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World Cancer Day 2024: जानें क्यों मनाते हैं विश्व कैंसर दिवस, क्या है इतिहास थीम और महत्त्व

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विश्व कैंसर दिवस एक वैश्विक पहल है जो कैंसर और दुनिया भर में व्यक्तियों, समुदायों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 4 फरवरी को मनाया जाता है। यह एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि हम एक साथ मिलकर इस बीमारी से लड़ सकते हैं और जीवन बचा सकते हैं। दुनियाभर में कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों को इसके खतरों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है।

इतिहास:

विश्व कैंसर दिवस की अवधारणा का जन्म 1999 में पेरिस में आयोजित न्यू मिलेनियम के लिए कैंसर के खिलाफ विश्व शिखर सम्मेलन में हुआ था। अगले वर्ष, 4 फरवरी 2000 को, कैंसर के खिलाफ पेरिस चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ, इस दिन को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया था। इस चार्टर में कैंसर की रोकथाम, शीघ्र पता लगाने, उपचार और उपशामक देखभाल के लिए एक वैश्विक रणनीति की रूपरेखा दी गई है।

महत्व:

विश्व कैंसर दिवस कई कारणों से कैंसर के खिलाफ लड़ाई में अत्यधिक महत्व रखता है:

जागरूकता बढ़ाता है: यह जनता को कैंसर, इसके जोखिम कारकों, शीघ्र पता लगाने के तरीकों और उपलब्ध उपचार विकल्पों के बारे में शिक्षित करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। यह व्यक्तियों को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने और सोच-समझकर निर्णय लेने का अधिकार देता है।

वकालत: यह दिन कैंसर रोगियों, बचे लोगों और उनके परिवारों के लिए एक आवाज प्रदान करता है, नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों से कैंसर नियंत्रण प्रयासों को प्राथमिकता देने और गुणवत्तापूर्ण देखभाल तक समान पहुंच सुनिश्चित करने का आग्रह करता है।

सहयोग: विश्व कैंसर दिवस कैंसर अनुसंधान, रोकथाम और उपचार में प्रगति में तेजी लाने के लिए सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, शोधकर्ताओं और व्यक्तियों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।

आशा: यह कैंसर से प्रभावित लाखों लोगों के लिए आशा की किरण के रूप में कार्य करता है, उन्हें याद दिलाता है कि वे इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं और बीमारी के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है।

2023-2025 के लिए थीम:

विश्व कैंसर दिवस की वर्तमान थीम है "Close the Care Gap: Everyone Deserves Access to Cancer Care" । यह विषय दुनिया भर में मौजूद कैंसर देखभाल में असमानताओं को संबोधित करने की आवश्यकता पर जोर देता है और यह सुनिश्चित करता है कि हर किसी को, उनकी पृष्ठभूमि या स्थान की परवाह किए बिना, कैंसर की रोकथाम, निदान और उपचार के लिए आवश्यक आवश्यक सेवाओं तक पहुंच हो।


स्मार्टफोन और बचपन : बच्चों की मासूमियत और उनके निर्दोष बचपन को छीन रहे है स्मार्टफोन

Smartphone and its Impact on Children
बच्चे और स्मार्टफोन: स्मार्टफोन एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग बच्चों को शिक्षित, सामाजिक रूप से जुड़ा हुआ और रचनात्मक बनाने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, माता-पिता को यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए कि उनके बच्चे इसका उपयोग सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से कर रहे हैं।स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। 
तेज और भागदौड़ वाली जिंदगी जहाँ माता-पिता अपने जिम्मेदारियों से छुटकारा पाने के लिए अपने बच्चों को स्मार्टफोन सौप कर तात्कालिक निजात पाना आसान हल समझते हैं समस्याओं का, उन्हें पता नहीं होती कि ऐसा कर वे बच्चों के हाथों से मासूमियत और उनके निर्दोष बचपन को छीन रहे है. बच्चों की हाथों में थमाया गया स्मार्टफोन से उनके भावनात्मक और सामाजिक व्यवहार में काफी नकारात्मक बदलाव देखने को मिलती है. विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि  कि कई वीडियो गेम और ऐप बच्चों की एकाग्रता और ध्यान की समस्याओं को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसमें  किसी प्रकार का  कोई संदेह नहीं हो सकती की यह यह तकनीक ही है जिसने हमारे जीवन को आसान बना दिया है और नवीनतम विकास ने हमारे जीवन को इतना आसान बना दिया है कि हम इनके बिना इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन, क्या यह सच नहीं है कि जिस तरह से तकनीकी उपकरणों ने हमें आकर्षित किया है, हम उसके लिए कुछ ज्यादा ही कीमत पे कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बच्चों और उनकी स्मार्ट फ़ोन पर उनकी निर्भरता के बारे में.

माता-पिता को अपने व्यक्तिगर या पेशेवर असाइनमेंट में व्यस्त रहने के कारन ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को स्मार्टफोन देकर कुछ देर के लिए भले हीं छुटकारा तो पा लेते हैं... लेकिन सच यह है कि यह बच्चों के लिए बहुत ही हानिकारक पहल है. 

तथ्य यह है कि ये छोटी-छोटी आदतें इन बच्चों के लिए घातक और हानिकारक हो गई हैं...कहा गया है...अगर हम समय के भीतर अपनी आदतों को बदलने में असमर्थ रहे तो...यह हमारे  लिए एक नशे की लत की तरह बन जाते हैं। 

 इसलिए हमारे बच्चों को मोबाइल से दूर रखने की आवश्यकता है, इस तथ्य के बावजूद कि हम लॉकडाउन की स्थिति के कारन ज्यादातर बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के दौर से गुजरना पड़ता है।

माता-पिता के रूप में, क्या यह हमारे बच्चे पर स्मार्टफोन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंतित होने के बारे में पुनर्विचार करने का उपयुक्त समय नहीं है? कुछ समय के लिए उनसे छुटकारा पाने के लिए अपने स्मार्टफोन को अपने बच्चों को सौंपना हमारे लिए एक फैशन बन गया है। 

लेकिन ऐसे समय में जब स्मार्टफोन हमारे शरीर और जीवन पर अपना नकारात्मक प्रभाव दिखा रहा है, क्या यह हमारे बच्चे के शरीर और उनके समग्र विकास पर इसके नकारात्मक प्रभाव के साथ चिंता का विषय नहीं है?

एक बच्चे के लिए स्मार्टफोन प्राप्त करना आसान है और लगता है कि वे कम उम्र में तकनीक से परिचित होने की प्रक्रिया में हैं। लेकिन, स्मार्टफोन की लत का बच्चे पर क्या असर होता है? माता-पिता होने के नाते, यह सोचना हमारा कर्तव्य है कि स्मार्टफोन बच्चे के समग्र विकास और विशेष रूप से उसके स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को खतरे में डालने के लिए पर्याप्त है।

 आप समझ सकते हैं और नोटिस कर सकते हैं कि एक बच्चे के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल उसकी लत बन सकता है और इस तरह की लत उन्हें बुरी तरह से उलझाने के लिए काफी है और यह उनके दिमाग के रचनात्मकता मोड़ को भी बाधित करता है।

यह आश्चर्यजनक हो सकता है, लेकिन यह सच है कि स्मार्टफोन का अधिक उपयोग अवसाद के रूप में बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है और इससे अच्छी नींद की कमी होती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों द्वारा स्मार्टफोन पर अधिक से अधिक समय बिताने से उनके भावनात्मक और सामाजिक व्यवहार में बदलाव भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यह साबित नहीं हुआ है कि कई वीडियो गेम और ऐप बच्चों की एकाग्रता और ध्यान की समस्याओं को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त हैं।

माता-पिता के लिए सुझाव

माता-पिता स्मार्टफोन के सकारात्मक प्रभावों को बढ़ावा देने और नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • स्मार्टफोन का उपयोग करने के लिए बच्चों के लिए नियम निर्धारित करें। ये नियम स्क्रीन टाइम की सीमा, उपयोग के लिए अनुमत अनुप्रयोगों और उपयोग के लिए अनुमत समय को निर्धारित कर सकते हैं।
  • अपने बच्चों के साथ स्मार्टफोन के उपयोग के बारे में बात करें। उन्हें बताएं कि स्मार्टफोन का उपयोग करने के क्या फायदे और नुकसान हैं।
  • अपने बच्चों के ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी करें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सुरक्षित हों, उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले अनुप्रयोगों और वेबसाइटों की जांच करें।

Danger Dengue: डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया कारण बचाव और सावधानियां

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बरसात के आरम्भ होने के साथ ही वेक्टर जनित बीमारियों (डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया) आदि बिमारियों का संक्रमण बढ़ जाता है. हालांकि सरकार और उसकी एजेंसियां डेंगू से निपटने के लिए अस्पताल और चिकित्सा सुविधाएं पूरी तरह से तैयार रखने की क़ायद शुरू करती है ताकि समय पर हालात से निबटने में सहायता मिले. लेकिन मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए ठोस उपाय के अंतर्गत आम लोगों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है. सूत्रों का अनुसार रिकॉर्ड तोड़ बारिश होने के वजह से मच्छर जनित बीमारियों का ट्रेंड ज्यादा दीखता हैऔर  डेंगू, मलेरिया और चिगनगुनिया के मामले बढ़ने के मामले दर्ज किये जाते है। 

डेंगू से बचाव उसके बारे में जागरूकता से ही किया जा सकता है। डेंगू से बचाव के लिए लोग खुद को मच्छरों से बचाएं।  डेंगू, मलेरिया, और चिकनगुनिया जैसी मौसमी बीमारियों से बचने और सावधान रहने के लिए कुछ आवश्यक उपाय निम्नलिखित हैं:

स्वच्छता: 

समय-समय पर अपने आस-पास के इलाके की सफाई रखें। खुले पानी का इस्तेमाल न करें और बंद ड्रेनेज को सुनिश्चित किया जाना जरुरी होता है ।

मच्छर नियंत्रण:

 मच्छर बीमारियों के संचरण के प्रमुख कारक होते हैं। मच्छर नियंत्रण के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध उपायों का उपयोग करें और आस-पास के इलाके में एक चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह लें।

पानी के जमाव को रोकें:

 पानी जमने की समस्या के कारण मच्छर प्रजनन और प्रसारण में वृद्धि होती है। छत और बालकनियों को ध्यान से साफ करें और बारिश के पानी का जमाव रोकें। घर की छतों, घर के अंदर फूलदान, बर्तनों, फ्रीज के ट्रे, निर्माण साइट, खाली बिल्डिंग में पानी इकट्ठा हो या एससी से गिरने वाला पानी घर में कहीं इकट्ठा हो रहा है तो इसमें डेंगू का मच्छर पैदा होता है।

