नजरिया जीने का: हम असफलता से नहीं, उसके भय से घबराते हैं...जानें कैसे पाएं नियंत्रण

नजरिया जीने का: भय की तरह साहस भी संक्रामक होता हैं और हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं लेकिन  हमारी सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि  हम दिल से इसे स्वीकार नहीं कर पाते. जीवन में अगर सफल होना है तो हमें असफलता के भय पर काबू  पाना ही होगा और अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप खुद के अंदर भय या साहस...किसका बीज खुद के अंदर रोपते हैं.... क्योंकि याद रखें....अंकुरण आपके अंदर रोपे  गए बीज में होना है और वृक्ष और फल भी उसमें हीं लगना है.... 
असफलता का डर एक ऐसा भय है जो हमें नए अवसरों से पीछे हटने या अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करने से रोकता है। आप असफलता का डर को नियंत्रित करना सीखे क्योंकि बिना इसके जीवन में किसी भी लक्ष्य को पाना असंभव हो जाएगी। 

क्या आप जानते हैं कि हमें सफलता को हासिल करने वाले जूनून और मिली असफ़लतां के लिए सबसे बड़ी विफलता क्या है.... दोस्तों वह है असफलता का भय... हाँ दोस्तों... हम असफलता से उतना नहीं घबराते जिंतना हमें उसे मिलने वाले भय से हम विफलता के शिकार हो जाते हैं...

वास्तव में यह हमारी सोच और माइंडसेट है जो हमारी एक्शन और स्टेप्स का निर्धारण करती है... जीवन है दोस्तों तो कठिंनाइयों का मिलना तय है और आप उससे बच नहीं सकते... हाँ जीवन में मिलने वाली उन बाधाओं और कठिनाइयों को कैसे लेते हैं यह आपके पॉजिटिव और नेगेटिव सोच पर निर्भर करता है....

दोस्तों..  एक बार याद रखें... जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करती है... ये  हमें यह बताती हैं कि हम किस मिटटी के बने हैं.. 

यह एकमात्र सत्य है क़ि अगर आप अपने लक्ष्य में सफल होना चाहते हैं तो  खुद के अंदर के भय को  दूर करने के लिए प्रयास कीजिये.... और इसके लिए सबसे जरुरी है खुद के अंदर साहस रूपी बीज को अंकुरित करें.... 

वास्तव में हमारा साहस हीं एकमात्र सच है जो  हमारे मन से भय को दूर कर सकता है. याद रखें, विफलता के डर को अलग किए बिना, आप अपने सपने को सफल नहीं बना सकते हैं और इसलिए सबसे पहले आपको अपने प्रयासों में विफलता के डर पर नियंत्रण प्राप्त करना होगा/

विंस्टन चर्चिल द्वारा भय और साहस के संदर्भ में दिए गए ऐतिहासिक उद्धरण को याद रखें ... "भय एक प्रतिक्रिया है, साहस एक निर्णय है।"

दोस्तों, जैसा कि आप जानते हैं कि "भय की तरह साहस भी संक्रामक होता हैं.... " तो जाहिर है कि  यह आप पर निर्भर करता है कि  आप खुद के अंदर भय या साहस...किसका बीज खुद के अंदर रोपते हैं.... क्योंकि याद रखें....अंकुरण आपके अंदर रोपे  गए बीज में होना है और वृक्ष और फल भी उसमें हीं लगना है.... 

किसी के रोके न रुक जाना तू,
लकीरें किस्मत की खुद बनाना तू,
कर मंजिल अपनी तू फतह,
कामयाबी के निशान छोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
-नरेंद्र वर्मा

सच तो यह है कि भय और साहस में चयन करने का निर्णय आपके मानसिकता से आएगी और इसके लिए यह जरुरी है कि आप आपने सोच और मानसिकता को मजबूत और स्वस्थ रखें....

यह आपकी मानसिकता ही हैं जो आपके अंदर विजय रूपी साहस का संचार पैदा करेगा… और आप के अंदर अंकुरित आपका साहस आपकी मानसिकता का बचाव करेगा और यह आपके प्रयासों में आपकी सफलता के लिए इसे दूर करने के लिए भय की अनुपस्थिति का रास्ता तय करेगा,,,
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
-अटल बिहारी वाजपेयी



इसके लिए यह जरुरी है कि सबसे पहले आप अपने अंदर मजबूत मानसिकता को पैदा करें जो आपके अंदर साहस पैदा कर असफलता के भय को समाप्त करेगा साथ ही  विफलता के डर की भावना को गायब करने का रास्ता दिखाएगा…याद रखें... यह आपकी मानसिकता की स्थिति है और इसलिए आपको अपने आप को विकसित करना होगा…तभी आप असफलता के भय से बाहर आ पाएंगे जो सफलता के लिए सबसे जरुरी शर्त है. 

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