Point Of View: सकारात्मक और उत्साही लोगों के साथ समय बिताएं, जीवन का हर मुश्किल होगा आसान

Inspiring Thoughts Positive Attitude and its Importance in Life
Point Of View:  सकारात्मक सोच हीं जीवन मे सफलता का एकमात्र मूलमंत्र है और इसमे हमें तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए। पहले के मुहावरों मे कहा जाता था कि अकेला चना भांड नहीं फोड़ता लेकिन आज अगर आप इतिहास उठा कर देखेंगे तो अकेले लोगों ने अपने बूते न केवल अपने संगठन बल्कि देश और समाज को भी अग्रणी पहुंचाने मे आगे रहे हैं। यह ठीक है कि कारवां का बनना सफलता कि गारंटी को बढ़ा देता है, लेकिन यह भी ध्यान रखें कि उस कारवां के बनने का विचार या आइडिया किसी एक व्यक्ति का हीं होता है। यह याद रखें कि लोगों को अगर अपनी क्षमताओं पर भरोसा होता है, तो उनके सफल होने और सफल होने की संभावना अधिक होती है। 

जो लोग जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, वे तनाव से बेहतर तरीके से निपटते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और समय से पहले मृत्यु का जोखिम कम होता है।

इस सच्चाई से भला किसे इनकार हो सकता है कि जीवन में मुश्किलें आती रहती हैं और जीवन कभी भी फूलों का सेज नहीं रहा। आप इतिहास उठाकर देख लें, जिसकों जीवन मे जितना ऊपर जाना होता है, उसके रास्ते मे प्रकृति ने उतने ही बाधाओं एयर काँटों को बिछाकर उनका परीक्षा लेती है। कहते हैं न,
" वही पथ क्या  पथिक परीक्षा क्या,  जिस पथ मे बिखरे शुल न हो। 
नाविक कि धैर्य परीक्षा क्या,  यदि धाराएं प्रतिकूल न हो। 
सकारात्मक दृष्टिकोण हमें सकारात्मक सोचने में आसान बनाता है और यह हमें चिंताओं और नकारात्मक सोच से बचने की कला भी सिखाता है.

लेकिन याद रखें, जीवन मे इन बाधाओं और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए हमें सकारात्मक सोच रखना बहुत ज़रूरी है। सकारात्मक सोच एक विकल्प है।  यह हमेशा आसान नहीं होता है, लेकिन यह अभ्यास के साथ बेहतर होता जाता है। आपको हमेशा इसका ध्यान रखना होगा कि जिन लोगों के साथ आप समय बिताते हैं, उनका आपके मूड पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है इसलिए हमेशा हीं सकारात्मक और उत्साही लोगों के साथ समय बिताने कि कोशिश करें।  

जीवन में सफलता के लिए यह जरुरी है कि हम नकारात्मक सोच और ऐसी प्रवृति वाले लोगों से एक खास दुरी बनाकर अपने प्रयासों पर फोकस करें। यह सकारात्मक दृष्टिकोण का अभ्यास हीं है जो आपके जीवन में आशावाद और आशावादी दृष्टिकोण लाता है। 


बेशक अगर सकारात्मक और आशा के अनुरूप घटने वाली घटनाओं का हम स्वागत  करते हैं लेकिन थोड़ी से कुछ अप्रिय घटनाएं  हमारे  जीवन में दस्तक  देती  हैं कि हम अपने जीवन और परिस्थितियों को कोसना आरम्भ कर देते हैं.....



 .... लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि केवल सकारात्मक दृष्टिकोण ही हमें जीवन के दैनिक जटिल और अप्रिय मामलों से अधिक आसानी से निपटने में मदद करता है।


... यह सकारात्मक दृष्टिकोण का अभ्यास है जो आपके जीवन में आशावाद और आशावादी दृष्टिकोण लाता है। सकारात्मक दृष्टिकोण हमें सकारात्मक सोचने में आसान बनाता है और यह हमें चिंताओं और नकारात्मक सोच से बचने की कला भी सिखाता है...


 अपने जीवन में सफल होने के लिए, यदि कोई आपके जीवन में कुछ रचनात्मक परिवर्तन की उम्मीद कर रहा है, तो सकारात्मक दृष्टिकोण को जीवन के तरीके के रूप में अपनाने की आवश्यकता है।


Attitude  भले एक छोटी से चीज सही लेकिन सच यह है कि जीवन के इसी बड़े और महत्वपूर्ण फर्क लाने के लिए यह बहुत प्रभावी भूमिका निभाती है....



 सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण  की मदद से कई लोगों यहाँ तक की कई प्रसिद्ध हस्तियों ने कई बड़ी बीमारियों या संघर्षों के साथ अपनी लड़ाई जीत ली है.... वावजूद इस तथ्य के कि जीतना मुश्किल था….वास्तव में केवल एटीट्यूड ही काफी नहीं है..लेकिन जीवन में हमारी सफलता के लिए सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण की आवश्यकता है...


मनोवृत्ति मूल रूप से वह तरीका है जिसमें हम किसी चीज़ के प्रति व्यवहार करते हैं या सोचते हैं या महसूस करते हैं .आम तौर पर हम अपनी सोच, भावनाओं तथा  अन्य पहलुओं के संदर्भ में अपना दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हैं। वास्तव में आपकी सोच गठन के पीछे मूल कारण है किसी चीज के प्रति आपका नजरिया...

यदि आप सकारात्मक सोचने के आदि  हैं और किसी भी घटना का केवल सकारात्मक पक्ष देखते हैं तो आप अपने जीवन के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं ... आप जिस मुद्दे से निपट रहे हैं, उसके बारे में बात करें ...और इसके लिए नेगेटिव विचारों को अपने मन में घर नहीं करने दें...

याद रखें, प्रकृति भी   आपके अंदर उत्पन्न विचारों को हीं सशक्त करने और उसे पूरा करने की लिए बल देती है, और इसलिए हैं हमें बचपन से यह पढ़ाया जाता है कि -" हमें अपने मन में बुरे विचारों को  लाने से बचना चाहिए"

आपका Attitude  आपके आस-पास हो रही घटनाओं के बारे में आपकी राय बनाने में आपकी मदद करता है... सोचने के तरीके ने आपके विचारों को तय किया और निश्चित रूप से यह आपके कार्यों में दिखाई देता है। जिस वातावरण में आप रह रहे हैं, वह भी आपके दृष्टिकोण के प्रभाव  प्रदर्शित करता है...

दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी मामूली चोटों और जीवन की कठिनाइयों के कारण जीवन के निराशावादी और नकारात्मक रवैये के कारण दम तोड़ दिया है….

अपने जीवन में हर असफलता के लिए अपने आस-पास की परिस्थितियों को दोष न दें. आपके जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए अपनी मानसिकता और दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है.।

आपके सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण में आपके जीवन में आपकी हर सफलता/असफलता का कारण प्रदान करने की शक्ति है और इसलिए अपने सोचने के तरीके को नज़रअंदाज़ न करें.निश्चित रूप से यह आपके जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने का मूल तरीका है,

लॉकडाउन और ऑनलाइन पढ़ाई: बच्चों से अधिक है पेरेंट्स की भूमिका, अपनाएँ ये टिप्स


आपको अपने जीवन में आने वाली हर घटना के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा चाहे वह पेशेवर हो या व्यक्तिगत। यह एक भावनात्मक स्थिति हो सकती है जिस पर आपको ध्यान देने की आवश्यकता है… सभी घटनाओं से निपटने के लिए आपको सकारात्मक और आशावादी रवैया रखना होगा। मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक सहित ....



विश्वास करें, आपमें परिस्थितियों को बदलने के लिए एटीट्यूड की शक्ति है क्योंकि आप अपनी खुद की परिस्थितियों के निर्माता हैं अपने सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण के साथ।

=========

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

Point Of View: रामनवमी- जानें भगवान राम के चरित्र के कौन-कौन से हैं 16 गुण


Point Of View: रामनवमीं आज अर्थात अप्रैल 06 को हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. आज ही भगवान राम का जन्म हुआ था और उसके उपलक्ष्य में रामनवमीं मनाया जाता है. भगवान राम के जीवन में मर्यादा का विशेष महत्व रहा है और उनके विशेष गुणों को लेकर जो छवि प्रत्येक हिंदुओं में बसी है वह किसी लेखनी की मोहताज नहीं है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भगवान राम  को भगवान विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन एक मर्यादा में रहकर व्यतीत किया. "मर्यादा पुरुषोत्तम" श्रीराम भगवान हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं, जो "रामायण" के मुख्य पात्र में प्रस्तुत होते हैं। "मर्यादा पुरुषोत्तम" का अर्थ होता है "मर्यादा में सर्वोत्तम पुरुष" या "मर्यादा के परम आदमी"। "मर्यादा पुरुषोत्तम" का उपनाम भगवान राम के श्रद्धायुक्त और न्यायप्रिय व्यक्तित्व को संकेत करता है, जो उन्हें भक्तों के लिए एक आदर्श पुरुष बनाता है।

 भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में मर्यादाओं का हमेशा पालन किया। वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श राजा और आदर्श मित्र थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी इन मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया.

