नागपुर में विश्व रिकॉर्ड: सिंगल कॉलम पियर्स पर समर्थित मेट्रो रेल और फ्लाईओवर Facts in Brief
ना-आयन बैटरी और सुपरकैपेसिटर से तेजी से चार्ज होने वाली ई-साइकिल विकसित:Facts in Brief
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में भौतिकी विभाग में प्रोफेसर, डॉ. अमरीश चंद्र, ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए शोध कर रहे हैं, जो ना-आयन पर आधारित हैं, और उनकी टीम ने बड़ी संख्या में नैनो सामग्री विकसित की है। टीम ने सोडियम आयरन फॉस्फेट और सोडियम मैंगनीज फॉस्फेट का उपयोग किया है जिसे उन्होंने भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के प्रौद्योगिकी मिशन डिवीजन (टीएमडी) के समर्थन से ना-आयन-आधारित बैटरी और सुपरकैपेसिटर प्राप्त करने के लिए संश्लेषित किया है। इन सोडियम सामग्रियों को बैटरी विकसित करने के लिए कार्बन के विभिन्न नई संरचनाओं के साथ जोड़ा गया था।
ये सोडियम सामग्री ली-आधारित सामग्री से सस्ती, उच्च प्रदर्शन करने वाली है, और इसे औद्योगिक स्तर के उत्पादन तक बढ़ाया जा सकता है। ना-आयन सेल को भी अनेक अन्य भंडारण तकनीकों की तुलना में सुरक्षित विकल्प बनाने के लिए कैपेसिटर के समान शून्य वोल्ट में पूरी तरह से डिस्चार्ज किया जा सकता है। इस तथ्य का लाभ उठाते हुए कि ना-आयन बैटरी को तेजी से चार्ज किया जा सकता है, डॉ. अमरीश ने इसे ई-साइकिल में जोड़ा है जो आम जनता के लिए एक आसान, किफायती विकल्प है।
आगे विकसित करने के साथ, इन वाहनों की कीमत 10-15 हजार रुपये की सीमा तक लाई जा सकती है, जिससे यह ली-आयन भंडारण प्रौद्योगिकी-आधारित ई-साइकिलों की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत सस्ती है। चूंकि ना-आयन-आधारित बैटरियों के निपटान की रणनीति सरल होगी, यह जलवायु को होने वाले नुकसान को कम करने में भी मदद कर सकती है। सुपरकैपसिटर पर शोध जर्नल ऑफ पावर सोर्सेज में प्रकाशित हुआ था, और ई-साइकिल में इन ना-आयन-आधारित बैटरी के उपयोग पर कुछ पेटेंट पाइपलाइन में हैं।
अभ्यास: हाई स्पीड एक्सपैंडेबल एरियल टार्गेट का सफलतापूर्वक परीक्षण- Facts in Brief
अभ्यास - हाई स्पीड एक्सपैंडेबल एरियल टार्गेट (एचईएटी) का ओडिशा के तट पर स्थित चांदीपुर के इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आईटीआर) से सफलतापूर्वक उड़ान परीक्षण किया गया। अभ्यास की डिजाइन एवं उसका विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान द्वारा किया गया है।
उड़ान परीक्षण के दौरान निरंतर स्तर तथा उच्च गतिशीलता सहित कम ऊंचाई पर विमान का निष्पादन प्रदर्शित किया गया। टार्गेट विमान को एक पूर्व-निर्धारित निम्न ऊंचाई वाले उड़ान पथ में एक ग्राउंड आधारित कंट्रोलर से उड़ाया गया जिसकी निगरानी राडार तथा इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टारगेटिंग सिस्टम सहित आईटीआर द्वारा तैनात विभिन्न ट्रैकिंग सेंसरों द्वारा की गई।
अभ्यास की डिजाइन एवं उसका विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान द्वारा किया गया है। इस हवाई वाहन को ट्विन अंडर-स्लग बूस्टर का उपयोग करने के जरिये लॉन्च किया गया जो व्हीकल को आरंभिक गति प्रदान करते हैं। यह हाई सबसोनिक स्पीड पर एक लंबी इंड्यूरेंस फ्लाइट को बनाये रखने के लिए एक छोटे से गैस टरबाइन द्वारा संचालित है।
टारगेट विमान बहुत ऊंची उड़ान के लिए स्वदेशी रेडियो अल्टीमीटर तथा ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन तथा टारगेट विमान के बीच इनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन के लिए डाटा लिंक के साथ-साथ गाइडेंस और कंट्रोल के लिए फ्लाइट कंट्रोल कंप्यूटर के साथ नैविगेशन के लिए माइक्रो-इलेक्ट्रोमैकेनिकल सिस्टम आधारित इनर्शियल नैविगेशन स्स्टिम के साथ सुसज्जित है। इस व्हीकल को पूरी तरह स्वचालित उड़ान के लिए प्रोग्राम किया गया है।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अभ्यास के सफल उड़ान परीक्षण के लिए डीआरडीओ, सशस्त्र बलों तथा उद्योग को बधाई दी है और कहा कि इस सिस्टम का विकास सशस्त्र बलों के लिए एरियल टार्गेट की आवश्यकता को पूरा करेगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव तथा डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी ने सिस्टम के डिजाइन, विकास और परीक्षण से जुड़ी टीमों के प्रयासों की सराहना की।
एंटी-शिप मिसाइल का सफलतापूर्वक पहला उड़ान परीक्षण: Facts in Brief
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय नौसेना ने ओडिशा के समुद्र तट पर एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर), चांदीपुर से नौसेना हेलीकॉप्टर के जरिए स्वदेशी रूप से विकसित नौसैनिक एंटी-शिप मिसाइल का सफलतापूर्वक पहला उड़ान परीक्षण किया। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने पहले विकासात्मक उड़ान परीक्षण के लिए डीआरडीओ, भारतीय नौसेना और परीक्षण से संबंधित टीमों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारत ने मिसाइल प्रणालियों के स्वदेशी डिजाइन और विकास में उच्च स्तर की क्षमता हासिल कर ली है।