बिजली के मच्छर रोधी यंत्र (मॉस्किटो नेट) का उपयोग 

बिजली के मच्छर रोधी यंत्र (मॉस्किटो नेट) का उपयोग करें। इससे मच्छर आपके रहने के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

धूप में रहें: 

यदि आप डेंगू, मलेरिया, और चिकनगुनिया के क्षेत्र में रहते हैं, तो धूप में रहने का प्रयास करें। इन बीमारियों के प्रसार के लिए विषाणु धूप में ज्यादा समय तक नहीं रह पाते हैं।

लक्षणों का ध्यान रखें: 

यदि आपको बुखार, शरीर में दर्द, या अन्य लक्षण होते हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। जल्दी से उपचार से इन बीमारियों का संभावित प्रसार रोका जा सकता है।

पानी जमने को रोकें:

पेड़-पौधों के पास पानी जमने की समस्या को दूर करने के लिए पौधों के पास झीलियाँ, पानी जमा बर्तन, या अन्य चीजें जिनमें पानी जमा हो सकता है, न रखें।

बच्चों और वृद्धों की देखभाल: 

ये बीमारियाँ विशेष रूप से बच्चों और बूढ़ों को प्रभावित करती हैं। उन्हें अधिक संवेदनशील बनाए रखने के लिए उनकी खास देखभाल करें।

यदि आपको इन बीमारियों के लक्षण दिखाई देते हैं, तो स्वयं का इलाज न करें और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। 


मानसून में फीकी पड़ रही है चेहरे की चमक को ऐसे बनाएं फ्रेश: एक्सपर्ट टिप्स

Skin Care Tips For Monsoon

Skin Care Tips For Monsoon :
 
मानसून या बरसात के आगमन के साथ ही वैसे तो हमें विभिन्न प्रकार की सावधानियों  को अपनाने की विशेष जरुरत होती है जिनमें शामिल है सेहत के साथ ही खानपान और अपने परिवेश के साथ वातावरण में नमी के कारन पैदा होने परेशानियां. इसके साथ ही आपकी स्किन के देखभाल के लिए भी मानसून में खासतौर पर ध्यान देने की जरुरत पड़ती है.

 स्किन को मानसून के दिनों में साफ करना और अतिरिक्त तेल और गंदगी को हटाने के साथ ही आपको अपने स्वस्थ आहार पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरी होती है जो आपके शरीर को स्वस्थ रखने मेंऔर आपकी त्वचा को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है. 

मॉनसून सीजन में वातावरण में नमी के कारण स्किन डल नजर आने लगती है. नमी के कारण स्किन ग्रीसी और चिपचिपी हो जाती है. ऐसे में मुंहासे और एक्ने की समस्या बढ़ सकती है. लेकिन अब आपको इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि हम आप के लिए मानसून स्किन केयर रूटीन लेकर आए हैं. जिसे फॉलो करने से आप अपनी त्वचा को नुकसान से बचा सकते हैं. मानसून में त्वचा की देखभाल के लिए कुछ टिप्स इस प्रकार हैं:

अपनी त्वचा को दिन में दो बार धोएं: 

मानसून में त्वचा में अधिक नमी होती है, इसलिए इसे साफ करना और अतिरिक्त तेल और गंदगी को हटाना महत्वपूर्ण है. एक हल्के क्लीन्ज़र का उपयोग करें जो आपकी त्वचा को सूखा न करे.

अपनी त्वचा को हाइड्रेट रखें:

मानसून में त्वचा को हाइड्रेट रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि नमी के कारण त्वचा रूखी और बेजान हो सकती है. दिन में कई बार हल्के मॉइस्चराइज़र का उपयोग करें, और रात में एक भारी मॉइस्चराइज़र का उपयोग करें.

अपनी त्वचा को एक्सफोलिएट करें: 

एक्सफोलिएशन आपकी त्वचा को मृत त्वचा कोशिकाओं से छुटकारा दिलाने में मदद करता है, जिससे यह चमकदार और स्वस्थ दिखती है. सप्ताह में एक या दो बार एक हल्के एक्सफोलिएटर का उपयोग करें.

सनस्क्रीन का उपयोग करें:

मानसून में भी, सूर्य की हानिकारक किरणें आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं. दिन में हर समय सनस्क्रीन का उपयोग करें, भले ही बादल छाए हों.

अपनी त्वचा को साफ और सूखा रखें:

 मानसून में त्वचा को गीला होने से बचाएं. यदि आप गीले हो जाते हैं, तो तुरंत अपनी त्वचा को साफ और सूखा कर लें.

अपने मेकअप को हटा दें: 

रात में सोने से पहले अपने मेकअप को हटाना महत्वपूर्ण है. मेकअप आपकी त्वचा को बंद कर सकता है और मुँहासे का कारण बन सकता है.

स्वस्थ आहार खाएं: स्वस्थ आहार आपके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है, जो आपकी त्वचा को भी स्वस्थ रखता है. अपने आहार में ताजे फल, सब्जियां, और साबुत अनाज शामिल करें.

पर्याप्त पानी पिएं: 

 पानी आपके शरीर को हाइड्रेट रखता है, जो आपकी त्वचा को भी हाइड्रेट रखता है. हर दिन कम से कम आठ गिलास पानी पिएं.

तनाव कम करें: 

 तनाव आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है. तनाव को कम करने के लिए योग, ध्यान, या अन्य आराम तकनीकों का अभ्यास करें.



जानें क्या होता है ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और यह कैसे काम करता है?

कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर  की जरुरत काफी जरुरत अनुभव की गई  और तब इसकी काफी चर्चा आपने सुनी होगी. शरीर में ऑक्सीजन का स्तर ‘ऑक्सीजन सेचूरेशन’ के रूप में मापा जाता है जिसे संक्षेप में ‘एसपीओ-टू’ कहते हैं। यह रक्त में ऑक्सीजन ले जाने वाले हीमोग्लोबिन की मात्रा का माप है। 
वास्तव में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर क्या होते हैं, उनकी कब आवश्यकता होती है और उनका उपयोग कैसे किया जाता है या कैसे नहीं किया जाता। कोविड-19 महामारी में संक्रमणों के बढ़ने से सक्रिय मामलों की संख्या में खतरनाक वृद्धि हुई है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य का ढांचा तनाव में है और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटरों की मांग बढ़ गई है। तो आइये जानें कि वास्तव में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर क्या होते हैं, उनकी कब आवश्यकता होती है और उनका उपयोग कैसे किया जाता है या कैसे नहीं किया जाता।

जीवित रहने के लिए हमें ऑक्सीजन की लगातार आपूर्ति की आवश्यकता होती है, जो हमारे फेफड़ों से शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में प्रवाहित होती है। कोविड-19 एक श्वसन रोग है जो हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है और जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा खतरनाक स्तर तक गिर सकती है। ऐसी स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को चिकित्सकीय रूप से स्वीकार्य स्तर तक बढ़ाने के लिए हमें ऑक्सीजन का उपयोग करके चिकित्सकीय ऑक्सीजन थेरेपी देने की जरूरत पड़ती है।

शरीर में ऑक्सीजन का स्तर ‘ऑक्सीजन सेचूरेशन’ के रूप में मापा जाता है जिसे संक्षेप में ‘एसपीओ-टू’ कहते हैं। यह रक्त में ऑक्सीजन ले जाने वाले हीमोग्लोबिन की मात्रा का माप है। सामान्य फेफड़ों वाले एक स्वस्थ व्यक्ति की धमनी में ऑक्सीजन सेचूरेशन 95% - 100% का होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के पल्स ऑक्सीमीट्री पर बनाए गये प्रशिक्षण मैनुअल के अनुसार यदि ऑक्सीजन सेचूरेशन 94% या उससे कम हो तो रोगी को जल्द इलाज की जरूरत होती है। यदि सेचूरेशन 90% से कम हो जाय तो वह चिकित्सकीय ​​आपात स्थिति मानी जाती है।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कोविड-19 के वयस्क रोगियों के प्रबंधन के लिए नवीनतम चिकित्सकीय मार्गदर्शन के अनुसार कमरे की हवा पर 93% या उससे कम ऑक्सीजन सेचूरेशन हो तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता होती है, जबकि 90% से कम सेचूरेशन की हालत में मरीज को आईसीयू में रखा जाना लाज़मी है। ऐसे में महामारी की दूसरी लहर के कारण पैदा हुए हालात को देखते हुए, हमें क्लिनिकल प्रबंधन प्रोटोकॉल के अनुसार अस्पताल में प्रवेश में देरी या असमर्थता की स्थिति में मरीज के ऑक्सीजन स्तर को बनाए रखने के लिए जो कुछ भी हमसे सर्वश्रेष्ठ हो सकता है वह करना चाहिए।

ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर कैसे काम करता है?

हम जानते हैं कि वायुमंडल की हवा में लगभग 78% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन होती है। ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर एक सरल उपकरण हैं जो ठीक वही करता हैं जो इसके नाम से व्यक्त होता है। ये उपकरण वायुमंडल से वायु को लेते हैं और उसमें से नाइट्रोजन को छानकर फेंक देते हैं तथा ऑक्सीजन को घना करके बढ़ा देते हैं।

ये ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर शरीर के लिए जरूरी ऑक्सीजन की आपूर्ति में उसी तरह से करते हैं जैसे कि ऑक्सीजन टैंक या सिलेंडर। एक केन्युला (प्रवेशनी), ऑक्सीजन मास्क या नाक में लगाने वाली ट्यूबों के जरिये। अंतर यह है कि, जबकि सिलेंडरों को बार बार भरने (रिफिल) की जरूरत पड़ती है, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर चौबीसों घंटे सातों दिन काम कर सकते हैं।

तो, उनका उपयोग कौन कर सकता है, और कब?