सच तो यह है कि इस उपनाम के माध्यम से भगवान राम की विशेषता और उनके जीवन में अनुसरण करने लायक आदर्शों को दर्शाने का प्रयास किया जाता है।  भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम उनकी महानता के लिए दिया गया उपाधि है जिसमे पारिवारिक संबंधो की मर्यादा के साथ ही राजकीय और दोस्तों और यहाँ तक कि दुश्मनों के साथ भी मर्यादा के निर्वाह के लिए दिया जाता है. और यही वजह है कि भगवन राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है.

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, जिनका सभी सम्बन्धो के लिए अनुकरणीय व्यक्तित्व

भगवान राम को "मर्यादा पुरुषोत्तम" कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में धर्म, नैतिकता, और श्रेष्ठता की मर्यादा बनाए रखी। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया, अपनी पतिव्रता पत्नी सीता के प्रति वफादारी दिखाई, और अपने भक्तों के प्रति सत्य, न्याय, और करुणा का प्रदर्शन किया।  

आदर्श पुत्र

कहने की जरुरत नहीं कि भगवन राम ने अपने पिता दशरथ के आदेश का पालन करने के लिए 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार किया। वे जानते थे कि पिता का आदेश सदैव मानना चाहिए, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। इस प्रकार की मिसाल शायद हीं कहीं और मिलती है. 

भगवान राम की चरित्र की पांच विशेषताएं जो मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है

आदर्श भाई

भारत मिलाप और अपने भाइयों के प्रति प्रेम और अनुराग भगवन राम की अलग विशेषता है जो उन्हें सबसे अलग रखता है. भगवन राम ने अपने भाई भरत के प्रति कभी भी ईर्ष्या या घृणा का भाव नहीं रखा। वे भरत को अपना सच्चा भाई मानते थे और उनका हमेशा सम्मान करते थे। 

आदर्श पति

मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी संबंधों को पूर्ण एवं उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाला प्रभु रामचंद्र के चरित्र के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है।  और जहाँ तक आदर्श पति का सवाल है, राम ने अपनी पत्नी सीता के प्रति हमेशा प्रेम और सम्मान का भाव रखा। वे सीता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार थे।

आदर्श राजा

राम के राज्य में राजनीति स्वार्थ से प्रेरित ना होकर प्रजा की भलाई के लिए थी। इसमें अधिनायकवाद की छाया मात्र भी नहीं थी। राम ने अपने राज्य में हमेशा न्याय और धर्म का पालन किया। वे प्रजा के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। 

आदर्श मित्र

श्री रामचंद्र जी निष्काम और अनासक्त भाव से राज्य करते थे। उनमें कर्तव्य परायणता थी और वे मर्यादा के अनुरूप आचरण करते थे।  राम ने अपने दोस्तों सुग्रीव, हनुमान, विभीषण आदि के प्रति हमेशा निष्ठा और समर्पण का भाव रखा। उन्होंने अपने दोस्तों की हर समय मदद की। 

भगवान राम की विशेषता हैं ये खास 16 गुण

भगवान राम के मर्यादा और उनके विशेष गुणों को लेकर जो छवि प्रत्येक हिंदुओं में बसी है वह किसी लेखनी की मोहताज नहीं है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भगवान राम  को भगवान विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन एक मर्यादा में रहकर व्यतीत किया. भगवान राम जी के चरित्र की कई ऐसी विशेषताएं हैं जो उन्हें लोगों का आदर्श बनाती हैं.  हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रभु राम 16 गुणों से युक्त थे जो उनको मर्यादा पुरुषोतम बनाते हैं और हम सभी उनके इन गुणों को अपनाकर अपना जीवन बना सकते हैं-

इये जानते हैं भगवान राम के चरित्र मे कौन-कौन से 16 गुण हैं जो हमें अपनानी चाहिए .

  • गुणवान (योग्य और कुशल)
  • किसी की निंदा न करने वाला (प्रशंसक, सकारात्मक)
  • धर्मज्ञ (धर्म का ज्ञान रखने वाला)
  • कृतज्ञ (आभारी या आभार जताने वाला विनम्रता)
  • सत्य (सत्य बोलने वाला और सच्चा)
  • दृढ़प्रतिज्ञ (प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाला, दृढ़ निश्‍चयी )
  • सदाचारी (धर्मात्मा, पुण्यात्मा और अच्छे आचरण वाला, आदर्श चरित्र)
  • सभी प्राणियों का रक्षक (सहयोगी)
  • विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)
  •  सामर्थशाली (सभी का विश्वास और समर्थन पाने वाला समर्थवान)
  • प्रियदर्शन (सुंदर मुख वाला)
  • मन पर अधिकार रखने वाला (जितेंद्रीय)
  • क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)
  • कांतिमान (चमकदार शरीर वाला और अच्छा व्यक्तित्व)
  • वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)
  • युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें : (वीर, साहसी, धनुर्धारि, असत्य का विरोधी)

Ramnavmi 2025: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कथा, महत्व और जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ


Ramnavmi 2025: राम नवमी हिंदू धर्म के कई सारे त्योहारों में से सबसे महत्वपूर्ण है जो भगवान राम की जयंती का प्रतीक है। रामनवमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह मान्यता है ki  भगवान श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि हुआ था और तब से भक्तगण  इस दिन को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। भगवान राम का जीवन न केवल धार्मिक बल्कि जीवन को नैतिकता और मर्यादा के साथ जीने की प्रेरणा भी देती है। 

भगवान् राम ने जीवन और परिवार में सम्बन्धो के बीच समन्यव स्थापित करते हुए यह बताया है कि  निष्ठा, त्याग, बंधुत्व, शालीन स्नेहभाव,उदारता और वत्सलता जैसे जैसे भावों को किस प्रकार से कुशलता से पालन किया जा सकता है. उन्होंने हर सम्बन्धो में उच्च आदर्शों को स्थापित करते हुए किस प्रकार से अपने सभी कर्तव्यों का  पालन किया जा सकता हैं इसकी व्यापक झलक भगवान् राम के चरित्र में पाई जा सकती है. 

रामनवमी हर साल हिंदी के महीने के अनुसार चैत्र में पड़ता है. चैत्र नवरात्री जिसमे माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, उसी दौरान नवमी को भगवन राम के जन्म को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है. 

 नवरात्र का जश्न मनाने के लिए भक्तगण माता दुर्गा के विभिन्न रूपों का पूजन और  अनुष्ठान करते हैं तथा नवमी जिस दिन हम माँ सिद्धिदात्री पूजा करते हैं जो रामनवमी के दिन मनाई जाती है. 

भगवान श्रीराम: जीवन परिचय

मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम के बारे मे कहा जाता है कि उनका जन्म त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ और माता कौशल्या के घर मे हुआ था। वे विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं जिनका पूरा जीवन सत्य, धर्म और मर्यादा की मिसाल और अनुकरणीय है। अयोध्या में जन्मे राम बचपन से ही शौर्य और पराक्रम के प्रतीक थे जिन्होंने  माता कैकेयी के वरदान के कारण 14 वर्षों का वनवास मिला, जिसे उन्होंने धर्म और धैर्य के साथ स्वीकार किया। उन्होंने अपनी प्रजा और परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को सर्वोच्च स्थान दिया और अधर्म के खिलाफ संघर्ष कर समाज में नैतिकता और सदाचार की स्थापना की।

रामनवमी का त्योहार हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। रामायण जो हिंदू धर्म का धार्मिक महाकाव्य है जिसके अनुसार त्रेता युग में राजा दशरथ नामक एक सम्राट थे, जो भगवान् राम के पिता थे. हिन्दू धर्म के अनुसार यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर त्रेता युग में हुआ था।  

यह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवन राम ही थे जिन्होंने राक्षस राजा रावण को परास्त किया, जिसने उसकी पत्नी सीता का अपहरण किया था।

राम नवमी का महत्व:

राम नवमी का त्यौहार वास्तव में पृथ्वी पर दैवीय शक्ति के आगमन का प्रतीक है क्योंकि हिन्दू धर्म के अनुसार यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया था।

रामनवमी क्योंकि भगवान राम का जन्म दिन है इसलिये भक्तगन इस दिन को खास त्यौहार के रूप में मनाते हैं. वास्तव में राम नवमी का उत्सव अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष को दर्शाता है। 