DIPCOVAN: डीआरडीओ ने कोविड-19 एंटीबॉडी पहचान किट विकसित की
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एण्ड एलायड सांसेज (डीआईपीएएस) ने सीरो-निगरानी के लिए एंटीबॉडी पहचान आधारित किट ‘डिपकोवैन‘, डीपास-वीडीएक्स कोविड-19 IgG एंटीबॉडी माइक्रोवेल एलिसा विकसित की है। डिपकोवैन किट 97 प्रतिशत उच्च संवेदनशीलता और 99 प्रतिशत विशिष्टता के साथ सार्स सीओवी-2 वायरस के स्पाइक के साथ-साथ न्यूक्लियोकैप्सिड (एस एंड एन) प्रोटीन दोनों का पता लगा सकती है। किट नई दिल्ली की कंपनी वैनगार्ड डायग्नोस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से विकसित की गई है।
डिपकोवैन किट स्वदेश में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई है और बाद में दिल्ली में निर्दिष्ट अस्पतालों में 1,000 से अधिक मरीज नमूनों पर इसका व्यापक सत्यापन किया गया है। उत्पाद के तीन बैचों पर सत्यापन का काम पिछले एक वर्ष के दौरान किया गया। इस किट को अप्रैल, 2021 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा मंजूरी दी गई।
इस उत्पाद को बिक्री और वितरण के लिए बनाने की नियामक मंजूरी मई 2021 में भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दी गई।
डिपकोवैन का उद्देश्य मानव सीरम या प्लाज्मा में गुणात्मक दृष्टि से IgG एंटीबॉडी का पता लगाना है जो सार्स सीओवी-2 से संबंधित एंटीजेन लक्षित करता है। यह काफी तेज़ टर्न-अराउंड-टाइम प्रदान करता है क्योंकि अन्य बीमारियों के साथ किसी भी क्रॉस रिएक्टिविटी के बिना परीक्षण करने के लिए इसे केवल 75 मिनट की आवश्यकता होती है। किट की शेल्फ लाइफ 18 महीने की है।
उद्योग साझेदार कंपनी वैनगार्ड डायग्नोस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड जून 2021 के पहले सप्ताह में किट को वाणिज्यिक रूप से लांच करेगी। लांच किए जाने के समय आसानी से उपलब्ध स्टॉक 100 किट (लगभग 10,000 जांच) का होगा और लांच के बाद इसकी उत्पादन क्षमता 500 किट/ प्रति माह होगी। आशा है यह 75 रुपए प्रति जांच पर उपलब्ध होगी। यह किट कोविड-19 महामारी विज्ञान को समझने तथा व्यक्ति में पहले सार्स सीओवी-2 के एक्सपोजर के मूल्यांकन काफी उपयोगी होगी ।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने जरूरत के समय किट विकसित करने में डीआरडीओ तथा उद्योग के प्रयासों की सराहना की है ।
रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के सचिव तथा डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी ने किट विकसित करने में शामिल टीम की प्रशंसा की और कहा कि इस कदम से महामारी के दौरान लोगों को मदद मिलेगी। (Source PIB)
जानें क्या है टच-लेस टच स्क्रीन प्रौद्योगिकी जो लगा सकती है संपर्क से फैलने वाले वायरस पर लगाम
भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत वाला एक टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर अर्थात स्पर्श-सह-सामीप्य संवेदक विकसित करने के लिए प्रिंटिंग तकनीक के जरिये एक किफायती समाधान प्रदान किया है जिसे टचलेस टच सेंसर कहा जाता है।
कोरोनावायरस महामारी ने हमारी जीवन शैली को महामारी परिदृश्यों के अनुकूल बनाने के प्रयासों को तेज कर दिया है। कामकाज स्वाभाविक रूप से वायरस फैलने के जोखिम को कम करने के लिए रणनीतियों से प्रेरित हो गया हैं, खासतौर से सार्वजनिक स्थलों पर जहां सेल्फ-सर्विस कियोस्क, एटीएम और वेंडिंग मशीनों पर टचस्क्रीन लगभग अपरिहार्य हो गए हैं।
हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थानों के नैनो और सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) तथा जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस एंड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने प्रिंटिंग एडेड पैटर्न (लगभग 300 माइक्रोन का रिजॉल्यूशन) पारदर्शी इलेक्ट्रोड के उत्पादन के लिए एक अर्ध-स्वचालित उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है जिसमें उन्नत टचलेस स्क्रीन प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने की क्षमता है।
प्रो. जी. यू. कुलकर्णी और सहकर्मियों के नेतृत्व में और सीईएनएस में डीएसटी-नैनोमिशन द्वारा वित्त पोषित टीम द्वारा किया गया यह कार्य हाल ही में ’मैटेरियल्स लेटर्स’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष के. सिंह ने कहा, ’’हमने एक टच सेंसर बनाया है जो डिवाइस से 9 सेमी की दूरी से भी नजदीकी या आसपास मडराने वाली चीजों के स्पर्श को महसूस करता है।’’