क्या इसका मतलब यह है कि जो भी अपने ऑक्सीजन के स्तर को स्वीकार्य स्तर से नीचे पाता है, वह एक कॉन्सेंट्रेटर का उपयोग कर सकता है और खुद की मदद कर सकता है? जवाब है बिलकुल नहीं।

कॉन्सेंट्रेटर के सही उपयोग पर पीआईबी से बात करते हुए, बी. जे. मेडिकल कॉलेज, पुणे के एनेस्थीसिया विभाग के  प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष प्रो. संयोगिता नाइक ने कहा कि “ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर का उपयोग केवल कोविड-19 के सीमित मामलों में किया जा सकता है। वह भी जब रोगी ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट का अनुभव करता है और उसकी बाहर से ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता अधिकतम 5 लीटर प्रति मिनट होती है।”

उन्होंने कहा कि “ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पोस्ट-कॉविड जटिलताओं का सामना करने वाले रोगियों के लिए भी बहुत उपयोगी होते हैं जिन्हें ऑक्सीजन थेरेपी की आवश्यकता होती है।”

क्या उन्हें हम अपने आप इस्तेमाल कर सकते हैं?

उत्तर है बिलकुल नहीं। 30 अप्रैल को पीआईबी द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, बैंगलोर, के कोविड को-ऑर्डिनेटर डॉ. चैतन्य एच. बालाकृष्णन ने यह बहुत स्पष्ट किया कि बिना चिकित्सीय मार्गदर्शन के ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर का उपयोग करना अत्यंत हानिकारक हो सकता है। “कोविड-19 से पैदा हुए न्यूमोनिया में 94 प्रतिशत से कम ऑक्सीजन सेचूरेशन वाले रोगियों को ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर से पूरक ऑक्सीजन दी जाने से लाभ हो सकता है। मगर तभी तक जब तक कि वे अस्पताल में नहीं भर्ती हो जाते। हालांकि, बिना उपयुक्त चिकित्सकीय सलाह के इसका इस्तेमाल करने वाले मरीजों के लिए ऐसा करना हानिकारक हो सकता है।”

डॉ. चैतन्य ने कहा, “जब तक आपको अस्पताल में बिस्तर नहीं मिलता, तब तक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर फायदेमंद हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वक्ष चिकित्सक या आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ से मार्गदर्शन के बिना नहीं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि मरीज के फेफड़ों की हालत पहले से कैसी है।”

प्रो. संयोगिता का भी यह कहना है कि कॉन्सेंट्रेटर की खरीद और उपयोग दोनों ही एक मेडिकल डॉक्टर के पर्चे के आधार पर किए जाने चाहिए। क्षमता के आधार पर, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की कीमत 30,000 रुपये से ऊपर होती है।

भारत में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटरों का बाज़ार

भारत में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटरों के निर्माण और बिक्री में बड़ा उछाल देखा गया है। बहुराष्ट्रीय ब्रांडों के अलावा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के ‘सेंटर फॉर ऑगमेंटिंग वॉर विद कोविद 19 हेल्थ क्राइसिस’ कार्यक्रम के तहत वित्त पोषित कई भारतीय स्टार्ट-अप ने भी कुशल और लागत प्रभावी ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर विकसित किये हैं।

कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान उनकी उपयोगिता को देखते हुए पीएम केयर्स फंड के जरिये एक लाख ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे जा रहे हैं। (Source PIB)

Yoga For All: न केवल दर्द से राहत बल्कि जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करता है योग

International Yoga Day 2021: Study Explored Benefits of Yoga in Chronic Low Back Pain
Yoga For All: दर्द, दर्द सहने की क्षमता और शरीर के लचीलेपन को मापने वाले शोधकर्ताओं ने पाया है कि योग से पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द से पीड़ित रोगियों को दर्द से राहत मिलती है, उनमें दर्द सहने की क्षमता बढ़ती है और उनके शरीर के लचीलेपन में सुधार होता है। शोधकर्ताओं की टीम ने नई दिल्ली स्थित एम्स के दर्द अनुसंधान और टीएमएस प्रयोगशाला में सीएलबीपी रोगियों और फाइब्रोमायल्जिया रोगियों के लिए योग संबंधी एक प्रोटोकॉल भी विकसित किया है।  अब तक के अधिकांश योग-आधारित अध्ययन किसी बीमारी से ठीक होने और जीवन की बेहतर गुणवत्ता के संकेतक के रूप में रोगी के अनुभव और दर्द एवं अक्षमता की रेटिंग पर निर्भर रहे हैं। 
इस अध्ययन में यह बताया गया है कि चूंकि लंबी अवधि में योग घर पर किया जा सकता है, इसलिए यह एक सस्ता चिकित्सीय उपाय है। यह न केवल दर्द से राहत देता है बल्कि जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करता है और स्वास्थ्य संबंधी अन्य लाभ प्रदान करता है।

नई दिल्ली स्थित एम्स के फिजियोलॉजी विभाग में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. रेणु भाटिया ने डॉ. राज कुमार यादव (प्रोफेसर, फिजियोलॉजी विभाग, एम्स, नई दिल्ली) और डॉ. श्री कुमार वी (एसोसिएट प्रोफेसर, फिजिकल मेडिसीन एंड रिहैबिलिटेशन विभाग, एम्स, नई दिल्ली) के साथ मिलकर पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द (सीएलबीपी) पर योग के प्रभाव को मापने का शोध किया है।

यह अध्ययन पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द (सीएलबीपी) से पीड़ित 50 साल की आयु वाले उन 100 रोगियों पर किया गया, जिनका इस बीमारी से गुजरने का 3 साल का इतिहास था। कुल 4 सप्ताह के व्यवस्थित योगिक हस्तक्षेप के बाद, मात्रात्मक संवेदी परीक्षण (क्यूएसटी) ने ठंड के दर्द और ठंड के दर्द को सहन करने की सीमा में वृद्धि दर्शायी। इन रोगियों में कॉर्टिकोमोटर संबंधी उत्तेजना और लचीलेपन में काफी सुधार हुआ।

शोधकर्ताओं ने दर्द (इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी), संवेदी धारणा (मात्रात्मक कम्प्यूटरीकृत संवेदी परीक्षण) और कॉर्टिकल उत्तेजना संबंधी मापदंडों के लिए (मोटर कॉर्टेक्स के ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन का उपयोग करके) वस्तुनिष्ठ उपायों को दर्ज किया। उन्होंने बेसलाइन पर स्वस्थ नियंत्रण की तुलना में पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द (सीएलबीपी) के रोगियों में सभी मापदंडों के बीच महत्वपूर्ण परिवर्तन पाया। योग के बाद सभी मानकों में उल्लेखनीय सुधार पाया गया।

साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ योग एंड मेडिटेशन (सत्यम) द्वारा समर्थित और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित यह शोध हाल ही में 'जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस एंड क्लिनिकल रिसर्च'  में प्रकाशित हुआ है।

दर्द का आकलन और कॉर्टिकोमोटर संबंधी उत्तेजना के मापदंड पैथोलॉजी के आधार पर मानक चिकित्सा के साथ या उसके बिना पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द से राहत के लिए चिकित्सीय उपाय के तौर पर योग का सुझाव दिए जाने के पक्ष में वैज्ञानिक प्रमाण के साथ मजबूत आधार स्थापित करने में मदद करेगा। इसके अलावा, इन मापदंडों का उपयोग स्वस्थ होने वाले चरण के दौरान रोगियों के लक्षण देख कर रोग के कारणों के निर्धारण और फॉलोअप कार्रवाई के लिए किया जा सकता है।

 शोधकर्ताओं की टीम ने नई दिल्ली स्थित एम्स के दर्द अनुसंधान और टीएमएस प्रयोगशाला में सीएलबीपी रोगियों और फाइब्रोमायल्जिया रोगियों के लिए योग संबंधी एक प्रोटोकॉल भी विकसित किया है।      

पीठ के निचले हिस्से में पुराने दर्द के रोगियों में, 4 सप्ताह के योग से जुड़े हस्तक्षेप ने दर्द की स्थिति एवं दर्द से संबंधित कार्यात्मक अक्षमता में सुधार किया और रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन एवं कॉर्टिकोमोटर उत्तेजना में उल्लेखनीय रूप से मानक देखभाल से काफी अधिक की वृद्धि की।

इस अध्ययन में यह बताया गया है कि चूंकि लंबी अवधि में योग घर पर किया जा सकता है, इसलिए यह एक सस्ता चिकित्सीय उपाय है। यह न केवल दर्द से राहत देता है बल्कि जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करता है और स्वास्थ्य संबंधी अन्य लाभ प्रदान करता है।(Source PIB)

पेपर कप में आपकी चाय कितनी सुरक्षित है? जाने आईआईटी वैज्ञानिकों का नया खुलासा...

Is Your Tea safe in Paper Cup know IIT Scientist Research

शोधकर्ताओं ने हाल में एक शोध में इस बात की पुष्टि की है कि कप के भीतर के अस्तर में प्रयुक्त सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थिति होती है और उसमें गर्म तरल पदार्थ परोसने से पदार्थ में दूषित कण आ जाते हैं।

पेय पदार्थों के सेवन के लिए डिस्पोजेबल पेपर कप लोकप्रिय विकल्प हैं, लेकिन आई आई टी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने हाल में किए गए एक शोध में इस बात की पुष्टि की है कि कप के भीतर के अस्तर में प्रयुक्त सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थिति होती है और उसमें गर्म तरल पदार्थ परोसने से पदार्थ में दूषित कण आ जाते हैं। पेपर कप के भीतर आमतौर पर हाइड्रोफोबिक फिल्म की एक पतली परत होती है जो ज्यादातर प्लास्टिक (पॉलीथीन) और कभी-कभी सह-पॉलिमर से बनी होती है।

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भारत में पहली बार किये गये अपनी तरह के इस शोध में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधा गोयल तथा पर्यावरण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन में अध्‍ययन कर रहे शोधकर्ता वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ ने बताया कि 15 मिनट के भीतर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म पानी की प्रतिक्रिया में पिघल जाती है।

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प्रोफेसर सुधा गोयल ने कहा, ‘हमारे अध्ययन के अनुसार एक पेपर कप में रखा 100 मिलीलीटर गर्म तरल (85 - 90 ओसी), 25,000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है और यह प्रक्रिया कुल 15 मिनट में पूरी हो जाती है। इस प्रकार यदि एक औसत व्यक्ति प्रतिदिन तीन कप चाय या कॉफी पीता है, तो वह मानव आंखों के लिए अदृश्य 75,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों को निगलता है।’