ऐसी मान्यता है कि सूर्य को भगवान राम का पूर्वज माना जाता है जो सूर्य शक्ति का प्रतीक है. इसलिए रामनवमी के दिन लोग भगवान् राम के साथ ही  सूर्य भगवान् की भी उपासना करते हैं. भक्तगण भगवन राम के साथ ही प्रभु हनुमान की पूजा करते हैं साथ ही राम के भक्त भक्ति गीत गाकर, धार्मिक पुस्तकों के पाठ सुनकर और वैदिक भजनों का जाप करके दिन मनाते हैं।

भगवान् राम: जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ

बाल्यकाल – अयोध्या में जन्मे राम बचपन से ही शौर्य और पराक्रम के प्रतीक थे। गुरु वशिष्ठ से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।

सीता स्वयंवर – जनकपुर में धनुष यज्ञ के दौरान भगवान शिव का धनुष तोड़कर राम ने सीता जी का वरण किया।

वनवास – माता कैकेयी के वरदान के कारण राम को 14 वर्षों का वनवास मिला, जिसे उन्होंने धर्म और धैर्य के साथ स्वीकार किया।

लंका विजय – रावण द्वारा सीता हरण के पश्चात श्रीराम ने वानर सेना के साथ मिलकर रावण का वध किया और अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित की।

रामराज्य – अयोध्या लौटकर श्रीराम ने एक आदर्श शासन स्थापित किया, जिसे ‘रामराज्य’ के नाम से जाना जाता है।

==========

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


Chaitra Navratri 2025 : राम नवमी 06 अप्रैल को, जानें माँ दुर्गा के 9 रूपों के बारे में, महत्व और पूजन विधि

Navratri Maa Dugra ke 9 rup aur significance

Chaitra Navratri 2025चैत्र नवरात्र इस वर्ष 30 मार्च से शुरू हो चुका है जो खासतौर पर मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। नवरात्र के दौरान लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं और कठिन व्रत का पालन करते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष  चैत्र नवरात्रि की समाप्ति राम नवमी 06 अप्रैल को मनाने के साथ होगी।  हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। साल भर में चैत्र और शारदीय नवरात्रि का खास महत्व होता है जब हम माता दुर्गा के सभी रूपों का पूजन करते हैं। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना करने का विधान होता है। 

शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों में, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. ये रूप हैं:
  1. शैलपुत्री
  2. ब्रह्मचारिणी
  3. चंद्रघंटा
  4. कुष्मांडा
  5. स्कंदमाता
  6. कात्यायनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौरी
  9. सिद्धिदात्री


प्रथम दुर्गा मां शैलपुत्री 

  • नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है।
  • ऐसी मान्यता है कि पर्वतराज हिमालय के घर देवी ने पुत्री के रूप में जन्म लिया और इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। 
  • मां ब्रह्मचारिणी दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल लिए हुई हैं।
  • मां शैलपुत्री को प्रकृति का प्रतीक माना जाता है तथा भक्त यह मानते हैं कि माता शैलपुत्री जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता का सर्वोच्च शिखर प्रदान करती हैं। 
  • माता शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है तथा इनका वाहन वृषभ (बैल) है।
  •  मां शैलपुत्री का पूजन घर के सभी सदस्य के रोगों को दूर करता है एवं घर से दरिद्रता को मिटा संपन्नता को लाता है। 


द्वितीय दुर्गा मां ब्रह्मचारिणी

  • नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है.
  • ऐसी मान्यता है कि  शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और उन्हें ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ था, इसीलिए इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। 
  •  मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला रहती है। 
  •  देवी दुर्गा का यह स्वरूप हमें  संघर्ष से विचलित हुए बिना सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
  • कहा जाता है कि  मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने और उनका कृपा प्राप्त करने के लिए कमल और गुड़हल के पुष्प अर्पित करने चाहिए।

तृतीय दुर्गा चंद्रघण्टा

  • नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है.
  • मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है, जिस वजह से मां का नाम चंद्रघंटा पड़ा।
  • मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं जिनमें कमल का फूल, कमंडल, त्रिशूल, गदा, तलवार, धनुष और बाण है।
  • माता का एक हाथ जहाँ आशीर्वाद देने की मुद्रा में रहता है वही  दूसरा हाथ सदैव भक्तों के लिए अभय मुद्रा में रहता है, जबकि शेष बचा एक हाथ वे अपने हृदय पर रखती हैं।
  • मां चंद्रघंटा का वाहन बाघ है। 
  • ऐसी मान्यता है कि  माँ चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा इनकी कृपा से भक्तों को अपने  मन को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।


चतुर्थ दुर्गा कूष्मांडा

  • देवी दुर्गा के चौथे स्वरुप के अंतर्गत माँ  कूष्मांडा की पूजा की जाती है 
  • ऐसी मान्यता है कि मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं और मां सिंह की सवारी करती हैं जिनमें से 7 भुजाओं में वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा धारण करती हैं.
  • माँ कूष्मांडा काआठवां हस्त सर्व सिद्धि और सर्व निधि प्रदान करने वाली जपमाला से सुशोभित रहती हैं। 


पंचम दुर्गा मां स्कंदमाता 

  • नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता का पूजन किया जाता है।
  •  ऐसी मान्यता है कि स्कंदमाता का वर्ण पूर्णत: श्वेत है
  •  मां की चार भुजाएं हैं और मां ने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और ऊपर वाली बाई भुजा से आशीर्वाद देती हैं। 
  • मां  स्कंदमाता का वाहन सिंह हैऔर इस रूप को पद्मासना के नाम से भी जाना जाता है। 
  • ऐसा कहा जाता है कि मां स्कंदमाता वात्सल्य विग्रह होने के कारण इनकी हाथों में कोई शस्त्र नहीं होता। 
  • मां स्कंदमाता के स्वरुप के पूजन और प्रसन्नता से भक्तगण को ज्ञान की प्राप्ति होती है क्यंकि माँ स्कन्द माता को  को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।


षष्ठी दुर्गा मां कात्यायनी 

  • नवरात्री के छठे दिन मां कात्यायनी स्वरुप का पूजा किया जाता है. 
  • ऐसी मान्यता है कि ऋषि के गोत्र में जन्म लेने के कारण इन देवी का नाम कात्यायनी पड़ा।
  • मां का रंग स्वर्ण की भांति अन्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं। 
  • मां कात्यायनी देवी को अति गुप्त रहस्य एवं शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. 
  • ऐसी मान्यता है कि मां कात्यायनी के पूजन से मनुष्य के आंतरिक सूक्ष्म जगत से नकारात्मकता होता है तथा वहां सकारात्मक  ऊर्जा प्राप्त होती है.  
  • देवी कात्यायनी का वाहन खूंखार सिंह है जिसकी मुद्रा तुरंत झपट पड़ने वाली होती है। 


सप्तम दुर्गा मां कालरात्रि 

  • देवी कालरात्रि की पूजा हम नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं।
  • मां कालरात्रि के बारे में कहा जाता है कि इनकी पूजा मात्र से हीं मनुष्यों को भय से मुक्ति प्राप्त हो जाती है. 
  •  माता कालरात्रि तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली हैं। 
  • मां के चार हाथ और तीन नेत्र हैं। 
  • मां  कालरात्रि की पूजन से अनिष्ट ग्रहों द्वारा उत्पन्न दुष्प्रभाव और बाधाएं भी नष्ट हो जाती हैं.
  • माता कालरात्रि का यह रूप उग्र एवं भयावह है जिनके बारे में मान्यता है की वह काल पर भी विजय प्राप्त करने वाली हैं। 
  • इनका वाहन गर्दभ (गधा) होता है। 


अष्टम दुर्गा मां महागौरी

  • नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी का पूजन किया जाता है.
  • ऐसी मान्यता है कि जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था. \
  • ऐसी मान्यता है कि प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अर्धांगिनी रूप में स्वीकार किया तथा भगवन की कृपा से पवित्र गंगा की जलधारा जब माता पर अर्पित की तो उनका रंग गौर हो गया। 
  • माता महागौरी का वाहन वृषभ है। 


नवम दुर्गा माँ सिद्धिदात्री

  • नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा होती है.
  •  जैसा कि नाम से ही प्रतीत होती है, देवी का यह स्वरुप सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं.
  • सिद्धिदात्री माता के कारण ही अर्धनारीश्वर का जन्म हुआ है जिनका वाहन सिंह है। 
  • माँ सिद्धिदात्री के दाएं और के ऊपर वाले हाथ में गदा और नीचे वाले हाथ में चक्र रहता है.
  • नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा के उपरांत कन्या पूजन करना चाहिए जिससे देवी सबसे अधिक प्रसन्न होती हैं.
========
अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