शोधपत्र के एक अन्य सह-लेखक डॉ. इंद्रजीत मंडल ने कहा, ’’हम अन्य स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों के लिए उनकी व्यावहारिकता साबित करने के लिए अपने पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड का उपयोग करके कुछ और प्रोटोटाइप बना रहे हैं। इन पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड को सहयोगी परियोजनाओं का पता लगाने के लिए इच्छुक उद्योगों और आरएंडडी प्रयोगशालाओं को अनुरोध के आधार पर उपलब्ध कराया जा सकता है।’’
नए, कम लागत पैटर्न वाले पारदर्शी इलेक्ट्रोड में उन्नत स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे टचलेस स्क्रीन तथा सेंसर में उपयोग किए जाने की काफी संभावना है। यह टचलेस टच सेंसर तकनीक संपर्क से फैलने वाले वायरस को फैलने से रोकने में मदद कर सकती है।
Science: स्पर्श और ध्वनिक सेंसर में संभावित अनुप्रयोगों के लिए विकसित विशेष इलेक्ट्रो-सक्रिय नैनो कणों को विकसित किया गया
इस प्रयास में लगे वैज्ञानिकों में से एक डॉ. मंडल ने बताया कि "नई विधि न केवल पीवीडीएफ में अब तक के सबसे कम संभव विद्युत क्षेत्र के अंतर्गत पीजोइलेक्ट्रिक δ -चरण को प्रेरित करने का एक उत्कृष्ट तरीका प्रदान करती है बल्कि यह एक एकल चरण प्रक्रिया में नैनोस्ट्रक्चर की आकारिकी को नियंत्रित करने में भी सक्षम बनाती है। इसलिए यह कार्य इस क्षेत्र में नैनो तकनीक के उपयोग की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त करेगा और डेल्टा चरण के अनुप्रयोग पर और अधिक ऐसी संभावनाएं तलाशेगा जो इससे पहले उच्च विद्युत क्षेत्र की आवश्यकता के कारण रुकी हुई थी। साथ ही यह केवल फिल्म-आधारित नमूनों तक ही सीमित था। इसलिए जैसा कि हमने तय किया था कि हम अब इसे नवीनता और मौजूदा तकनीक के संदर्भ में 10/10 अंक देंगे”।
अनुप्रयोग-आधारित संभावनाएं पहले उच्च विद्युत क्षेत्र की आवश्यकता के कारण होती थीं। इसके अलावा, अनुप्रयोग भी फिल्म-आधारित उपकरणों तक सीमित थे। वर्तमान निष्कर्ष इससे आगे जाते हैं और कमरे के तापमान पर नई प्रसंस्करण तकनीक के साथ-साथ इस चरण के विभिन्न नैनोस्ट्रक्चर निर्माण का भी पता लगाते हैं।
इस अवधारणा के साक्ष्य के रूप में नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने प्रेशर मैपिंग सेंसर, ध्वनिक (एकॉस्टिक) सेंसर, और पीजोइलेक्ट्रिक ऊर्जा संचयन (एनर्जी हार्वेस्टर) के रूप में कुछ अनुप्रयोगों को भी दिखाया है। इन नैनोकणों के पीजोइलेक्ट्रिक गुणों के अनुप्रयोग को प्रदर्शित करने के लिए एक पीजोइलेक्ट्रिक नैनो जेनरेटर भी विकसित किया गया था और प्रेशर मैपिंग सेंसर, एकॉस्टिक सेंसर एवं ऊर्जा संचयन अध्ययनों के रूप में इसके व्यावहारिक अनुप्रयोगों का प्रदर्शन किया गया था।
इस उपकरण की उच्च ध्वनिक संवेदनशीलता ध्वनिक शोर, भाषण संकेतों, श्वसन गति की पहचान क्षमता को इंगित करने के साथ ही इसकी प्रौद्योगिक प्रयोज्यता का भी विस्तार करती है। इसके अलावा, नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) टीम ने पॉलीविनाईलिडीन फ्लोराइड (पीवीडीएफ) नैनोकणों के δ -चरण का उपयोग किए जाते समय एंटी-फाइब्रिलाइजिंग प्रभाव भी देखा जो अल्जाइमर जैसी बीमारियों की रक्षा के लिए बहुत आवश्यक है और जो स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में उभरते भविष्य के अनुप्रयोगों के लिए अवसर पैदा करता है।
भारत का 41वां अंटार्कटिका साइंटिफिक एक्सपीडिशन: जानें दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती स्टेशन के बारे में
भारत ने दक्षिणी श्वेत महाद्वीप में अपने दल के पहले बैच के आगमन के साथ अंटार्कटिका के लिए 41वें साइंटिफिक एक्सपीडिशन की सफलतापूर्वक शुरुआत की है। 23 वैज्ञानिकों और सहायक कर्मचारियों का पहला जत्था भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री पहुंचा। चार अन्य बैच जनवरी 2022 के मध्य तक ड्रोमलान फैसिलिटी और चार्टर्ड आइस-क्लास पोत एमवी वैसिलिय-गोलोवनिन का उपयोग करके हवाई मार्ग से अंटार्कटिका में उतरेंगे।
1981 में शुरू हुए भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम ने 40 वैज्ञानिक एक्सपीडिशन पूरे कर लिए हैं, और अंटार्कटिका में तीन स्थायी अनुसंधान बेस स्टेशन बनाए हैं जिनका नाम दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012) है। वर्तमान में मैत्री और भारती पूरी तरह से चालू हैं। गोवा में स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है जो पूरे भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम का प्रबंधन करता है।