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शोधकर्ताओं ने शोध के लिए दो अलग-अलग प्रक्रियाओं का पालन किया- पहली प्रक्रिया में, गर्म और पूरी तरह स्‍वच्‍छ पानी (85-90 6.9C; पीएच ~ 6.9) को डिस्पोजेबल पेपर कप में डाला गया और इसे 15 मिनट तक उसी में रहने दिया गया। इसके बाद जब इस पानी का विश्‍लेषण किया गया, तो पया गया कि उसमें सूक्ष्म-प्लास्टिक की उपस्थिति के साथ-साथ अतिरिक्त आयन भी मिश्रित हैं। दूसरी प्रक्रिया में, कागज के कपों को शुरू में गुनगुने (30-40 डिग्री सेल्सियस) स्‍वच्‍छ पानी (पीएच / 6.9) में डुबोया गया और इसके बाद, हाइड्रोफोबिक फिल्म को सावधानीपूर्वक कागज की परत से अलग किया गया और 15 मिनट के लिए गर्म एवं स्‍वच्‍छ पानी (85-90 डिग्री सेल्सियस; पीएच ~ 6.9) में रखा गया। इसके बाद इस प्लास्टिक फिल्‍म के गर्म पानी के संपर्क में आने से पहले और बाद उसमें आए भौतिक, रासायनिक और यांत्रिक गुणों में परिवर्तन की जांच की गई।

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15 मिनट का समय तय किये जाने के बारे में बताते हुए प्रो. गोयल ने कहा कि एक सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं ने बताया कि चाय या कॉफी को कप में डाले जाने के 15 मिनट के भीतर उन्‍होंने इसे पी लिया था। इसी बात को आधार बनाकर यह शोध समय तय किया गया। सर्वेक्षण के परिणाम के अलावा, यह भी देखा गया कि इस अवधि में पेय अपने परिवेश के तापमान के अनुरूप हो गया।

ये सूक्ष्म प्लास्टिक आयन जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम जैसे कार्बनिक यौगिकों और ऐसे कार्बनिक यौगिकों, जो प्राकृतिक रूप से जल में घुलनशील नहीं हैं में, समान रूप से, वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। जब यह मानव शरीर में पहुंच जाते हैं, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं।

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इस स्थिति से बचने के लिए क्या पारंपरिक मिट्टी के उत्पादों का डिस्पोजेबल उत्‍पादों के स्‍थान पर इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, इस सवाल पर आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा, “इस शोध से यह साबित होता है कि किसी भी अन्‍य उत्‍पाद के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह उत्‍पाद पर्यावरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों। हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्‍पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्‍पादों से बदलने में जल्‍दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते। भारत पारंपरिक रूप से एक स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाला देश रहा है और शायद अब समय आ गया है, जब हमें स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने पिछले अनुभवों से सीखना होगा।”

COVID-19: अनियमित जीवन शैली के कारण हो रहे हैं बच्चों में मोटापे की समस्या

Obesity in Children Cause and Remedy

वैसे तो COVID-19 महामारी के कारण लगभग सभी लोग अपने जीवन शैली और बीमारी के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समान रूप से प्रभावित किया है और इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता। लॉक डाउन और वर्क फ्रॉम होम के कारण वैसे तो सभी काफी बुरी तरह से प्रभावित हुए है और  हो रहे हैं. लेकिन COVID-19 महामारी ने सबसे अधिक अगर प्रभावित किया है तो वह है बच्चों को जिन्हे अनियमित जीवन शैली, फिजिकल मूवमेंट की कमी और सबसे अधिक स्कूल बंद होने से उनमे मोटापे की समस्या। 

कहने की जरुरत नहीं कि बच्चों में मोटापे की समस्या का सबसे बड़ा कारण है अनियमित जीवन शैली और फिटनेस और हेल्थ सम्बंधित उपायों पर रोक का लग जाना।

मार्च 2020 से लॉक डाउन के साथ ही स्कूल बंद हुए जो आज भी जारी है. हाँ, उनमें कुछ बड़े बच्चों के क्लास नियमित अंतराल पर खुले तो लेकिन वह भी कोरोना के खौफ के बीच  और वह भी परीक्षा आदि जरुरी कार्यों के लिए. बड़े बच्चे स्कूल जाना शुरू किये और उनका फिजिकल मूवमेंट जारी हुआ लेकिन जो छोटे बच्चे हैं उनके लिए स्कूल का खुलना एक सपने जैसा रहा और वे ऑनलाइन क्लास को मजबुर हैं. 

जाहिर है कोरोना के कारण उन्हें स्कूल भेजना न तो स्कूल प्रशासन और न ही पैरेंट के लिए संभव हो पाया है. इसका नतीजा यह हुआ है कि  घर पर रहने को मजबूर इन बच्चों में मोटापा की समस्या आने लगी जो एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति है. 

सख्त लॉकडाउन, घर से बाहर निकलने पर कोरोना महामारी का खतरा, स्कूल जाने पर लगी रोक और यहाँ तक कि  घर के बाहर पार्कों में जाने पर भी खेलने जाने पर बीमारी के खतरे ने इन बच्चों के स्वास्थय को बुरी तरह से प्रभावित किया है. 

घर पर रहने पर बच्चों में टीवी देखने की आदत का लगना, फिजिकल मूवमेंट की कमी, बार-बार खाने की प्रवृति जैसे अनेक अनियमित जीवनशैली के कारण बच्चों में मोटापा की समस्या एक सामान्य बात हो चुकी है.

यह समस्या आज हर उन बच्चों के लिए है जो घरों पर रहकर ऑनलाइन क्लास को मजबूर हैं. कहने को उनकी पढाई को पूरा करने के लिए समन्धित स्कूल तो अपनी और से हर कोशिश कर रही है लेकिन क्या यह उनमे मोटापे की समस्या को चेक करने के लिए क्या पर्याप्त है. 

स्कूल जाने पर बच्चे फिजिकल मूवमेंट में खुद को इन्वॉल्व रखते थे जैसे खेल के मैदान, पार्कों में आने-जाने से उनके एक्सरसाइज वर्क हो जाते थे लेकिन अब उनपर पूर्णत: रोक के कारन अब यह जरुरी है कि बच्चों के फिजिकल मूवमेंट के लिए घर पर  एक्टिविटी में एक्टिव रखी जाये. 

ऐसी स्थिति में बच्चों से ज्यादा उनके पैरेंट की भूमिका ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि किसी भी प्रकार की उपेक्षा उनमें मोटापे की समस्या को और भी गंभीर बना सकती है. 

हालाँकि ज्यादातर माता-पिता यह सोचते हैं कि एक बार स्कूल खुल जाएगी तो चीजे ठीक हो जाएँगी।लेकिन जिस प्रकार से कोरोना के नए-नए वैरिएंट आ रहे हैं ऐसे स्थिति में यह जरुरी है कि स्कूल के खुलने की उम्मीद। खासकर छोटे बच्चों के लिए  तत्काल कोई उम्मीद नहीं लगती. 

ऐसे स्थिति में यह जरुरी है कि बच्चों में हेल्थ सम्बंधित जागरूकता  फैलाएं और उन्हें स्वास्थय की जरुरत को बतायें. फिजिकल मूवमेंट के लिए डांस, एक्सरसाइज जैसे चीजों के लिए घर में माहौल तैयार करें ताकि उनके फिटनेस की जरूरतों को पूरा किया जा सके.


Health: कोविड -19 महामारी और बच्चों में मानसिक स्वास्थय समस्या, ऐसे करें इन्हे मोटिवेट

Inspiring Thoughts: Children Mental Health Crisis during Covid-19 Pandemic
नवीनतम रिपोर्टों द्वारा सामने आई चुनौतियों का जो संकेत है वह यह बताती है कि  बच्चों  को लेकर मानसिक स्वास्थ्य संकट कोविड -19 महामारी के दौरान और भी बदतर हो गया है.
हाल में COVID को लेकर रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संकट और भी गंभीर हो गया है। हालाँकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि COVID का सबसे बुरा प्रभाव  बच्चों पर हीं पड़ा है. स्कूल जाना सिर्फ बच्चों के लिए बढ़ने का माध्यम हीं  बल्कि  उनके लिए फिजिकल एक्सरसाइज और दोस्तों के साथ समय गुजारने का माध्यम भी था. निश्चित रूप से हम COVID-19 द्वारा उत्पन्न  चुनौतियों का सामना करने की प्रक्रिया में हैं और ऐसा लगता है कि हमें COVID-19 के बाद के लक्षणों के कारण भविष्य में आने वाली ऐसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़  सकता है।

 नवीनतम रिपोर्टों द्वारा सामने आई चुनौतियों का जो संकेत है वह यह बताती है कि  बच्चों  को लेकर मानसिक स्वास्थ्य संकट कोविड -19 महामारी के दौरान और भी बदतर हो गया है, और ऐसे में यह जरुरी है कि ऑनलाइन पढ़ने को मजबूर बच्चों   को स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को देखते हूँ निश्चित रूप से उन्हें Inspiring Thoughts  और Motivational कोट्स  के सम्बन्ध में उन्हें जागरूक करें साथ ही उन्हें प्रोत्साहित करें ताकि वे इन चुनौतियों का सामने कर सकें.

 भावनात्मक संकट से उबरने पर फोकस करें

निश्चित रूप से दुनिया भर में COVID-19 के बढ़ते मामलों के कारण पूर्ण लॉकडाउन प्रक्रिया के कारण, सरकार और एजेंसियों के पास ऑफ़लाइन यानी ऑफलाइन के स्थान पर शिक्षण के ऑनलाइन मोड को चुनने के अतिरिक्त कोई उपयुक्त विकल्प नहीं है। अध्ययन से पता चला है कि किशोर बच्चे विशेष रूप से महिलाओं के बच्चों को भावनात्मक संकट की परेशानी का सामना करने के लिए मजबूर है और इसलिए उनके माता-पिता का यह कर्तव्य है कि उन्हें इस बात के लिए तैयार और प्रोत्साहित किया जाय कि  यह  एक अस्थायी दौर है और चीजें जल्द ही सही रास्ते पर होंगी। हमें उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करने पर ध्यान देना होगा क्योंकि वे अपने दोस्तों के संपर्क में नहीं हैं और साथ ही उनके पास किसी भी फिजिकल मूवमेंट के लिए कोई विकल्प नहीं हैक्योंकि न तो वे स्कूल जा रहे हैं और न ही वे किसी बाहरी मूवमेंट के लिए घर से बाहर जा पा रहे हैं.

