथे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है, जो उनकी शक्ति को प्रतिनिधित करते हैं। कालरात्रि देवी का वाहन भालू होता है, जो उनकी शक्ति और संरक्षण को प्रतिनिधित करता है। कालरात्रि माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शक्ति, साहस, और अभय की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी भयों और संकटों को दूर करती हैं, और उन्हें संरक्षण और सम्मान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। 

महागौरी देवी

 नवदुर्गा माता के आठवें रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को शुभ और पवित्र स्वरूप में पूजा जाता है। इस रूप में माँ दुर्गा को उनकी विशेषता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। महागौरी देवी का स्वरूप शानदार और दिव्य होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और वे अत्यंत पवित्र दिखाई देती हैं। वे श्वेत वस्त्र पहनती हैं, जो उनकी निर्मलता और पवित्रता को दर्शाता है। महागौरी देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। उनके चेहरे पर एक मुस्कान होती है, जो उनकी दयालुता और प्रसन्नता को प्रतिनिधित करती है। महागौरी देवी का वाहन सिंह होता है, जो उनकी शक्ति और साहस को प्रतिनिधित करता है। महागौरी माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शुभ और पवित्र गुणों को प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी दुःखों और बुराइयों को दूर करती हैं, और उन्हें शांति और सुख का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

सिद्धिदात्री:

 नौवें रूप में माता सिद्धिदात्री हैं, जो सभी सिद्धियों की देवी हैं। वह अपने दोनों हाथों में वरदान और वाहन को धारण करती हैं। ये नौ रूप माता दुर्गा के अद्वितीय और प्रतिष्ठित रूप हैं, जो नवरात्रि के नौ दिनों में पूजे जाते हैं। सिद्धिदात्री देवी, नवदुर्गा माता के नौवें और अंतिम रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को सर्वशक्तिमान सिद्धिदात्री के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों को सिद्धियाँ (अच्छे परिणाम) प्रदान करती हैं।

सिद्धिदात्री देवी का स्वरूप अत्यधिक प्रसन्न और उदार होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और उनकी आंखों में अनंत दया और स्नेह की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। उनके हाथों में उज्जवल और शुभता की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी का वाहन गदा होता है, जो उनकी सामर्थ्य और शक्ति को प्रतिनिधित करता है। सिद्धिदात्री माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में सिद्धियाँ, सफलता, और अनुग्रह प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


नवरात्री 2024: क्या होता है चैत्र और शारदीय नवरात्र दोनों मे विशेष अंतर जानें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा तिथि

Navratri Manifestation  of 9 Goddess form of Dugra

चैत्र नवरात्रि 2024: चैत्र नवरात्रि  2024 का आरंभ इस वर्ष  8 अप्रैल की देर रात  से शुरू हो चुकी  है अर्थात पहली पूजन 09 अप्रैल  2024 से आरंभ हुई । चैत्र नवरात्र का पावन अवसर है जब  देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा कि जाती है जो आम तौर पर नवरात्र शैलपुत्री या प्रतिपदा, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री सहित नौ देवी की पूजा की  जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष मां भगवती  घोड़े पर सवार होकर नवरात्र में आ रही हैं जिसे कल्याणकारी नहीं माना जाता है लेकिन मां की विदाई  इस वर्ष नर वाहन पर होगी जिसे शुभ माना जाता है। 

क्या होता है चैत्र और शारदीय नवरात्र दोनों मे विशेष अंतर?

चैत्र और शारदीय नवरात्रि दोनों ही  नवरात्रि का अलग-अलग रूप है जो हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार हैं। लेकिन इन दोनों में कुछ अंतर होते हैं। चैत्र नवरात्रि सामान्यत: हिंदू कैलेंडर के अनुसार हिन्दी के चैत्र मास में मनाई जाती है। वहीं शारदीय नवरात्रि सामान्यत: आश्विन मास के अश्विनी पक्ष में मनाया जाता है, जो सितंबर या अक्टूबर में होता है।

चैत्र नवरात्रि खासतौर पर ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं शारदीय नवरात्रिउत्सव भारत भर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर पश्चिमी भारत में। नवरात्रि के इन दिनों में, लोग धार्मिक परंपराओं, रस्मों, और उत्सवों में भाग लेते हैं, जिनमें दंगल, रास लीला, गरबा, दंडिया रास, और दुर्गा पूजन शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि शारदीय नवरात्रि का त्योहार हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. वे देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री.
यह एक नौ दिवसीय त्योहार है जो हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है. नवरात्रि का पहला दिन प्रतिपदा और नौवां दिन दशमी के रूप में जाना जाता है. 