Point Of View : भगवन राम की चरित्र की पांच विशेषताएं जो मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है

Najariya jine ka Qualities of Lord Ram


Point Of View : राम नवमी मुख्य रूप से एक हिंदू त्योहार है जो चैत्र महीने (हिंदू कैलेंडर) के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन आमतौर पर मार्च और अप्रैल के महीनों के बीच आता है। इस वर्ष रामनवमी अप्रैल 06को धूमधाम से मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं कि भगवान राम के जीवन की उन विशेषताओं के बारे में जो उन्हे मर्यादा पुरुषोतम बनाती है। 

भगवान राम के चरित्र की ये पांच महिमाएं हमें जीवन में सत्य, धर्म, दया, वीरता और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। भगवान राम ने विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहेऔर धर्म का मार्ग उन्होंने कभी नहीं छोड़ा । उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की तथा अपने निकट आने वाले सभी का कल्याण किया चाहे वह पशु रूप में हो, पक्षी रूप में हो, अमीर  हो गरीब हो । स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। बाली का वध करने, रावण का संहार करने या पिता के वचन की रक्षा के लिए वन का मार्ग चुनने जैसे अनेक उदाहरण है जहाँ भगवान् राम ने धर्म और न्याय का मार्ग कभी नहीं छोड़ा. 

भगवान राम के चरित्र की ये  महिमाएं हमें जीवन में सत्य, धर्म, दया, वीरता और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।

सत्य:

 मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सत्य के पुजारी थे। उन्होंने अपने जीवन में चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, उन्होंने झूठ कभी नहीं बोलै। उन्होंने अपने पिता दशरथ के वचन का पालन करने के लिए 14 साल का वनवास स्वीकार किया लेकिन पुत्र धर्म का त्याग नहीं किया।

धर्म: 

भगवान राम धर्म के पालनकर्ता थे। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास किया। भाईयों के लिए त्याग और समर्पण के लिए भी वे हमेशा तैयार रहे. उन्होंने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। धर्म का पालन करना उन्होंने तब भी नहीं छोड़ा और  उन्होंने रावण जैसे अत्याचारी का वध करके धर्म की रक्षा की। 

दया: 

भगवान राम दयालु और करुणावान थे। उन्होंने हमेशा दूसरों की मदद करने की कोशिश की। उन्होंने सुग्रीव और हनुमान जैसे अनेकों लोगों की मदद की।  भगवान राम ने अपनी दयालुता के कारण उनकी सेना में पशु, मानव व दानव सभी थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का मौका दिया।

बेहतर प्रबंधक

भगवान राम न केवल कुशल प्रबंधक थे, बल्कि वे अपने सभी स्वजनों और सहकर्मियों को साथ लेकर चलने वाले थे। वे सभी को विकास का अवसर देते थे व उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करते थे। सुग्रीव को राज्य, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया और इसी वजह से लंका जाने के लिए उन्होंने व उनकी सेना ने पत्थरों का सेतु बना लिया था। 

नैतिकता: 

भगवान राम नैतिकता के आदर्श थे। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा नैतिकता का पालन किया। उन्होंने रावण के साथ युद्ध करते समय भी उसके साथ नैतिकता का पालन किया।

भगवान श्रीराम के अनमोल वचन 

  • "सत्य ही धर्म है और धर्म ही परम तत्व है।"
  • "मन पर विजय ही सच्ची विजय है।"
  • "जो अपने वचन पर अडिग रहता है, वही सच्चा राजा होता है।"
  • "धन और बल क्षणिक हैं, परंतु धर्म और सत्य शाश्वत हैं।"
  • "जो अपने पिता की आज्ञा का पालन करता है, वही सच्चा पुत्र है।"
  • "दया, क्षमा और नम्रता ही मानव की सबसे बड़ी शक्तियाँ हैं।"
  • "संकट में धैर्य न छोड़ना ही वीरता है।"
  • "अहंकार विनाश का कारण है। विनम्रता ही सच्चा बल है।"
  • "जो धर्म के मार्ग पर चलता है, वही सच्चा विजयी होता है।"
  • "शत्रु पर विजय से पहले अपने भीतर के विकारों पर विजय आवश्यक है।"

Ramnavmi 2025: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम से सीखें परिवार में सभी सम्बन्धो में कैसे करें उच्च आदर्शों को स्थापित

Teaching of Lord Rama Ramnavmi Maryadapurushotam

Point Of View: भगवान् राम ने जीवन और परिवार में सम्बन्धो के बीच समन्यव स्थापित करते हुए यह बताया है कि निष्ठा, त्याग, बंधुत्व, शालीन स्नेहभाव,उदारता और वत्सलता जैसे जैसे भावों को किस प्रकार से कुशलता से पालन किया जा सकता है. उन्होंने हर सम्बन्धो में उच्च आदर्शों को स्थापित करते हुए किस प्रकार से अपने सभी कर्तव्यों का  पालन किया जा सकता हैं इसकी व्यापक झलक भगवान् राम के चरित्र में पाई जा सकती है. 

भगवान् राम के व्यापक चरित्र जिसमें उन्होंने परिवार के सभी सम्बन्धो को विनम्रता और गंभीरता के साथ निभाया है. भगवान्र राम ने बताया है कि जीवन में कितना भी बड़ा विपत्ति सामने क्यों नहीं आये, संबधो की गरिमा को बनाये हुए श्रेष्ठतम जीवनशैली प्रदर्शित किया जा सकता है. 

यह भगवान् राम के जीवन का उच्चतम आदर्श ही है जिसके लिए हम प्रभु राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर पुकारते हैं. भगवन राम के चरित्र की व्यापकता की हम मानव मात्र सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं जहाँ उन्होंने गुरु, माता-पिता, भाई, पत्नी, सेवक की कौन कहें, यहाँ तक कि  प्रभु राम ने अपने शत्रुओं के साथ भी समरनीति की व्यवहारिकता और आदर्श को स्थापित किया है जो सम्पूर्ण जगत में अनूठा उदहारण है. 

गुरु के प्रति निष्ठा और समर्पण

भगवान राम ने अपने गुरु को हमेशा ही सर्वोपरि रखा जिसकी झलक विश्वामित्र,वशिष्ठ और वाल्मीकि जैसे गुरुजनों की सीख  और आदर्शों को हमेशा से जीवन का सर्वोच्च स्थान दिया. 

माता पिता के आदेश निर्देश का अनुसरण: 

भगवान राम ने हमेशा माता-पिता की बातों को सर्वोच्च स्थान दिया. माता पिता के आदेश और निर्देश को उन्होंने हमेशा से पालन किया और इसकी सबसे सुन्दर झलक मिलती है वनवास के आज्ञा के पालन के दौरान. राज-पाट  को त्याग कर वनवास में एक वनवासी के जीवन जीना इतिहास में एक अनूठा आदर्श है. 

भाई के साथ बंधुत्व की कोमलता: 

भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ भी हमेशा से कोमलता और प्रेम को स्थान दिया. वह चाहे भरत-मिलाप हो या फिर अन्य कई ऐसे घटनाएं राम चरितमानस में उल्लेखित हैं जो यह साबित करती है कि  भगवान राम ने बंधुत्व के साथ सम्बन्धो को हमेशा से कोमलता और गंभीरता के साथ निभाया. 

पत्नी के साथ दाम्पत्य का शालीन स्नेहभाव: 

राम चरित मानस में आप पाएंगे की भगवन राम ने पत्नी के साथ शालीन स्नेहभाव का परिचय दिया है. 

सेवक के लिए उदारता और वत्सलता: 

भगवन राम ने अपने सेवकों के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध निभाया है, वह अपने आप में अनुकरणीय है. हनुमान भगवान् जो प्रभु राम की भक्ति और अपने सेवक वाली छवि के लिए ही पूजनीय है, रामायण में केवट और शबरी जैसे कितने सेवक हैं जिनके साथ प्रभु राम ने उदारता और वत्सलता का परिचय देकर प्रभु और सेवक के साथ सम्बन्धो को नया आयाम दिया है. 

मित्र के लिए सर्वस्व अर्पण की तत्परता: 

प्रभु राम ने मित्रों के साथ हमेशा दोस्ती के धर्म को निभाया है जिसके लिए प्रभु हमेशा से पूजनीय है. लंका के राजा रावण के भाई विभीषण के साथ मित्रता हो या फिर सुग्रीव के साथ, प्रभु राम ने हमेशा से मित्र धर्म को प्रमुखता के साथ सर्वस्व अर्पण करते हुए तत्परता के साथ निभाया है. 