घर पर शारीरिक व्यायाम पर ध्यान दें

बहुत लंबा समय हो गया है जब ऑफ़लाइन स्कूल की गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप हैं, छात्र शिक्षण के ऑनलाइन मोड पर निर्भर रहने को मजबूर हैं। बच्चों के पास घर पर रहने का कोई अन्य विकल्प नहीं है और वे अपने ऑनलाइन शिक्षण के तरीके को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से फोन/लैपटॉप/सिस्टम पर निर्भर हैं। किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि के अभाव में, वे ठीक से नींद नहीं ले पाते हैं जिसके परिणामस्वरूप चिंता और तनाव होता है। तो इसके माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें कुछ शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें जिनमें नृत्य / व्यायाम और अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं जो उन्हें अच्छी नींद के लिए सक्षम बनाती हैं।

स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए जागरूकता पर ध्यान दें

बच्चों के किसी भी प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के लिए उनके संपर्क में रहने की आवश्यकता है। याद रखें, बच्चों के साथ आपका समय पर और नियमित संपर्क उन्हें उनकी चिकित्सीय समस्याओं के प्रति सकारात्मक और मैत्रीपूर्ण बनाए रखेगा। उनका मार्गदर्शन करें और उन्हें समझाएं कि ये स्थितियां फिलहाल के लिए हैं और उन्हें प्रेरक उद्धरणों के साथ मजबूत नैतिक मूल्यों वाली कहानियों के साथ साझा करें। उनके स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लक्षणों और मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और कृपया अपने दैनिक जीवन में बदलते मानसिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों पर नजर रखें।

गिलोय/गुडुची सुरक्षित जड़ी-बूटी है और इसका शरीर पर कोई विषाक्‍त प्रभाव नहीं पड़ता है: आयुष मंत्रालय

Guduchi is safe and does not produce any toxic effects
आयुष मंत्रालय ने एक बार फिर यह दोहराया है कि गिलोय/गुडुची (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) सुरक्षित औषधि है और उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इसका शरीर पर कोई विषाक्‍त प्रभाव नहीं पड़ता है। मीडिया के कुछ वर्गों ने एक बार फिर गिलोय/गुडुची का लीवर (यकृत) की खराबी से संबंध जोड़ा है।

आयुर्वेद में गिलोय को एक सबसे अच्छी कायाकल्प करने वाली जड़ी-बूटी कहा गया है। गिलोय के जलीय अर्क के तीव्र विषाक्तता अध्ययन से यह पता चलता है कि इससे शरीर पर कोई विषाक्त प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, किसी भी दवा की सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि उसका किस प्रकार उपयोग किया जा रहा है। दवा की खुराक एक प्रमुख कारक है, जिससे उस विशेष दवा की सुरक्षा का निर्धारण होता है।

किए गए एक अध्ययन के अनुसार फल मक्खियों (ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर) के जीवन काल को बढ़ाने में गुडुची पाउडर की कम सांद्रता सहायक पाई गई। इसके साथ ही गुडुची पाउडर की अधिक सांद्रता (गाढ़ापन) के उपयोग से मक्खियों के जीवन काल में धीरे-धीरे कमी आई। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इच्छित प्रभाव प्राप्त करने के लिए दवा की आदर्श खुराक को बरकरार रखा जाना चाहिए। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि औषधीय जड़ी-बूटियों का योग्‍य चिकित्‍सक द्वारा निर्धारित उचित खुराक के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए तभी उसका उचित औषधीय प्रभाव प्राप्त किया जा सकता है। इस औषधि के विभिन्‍न कार्यकलापों व्‍यापक उपयोग और प्रचुर मात्रा में इसके घटकों के कारण गुडुची हर्बल दवा स्रोतों में एक वास्तविक खजाना ही है।


 गुडुची का विभिन्‍न विकारों से निपटने में चिकित्‍सीय उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग एक एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक, एंटी-हाइपरलिपिडेमिक, हेपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोवस्कुलर प्रोटेक्टिव, न्यूरोप्रोटेक्टिव, ऑस्टियोप्रोटेक्टिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, एंटी-ऐंगजाइइटी, एडाप्टोजेनिक, एनाल्जेसिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-पायरेटिक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका डायरिया रोधी, अल्सर रोधी, रोगाणुरोधी और कैंसर रोधी रूप में उपयोग अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है।

विभिन्न मेटाबॉलिक (चयापचय) विकारों के उपचार में इसके स्वास्थ्य लाभों और प्रतिरक्षा बूस्टर के रूप में इसकी क्षमता पर विशेष ध्यान दिया गया है। मानव जीवन की अपेक्षा को बेहतर बनाने में सहायता प्रदान करते हुए मेटाबॉलिक, एंडोक्राइनल और अन्‍य कई बीमारियों का इलाज करने के लिए गुडुची का चिकित्‍सा विज्ञान के एक प्रमुख घटक के रूप में उपयोग किया जाता है।

यह पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में अपने व्‍यापक चिकित्सीय प्रयोगों के लिए एक बेहद लोकप्रिय जड़ी-बूटी है और इसका कोविड-19 महामारी के प्रबंधन में काफी उपयोग किया गया है। समग्र स्वास्थ्य लाभों को ध्यान में रखते हुए इस जड़ी-बूटी के विषाक्त होने का दावा नहीं किया जा सकता है। (Source PIB)

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नोट: कृपया ध्यान दें कि उपरोक्त लेख में उल्लिखित सुझाव/टिप्स  केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्यों के लिए हैं जो आपको सामान्य स्वस्थ्य से जुड़े मुद्दे के बारे में अपडेट रखने के लिए हैं जो आम लोगों से अपेक्षित है और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि यदि विषय से संबंधित किसी भी चिकित्सा मामले के बारे में आपके कोई विशिष्ट प्रश्न हैं, तो आप हमेशा अपने डॉक्टर या पेशेवर स्वास्थ्य सेवा देने वाले सम्बंधित एक्सपर्ट से परामर्श करें।

Know Your Brain and Its Problem: जाने क्या है प्रमुख पांच ब्रेन डिसऑर्डर -एपिलेप्सी, हेडेक, पार्किंसंस डिजीज, स्ट्रोक और मल्टीपल स्केलेरोसिस

Epilepsy, Headaches, Parkinson's Disease, Stroke/Multiple sclerosis and much more

Know Your Brain and Its Problem: विशेषज्ञों  के अनुसार सामान्यत: पांच  प्रकार के ब्रेन डिसऑर्डर पाए जाते हैं जिनके प्रति लोगों की  उपेक्षा अक्सर पाए जाते हैं जो हैं-एपिलेप्सी, हेडेक, पार्किंसंस डिजीज, स्ट्रोक और मल्टीपल स्केलेरोसिस। लोगों में इन पांच ब्रेन डिसऑर्डर के प्रति जागरूकता और सचेतता फैलाने के लिए 
दुनिया भर में मस्तिष्क संबंधी बीमारियों और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के बढ़ते मामले के मद्देनजर आर्टेमिस हॉस्पिटल्स की न्यूरोलॉजी टीम ने ‘नो योर ब्रेन एंड इट्स प्रॉब्लम’ पर ज्ञानवर्धक सत्र, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम ने इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के सहयोग से आयोजित किया। सत्र पांच प्रमुख डिसऑर्डर- एपिलेप्सी, हेडेक, पार्किंसंस डिजीज, स्ट्रोक और मल्टीपल स्केलेरोसिस पर केंद्रित था। इस पहल ने लोगों में जागरूकता पैदा करके उच्च गुणवत्ता वाली अफोर्डेबल स्वास्थ्य सेवा देने की आर्टेमिस हॉस्पिटल्स की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ किया।

इस अभियान की शुरुआत देश भर के न्यूरोलॉजिस्टों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के स्थापना दिवस 18 दिसंबर 2020 से हुई। इस अभियान में आर्टेमिस हॉस्पिटल्स से न्यूरोलॉजी यूनिट के चीफ, पार्किंसंस विशेषज्ञ व स्ट्रोक यूनिट के को-चीफ डॉ. सुमित सिंह, कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी

डॉ. मनीष महाजन, न्यूरो इंटरवेंशन के स्ट्रोक यूनिट हेड व सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजश्रीनिवास पी और न्यूरोलॉजी के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. समीर अरोड़ा जैसे प्रतिष्ठित न्यूरोसर्जन की मौजूदगी देखी गई। इस वर्चुअल सेशन के माध्यम से, डॉक्टरों ने लोगों से संतुलित आहार, स्वस्थ जीवन शैली, व्यायाम औरधूम्रपान व शराब का सेवन करने वालों से इस कम कर स्वास्थ्य के प्रति एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया।

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हेडेक के बारे में बात करते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के न्यूरोलॉजी यूनिट के चीफ डॉ. सुमित सिंह ने कहा, “हेडेक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, यानी प्राइमरी और सेकेंडरी। माइग्रेन, क्लस्टर हेडेक और टेंशन हेडेक प्राइमरी कैटेगरी में आते हैं। आमतौर पर हेडेक तब तक चिंता का विषय नहीं है, जब तक कि यह परैलिसिस(पक्षाघात) या बेहोशी के साथ न हो।” 

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एपिलेप्सी के बारे में, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में न्यूरोलॉजी के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. समीर अरोड़ा ने कहा, “एपिलेप्सी दुनिया में चौथा सबसे बड़ा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। ब्रेन में इलेक्ट्रिकल चेंज में अस्थायी बदलाव के कारण व्यवहार में होने वाले परिवर्तन के कारण इसके लक्षण का पता चलता है। दवाओं, आहार चिकित्सा और सर्जरी के संयोजन से कुछ हद तक इस डिसऑर्डर से निपटा जा सकता है।“

Inspiring Thoughts: हम काम की अधिकता से नहीं, उसे बोझ समझने से थकते हैं.. बदलें इस माइंडसेट को

आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में कंसल्टेंट-न्यूरोलॉजी डॉ. मनीष महाजन ने कहा, “मल्टीपल स्केलेरोसिस एक ऑटोइम्यून, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो 20 से 40 वर्ष की आयु के बीच होता है और मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। यह आपके ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) को प्रभावित करता है और विजन, बैलेंस और मसल कंट्रोल संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है।”

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स्ट्रोक में समय पर उपचार के महत्व पर जोर देते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में न्यूरो-इंटरवेंशन के स्ट्रोक यूनिट हेड व सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजश्रीनिवास पार्थसारथी ने कहा, “हर साल लगभग 10 लाख लोग स्ट्रोक की चपेट में आते हैं। समय पर उपचार से मृत्यु दर और मृत्यु संख्या कम हो सकती है। धुंधली नज़र, अस्पष्ट उच्चारण, संतुलन या समन्वय की हानि और चक्कर आने जैसे लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए और समस्या होने पर तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेनी चाहिए।”