इस 41वें एक्सपीडिशन के दो प्रमुख कार्यक्रम हैं। पहले कार्यक्रम में भारती स्टेशन पर अमेरी आइस शेल्फ का भूवैज्ञानिक अन्वेषण शामिल है। इससे अतीत में भारत और अंटार्कटिका के बीच की कड़ी का पता लगाने में मदद मिलेगी। दूसरे कार्यक्रम में टोही सर्वेक्षण और मैत्री के पास 500 मीटर आइस कोर की ड्रिलिंग के लिए प्रारंभिक कार्य शामिल है। यह पिछले 10,000 वर्षों से एक ही जलवायु संग्रह से अंटार्कटिक जलवायु, पश्चिमी हवाओं, समुद्री-बर्फ और ग्रीनहाउस गैसों की समझ में सुधार करने में मदद करेगा। आइस कोर ड्रिलिंग ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे और नॉर्वेजियन पोलर इंस्टीट्यूट के सहयोग से की जाएगी। वैज्ञानिक कार्यक्रमों को पूरा करने के अलावा, यह मैत्री और भारती में जीवन समर्थन प्रणालियों के संचालन और रखरखाव के लिए भोजन, ईंधन, प्रावधानों और पुर्जों की वार्षिक आपूर्ति की भरपाई करेगा।
1981 में शुरू हुए भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम ने 40 वैज्ञानिक एक्सपीडिशन पूरे कर लिए हैं, और अंटार्कटिका में तीन स्थायी अनुसंधान बेस स्टेशन बनाए हैं जिनका नाम दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012) है। वर्तमान में मैत्री और भारती पूरी तरह से चालू हैं। गोवा में स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है जो पूरे भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम का प्रबंधन करता है।
भारत अंटार्कटिका महाद्वीप को कोविड-19 महामारी से मुक्त और सुरक्षा के उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है इसलिए भारतीय दल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में एक सख्त चिकित्सा परीक्षा के बाद अंटार्कटिका पहुंच गया है। इसके अलावा इस दल ने पर्वतारोहण और स्कीइंग संस्थान, आईटीबीपी औली, उत्तराखंड में बर्फ के अनुकूलन और अस्तित्व के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया है और दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में 14 दिनों के क्वारेनटीन सहित एक कड़े स्वच्छता प्रोटोकॉल का पालन किया है।
सर्दियों में 48 सदस्यों की टीम को छोड़कर, इस दल की मार्च के आखिर में या अप्रैल की शुरुआत में केप टाउन लौटने की उम्मीद है। यह पिछले 40वें अभियान की ओवर विंटर टीम को भी वापस लाएगा। 41वें अभियान का नेतृत्व डॉ. शैलेंद्र सैनी, वैज्ञानिक राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (वॉयेज लीडर), श्री हुइड्रोम नागेश्वर सिंह, मेट्रोलॉजिस्ट, इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (लीडर, मैत्री स्टेशन) और श्री अनूप कलायिल सोमन, वैज्ञानिक भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (नेता, भारती स्टेशन) द्वारा किया जा रहा है।
शोधकर्ताओं ने हमारे निकटवर्ती ब्रह्मांड में आपस में विलीन हो रहे तीन महाविशाल ब्लैकहोल्स का पता लगाया
किसी प्रकार का प्रकाश उत्सर्जित नहीं करने के कारण महाविशाल ब्लैक होल का पता लगाना कठिन ही होता है ,लेकिन वे अपने परिवेश के साथ समाहित होकर अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं। जब आसपास से धूल और गैस ऐसे किसी सुपरमैसिव ब्लैक होल पर गिरती है तो उसका कुछ द्रव्यमान ब्लैक होल द्वारा निगल लिया जाता है। लेकिन इसमें से कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में उत्सर्जित होता है जिससे वह ब्लैक होल बहुत चमकदार दिखाई देता है। इन्हें एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियस-एजीएन कहा जाता है और ऐसे नाभिक आकाशगंगा और उसके वातावरण में भारी मात्रा में आयनित कण और ऊर्जा छोड़ते हैं। तदुपरांत ये दोनों आकाशगंगा के चारों ओर का माध्यम विकसित करने और अंततः उस आकाशगंगा के विकास और उसके आकार में वृद्धि में अपना योगदान देते हैं।
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स) के शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बर्वे शामिल हैं ने कॉलेज डी फ्रांस कॉम्ब्स, चेयर गैलेक्सीज एट कॉस्मोलोजी, पेरिस, के फ्रैंकोइस कॉम्ब्सइ साथ एनजीसी 7733 और एनजीसी 7734 की जोड़ी का संयुक्त रूप से अध्ययन करते हुए एक ज्ञात इंटर-एक्टिव आकाशगंगा एनजीसी 7734 के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन और एनजीसी 7733 की उत्तरी भुजा के साथ एक बड़े चमकीले झुरमुट (क्लम्प) का पता लगाया । उनकी जांच से पता चला है कि यह झुरमुट आकाशगंगा एनजीसी 7733 की तुलना में एक अलग ही गति से आगे बढ़ रहा है।
वैज्ञानिकों का यहाँ आशय यह भी था कि यह झुरमुट एनजीसी 7733 का हिस्सा नहीं होकर उत्तरी भुजा के पीछे की एक छोटी किन्तु अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733 एन रखा है।
जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में एक पत्र के रूप में प्रकाशित इस अध्ययन में पहली भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला पर लगे एस्ट्रोसैट अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (यूवीआईटी), यूरोपियन इंटीग्रल फील्ड ऑप्टिकल टेलीस्कोप जिसे एमयूएसई भी कहा जाता है, और जो चिली में बहुत बड़े आकार के दूरदर्शी (वेरी लार्ज टेलीस्कोप - वीएलटी) पर स्थापित किया किया गया है, से मिले आंकड़ों के साथ ही दक्षिण अफ्रीका में ऑप्टिकल टेलीस्कोप से प्राप्त (आईआरएसएफ) से प्राप्त इन्फ्रारेड चित्रों का उपयोग किया गया है।
अल्ट्रावायलेट-यूवी और एच-अल्फा छवियों ने निकल रही तरंगों के अतिम सिरे (टाइडल टेल्स) के साथ एक नए तारे के निर्माण का प्रकटीकरण करके वहां तीसरी आकाशगंगा की उपस्थिति का भी समर्थन किया जो एक बड़ी आकाशगंगा के साथ एनजीसी 7733 एन के विलय से बन सकती थी। इन दोनों आकाशगंगाओं के केंद्र (नाभिक) में एक सक्रिय महाविशाल ब्लैक होल बना हुआ है और इसलिए इनसे एक बहुत ही दुर्लभ एजीएन सिस्टम बन जाती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, आकाशगंगा के विकास को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक आकाशगंगाओं की परस्पर क्रिया है जो तब होती है जब विभिन्न आकाशगंगाएं एक-दूसरे के निकट आती हैं और एक-दूसरे पर अपना जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण बल लगाती हैं। इस तरह आकाशगंगाओं के आपस में मिलते समय उनमे विद्यमान महाविशाल ब्लैकहोल्स के भी एक-दूसरे के एक दूसरे के पास आने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैं। अब द्विगुणित हो चुके ब्लैक होल्स अपने परिवेश से गैस का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और दोहरी सक्रिय मंदाकिनीय नाभिक प्रणाली (एजीएन) में परिवर्तित हो जाते हैं।
भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए) की टीम इसका घटना क्रम की व्याख्या करते हुए बताती है कि अगर दो आकाशगंगाएं आपस में टकराती हैं तो उनके ब्लैक होल भी अपनी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में स्थानांतरित करके पास आ जाएंगे। ब्लैकहोल्स के बीच की दूरी समय के साथ तब तक घटती जाती है जब तक कि उनके बीच का अंतर एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए। इसके बाद दोनों ब्लैक होल तब अपनी और अधिक गतिज ऊर्जा का व्यय नहीं कर पाते हैं ताकि वे और भी करीब आ सकें और एक-दूसरे में विलीन हो सकें। इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है। तीसरे ब्लैक होल की उपस्थिति इस समस्या को हल कर सकती है। आपस में विलीन हो रहे दोनों ब्लैकहोल ऐसे में अपनी ऊर्जा को तीसरे ब्लैकहोल में स्थानांतरित कर सकते हैं और तब एक दूसरे के साथ विलय कर सकते हैं।
इससे पहले अतीत में कई सक्रिय एजीएन के जोड़ों का पता चला है। लेकिन तिहरी सक्रिय मंदाकिनीय नाभिक प्रणाली (ट्रिपल एजीएन) अत्यंत दुर्लभ हैं और एक्स-रे अवलोकनों का उपयोग शुरू किए जाने से पहले गिनती की ही ऐसी प्रणालियों के बारे में जानकारी थी। तथापि भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए) की टीम को उम्मीद है कि आकाशगंगाओं के छोटे विलय वाले समूहों में ऐसी ट्रिपल एजीएन प्रणाली और अधिक सामान्य होगी। हालांकि यह अध्ययन केवल एक ही प्रणाली पर केंद्रित है। परिणाम बताते हैं कि इस प्रकार विलीन होने वाले छोटे समूह कई महाविशाल ब्लैक होल्स का पता लगाने के लिए अपने आप में आदर्श प्रयोगशालाएं हैं।
स्पेस टूरिज्म-द नेक्स्ट फ्रंटियर: Facts in brief
नेहरू विज्ञान केंद्र, मुंबई ने एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, मुंबई शाखा के सहयोग से 27 जुलाई, 2021 को 'स्पेस टूरिज्म: द नेक्स्ट फ्रंटियर' पर एक ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया। वीएम मेडिकल सेंटर, मुंबई की एयरोस्पेस मेडिसिन स्पेशलिस्ट, डॉ. पुनीता मसरानी ने व्याख्यान में वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।
अंतरिक्ष पर्यटन या वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा की अवधारणा नई नहीं है और इसके विचार की अवधारणा से वास्तविकता तक के इतिहास पर डॉ. पुनीता ने ऑनलाइन व्याख्यान में चर्चा की। अंतरिक्ष पर्यटन, मनोरंजन के व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष यात्रा है। डॉ. पुनीता ने बताया कि अंतरिक्ष पर्यटन हाल ही में दो अमेरिकी अरबपतियों, रिचर्ड ब्रोंसन और जेफ बेजोस की वजह से खबरों में रहा है, जो अपने निजी रॉकेट और विमान का उपयोग करके पर्यटकों के रूप में अंतरिक्ष में गए थे।
व्याख्यान में डॉ. पुनीता ने कहा कि पहले नासा और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने पर्यटकों को अंतरिक्ष यात्रा के लिए ले जाना शुरू किया था। यह प्रक्रिया अत्यधिक कड़ी थी। रूसी सोयुज अंतरिक्ष यान हर 6 महीने में पर्यटकों को ले जाता था। 'स्पेस एडवेंचर्स अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में पहली एजेंसी थी। डॉ. पुनीता ने बताया कि एजेंसी की शुरुआत 1998 में अमेरिकी अरबपति रिचर्ड गैरियट ने की थी। एजेंसी ने रूसी सोयुज रॉकेट्स पर मध्यस्थता की सवारी की पेशकश की थी।