बोंगोसागर 2025: भारत-बांग्लादेश नौसेना का संयुक्त अभ्यास, जानें खास बातें


भारत-बांग्लादेश नौसैन्य अभ्यास बोंगोसागर 2025 और एक समन्वित गश्त का आयोजन इस सप्ताह बंगाल की खाड़ी में किया गया। इस अभ्यास में भारतीय नौसेना की ओर से आईएनएस रणवीर और बांग्लादेश की नौसेना की तरफ से बीएनएस अबू उबैदा ने भाग लिया।

इस अभ्यास से दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी सहभागिता व युद्धक क्षमता बढ़ी है और साझा समुद्री सुरक्षा चुनौतियों के लिए सहयोगात्मक प्रतिक्रिया में आवश्यक प्रगति हुई है।

इस अभ्यास की प्रमुख गतिविधियों में सतह पर गोलीबारी, सामरिक युद्धाभ्यास, प्रक्रियागत पुनःपूर्ति कार्रवाई, विजिट-बोर्ड-सर्च-सीजर (वीबीएसएस) क्रॉस बोर्डिंग, संचार अभ्यास, ऑप्स टीम और जूनियर अधिकारियों के लिए व्यावसायिक विषयों तथा स्टीम पास्ट पर प्रश्नोत्तरी सहित कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन शामिल थे।

इस अभ्यास ने दोनों देशों की नौसेनाओं को निर्बाध समुद्री संचालन हेतु सामरिक योजना, समन्वय और सूचना साझाकरण में घनिष्ठ संबंध विकसित करने का अवसर प्रदान किया। इस अभ्यास से दोनों नौसेनाओं के बीच समन्वय एवं आत्मविश्वास का विस्तार हुआ है, जिससे साझा नौसैन्य संचालन करने व समुद्र में उभरते खतरों के खिलाफ तेजी से और प्रभावी ढंग से सामना करने की क्षमता में सुधार हुआ है।

दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच नौसैन्य संचालन में बढ़ा हुआ तालमेल, वास्तव में इस क्षेत्र के लिए सुरक्षा और स्थिरता के प्रति वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला करने की साझा प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जो भारत की समुद्र में सभी की सुरक्षा एवं विकास (सागर) पहल को बढ़ावा देता है।

वडुवूर पक्षी अभयारण्य: साइबेरियन सारस, ग्रे पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल जैसे पक्षियों का स्थल

Vaduvur

Vaduvur Bird Sanctuar: वडुवूर पक्षी अभयारण्य तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले में स्थित है, जो एक बड़ा मानव निर्मित सिंचाई तालाब है, जो कावेरी डेल्टा के हिस्से के साथ नीदमंगलम तालुक में स्थित है. यह तंजावुर से लगभग 25 किमी और तिरुवरूर से 30 किमी दूर स्थित है। यह अभयारण्य हरे-भरे जलाशयों, दलदली भूमि और घास के मैदानों से घिरा हुआ है जो पक्षियों के लिए अनुकूल पर्यावास प्रदान करते हैं। यहाँ कई  प्रकार कि प्रवासी पक्षी जैसे  साइबेरियन सारस, ग्रे पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, फ्लेमिंगो, ब्लैक-टेल्ड गॉडविट आदि आते हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय पक्षी जैसे  भारतीय बगुला, किंगफिशर, कॉर्मोरेंट, डार्टर्स, एग्रेट आदि का भी स्थल है। 

वडुवूर पक्षी अभयारण्य 112.638 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है, यह एक बड़ा मानव निर्मित सिंचाई जलाशय और प्रवासी पक्षियों के लिए आश्रय है क्योंकि यह भोजन, आश्रय और प्रजनन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। 

इन जलाशयों में निवासी और सर्दियों के पानी के पक्षियों की अच्छी आबादी को शरण देने की क्षमता है लेकिन इसकी पुष्टि के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है। 

सर्वेक्षण किए गए अधिकांश जलाशयों में भारतीय जलाशय बगुला अर्देओला ग्रेई पाया गया। यूरेशियन विजोन अनस पेनेलोप, नॉर्दर्न पिंटेल अनस एक्यूटा, गार्गनी अनस क्वेरक्वेडुला जैसे सर्दियों के जलपक्षी की बड़ी उपस्थिति जलाशयों में दर्ज की गई थी। 

वडुवूर पक्षी अभ्यारण्य में विविध निवास स्थान हैं जिनमें कई इनलेट और आसपास के सिंचित कृषि क्षेत्र शामिल हैं जो पक्षियों के लिए अच्छा घोंसला बनाने और चारागाह प्रदान करते हैं। इस प्रकार, यह स्‍थल उपर्युक्‍त सूचीबद्ध प्रजातियों को उनके जीवन-चक्र के महत्वपूर्ण चरणों के दौरान सहायता प्रदान करती है।

पक्षी प्रजातियाँ

प्रवासी पक्षी: साइबेरियन सारस, ग्रे पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, फ्लेमिंगो, ब्लैक-टेल्ड गॉडविट।

स्थानीय पक्षी: भारतीय बगुला, किंगफिशर, कॉर्मोरेंट, डार्टर्स, एग्रेट आदि।

Chaitra Navratri 2025: जानें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा तिथि, महत्व और अन्य जानकारी

Navratri Manifestation  of 9 Goddess form of Dugra
Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्र इस वर्ष 30 मार्च से आरंभ हो चुका है जो खासतौर पर मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष  चैत्र नवरात्रि की अष्टमी 05 अप्रैल 2025 को और राम नवमी 06 अप्रैल को मनाई जाएगी।  नौ दिनों तक चलने वाले इस महान पर्व के दौरान भक्तगन माँ  दुर्गा के 9 रूपों का पूजन करते हैं ।  शारदीय  नवरात्र का पावन अवसर है जब  देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा कि जाती है जो आम तौर पर नवरात्र शैलपुत्री या प्रतिपदा, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री सहित नौ देवी की पूजा की  जाती है। 
यह एक नौ दिवसीय त्योहार है जो हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है. नवरात्रि का पहला दिन प्रतिपदा और नौवां दिन दशमी के रूप में जाना जाता है. 

क्या होता है चैत्र और शारदीय नवरात्र दोनों मे विशेष अंतर?

चैत्र और शारदीय नवरात्रि दोनों ही  नवरात्रि का अलग-अलग रूप है जो हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार हैं। लेकिन इन दोनों में कुछ अंतर होते हैं। चैत्र नवरात्रि सामान्यत: हिंदू कैलेंडर के अनुसार हिन्दी के चैत्र मास में मनाई जाती है। वहीं शारदीय नवरात्रि सामान्यत: आश्विन मास के अश्विनी पक्ष में मनाया जाता है, जो सितंबर या अक्टूबर में होता है।

चैत्र नवरात्रि खासतौर पर ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं शारदीय नवरात्री  उत्सव भारत भर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर पश्चिमी भारत में। नवरात्री के इन दिनों में, लोग धार्मिक परंपराओं, रस्मों, और उत्सवों में भाग लेते हैं, जिनमें दंगल, रास लीला, गरबा, दंडिया रास, और दुर्गा पूजन शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि शारदीय नवरात्री का त्योहार हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. वे देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री.

शैलपुत्री : 

पहला रूप शैलपुत्री है, जो शैल (पर्वत) की पुत्री कहलाती हैं। इस रूप में माता का ध्यान शुद्धता और त्याग में होता है। वह एक कमंडलु और लोटा धारण करती हैं। देवी शैल पुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं जिन्हें भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के रूप में जाना जाता है। शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है जिसका उल्लेख पुराण में किया गया है। ऐसा कहा गया है कि देवी दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में शैपुत्री प्रथम हैं। जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख किया गया है, शैलपुत्री को सती का पुनर्जन्म माना जाता है और वह दक्ष शैलपुत्री की बेटी थीं।

ब्रह्मचारिणी:

दूसरे रूप में माता ब्रह्मचारिणी हैं, जो तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा करती हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का नाम नवदुर्गा माता के नौ रूपों में से एक है। इस रूप में माँ दुर्गा को तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा का दर्शाया जाता है। 

चंद्रघंटा: 

तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा हैं, जो चंद्र के आकार की स्थापना करती हैं और वे  चाँद से प्रकाशित होती हैं और उनके मुख पर एक विशालकाय चंद्रमा की प्रतिमा होती है। चंद्रघंटा माँ के चेहरे की दृष्टि शांतिप्रद होती है, लेकिन उनका रूप विक्रमी और महान होता है। वे अपने दो हाथों में वीणा धारण करती हैं और अपने चेहरे पर चंद्रमा के रूप का चंद्रकोटि धारण करती हैं। चंद्रघंटा माँ के चंद्रकोटि के बीच एक तिरंगा होता है, जो अभिनवता और शक्ति का प्रतीक होता है। 