मुख्य तौर पर नवरात्री वर्ष में दो अवसरों पर मनाये जाते हिन् जिन्हे हम मौसम के अनुसार विभाजित करते हैं-चैत्र और शरद नवरात्र। चैत्र नवरात्र मूल रूप से चैत्र के महीने में आते हैं, जो कि 12 हिंदी महीने का पहला महीना है।

नवरात्रि मनाने के लिए, भक्त एक ही देवता की पूजा करते हैं, विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। नवरात्र के अवसर पर हम नवदुर्गा या दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। हालाँकि, पहले दिन हम देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं, जो देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों में सबसे पहले हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के कुल नौ रूपों की पूजा की गई है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

  • चैत्र नवरात्रि 2024  Date 

    • शैलपुत्री: 09 अप्रैल 2024 
    • ब्रह्मचारिणी: 10 अप्रैल 2024 
    • चंद्रघंटा: 11  अप्रैल 2024 
    • कुष्माण्डा: 12  अप्रैल 2024 
    • स्कंदमाता:  13 अप्रैल 2024 
    • कात्यायनी:  14 अप्रैल 2024 
    • कालरात्रि: 15अप्रैल 2024 
    • महागौरी:  16  अप्रैल 2024 
    • सिद्धिदात्री: 17 अप्रैल 2024 

 शैलपुत्री को पर्वत हिमालय की पुत्री माना जाता है जिसका उल्लेख पुराण में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि शैपुत्री देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों में प्रथम है। देवी शैलपुत्री को प्रकृति माता का पूर्ण रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शैलपुत्री का जन्म पर्वतों के राजा, हिमालय शैल के घर में हुआ था और इसलिए उन्हें "शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है।

आमतौर पर हम नवरात्र को मनाने के लिए दो अवसरों का उपयोग करते हैं जिन्हें चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र के नाम से जाना जाता है। प्रसिद्ध हिंदू चैत्र नवरात्रि हिंदी कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने में शुरू होती है। चैत्र हिंदी 12 महीने का पहला महीना है जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च/अप्रैल में माना जाता है।

 ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा की दूसरी अभिव्यक्ति है जिसे हम नवरात्र के दूसरे दिन पूजा करते हैं। देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा है और हम नवरात्र के तीसरे दिन पूजा करते हैं।

 कुष्मांडा देवी दुर्गा की चौथी अभिव्यक्ति है और नवरात्र के चौथे दिन इनकी पूजा की जाती है। पांचवीं कुष्मांडा, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और देवी सिद्धिदात्री देवी दुर्गा की नौवीं अभिव्यक्ति हैं।

नवरात्रि में भक्तगण माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं और मनाने के लिए, भक्त एक ही देवता की पूजा और अनुष्ठान करते हैं।

नजरिया जीने का: पढ़ें और भी...

रिश्ते खास हैं, इन्हे अंकुरित करें प्रेम से, जिंदा रखें संवाद से और दूर रखें गलतफहमियों से

इमोशनल हैं, तो कोई वादा नहीं करें और गुस्से में हों तो इरादा करने से परहेज करें

स्व-अनुशासन के महत्त्व को समझे और जीवन को बनाएं सार्थक 

रखें खुद पर भरोसा,आपकी जीत को कोई ताकत हार में नहीं बदल सकती

जाने क्या कहते हैं ये हस्तियां नागरिक विश्वास और समावेशी विकास के सन्दर्भ में

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Najariya jine ka: भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा से मिली पहचान पर अब भ्रष्टाचार के आरोप का संकट

Arvind Kejriwal AAP Crisis

अरविंद केजरीवाल तब अक्सर कहा करते थे कि वे भारत कि राजनीति मे कुछ नया करने आए हैं। और इसमे संदेह भी नहीं है कि उन्होंने भारतीय राजनीति मे एक नए प्रयोग का जन्म दिया। यह केजरीवाल के सोच और  स्ट्रैटिजी का हीं नतीजा था  जिसके कारण  यह संभव हुआ कि भारतीय राजनीति मे जहां कितनी क्षेत्रीय पार्टियां  सिर्फ एक राज्य मे शासन करते हुए रह गई, केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली से बाहर पंजाब मे शासन मे लाए और राष्ट्रीय दल का तमगा भी हासिल करवाने मे सफलता पाई। 

दल के जरूरत और भविष्य को लेकर अरविन्द केजरीवाल ने तब कहा था कि आम आदमी पार्टी (आप) भ्रष्टाचार से ग्रस्त भारतीय राजनीति के खिलाफ 'हमारे' संघर्ष का परिणाम है और इसे उन्होंने साबित भी किया। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं, नवंबर 2012 में, अरविंद केजरीवाल,जो सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान सुर्खियों में रहे थे - ने एक राजनीतिक पार्टी शुरू करने का फैसला किया  और आज वही आम आदमी पार्टी  राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल कर चुकी है और विपक्षी गठबंधन का एक प्रमुख घटक है। 

हालांकि पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी दिल्ली की उत्पाद शुल्क नीति में कथित भ्रष्टाचार से संबंधित है. उल्लेखनीय है कि केजरीवाल से पहले पार्टी के दो वरिष्ठ नेता मनीष सिसौदिया और संजय सिंह को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है