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ऊपर वर्णित डिसऑर्डर के अलावा, भारत में ब्रेन ट्यूमर भी एक चिंता का विषय है। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ कैंसर रजिस्ट्री (आईएआरसी) के अनुसार, भारत में हर साल 28,000 से अधिक ब्रेन ट्यूमर के मामले सामने आते हैं और ब्रेन ट्यूमर के कारण 24,000 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।

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Makar Sankranti 2022: 14 जनवरी 2022 पर होगा सूर्य नमस्कार का वैश्विक प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन

Makar Sankranti 2022 and Surya Namaskar
Makar Sankranti 2022: आयुष मंत्रालय 14 जनवरी 2022 को (मकर संक्रांति के दिन सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश के मौके पर) वैश्विक स्तर पर 75 लाख लोगों के लिए एक वैश्विक सूर्य नमस्कार प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। यह अवसर स्वास्थ्य, धन और खुशी प्रदान करने के लिए 'माँ प्रकृति' को धन्यवाद देने का स्मरण कराता है। 

इस दिन सूर्य की प्रत्येक किरण के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए  सूर्य को प्रणाम के रूप में 'सूर्य नमस्कार' की पेशकश की जाती है क्योंकि यह सभी जीवित प्राणियों का पोषण करता है। सूर्य  ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के रूप में न केवल खाद्य-श्रृंखला की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मनुष्य के मन और शरीर को भी सक्रिय करता है।

 वैज्ञानिक रूप से, सूर्य नमस्कार को प्रतिरक्षा विकसित करने और जीवन शक्ति में सुधार करने के लिए जाना जाता है, जो महामारी की आज की इस स्थिति में हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। सूर्य के संपर्क में आने से मानव शरीर को विटामिन डी मिलता है, जिसे दुनिया भर की सभी चिकित्सा शाखाओं में व्यापक रूप से मान्यता मिली है।

सूर्य नमस्कार के सामूहिक प्रदर्शन का उद्देश्य इसके जरिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का संदेश भी देना है। आज की दुनिया में जहां जलवायु जागरूकता जरूरी है वहीं, दैनिक जीवन में सौर ई-ऊर्जा (हरित ऊर्जा) के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आएगी जिससे पृथ्वी को खतरा है।

इसके अलावा, यह आयोजन हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में मकर संक्रांति के महत्व को रेखांकित करेगा। सूर्य नमस्कार शरीर और मन के समन्वय के साथ 12 चरणों में किए गए 8 आसनों का एक समूह है। इसे ज्यादातर सुबह सवेरे किया जाता है।

COVID-19 and Post/Long COVID-19: आयुष मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश

COVID-19 and Post/Long COVID-19
कोविड-19 महामारी दुनिया भर में मानव अस्तित्व को प्रभावित करने वाली एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सार्स-कॉव 2 ने अब तक विश्व स्तर पर 271 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को संक्रमित किया है और सीधे तौर पर 5.3 मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। भारत में अब तक 34.7 मिलियन कोविड-19 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि अब तक 4.76 लाख मौतें हो चुकी हैं। भारत में 1.34 अरब कोविड टीकाकरण की खुराक दी जा चुकी है।

दुनिया भर में जारी कोविड-19 महामारी के खतरे के साथ, आयुष मंत्रालय 'समग्र स्वास्थ्य' की अवधारणा को सामने रखते हुए एक व्यापक दस्तावेज लेकर आया है। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'समग्र स्वास्थ्य और देखभाल' पर जनता के लिए सिफारिशें निवारक उपायों और देखभाल पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "कोविड-19 एक नई बीमारी है और इसे पोस्ट-कोविड सिंड्रोम और लॉन्ग कोविड-19 के रूप में पहचानी जाने वाली प्राथमिक बीमारी के सीक्वेल के विकास की विशेषता है। यह देखा गया है कि सार्स-कॉव-2 से ठीक होने वाले मरीज़ लगातार और अक्सर, कमज़ोर करने वाले लक्षणों से पीड़ित होते हैं, जो उनके प्रारंभिक निदान के कई महीनों तक चलते हैं।”

दस्तावेज़ समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा को सामने रखता है, जो जीवन और स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों को संबोधित करके व्यक्तियों की स्वयं की देखभाल पर जोर देता है। "समग्र स्वास्थ्य और कल्याण" पर इन सिफारिशों को आयुष निवारक उपायों और कोविड-19 और लॉन्ग कोविड-19 के संबंध में देखभाल के साथ एक स्वस्थ जीवन शैली की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

मंत्रालय द्वारा सामान्य निवारक उपायों, प्रणालीगत प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के तरीकों, स्थानीय म्युकोसल प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के तरीकों के साथ-साथ अन्य निवारक उपायों जैसे धूमन (धूपना) की सिफारिश की गई है।

आयुष प्रथाओं और स्थानीय म्युकोसल प्रतिरक्षा राहत के लिए चित्रात्मक प्रस्तुति, अच्छे और कमजोर पाचन (अग्नि), पोषण, प्रतिरक्षा और संक्रमण के बीच संबंध, और भूख की ताकत (अग्नि) के संबंध में आहार के स्पष्ट व्यवस्था को भी अधिकतम समझ और आम जनता तक पहुंच के लिए सिफारिशें इनमें शामिल की गई हैं।

कोविड-19 और पोस्ट/लॉन्ग कोविड-19 के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए सिफारिशें और मानसिक ताकत (सत्वबाला) बढ़ाने के उपाय भी दस्तावेज़ का हिस्सा हैं, जो आयुष मंत्रालय द्वारा जारी पिछले दिशानिर्देशों / सलाह में नहीं थे।

आसानी से पचने योग्य भोजन (लघु अहार) जैसे मूंग दाल (हरा चना) खिचड़ी और मुडगा युशा (मूंग की दाल का सूप) के व्यंजनों को सावधानी के साथ चुना गया है और सिफारिशों में शामिल किया गया है।

दस्तावेज़ में योग आसनों के उदाहरण हैं जिनका अभ्यास कोविड-19 के दौरान लोगों को आसानी से समझने के लिए इसकी तस्वीरों के साथ किया जा सकता है।

यह सिफारिशें कोविड-19 उपयुक्त व्यवहार और सावधानी के उपायों के पूरक हैं और इसे विकल्प के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार मास्क का उपयोग, हाथों को बार-बार धोना, शारीरिक / सामाजिक दूरी, कोविड श्रृंखला को तोड़ने के लिए टीकाकरण, स्वस्थ पौष्टिक आहार, प्रतिरक्षा में सुधार और अन्य सभी सामान्य स्वास्थ्य देखभाल उपायों की सलाह दी जानी चाहिए।

दस्तावेज़ में कहा गया है कि विभिन्न स्वास्थ्य प्राधिकरणों (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, और विभिन्न राज्य और स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों) द्वारा जारी किए गए सभी स्थायी निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया जाना है और आयुष दिशानिर्देश वर्तमान में कोविड-19 और पोस्ट / लॉन्ग कोविड-19 के संबंध में प्रबंधन की दिशा में "ऐड ऑन" के रूप में शामिल हो सकते हैं।

इनमें आगे कहा गया है कि यहां अनुशंसित दवाएं आवश्यक दवाओं की सूची, मानक उपचार दिशानिर्देश, भारत भर में विभिन्न स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा जारी की गई अन्य सिफारिशों के विचारों के साथ भारत के आयुर्वेदिक फार्माकोपिया, आयुष सरकार मंत्रालय पर आधारित हैं।

कोविड-19 महामारी दुनिया भर में मानव अस्तित्व को प्रभावित करने वाली एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सार्स-कॉव 2 ने अब तक विश्व स्तर पर 271 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को संक्रमित किया है और सीधे तौर पर 5.3 मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। भारत में अब तक 34.7 मिलियन कोविड-19 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि अब तक 4.76 लाख मौतें हो चुकी हैं। भारत में 1.34 अरब कोविड टीकाकरण की खुराक दी जा चुकी है।

करवा चौथ 2021 टिप्स : उपवास के दौरान भी जाने कैसे बहाल रखें अपने चेहरे की चमक

Karva Chauth Health Tips for Women during Fastकरवा चौथ 2021: करवा चौथ इस साल 24 अक्टूबर 2021 को मनाया जा रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार करवा चौथ  कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है।  इस दिन विवाहित महिलाएं अपने जीवन साथी अर्थात सुहाग के लम्बी उम्र और सभी प्रकार की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। महिलायें इस दिन फ़ास्ट अर्थात उपवास करती है और आपको यह पता होना चाहिए कि करवा चौथ के अवसर पर आपके खूबसूरत चेहरे पर चमक और खुशी लाने के लिए जरुरी है कि उपवास से होने वाले परेशानियों जैसे  एसिडिटी, जी मिचलाना, लो ब्लड प्रेशर और लो एनर्जी आदि को कैसे दूर रखी जाए ।

करवा चौथ को मनाने के लिए, विवाहित महिलाएं पूरे दिन बिना पानी या भोजन के गुजारती हैं ... वे अपने साथी को जीवन में खुशहाली, सफलता और खुशी की कामना करने के लिए इस तरह के अनुष्ठान करती हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि विवाहित महिलाएं शाम को चांद दिखने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।

वास्तव में यह आपका आहार है जो आपके चेहरे की चमक और अन्य महत्वपूर्ण चीजों को नियंत्रित करता है, इसलिए यहां आपको चाहिए कि आहार विशेषज्ञ की सलाहों का अनुसरण करें. 