कुष्माण्डा देवी:

नवदुर्गा माता के चौथे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को जीवन की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है। कुष्माण्डा माँ का स्वरूप बहुत ही भयंकर और प्रभावशाली होता है। उनकी आंखों का रंग लाल होता है और उनके मुख पर एक उग्र मुस्कान होती है। उनके मुख के एक स्वरूप में उनके आंतरिक शक्तियों को दर्शाता है। कुष्माण्डा माँ के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में कमंडलु होती है।

स्कंदमाता: 

पांचवे रूप में माता स्कंदमाता हैं, जो स्कंद (कार्तिकेय) की माँ हैं। स्कंदमाता, नवदुर्गा माता के पांचवे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को स्कंद (कार्तिकेय) की माँ के रूप में पूजा जाता है। स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत प्रसन्न और सुंदर होता है। वह एक बालक को अपने गोद में ले कर बैठती हैं, जो कार्तिकेय (स्कंद) को प्रतिनिधित करता है। 

कात्यायनी: 

छठे रूप में माता कात्यायनी हैं, जो महिषासुर के वध के लिए उत्तर कुमार की पूजा करती हैं। कात्यायनी देवी का स्वरूप अत्यंत महान और उदार होता है।  कात्यायनी देवी का वाहन सिंह होता है, जो उनकी शक्ति और वीरता को प्रतिनिधित करता है। कात्यायनी माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता के लिए संयम और निर्णय देती हैं। 

कालरात्रि: 

सातवें रूप में माता कालरात्रि हैं, जो कालरात्रि की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी हैं।कालरात्रि देवी का स्वरूप अत्यधिक उग्र और भयंकर होता है। वह काली के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं, जिनका चेहरा उग्रता और अद्भुतता से भरा होता है। कालरात्रि देवी के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में काले रंग का घड़ा होता है। उनकी तीसरी हाथ में दमरू होता है, और चौथे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है, जो उनकी शक्ति को प्रतिनिधित करते हैं। कालरात्रि देवी का वाहन भालू होता है, जो उनकी शक्ति और संरक्षण को प्रतिनिधित करता है। 

महागौरी देवी

 नवदुर्गा माता के आठवें रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को शुभ और पवित्र स्वरूप में पूजा जाता है। इस रूप में माँ दुर्गा को उनकी विशेषता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। महागौरी देवी का स्वरूप शानदार और दिव्य होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और वे अत्यंत पवित्र दिखाई देती हैं। वे श्वेत वस्त्र पहनती हैं, जो उनकी निर्मलता और पवित्रता को दर्शाता है। महागौरी देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। 

सिद्धिदात्री:

 नौवें रूप में माता सिद्धिदात्री हैं, जो सभी सिद्धियों की देवी हैं। वह अपने दोनों हाथों में वरदान और वाहन को धारण करती हैं। ये नौ रूप माता दुर्गा के अद्वितीय और प्रतिष्ठित रूप हैं, जो नवरात्रि के नौ दिनों में पूजे जाते हैं। सिद्धिदात्री देवी का स्वरूप अत्यधिक प्रसन्न और उदार होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और उनकी आंखों में अनंत दया और स्नेह की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। उनके हाथों में उज्जवल और शुभता की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी का वाहन गदा होता है, जो उनकी सामर्थ्य और शक्ति को प्रतिनिधित करता है।

===================

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

INIOCHOS 25: भारतीय वायु सेना का अभ्यास का आयोजन ग्रीस मे होगा-Facts in Brief


भारतीय वायु सेना (आईएएफ) हेलेनिक वायु सेना द्वारा ग्रीस के एंड्राविडा एयर बेस मे आयोजित होने वाले प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय वायु अभ्यास इनीयोकॉस-25  मे हिस्सा लेगी। यह अभ्यास 31 मार्च 2025 से 11 अप्रैल 2025 तक ग्रीस के एंड्राविडा एयर बेस पर होगा। भारतीय वायुसेना के दल में एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों के साथ-साथ लड़ाकू क्षमता वाले आईएल-78 और सी-17 विमान शामिल होंगे।

मुख्य उदेश्य 

इनीयोकॉस हेलेनिक वायु सेना द्वारा आयोजित एक द्विवार्षिक बहुराष्ट्रीय वायु अभ्यास है। यह वायु सेनाओं के लिए अपने कौशल को निखारने, सामरिक ज्ञान का आदान-प्रदान करने और सैन्य संबंधों को मजबूत करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।  एंड्राविडा से संचालित सभी ऑपरेशनों से भारतीय वायुसेना की भागीदारी न केवल इसकी परिचालन क्षमताओं को मजबूत करेगी अपितु भाग लेने वाले देशों के बीच आपसी सीखने और बेहतर समन्वय में भी योगदान देगी।

इस अभ्यास में वास्‍तविक युद्ध परिदृश्यों के अन्‍तर्गत पंद्रह देशों की कई वायु और सतही इकाइयां शामिल होंगी। इसे आधुनिक समय की हवाई युद्ध चुनौतियों का अनुकरण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

सहयोग, तालमेल और अंतर-संचालन की रणनीति का अभ्यास 

भारतीय वायुसेना को अभ्यास इनीयोकॉस 25 में भाग लेने की उम्मीद है। यह भाग लेने वाली वायु सेनाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, तालमेल और अंतर-संचालन को बढ़ाने का एक मंच है। यह अभ्यास संयुक्त वायु संचालन की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने, जटिल वायु युद्ध परिदृश्यों में रणनीति को परिष्कृत करने और परिचालन संबंधी सर्वोत्तम प्रणालियों में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा। एंड्राविडा से संचालित सभी ऑपरेशनों से भारतीय वायुसेना की भागीदारी न केवल इसकी परिचालन क्षमताओं को मजबूत करेगी अपितु भाग लेने वाले देशों के बीच आपसी सीखने और बेहतर समन्वय में भी योगदान देगी।

इनीयोकॉस-25 में भारतीय वायुसेना की भागीदारी वैश्विक रक्षा सहयोग और परिचालन उत्कृष्टता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह अभ्यास भारत की रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा-और मित्र देशों के साथ संयुक्त अभियानों में इसकी क्षमताओं को बढ़ाएगा।

Chaitra Navratri 2025 : जानें माँ दुर्गा के 9 रूपों का पूजन और अनुष्ठान, तिथि और भी बहुत कुछ

Navratri Know the 9 Manifestation of Goddess Dugra

Chaitra Navratri 2025 : हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र नवरात्रि की अष्टमी 5 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी जबकि राम नवमी या नवमी 6 अप्रैल को होगी. 
चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है और भक्तगण इस दिन कलश स्थापना करते हैं। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और  माँ दुर्गा की पूजा के लिए कलश स्थापना कर पहला व्रत रखा जाता है. 

चैत्र नवरात्रि:  माँ दुर्गा 9  स्वरूपों होती है पूजा 

नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है जिनमे शामिल है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री और प्रत्येक रूप एक अद्वितीय गुण का प्रतिनिधित्व करता है।

सामान्यता  दो नवरात्रि के प्रमुख अवसर होते हैं-चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र.  चैत्र नवरात्र मूल रूप से चैत्र के महीने में आते हैं, जो कि 12 हिंदी महीने का पहला महीना है। शरद नवरात्र आमतौर पर हिंदी महीने में अश्विन के महीने में पड़ता है। आम तौर पर माँ दुर्गा के 9 रूपों का पूजन किया जाता है जो हैं-शैलपुत्री या प्रतिपदा, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

नवरात्र के अवसर पर हम नवदुर्गा या दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। हालाँकि, पहले दिन हम देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं, जो देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों में सबसे पहले हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के कुल नौ स्वरूपों की पूजा की गई है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

प्रथम शैलपुत्री

शैलपुत्री को पर्वत हिमालय की पुत्री माना जाता है जिसका उल्लेख पुराण में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि शैपुत्री देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों में प्रथम है। देवी शैलपुत्री को प्रकृति माता का पूर्ण रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शैलपुत्री का जन्म पर्वतों के राजा, हिमालय शैल के घर में हुआ था और इसलिए उन्हें "शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी 

ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा की दूसरी अभिव्यक्ति है जिसे हम नवरात्र के दूसरे दिन पूजा करते हैं। 

तृतीय चंद्रघंटा

देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा है जो चंद्रमा की आकृति स्थापित करती हैं। वे चंद्रमा के रूप में एक विशेष आसन पर विराजमान हैं। वे चंद्रमा से प्रकाशित हैं और उनके मुख पर एक विशाल चंद्रमा की छवि है।