डॉ. पुनीता ने कहा, जबकि नासा और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी दोनों ने अंतरिक्ष पर्यटन को रोक दिया, उद्योगपतियों और उद्यमियों ने सोचा कि वे निजी मिशन शुरू कर सकते हैं ताकि अधिक से अधिक लोग अंतरिक्ष की यात्रा कर सकें। इसने अंतरिक्ष पर्यटन की अवधारणा को जन्म दिया।
डॉ. पुनीता ने अपने व्याख्यान में कहा कि डेनिस टीटो पहले वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्री थे, जिसके पहले केवल अंतरिक्ष यात्री ही अनुसंधान उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष में जाते थे। टीटो अप्रैल 2001 में रूसी सोयुज टीएमए लॉन्च व्हीकल पर अंतरिक्ष में गए। मार्क शटलवर्थ, ग्रेग ऑलसेन, अनुश अंसारी, चार्ल्स सिमोनी, रिचर्ड गैरियट, गाइ लालिबर्टे अन्य अंतरिक्ष यात्री थे जो 2002 से 2009 के बीच अंतरिक्ष की शुल्क के साथ अंतरिक्ष यात्राओं पर गए थे। निजी अंतरिक्ष यात्रियों को कड़े चयन मानकों, व्यापक प्रशिक्षण और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए अपनाए गए उपायों से गुजरना पड़ता था।
डॉ. पुनीता ने निजी अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में काम कर रही विभिन्न कंपनियों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की:
ब्लू ओरिजिन की स्थापना 2000 में एमज़ॉन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी-सीईओ जेफ बेजोस ने की थी। ब्लू ओरिजिन के दोबारा उपयोग होने वाले रॉकेट न्यू शेपर्ड ने हाल ही में चार निजी नागरिकों के साथ पहली मानव उड़ान सफलतापूर्वक पूरी की। चालक दल में जेफ बेजोस, मार्क बेजोस, वैली फंक और ओलिवर डेमन शामिल थे। रॉकेट न्यू शेफर्ड ने 20 जुलाई, 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट टेक्सास से उड़ान भरी।
स्पेसएक्स एक अमेरिकी एयरोस्पेस निर्माता है, जिसकी स्थापना 2002 में टेस्ला मोटर्स के एलॉन मस्क ने की थी। कंपनी ने ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट विकसित किया है जिसका उपयोग नासा के अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाने के लिए किया था। स्पेस एक्स नागरिकों को 10 दिन की शुल्क के साथ यात्रा पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजने की योजना बना रहा है। स्पेस एक्स चंद्रमा और मंगल की यात्रा की भी योजना बना रहा है।
वर्जिन गेलेक्टिक की स्थापना 2004 में ब्रिटिश उद्यमी रिचर्ड ब्रैनसन ने की थी। रिचर्ड ब्रैनसन और उनका दल हाल ही में अपने वर्जिन गेलेक्टिक रॉकेट विमान पर सवार होकर न्यू मैक्सिको रेगिस्तान से 50 मील से अधिक ऊपर पहुंचे और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लौट आए।
डॉ. पुनीता ने बताया कि जहां ये सभी मिशन अंतरिक्ष की सवारी की पेशकश करते हैं, वहीं नासा ने हाल ही में निजी नागरिकों को एक छोटी यात्रा के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाने की अनुमति दी है। एक्सिऑम स्पेस जैसी कंपनियां निजी अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में शामिल हैं। कंपनी भविष्य में निजी स्पेस स्टेशन की भी योजना बना रही है।
व्याख्यान में, डॉ. पुनीता ने अंतरिक्ष पर्यटन में शामिल बुनियादी शब्दावली जैसे कक्षीय उड़ानें, उप कक्षीय उड़ानें, पृथ्वी की निचली कक्षाओं के बारे में भी बताया। फेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनल के अनुसार समुद्र तल से 100 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई पर अर्थात् कर्मन रेखा अंतरिक्ष है। वही एजेंसी 50 मील (80.47 किलोमीटर) की ऊंचाई को अंतरिक्ष उड़ान के रूप में अर्हता प्राप्त करने की ऊंचाई मानती है।
डॉ. पुनीता ने यह भी बताया कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन लो अर्थ ऑर्बिट (थर्मोस्फीयर) में मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन है। स्टेशन 1998 में स्थापित किया गया था। यह एक बहुराष्ट्रीय सहयोगी परियोजना है जिसमें हिस्सा लेने वाली पांच अंतरिक्ष एजेंसियां नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रोस्कोस्मोस (रूस), जेएक्सए (जापान), ईएसए (यूरोप), और सीएसए (कनाडा)शामिल हैं।
डॉ. पुनीता ने शामिल विज्ञान और जोखिम, जागरूकता, चिंताओं और चिकित्सा सूचित सहमति पर चर्चा की जो पर्यटन का अनिवार्य हिस्सा हैं। उन्होंने आगे बताया कि उड़ान के बाद की चिकित्सा समस्याएं या स्थितियां क्या हो सकती हैं और मानव शरीर और मस्तिष्क पर अंतरिक्ष यात्रा का प्रभाव क्या हो सकता है।
नेहरू विज्ञान केंद्र के बारे में
नेहरू विज्ञान केंद्र (एनएससी) भारत के सबसे बड़े विज्ञान केंद्रों में से एक है और देश के पश्चिमी क्षेत्र में छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद का पश्चिमी क्षेत्रीय मुख्यालय है और पश्चिमी क्षेत्र में पांच अन्य विज्ञान केंद्रों की गतिविधियों का संचालन और समन्वय करता है: रमन विज्ञान केंद्र, नागपुर, क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र, भोपाल, क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र, कालीकट, गोवा विज्ञान केंद्र, पणजी और जिला विज्ञान केंद्र, धरमपुर। एनएससी में एक वर्ष में 7.5 लाख से अधिक आगंतुक आते हैं। यह केंद्र स्कूली छात्रों के लिए प्रमुख आकर्षण केंद्र और विज्ञान की समझ बढ़ाने और देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने में उत्कृष्टता का केंद्र साबित हुआ है।
राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के बारे में
राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहाय परिषद, भारत में विज्ञान केंद्रों और विज्ञान संग्रहालयों का शीर्ष निकाय, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त वैज्ञानिक संगठन के रूप में कार्य करता है। यह देश भर में 25 विज्ञान केंद्रों की गतिविधियों का समन्वय करता है। परिषद विज्ञान केंद्रों और संग्रहालयों, अत्याधुनिक इंटरैक्टिव प्रदर्शनों और कार्यक्रमों और विज्ञान संचार में मानव संसाधन विकास के विकास में माहिर है। परिषद को मॉरीशस के लिए टर्नकी आधार पर एक विज्ञान केंद्र विकसित करने का गौरव प्राप्त है। यह स्कूली छात्रों के लिए राष्ट्रव्यापी वैज्ञानिक कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन करता है। आईएओ के अलावा, परिषद को राष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी, राष्ट्रीय विज्ञान नाटक प्रतियोगिता और विज्ञान एक्सपो आदि जैसे आयोजनों के लिए भी जाना जाता है। परिषद लगभग 10 मिलियन आगंतुकों और 22 ग्रामीण क्षेत्रों और अन्य कार्यक्रमों और गतिविधियों के लिए यात्रा संग्रहालय बसों द्वारा सेवा करती है, जिसमें विभिन्न विज्ञान केंद्रों में अपनी इंटरैक्टिव दीर्घाओं के माध्यम से 25 प्रतिशत छात्र शामिल हैं। (S0urce PIB)
चंद्रयान-3 पर कार्य प्रगति पर, 2022 की तीसरी तिमाही के दौरान लॉन्च होने की संभावना: डॉ. जितेन्द्र सिहं
चंद्रयान-3 के कार्य में आकृति को अंतिम रूप दिया जाना, उप-प्रणालियों का निर्माण, समेकन, अंतरिक्ष यान स्तरीय विस्तृत परीक्षण और पृथ्वी पर प्रणाली के निष्पादन के मूल्यांकन के लिए कई विशेष परीक्षण जैसी विभिन्न प्रक्रियाएं शामिल हैं।
कार्य की प्रक्रिया कोविड-19 महामारी के कारण बाधित हो गई थी। बहरहाल, लॉकडाउन अवधि के दौरान भी वर्क फ्रॉम होम मोड में सभी कार्य किए गए। अनलॉक अवधि आरंभ होने के बाद चंद्रयान-3 पर कार्य फिर से आरंभ हो गया और अब यह कार्य संपन्न होने के अग्रिम चरण में है।
डीआरडीओ प्रयोगशाला ने हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट निर्मित की
फ्रंट हार्ड आर्मस पैनल (एफएचएपी) जैकेट का परीक्षण टर्मिनल बैलिस्टिक अनुसंधान प्रयोगशाला (टीबीआरएल), चंडीगढ़ में किया गया और इस परीक्षण ने प्रासंगिक बीआईएस मानकों को पूरा किया । इस महत्वपूर्ण विकास का महत्व इस तथ्य में निहित है कि बीपीजे के वजन में कमी का प्रत्येक ग्राम युद्धक्षेत्र में बने रहने के लिहाज से सैनिक का आराम बढ़ाने में महत्वपूर्ण है ।
इस तकनीक से मध्यम आकार के बीपीजे का वजन 10.4 से 9.0 किलोग्राम तक कम हो जाता है । इस उद्देश्य के लिए प्रयोगशालाओं में बहुत विशिष्ट सामग्री और प्रक्रमण प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है ।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ के वैज्ञानिकों और उद्योग को हल्के वजन वाली बीपीजे विकसित करने के लिए बधाई दी जिससे सैनिक और अधिक आराम महसूस कर पाएंगे । रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अध्यक्ष डॉ जी सतीश रेड्डी ने डीएमएसआरडीई टीम को इस निर्माण के लिए बधाई दी । (Source PIB)
"अटल टनल" दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग टनल: जानें खास बातें

यह टनलहिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला में औसत समुद्र तल (एमएसएल) से 3000 मीटर (10,000 फीट) की ऊंचाई पर अति-आधुनिक विनिर्देशों के साथ बनाई गई है।
यह टनल मनाली और लेह के बीच सड़क की दूरी 46 किलोमीटर कम करती हैऔर दोनों स्थानों के बीच लगने वालेसमय में भी लगभग 4 से 5 घंटे की बचत करती है।