 डाइटिशियन एक्सपर्ट के मुताबिक इस दिन को और आरामदायक बनाने के लिए  कुछ टिप्स आप अपना सकती हैं जो आपको करवाचौथ पर स्वस्थ रखने में मदद करेंगे।

इसके लिए आप चाहें तो सूर्योदय से पहले सुबह- अपने दिन की शुरुआत अनार या केला जैसे सूखे मेवों जैसे बादाम, अखरोट, खजूर या अंजीर से करें। 

उपवास के दौरान अक्सर लोगों को एसिडिटी और गैस की समस्या हो जाती है इसके लिए यह सुनिश्चित करें कि आपका भोजन कम वसा वाला हो और पेट पर बहुत भारी न हो। एक हल्की शक्कर वाली मिठाई डालें क्योंकि इससे दिन में बाद में भूख नहीं लगेगी और बाकी दिन के लिए ऊर्जा मिलेगी।

सादे पानी के बजाय नारियल पानी या नींबू का रस मिलाने से आवश्यक इलेक्ट्रोलाइट्स जुड़ जाएंगे।  इस दिन स्वास्थय के लिए जरुरी है कि  आप ज्यादा चाय या कॉफी के सेवन से बचें।

उपवास के बाद- कुछ प्रोटीन युक्त भोजन शामिल करना एक अच्छा विचार होगा।

व्रत के तुरंत बाद ज्यादा मीठा और तला हुआ खाना खाने से बचें। अपनी शाम का आनंद लेने के लिए कुछ जश्न के भोजन के साथ एक संतुलित भोजन लेना सबसे अच्छा तरीका है।

एक संपूर्ण भोजन में आदर्श रूप से सब्जियां, दही, चपाती के रूप में साबुत अनाज, दाल के साथ कुछ चावल और कुछ मीठे शामिल होंगे।

आशा है कि यह करवाचौथ को चेहरे पर चमक और खुशी लाने में आपकी मदद करेगा।


ठीक होने के 3-6 महीने बाद तक हो सकते हैं कोविड के बाद के लक्षण,घबराएं नहीं, जांच करवाएं: पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. निखिल बंते

Post-COVID symptoms, Precautions and Treatments
बीमारी के इलाज के बाद क्या नेगेटिव रिपोर्ट आ जाने पर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई वाकई खत्म हो जाती है? किन प्रारंभिक चेतावनी संकेतों पर ध्यान देना चाहिए? किस प्रकार का भोजन या पोषण लेना चाहिए? पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) द्वारा वेबिनार में इन सभी सवालों के जवाब मिले। इसमें पोषण विशेषज्ञ ईशी खोसला और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. निखिल नारायण बंते ने पोस्ट-कोविड लक्षणों के बारे में बताया और यह भी बताया कि इससे कैसे निपटा जाए और कैसा पौष्टिक भोजन हमें कोविड से लड़ने और कोविड से ठीक होने में मदद कर सकता है।

फेफड़े और टीबी विशेषज्ञ डॉ. निखिल नारायण बंते ने बताया कि महामारी की दूसरी लहर में कोविड​​-19 हो कर उससे ठीक हो जाने वाले बड़ी संख्या में लोग कोविड​​​​-19 सिंड्रोम का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि "लगभग 50 प्रतिशत – 70 प्रतिशत रोगियों को कोविड-19 से ठीक होने के बाद 3-6 महीने तक मामूली या यहां तक ​​​​कि बड़े लक्षणों का अनुभव हो सकता है। ऐसा उन रोगियों में अधिक देखा जाता है जिनके संक्रमण का रूप मध्यम या गंभीर था।"

वेबिनार में डॉ. निखिल नारायण बंते द्वारा बताई गई बातों के अंश:

पोस्ट-कोविड-19 सिंड्रोम क्या है?

कोविड रोगी अधिकतर 2 - 4 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। फिर भी कुछ रोगियों में कोविड के लक्षण चार सप्ताह से अधिक समय तक बने रहते हैं। ऐसी स्थिति को “एक्यूट पोस्ट कोविड सिंड्रोम” के रूप में जाना जाता है। यदि लक्षण 12 महीने के बाद भी बने रहते हैं, तो इसे “पोस्ट कोविड सिंड्रोम” के रूप में जाना जाता है।

पोस्ट- कोविड​​​​-19 के सबसे आम लक्षण:

  • कमजोरी / थकान
  • सांस लेने में दिक्कत
  • घबराहट
  • अधिक पसीना आना
  • जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द
  • स्वाद और गंध अनुभव न होना
  • निद्रा संबंधी परेशानियां

कोविड के बाद के मनोवैज्ञानिक लक्षण:

  • अवसाद
  • चिंता

पोस्ट कोविड-19 लक्षणों के कारण?

कोविड-19 के बाद के लक्षणों के यह दो प्रमुख कारण हैं:

वायरस से संबंधित: कोरोना वायरस न केवल हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि लीवर, मस्तिष्क और किडनी सहित सभी अंगों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, हमारे शरीर को संक्रमण से उबरने में समय लगता है।

रोग-प्रतिरोधक क्षमता से संबन्धित: वायरस के प्रवेश से हमारा इम्यून सिस्टम हाइपरएक्टिव (अति सक्रिय) हो जाता है। शरीर और वायरस के बीच लड़ाई में विभिन्न रसायन निकलते हैं जो हमारे अंगों में सूजन पैदा करते हैं। कुछ रोगियों में यह सूजन लंबे समय तक बनी रहती है।

कुछ सामान्य पोस्ट-कोविड सिंड्रोम

थ्रोम्बोएम्बोलिज़्म सबसे अधिक आशंका वाली पोस्ट-कोविड​​​​-19 स्थिति है। इसमें रक्त के थक्के रक्त वाहिका में रुकावट डालते हैं। इससे दिल का दौरा या स्ट्रोक भी हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि थक्के कहां हैं। हालांकि, कोविड-19 से ठीक होने वाले 5 प्रतिशत से कम रोगियों में ही थ्रोम्बोएम्बोलिज़्म पाया जा रहा है।

पल्मोनरी एम्बोलिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों में रक्त के थक्के के शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं। इसके लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई और रक्तचाप में गिरावट शामिल है। ऐसे रोगियों को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने और आगे पता लगाने की आवश्यकता होती है।

उच्च डी-डिमर स्तर:

तीव्र से गंभीर रोगियों और उच्च डी-डिमर स्तर वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ पोस्ट कोविड-19 अवधि में 2-4 सप्ताह के लिए चिकित्सीय एंटी-कोगुलेंट (थक्के गलाने) की आवश्यकता हो सकती है। परंतु एंटी-कोगुलेंट्स को चिकित्सक के की राय पर सुरक्षित तरीके से लिया जाना चाहिए।

पुरानी खांसी:

एक अन्य प्रमुख पोस्ट-कोविड​​​​-19 संक्रमण का लक्षण ठीक न हो रही पुरानी खांसी या संक्रमण के बाद की खांसी है। हमारे श्वासमार्ग में संक्रमण और सूजन के कारण ठीक होने के बाद भी मरीज में सूखी खांसी बनी रह सकती है। ठीक होने की प्रक्रिया शुरू होने पर भी फेफड़ों में सूजन के कारण भी खांसी बनी रह सकती है। सूखी खांसी का अनुभव करने वाले रोगियों के लिए गहरी सांस लेने के व्यायाम की सलाह दी जाती है।

खांसी से थकान:

कोविड के बाद के मरीज़ अक्सर खांसी के फ्रैक्चर की शिकायत करते हैं। पुरानी खांसी के कारण उन्हें छाती के निचले हिस्से में पसलियों में दर्द महसूस हो सकता है। इस स्थिति का मूल्यांकन करना भी महत्वपूर्ण है। कॉस्टोकॉन्ड्राइटिस या रिब-केज में दर्द कोविड के दौरान सूजन के कारण ठीक होने के बाद भी हो सकता है।

फेफड़े में फाइब्रोसिस:

एक अन्य पोस्ट-कोविड ​​​​सिंड्रोम का भय रहता है। ऐसा फेफड़ों में रह गए उन निशानों के कारण होता है जो कोविड से ठीक हो जाने पर रह जाते हैं। करीब 90 प्रतिशत रोगियों में स्कारिंग चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं होते है। हालांकि ऐसे 10 प्रतिशत रोगियों को दीर्घकालिक पूरक ऑक्सीजन की आवश्यकता हो सकती है। “यह उन कोविड-19 रोगियों में होने की अधिक संभावना होती है जिनके फेफड़े 70 प्रतिशत से अधिक तक क्षतिग्रस्त हो गए हैं। ऐसे रोगियों में भी फेफड़े की फाइब्रोसिस उनमें से लगभग 1 प्रतिशत में ही पाई जाती है।

जिन लोगों को मध्यम से गंभीर कोविड​​​​-19 था और वे ऑक्सीजन थेरेपी पर थे, ठीक होने के एक महीने बाद फेफड़ों की जांच करवा सकते हैं। वक्ष विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा यह समझने के लिए जरूरी है कि क्या फेफड़ों की क्षमता पूरी तरह से बहाल हो गई है और ऑक्सीजन निकालने की क्षमता पूरी तरह से पिछले स्तरों पर बहाल हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि कोविड-19 से ठीक होने वाले कई रोगियों को सीने में दर्द का अनुभव होता है और उन्हें दिल का दौरा पड़ने का डर लगता है। लेकिन कोविड से ठीक होने वाले 3 प्रतिशत से कम रोगियों में ही दिल का दौरा देखा गया है।

पोस्ट-कोविड पोषण प्रबंधन:

क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट ईशा खोसला ने कहा कि कोविड​​​​-19 के कारण मरने वाले 94 प्रतिशत लोगों ने सह-रुग्णता के कारण दम तोडा जिसमें सूजन का एक सामान्य कारण है। उन्होंने सुझाव दिया कि इसलिए हमारा आहार सूजन-रोधी होना चाहिए और हमें सही खाने, अपने शरीर को फिट रखने और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को बरकरार रखने की जरूरत है।

आहार में प्रोटीन की पर्याप्तता

खोसला ने कहा कि हमारे आहार में प्रोटीन एक केंद्रित तरीके से और दिन के कम से कम दो भोजन में मौजूद होना चाहिए। इसके अलावा, हमें सब्जियों को प्रोटीन के साथ रखना चाहिए, जिससे भोजन का पाचन संतुलित तरीके से हो सके।

पूरक पोषक तत्व

क्लिनिकल न्यूट्रीशनिस्ट ने पोषक तत्वों की खुराक के उपयोग के बारे में आगाह किया और इसे विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि “जस्ता, विटामिन सी और विटामिन डी, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स ने इस काल में जबरदस्त महत्व हासिल किया है। इन्हें विवेकपूर्ण तरीके से लिया जाना चाहिए और इसमें अति नहीं होनी चाहिए। ये पूरक तत्व शरीर के पुनर्जनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।"

सुरक्षात्मक भोजन

ये भोजन शरीर के रक्षा तंत्र को मदद करते हैं। इसमें फाइटो-पोषक तत्व और फाइबर होते हैं, जो शरीर के ठीक होने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसलिए, सुरक्षात्मक भोजन भी पर्याप्त रूप से लिया जाना चाहिए। हमारी आंतों में जीवित जीवाणु पाए जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य और बीमारी से ठीक होने को निर्धारित करते हैं। यदि उन जीवाणुओं (माइक्रोब्स) को कोई नुकसान हुआ है तो रेशे वाला भोजन दिया जाना चाहिए ताकि उन जीवाणुओं को विकसित किया जा सके।