चंद्रघंटा माँ के चेहरे का दृश्य शांतिपूर्ण है, लेकिन उनका रूप भयंकर और महान है। वे अपने दोनों हाथों में वीणा धारण करती हैं और अपने मुख पर चंद्रमा के आकार की चंद्रकोटि धारण करती हैं।

चतुर्थ कुष्मांडा देवी

नवदुर्गा माता के चौथे स्वरूपों में से एक हैं। इस रूप में मां दुर्गा को जीवन की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी के रूप में दर्शाया गया है। मां कुष्मांडा का स्वरूप बहुत ही भयंकर और प्रभावशाली है। उनकी आंखों का रंग लाल है और उनके चेहरे पर एक उग्र मुस्कान है। उनके चेहरे का एक रूप उनकी आंतरिक शक्तियों को दर्शाता है। मां कुष्मांडा की चार भुजाएं हैं, जिसमें वह एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में कमंडल धारण करती हैं। वह एक शूल और धारदार चाकू धारण करती हैं, जो उनकी उत्पत्ति का प्रतीक है। कुष्मांडा मां का वाहन शेर है, जो उनकी शक्ति और साहस का प्रतिनिधित्व करता है। कुष्मांडा मां की पूजा करने से भक्तों को उनके जीवन में आने वाली सभी समस्याओं और बाधाओं से मुक्ति मिलती है, और उन्हें एक सार्थक और समृद्ध जीवन मिलता है। उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति और साहस का आशीर्वाद मिलता है।

पांचवीं मां स्कंदमाता

पांचवें स्वरूप में मां स्कंदमाता हैं, जो स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। स्कंदमाता नवदुर्गा माता के पांचवें स्वरूप में से एक हैं। इस रूप में मां दुर्गा को स्कंद (कार्तिकेय) की माता के रूप में पूजा जाता है। स्कंदमाता का स्वरूप बहुत ही प्रसन्न और सुंदर है। वह अपनी गोद में एक बच्चे के साथ बैठती हैं, जो कार्तिकेय (स्कंद) का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी लीलाएँ आध्यात्मिक और आनंदमय हैं, और उन्हें एक आकर्षक साध्वी के रूप में जाना जाता है। स्कंदमाता माँ की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में संतान, सुख और समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। उनकी पूजा करने से माँ उनके परिवार की सुरक्षा का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

छठी कात्यायनी

छठा रूप है मां कात्यायनी, जो महिषासुर के वध के लिए उत्तर कुमार की पूजा करती हैं। देवी कात्यायनी का स्वरूप बहुत ही महान और उदार है। उसका चेहरा खुशी और सौम्यता का अवतार है, लेकिन उसकी निगाहें भयंकर और आज्ञाकारी हैं। कात्यायनी देवी के चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल है और दूसरे हाथ में वीणा है। उनके दो हाथ और एक मुद्रा है जो उनकी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। कात्यायनी देवी का वाहन शेर है, जो उनकी ताकत और बहादुरी का प्रतिनिधित्व करता है। देवी कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि और सफलता प्राप्त करने का आशीर्वाद मिलता है। उनकी पूजा करने से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता के लिए संयम और निर्णय प्रदान करती हैं।

सातवीं कालरात्रि

सातवां रूप है माँ कालरात्रि, जो कालरात्रि की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी हैं। देवी कालरात्रि का रूप अत्यंत उग्र और भयंकर है। वह काली के रूप में पूजनीय हैं, जिनका चेहरा उग्रता और आश्चर्य से भरा है। उनके चेहरे पर एक विशाल चाकू की मूर्ति है, और उनकी आँखों में आग की लपटें दिखाई देती हैं। देवी कालरात्रि के चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में खड़ा त्रिशूल और दूसरे हाथ में एक काला घड़ा है। अपने तीसरे हाथ में उन्होंने डमरू और चौथे हाथ में वरदान की मुद्रा धारण की है, जो उनकी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। देवी कालरात्रि का वाहन एक भालू है, जो उनकी शक्ति और सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। कालरात्रि मां की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में शक्ति, साहस और निर्भयता प्राप्त करने का आशीर्वाद मिलता है। उनकी पूजा करने से, माँ उनके सभी भय और संकट को दूर करती हैं, और उन्हें सुरक्षा और सम्मान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

आठवीं महागौरी 

मां महागौरी नवदुर्गा माता के आठवें स्वरूपों में से एक हैं। इस स्वरूप में मां दुर्गा की पूजा शुभ और पवित्र स्वरूप में की जाती है। इस स्वरूप में मां दुर्गा को उनकी विशेषता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। महागौरी देवी का स्वरूप भव्य और दिव्य है। उनका चेहरा ज्योतिर्मय है और वे अत्यंत पवित्र दिखाई देती हैं। वे सफेद वस्त्र पहनती हैं, जो उनकी पवित्रता और शुद्धता को दर्शाता है। महागौरी देवी के दो हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में वरदान मुद्रा है। इनके चेहरे पर मुस्कान है, जो उनकी दयालुता और खुशी को दर्शाती है। महागौरी देवी का वाहन सिंह है, जो उनकी शक्ति और साहस को दर्शाता है। महागौरी मां की पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में शुभ और पवित्र गुणों की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा करने से माता उनके सभी दुखों और बुराइयों को दूर करती हैं और उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

नौवीं सिद्धिदात्री

नौवां रूप है मां सिद्धिदात्री, जो सभी सिद्धियों की देवी हैं। वे अपने दोनों हाथों में वरदान और वाहन धारण करती हैं। ये नौ रूप देवी दुर्गा के अद्वितीय और प्रतिष्ठित रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के नौ दिनों में की जाती है। सिद्धिदात्री देवी नवदुर्गा माता के नौवें और अंतिम रूपों में से एक हैं। इस रूप में, माँ दुर्गा को सर्वशक्तिमान सिद्धिदात्री के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों को सिद्धियाँ (अच्छे परिणाम) प्रदान करती हैं।

Chaitra Navratri 2025: जानें माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों का पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

 

Chaitra Navtarti 2024 Shailpurti and Nine form of Goddess Durga

Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्र इस वर्ष आज अर्थात 30 मार्च से शुरू हो रहा है जो खासतौर पर मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। नवरात्र इस दौरान लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं और कठिन व्रत का पालन करते हैं। चैत्र महीने में पड़ने की वजह से इसे चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है। 
नौ दिनों तक चलने वाले इस महान पर्व के दौरान भक्तगन माँ  दुर्गा के 9 रूपों का पूजन करते हैं ।  शारदीय  नवरात्र का पावन अवसर है जब  देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा कि जाती है जो आम तौर पर नवरात्र शैलपुत्री या प्रतिपदा, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री सहित नौ देवी की पूजा की  जाती है।

नवरात्रि 2025 के अनुसार, माता दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन निम्नलिखित है:

शैलपुत्री : 

पहला रूप शैलपुत्री है, जो शैल (पर्वत) की पुत्री कहलाती हैं। इस रूप में माता का ध्यान शुद्धता और त्याग में होता है। वह एक कमंडलु और लोटा धारण करती हैं। देवी शैल पुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं जिन्हें भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के रूप में जाना जाता है। शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है जिसका उल्लेख पुराण में किया गया है। ऐसा कहा गया है कि देवी दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में शैपुत्री प्रथम हैं। जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख किया गया है, शैलपुत्री को सती का पुनर्जन्म माना जाता है और वह दक्ष शैलपुत्री की बेटी थीं।

ब्रह्मचारिणी:

 दूसरे रूप में माता ब्रह्मचारिणी हैं, जो तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा करती हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का नाम नवदुर्गा माता के नौ रूपों में से एक है। इस रूप में माँ दुर्गा को तपस्या, ध्यान, और संतान की कल्याण की प्रतीक्षा का दर्शाया जाता है। 

ब्रह्मचारिणी का स्वरूप उत्तम ध्यान, तपस्या, और संयम का प्रतीक है।  ब्रह्मचारिणी के हाथों में माला और कमंडलु होती है। माला का प्रतीक है ध्यान और मनन, जबकि कमंडलु तपस्या और ब्रह्मचर्य के प्रतीक होती है। वे साधारणतः सफेद वस्त्र पहनती हैं जो उनकी शुद्धता और सात्विकता को दर्शाता है।

चंद्रघंटा: 

तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा हैं, जो चंद्र के आकार की स्थापना करती हैं। वह चंद्रमा के रूप में विशेष आसन पर बैठती हैं।  वे चाँद से प्रकाशित होती हैं और उनके मुख पर एक विशालकाय चंद्रमा की प्रतिमा होती है।