अटल टनल का दक्षिण पोर्टल (एसपी) मनाली से 25 किलोमीटर दूर 3060 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि इसका उत्तर पोर्टल (एनपी) लाहौल घाटी में तेलिंगसिस्सुगांव के पास 3071 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह घोड़े की नाल के आकार में8 मीटर सड़क मार्ग के साथ सिंगल ट्यूब और डबल लेन वाली टनल है। इसकी ओवरहेड निकासी 5.525 मीटर है। यह 10.5 मीटर चौड़ी है और इसमें 3.6x 2.25 मीटर फायर प्रूफ आपातकालीन निकास टनल भी है, जिसे मुख्य टनल में ही बनाया गया है।
अटल टनल को अधिकतम 80 किलोमीटर प्रति घंटे की गति के साथ प्रतिदिन 3000 कारों और 1500 ट्रकों के यातायात घनत्व के लिए डिजाइन किया गया है।
यहटनल सेमी ट्रांसवर्स वेंटिलेशन सिस्टम,एससीएडीएनियंत्रित अग्निशमन, रोशनी और निगरानी प्रणाली सहित अति-आधुनिक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल प्रणाली से युक्त है।
प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
- दोनों पोर्टल पर टनल प्रवेश बैरियर।
- आपातकालीन संचार के लिए प्रत्येक 150 मीटर दूरी पर टेलीफोन कनेक्शन।
- प्रत्येक 60 मीटर दूरी पर फायर हाइड्रेंट तंत्र।
- प्रत्येक 250 मीटर दूरी पर सीसीटीवी कैमरों से युक्त स्वत: किसी घटना का पता लगाने वाली प्रणाली लगी है।
- प्रत्येककिलोमीटर दूरी पर वायु गुणवत्ता निगरानी।
- प्रत्येक 25 मीटर परनिकासी प्रकाश/निकासी संकेत।
- पूरीटनल में प्रसारण प्रणाली।
- प्रत्येक 50 मीटर दूरी पर फायर रेटिड डैम्पर्स।
- प्रत्येक 60 मीटर दूरी पर कैमरे लगे हैं।
जब स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब 03 जून, 2000 को रोहतांग दर्रे के नीचे एक रणनीतिक टनल का निर्माण करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। टनल के दक्षिण पोर्टल की पहुंच रोड़ की आधारशिला 26 मई, 2002 रखी गई थी।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने प्रमुख भूवैज्ञानिक, भूभाग और मौसम की चुनौतियों पर काबू पाने के लिए अथक परिश्रम किया।इन चुनौतियों मे सबसे कठिन प्रखंड587 मीटर लंबा सेरी नाला फॉल्ट जोन शामिल है, दोनों छोर परसफलता 15 अक्टूबर, 2017 को प्राप्तहुईथी।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्रीय मंत्रिमंडलकी बैठक 24 दिसम्बर 2019 को आयोजित हुई थी,जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिए गए योगदान को सम्मान प्रदान करने के लिए रोहतांग टनल का नाम अटल टनल रखने का निर्णय लिया गया था।(Source: PIB)
Facts in Brief चंद्रमा स्थित "साराभाई क्रेटर ": जानें क्या है तथ्य और क्यों है महत्वपूर्ण
इसरो सूत्रों के अनुसार, साराभाई क्रेटर के 3डी चित्रों से पता चलता है कि क्रेटर की गहराई लगभग 1.7 किलोमीटर है, जो उसके उभरे हुए रिम से लिया गया है और क्रेटर की दीवारों का ढलान 25 से 35 डिग्री के बीच है. ये निष्कर्ष अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को लावा से भरे चंद्र क्षेत्र पर आगे की प्रक्रिया को समझने में मदद करेंगे
चंद्रयान -2 डिजाइन और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा भी प्रदान करता है। वैश्विक उपयोग के लिए चंद्रयान -2 से प्राप्त वैज्ञानिक डेटा की सार्वजनिक रिलीज अक्टूबर 2020 में शुरू होगी.
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम. साराभाई के शताब्दी समारोह के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उन्हें विशेष रूप में श्रद्धांजलि देते हुए घोषणा की है कि चंद्रयान 2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा के "साराभाई" क्रेटर के चित्र लिए हैं.
.केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) व प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम. साराभाई के शताब्दी समारोह के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उन्हें विशेष रूप में श्रद्धांजलि देते हुए घोषणा की है कि चंद्रयान 2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा के "साराभाई" क्रेटर के चित्र लिए हैं.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि डॉ. साराभाई का जन्मशताब्दी वर्ष 12 अगस्त को पूरा हुआ और यह उनके लिए एक श्रद्धांजलि है. इसरो की हाल की उपलब्धियां, जिन्होंने भारत को दुनिया के अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया है, साराभाई के दूरदर्शी सपने को प्रमाणित करता है.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, यह जानना सुखद है कि भारत के 74वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, इसरो ने देश की शानदार अंतरिक्ष यात्रा में गौरव बढ़ाने के लिए एक और योगदान दिया है. यह यात्रा साराभाई और उनकी टीम द्वारा विभिन्न बाधाओं के बावजूद छह दशक पहले शुरू की गई थी.
उन्होंने कहा कि.प्रत्येक भारतीय गर्व और आत्मविश्वास से भरा हुआ है क्योंकि भारत के अंतरिक्ष मिशनों द्वारा प्रदान किए गए इनपुट का उपयोग आज दुनिया के उन देशों द्वारा भी किया जा रहा है जिन्होंने अपनी अंतरिक्ष यात्रा हमसे बहुत पहले शुरू की थी.