हालांकि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक साजिश करार दिया है। गिरफ़्तारी के बाद विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के नेताओं जैसे राहुल गांधी, अखिलेश सिंह सहित अन्य नेताओं ने केजरीवाल  कि गिरफ़्तारी का विरोध करते हैं इसे सत्तारूढ़ भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। 

केजरीवाल की गिरफ्तारी का समय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ हफ्ते पहले हो रहा है। य हालांकि इतना तो तय  है कि अरविन्द केजरीवाल कि गिरफ़्तारी  आगामी लोक सभा चुनाव मे  एक प्रमुख फैक्टर बन सकता है।

सबसे ज्यादा यह आम आदमी पार्टी के लिए काफी यहां है क्योंकि केजरीवाल के नहीं होने से पार्टी के लोक सभा चुनाव मे उसके प्रदर्शन पर बुरा असर  पड़ेगा। जाहीर है कि I.N.D.I.A. गठबंधन को भी इसका खामियाजा भुगतना पद सकता हैं क्योंकि केजरीवाल इस गठबंधन के सबसे प्रभावशाली चेहरों मे से एक हैं। 

होली 2024/25/26: तिथि, होलिका दहन, होलाष्टक और भी बहुत कुछ

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होली 2024 तिथि (25 मार्च 2024): होली 2024, वह दिन जिसका लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं, 25 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। होली जो आमतौर पर हिंदी पंचांग के अनुसार फाल्गुन/चैत्र में मनाई जाती है, हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक त्योहार है। होली एक ऐसा अवसर है जो सभी लोगों के लिए अद्वितीय संदेश देता है और इसे बिना किसी बाधा के अमीर या गरीब के साथ मनाया जाता है और सभी पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। होली उत्सव पूरी तरह से होलिका दहन और होलाष्टक सहित महत्वपूर्ण भाग से जुड़ा हुआ है जो हर साल होली के उत्सव के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदी माह फाल्गुन की शुरुआत के साथ ही वातावरण में होली की खुशबू शुरू हो जाती है।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। होली ज्यादातर जगहों पर दो दिन मनाई जाती है, जिसके तहत पहले दिन होलिका दहन होता है और उसके बाद होली का त्योहार विधिवत मनाया जाता है।

होली 2024:

  • होलिका दहन: 24 मार्च 2024, शनिवार
  • होलाष्टक: 17 मार्च 2024, शनिवार से शुरू होकर 24 मार्च 2024, शनिवार तक
  • धुलंडी: 25 मार्च 2024, रविवार
होली तिथि: जाने आने वाले अगले साल मे कब मनाई जाएगी 
2024 25 मार्च सोमवार होली
2025 14 मार्च शुक्रवार होली
2026 3 मार्च मंगलवार होली

होलाष्टक:

कहा जाता है कि सामान्य तौर पर होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है, यानी इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करने से बचना चाहिए. यदि आप होलाष्टक के बंधन को तोड़ते हैं, तो यह 'होली' और 'अष्टक' के रूप में ध्वनि करेगा, जो आठ दिनों का प्रतीक है, होलाष्टक शुभ प्रयासों के लिए अशुभ मानी जाने वाली अवधि को चिह्नित करता है। इन दिनों के दौरान होली के एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान, होलिका दहन की तैयारी शुरू होती है।

पंचांग के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या अन्य कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।

  • होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक रहता है।
  • इस अवधि को अशुभ माना जाता है।
  • इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
  • लोग इस अवधि में धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं और दान करते हैं।

होलिका दहन-

होलिका दहन होली के उत्सव का महत्वपूर्ण घटक है जो होली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है।

होलिका दहन के दिन आमतौर पर घर की महिलाएं पूजा सामग्री लेकर परंपरा के अनुसार शाम को होने वाले होलिका दहन में अर्पित करती हैं। महिलाएं होलिका दहन स्थल की परिक्रमा करती हैं और प्रसाद चढ़ाकर पूजा करती हैं।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त:

भद्रा पूंछा: 24 मार्च 2024, 6:31 PM से 7:59 PM तक

भद्रा मुख: 24 मार्च 2024, 7:59 PM से 9:27 PM तक

होलिका दहन का समय: 9:27 PM के बाद 

होलिका दहन की विधि:

होलिका दहन के लिए एक स्थान पर लकड़ी और अन्य पदार्थों का ढेर बनाया जाता है।

ढेर के ऊपर होलिका रखी जाती है।

पूजा-अर्चना के बाद, ढेर को आग लगाई जाती है।

लोग होलिका दहन के आसपास नाचते-गाते हैं और रंगों से खेलते हैं।

होलिका दहन का महत्व:

  • होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
  • यह बुराई, नकारात्मकता और अंधकार को दूर करने का त्योहार है।
  • यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।