चंद्रघंटा माँ के चेहरे की दृष्टि शांतिप्रद होती है, लेकिन उनका रूप विक्रमी और महान होता है। वे अपने दो हाथों में वीणा धारण करती हैं और अपने चेहरे पर चंद्रमा के रूप का चंद्रकोटि धारण करती हैं। चंद्रघंटा माँ के चंद्रकोटि के बीच एक तिरंगा होता है, जो अभिनवता और शक्ति का प्रतीक होता है। उनके साथ अक्षमाला, बेल, और धूप-दीप का सामान होता है, जो पूजन के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। चंद्रघंटा माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उन्हें भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि माँ चंद्रघंटा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

कुष्माण्डा देवी:

नवदुर्गा माता के चौथे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को जीवन की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है। कुष्माण्डा माँ का स्वरूप बहुत ही भयंकर और प्रभावशाली होता है। उनकी आंखों का रंग लाल होता है और उनके मुख पर एक उग्र मुस्कान होती है। उनके मुख के एक स्वरूप में उनके आंतरिक शक्तियों को दर्शाता है। कुष्माण्डा माँ के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में कमंडलु होती है। वे एक शूल और एक बिखरी चाकू धारण करती हैं, जो उनकी उत्पत्ति की प्रतीक हैं। कुष्माण्डा माँ का वाहन एक शेर होता है, जो उनकी शक्ति और साहस को प्रतिनिधित करता है। कुष्माण्डा माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्त समस्याओं और बाधाओं का निवारण प्राप्त करते हैं, और उन्हें सार्थक और समृद्धिशाली जीवन प्राप्त होता है। उनकी पूजा भक्तों को शक्ति और साहस का आशीर्वाद प्रदान करती है।

स्कंदमाता: 

पांचवे रूप में माता स्कंदमाता हैं, जो स्कंद (कार्तिकेय) की माँ हैं। स्कंदमाता, नवदुर्गा माता के पांचवे रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को स्कंद (कार्तिकेय) की माँ के रूप में पूजा जाता है। स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत प्रसन्न और सुंदर होता है। वह एक बालक को अपने गोद में ले कर बैठती हैं, जो कार्तिकेय (स्कंद) को प्रतिनिधित करता है। उनकी विगति आध्यात्मिक और आनंदमयी होती है, और वे आकर्षक साध्वी के रूप में विशेषता दिखाती हैं।स्कंदमाता माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में बच्चों की संतान, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

कात्यायनी: 

छठे रूप में माता कात्यायनी हैं, जो महिषासुर के वध के लिए उत्तर कुमार की पूजा करती हैं। कात्यायनी देवी का स्वरूप अत्यंत महान और उदार होता है। वह चेहरे पर प्रसन्नता और सौम्यता का प्रतीक होती हैं, लेकिन उनकी दृष्टि उग्र और प्रभावशाली होती है। कात्यायनी देवी के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वीणा होती है। उनके दो हाथ और एक मुद्रा में विशेषता दिखाते हैं, जो उनके शक्ति को प्रतिनिधित करते हैं। कात्यायनी देवी का वाहन सिंह होता है, जो उनकी शक्ति और वीरता को प्रतिनिधित करता है। कात्यायनी माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता के लिए संयम और निर्णय देती हैं। 

कालरात्रि: 

सातवें रूप में माता कालरात्रि हैं, जो कालरात्रि की उत्पत्ति को बनाए रखने वाली देवी हैं।कालरात्रि देवी का स्वरूप अत्यधिक उग्र और भयंकर होता है। वह काली के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं, जिनका चेहरा उग्रता और अद्भुतता से भरा होता है। उनके मुख पर विशालकाय चाकु की प्रतिमा होती है, और उनके आंखों में अग्नि की ज्वाला लगती है। कालरात्रि देवी के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में काले रंग का घड़ा होता है। उनकी तीसरी हाथ में दमरू होता है, और चौथे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है, जो उनकी शक्ति को प्रतिनिधित करते हैं। कालरात्रि देवी का वाहन भालू होता है, जो उनकी शक्ति और संरक्षण को प्रतिनिधित करता है। कालरात्रि माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शक्ति, साहस, और अभय की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी भयों और संकटों को दूर करती हैं, और उन्हें संरक्षण और सम्मान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। 

महागौरी देवी

 नवदुर्गा माता के आठवें रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को शुभ और पवित्र स्वरूप में पूजा जाता है। इस रूप में माँ दुर्गा को उनकी विशेषता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। महागौरी देवी का स्वरूप शानदार और दिव्य होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और वे अत्यंत पवित्र दिखाई देती हैं। वे श्वेत वस्त्र पहनती हैं, जो उनकी निर्मलता और पवित्रता को दर्शाता है। महागौरी देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। उनके चेहरे पर एक मुस्कान होती है, जो उनकी दयालुता और प्रसन्नता को प्रतिनिधित करती है। महागौरी देवी का वाहन सिंह होता है, जो उनकी शक्ति और साहस को प्रतिनिधित करता है। महागौरी माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में शुभ और पवित्र गुणों को प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी दुःखों और बुराइयों को दूर करती हैं, और उन्हें शांति और सुख का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

सिद्धिदात्री:

 नौवें रूप में माता सिद्धिदात्री हैं, जो सभी सिद्धियों की देवी हैं। वह अपने दोनों हाथों में वरदान और वाहन को धारण करती हैं। ये नौ रूप माता दुर्गा के अद्वितीय और प्रतिष्ठित रूप हैं, जो नवरात्रि के नौ दिनों में पूजे जाते हैं। सिद्धिदात्री देवी, नवदुर्गा माता के नौवें और अंतिम रूप में से एक हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को सर्वशक्तिमान सिद्धिदात्री के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों को सिद्धियाँ (अच्छे परिणाम) प्रदान करती हैं।

सिद्धिदात्री देवी का स्वरूप अत्यधिक प्रसन्न और उदार होता है। उनका चेहरा प्रकाशमय होता है और उनकी आंखों में अनंत दया और स्नेह की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी के दो हाथ होते हैं, जिनमें एक हाथ में खड़ा त्रिशूल होता है और दूसरे हाथ में वरदान का मुद्रा होता है। उनके हाथों में उज्जवल और शुभता की भावना होती है। सिद्धिदात्री देवी का वाहन गदा होता है, जो उनकी सामर्थ्य और शक्ति को प्रतिनिधित करता है। सिद्धिदात्री माँ की पूजा से भक्त अपने जीवन में सिद्धियाँ, सफलता, और अनुग्रह प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से माँ उनके सभी कार्यों में सफलता और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

===================

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


डेजर्ट हंट-2025 अभ्‍यास: उभरती सुरक्षा चुनौतियों को समर्पित अभ्यास-Facts in Brief

Exercise Desert Hunt exercise facts in brief

डेजर्ट हंट-2025 जो कि भारतीय वायु सेना द्वारा आयोजित किया जाता है, 24 से 28 फरवरी 2025 तक वायु सेना स्टेशन, जोधपुर मे सम्पन्न हुआ। यह एक एकीकृत त्रि-सेवा विशेष बल अभ्यास का आयोजन है जिसका उद्देश्य उभरती सुरक्षा चुनौतियों के प्रति त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए तीन विशेष बल इकाइयों के बीच अंतर-संचालन, समन्वय और सामंजस्‍य को बढ़ाना है। 

डेजर्ट हंट-2025 : हिस्सा लेने वाले विशिष्ट फोर्स 

भारतीय वायु सेना ने 24 से 28 फरवरी 2025 तक वायु सेना स्टेशन, जोधपुर में डेजर्ट हंट-2025 नामक एक एकीकृत त्रि-सेवा विशेष बल अभ्यास का आयोजन किया। इस अभ्यास में भारतीय सेना के विशिष्ट पैरा (विशेष बल), भारतीय नौसेना के मरीन कमांडो और भारतीय वायु सेना के गरुड़ (विशेष बल) ने एक कृत्रिम युद्ध वातावरण में एक साथ भागीदारी की।

डेजर्ट हंट-2025 : उद्देश्य 

इस जबरदस्‍त-तीव्रता वाले अभ्यास का उद्देश्य उभरती सुरक्षा चुनौतियों के प्रति त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए तीन विशेष बल इकाइयों के बीच अंतर-संचालन, समन्वय और सामंजस्‍य को बढ़ाना था। अभ्यास में हवाई संचालन, सटीक हमले, बंधक बचाव, आतंकवाद विरोधी अभियान, युद्ध मुक्त पतन और शहरी युद्ध परिदृश्य शामिल थे, जिसमें यथार्थवादी परिस्थितियों में बलों की युद्ध तत्परता का परखा गया।

वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने संयुक्त सिद्धांतों को मान्यता देते हुए अभ्यास की निगरानी के साथ-साथ निर्बाध अंतर-सेवा सहयोग के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने के‍ लिए एक मंच भी प्रदान किया।