फाइटो-पोषक तत्व, जो विभिन्न रंगों में आते हैं और इन्द्रधनुष आहार के रूप में भी जाने जाते हैं, उन्हें इस बारे में जानकारी होती है कि कौन से जीन काम करते हैं, कौन सी दूर की कोशिकाओं को सक्रिय करना है और कौन ही को दबाना है। ये विटामिन और खनिजों से भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ईशी खोसला ने सलाह दी कि "इसलिए, रंगीन भोजन का सेवन करें और ऐसा सुरक्षात्मक भोजन कम से कम एक बार जरूर करें।"

सुरक्षात्मक भोजन में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड, कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल, हल्दी, अदरक, चाय आदि शामिल हैं।

हाइड्रेशन: पोषण विशेषज्ञ विशेष रूप से पर्याप्त पानी पीने के महत्व के बारे में भी बताया। बीमारी के दौरान और बीमारी के बाद भी हाइड्रेशन का स्तर अच्छी तरह से बनाए रखा जाना चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य का संबंध हमारी आंत से भी होता है जिसका हमारे शरीर पर इतना गहरा प्रभाव पड़ता है कि वैज्ञानिक अब इसे "दूसरा मस्तिष्क" कह रहे हैं। इसलिए, यदि हमारा भोजन शरीर के लिए अच्छा नहीं है, तो यह हमारी प्रतिरक्षा के अलावा हमारे मूड को भी खराब करता है।

संक्षेप में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वस्थ आहार बनाए रखें तथा मौसमी भोजन और जैविक भोजन लें। (Source PIB)

नेफेड ने स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने के लिए फोर्टिफाइड ब्रैन राइस तेल लॉन्च किया

NAFED launches Fortified Rice Bran Oil to Boost Healthy Living: Know Benefits
राइस ब्रैन तेल के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जिनमें इसके कम ट्रांस-फैट सामग्री और उच्च मोनो असंतृप्त और पॉली असंतृप्त वसा सामग्री के कारण कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करना शामिल है। यह बूस्टर (वर्धक) का काम भी करता है और इसमें शामिल विटामिन ई की अधिक मात्रा के कारण कैंसर के खतरे को कम करता है। इस तेल की सिफारिश अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अन्य खाद्य तेलों के लिए सबसे अच्छे विकल्प में से एक के रूप में की जाती है।

खाद्य एवं जन वितरण विभाग के सचिव श्री सुधांशु पांडेय ने आज नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस तेल (पुष्टिकारक चावल की भूसी का तेल) का ई-लॉन्च किया। इस अवसर पर श्री सुधांशु पांडेय ने कहा कि नेफेड की इस पहल से भविष्य में आयातित खाद्य तेल पर देश की खपत निर्भरता काफी कम हो जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि इससे भारतीय खाद्य तेल निर्माताओं को और अधिक अवसर मिलेंगे तथा प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत पहल को भी बल मिलेगा। इस राइस ब्रैन आयल का विपणन नेफेड (राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड) द्वारा किया जाएगा। 

ई-लॉन्च अवसर पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अरुण सिंघल, नेफेड के प्रबंध निदेशक श्री संजीव कुमार चड्ढा और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री आतिश चंद्रा भी उपस्थित थे।

इस मौके पर भारतीय खाद्य निगम के सीएमडी ने बताया कि हाल ही में नेफेड और एफसीआई के बीच फोर्टिफाइड राइस गिरी के उत्पादन और विपणन के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। 

नेफेड के प्रबंध निदेशक श्री संजीव कुमार चड्ढा ने इस पहल के बारे में कहा कि इस पहल से नेफेड के ब्रांडेड उच्च गुणवत्ता वाले राइस ब्रैन तेल तक आसानी से पहुंच होगी, जिससे स्वदेशी तेल निर्माण उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा।

उल्लेखनीय है कि राइस ब्रैन तेल के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जिनमें इसके कम ट्रांस-फैट सामग्री और उच्च मोनो असंतृप्त और पॉली असंतृप्त वसा सामग्री के कारण कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करना शामिल है। यह बूस्टर (वर्धक) का काम भी करता है और इसमें शामिल विटामिन ई की अधिक मात्रा के कारण कैंसर के खतरे को कम करता है। इस तेल की सिफारिश अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अन्य खाद्य तेलों के लिए सबसे अच्छे विकल्प में से एक के रूप में की जाती है। नेफेड के राइस ब्रैन आयल को पुष्टिकारक बनाया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इसमें अतिरिक्त पौष्टिक तत्व और विटामिन शामिल होंगे। एफएसएसएआई के अनुसार फोर्टिफाइड तेल एक व्यक्ति को विटामिन ए और डी के लिए अनुशंसित आहार सेवन का 25-30 प्रतिशत पूरा करने में मदद कर सकता है। नेफेड का फोर्टिफाइड राइस ब्रैन तेल सभी नेफेड स्टोर्स पर और विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर भी उपलब्ध होगा।

बच्चों में कोविड-19: खतरे और सावधानियां

Covid-19 in Children: Know the Threats and Precautions by Experts
Covid-19 in Children: बच्चों में कोविड-19 का अभी भी मध्यम असर है। भले ही बच्चे सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में हैं, फिर भी उनमें से अधिकांश बिना लक्षण वाले हैं। सीएसआईआर की नई इकाई, सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर), नई दिल्ली ने कल (04 जून 2021 को)बच्चों में कोविड-19 के बारे में आधे दिन का एक ऑनलाइन सत्र आयोजित किया  यह सत्र हाल ही में कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप और बच्चों पर इसके प्रभाव, खतरों और बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी प्रोटोकॉल पर केन्द्रित था। इस वेबिनार के मुख्य अतिथि डॉ. वी. विजयलक्ष्मी, अतिरिक्त आयुक्त (अकादमिक), केवीएस (मुख्यालय), नई दिल्ली थीं और अतिथि वक्ता श्री बालाजी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसबीएमसीएच), चेन्नई, तमिलनाडु के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के कार्यकारी बोर्ड सदस्य 2021 प्रोफेसर डॉ. आर. सोमशेखर थे। इस कार्यक्रम में सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर द्वारा फेसबुक पर उपलब्ध कराए गए लिंक के माध्यम से कई गणमान्य व्यक्तियों, संकाय सदस्यों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों और विभिन्न स्कूलों के छात्रों सहित लगभग 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक डॉ. रंजना अग्रवाल ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में ‘जिज्ञासा’, जोकि वर्ष 2017 के मध्य में शुरू हुई छात्रों-वैज्ञानिकों को जोड़ने की पहल है और जिसका उद्देश्य स्कूली छात्रों में 'वैज्ञानिक चेतना' पैदा करना और उन्हें विज्ञान उन्मुख बनाना है, के जरिए दो महान संस्थानों, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और केन्द्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) के बीच असाधारण संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा कि 'जिज्ञासा' ने वास्तव में न केवल छात्रों के बीच एक सराहनीय प्रभाव पैदा किया है, बल्कि वैज्ञानिकों में भी उत्साह जगाया है। उन्होंने कहा कि 'जिज्ञासा' छात्रों को सीधे वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है और इस तरह युवा दिमाग को नवीन सोच और दृष्टिकोण की ओर प्रेरित करता है। दीर्घकालिक स्तर पर, विशेष रूप से समाज के लिए फायदेमंद विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के संदर्भ में इस पहल से प्रभावशाली परिणाम मिलने की उम्मीद है।

डॉ. वी. विजयलक्ष्मी, अतिरिक्त आयुक्त (अकादमिक), केवीएस ने अपने संबोधन में कहा कि ‘जिज्ञासा’ छात्रों के लिए एक सपने के सच होने जैसा है क्योंकि यह वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने और उनके काम को करीब से देखने का एक मंच प्रदान करता है। यह संबंध उनके संस्थान के लिए काफी सफल रहा है क्योंकि इसके जरिए पूरे साल चलने वाली विभिन्न प्रकार की संलग्नता को लेकर छात्र उत्साहित हैं। डॉ विजयलक्ष्मी ने कहा कि अभूतपूर्व कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। इसने सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक जीवन और बच्चों के मानस को निष्क्रिय रूप से प्रभावित किया है। इसकी वजह से उन्हें पढ़ाई के अलावा खेलने के अधिकार से वंचित होना पड़ा है, भले ही वह उनके साथियों के साथ ही क्यों न हो। उन्होंने इस बात की याद दिलाई कि कैसे हमारे शिक्षक बच्चों को शिक्षित करने के दबाव से निपटने के लिए रातोंरात आईटी-प्रेमी तकनीकी विशेषज्ञ बन गए।

 एसबीएमसीएच, चेन्नई के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर और आईएपी केईबी सदस्य प्रो. आर. सोमशेखर, ने सूक्ष्म विवरणों को शामिल करते हुए "बच्चों में कोविड-19: खतरे और सावधानियां" विषय पर एक व्यापक मुख्य भाषण दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों में कोविड-19 का अभी भी मध्यम असर है। भले ही बच्चे सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में हैं, फिर भी उनमें से अधिकांश बिना लक्षण वाले हैं और मात्र 1-2% को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। डॉ. सोमशेखर ने माता-पिता को वयस्कों से संक्रमण के संचरण की संभावना और इन दिनों बच्चों में बढ़ते जठरांत्र संबंधी लक्षणों के बारे में आगाह किया। उन्होंने समझाया कि अन्य फ्लू और सामान्य सर्दी के बीच कोविड -19 लक्षणों की पहचान और अंतर कैसे करें।

 डॉ. सोमशेखर ने कहा कि कोविड -19 ने अब तक कर्नाटक को छोड़कर भारत में बच्चों को ज्यादा प्रभावित नहीं किया है। उन्होंने बच्चों के लिए कोविड-19 के उपचार के विभिन्न विकल्पों पर चर्चा की। सत्र को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने हमारे दैनिक जीवन में अपनाए जाने लायक कुछ उपायों के बारे में सुझाव दिया: शारीरिक व्यायाम, बच्चों के साथ खेलना, स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों से बचना, अच्छी नींद, मास्क पहनना, संतुलित आहार और उम्र के अनुसार टीकाकरण। सबसे महत्वपूर्ण बात के रूप में, उन्होंने लक्षणों और बच्चे के व्यवहार में बदलाव पर कड़ी नजर रखने की सलाह दी।

डॉ. वाई. माधवी, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने चर्चा का संचालन किया और समापन सत्र का सार प्रस्तुत किया। श्री आर. एस. जयसोमू, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया। डॉ. एन. के. प्रसन्ना, वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के समस्त कर्मचारियों ने इस कार्यक्रम की पहुंच बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई।