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Point Of View : जानें जन्माष्टमी कि तिथि , पूजा विधि, ‘माखन चोर’ की लीलाएं और उनकी शिक्षाएं


 

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Point Of View: जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म की याद में मनाई जाती है, जो पृथ्वी पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। इस दिन भक्तगण भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं। भगवान कृष्ण का जन्म बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, भगवान कृष्ण के भक्त प्रार्थना करते हैं, और पूरे देश में बाल कृष्ण के जीवन से प्रेरित विभिन्न अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। यह पवित्र दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार की स्थानीय परंपराओं और अनुष्ठानों के अनुसार मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म 5,000 साल पहले मथुरा शहर में राजा वासुदेव और रानी देवकी के घर हुआ था।  कृष्ण का जन्म एक महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। वे दुष्ट राजा कंस का नाश करने के लिए इस दुनिया में आए थे।

 भगवान कृष्ण का बचपन अद्भुत कहानियों से भरा पड़ा है जो हमें महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। वह एक शरारती बच्चा था, जिसे अक्सर मक्खन के प्रति अपने प्रेम के लिए जाना जाता था, जिसके कारण उसे "माखन चोर" उपनाम मिला। लेकिन इस चंचल स्वभाव के पीछे एक दिव्य प्राणी था जिसने कई चमत्कार किए और एक बच्चे के रूप में भी असाधारण ज्ञान दिखाया।

इस वर्ष अर्थात 2024 में जन्माष्टमी अगस्त 26 को मनाई जाएगी। आप यहाँ देख सकते हैं आने वाले 2030 तक जन्माष्टमी को मनाई जाने वाली तिथियाँ-

 2024 सोमवार, 26 अगस्त

2025 शुक्रवार, 15 अगस्त

2026 शुक्रवार, 4 सितंबर

2027 बुधवार, 25 अगस्त

2028 रविवार, 13 अगस्त

2029 शनिवार, 1 सितंबर

2030 बुधवार, 21 अगस्त

 देश भर में जो लोग श्री कृष्ण जयंती मनाते हैं, वे इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के समय आधी रात तक उपवास रखते हैं। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में, देवता की मूर्ति को एक छोटे से पालने में रखा जाता है और प्रार्थना की जाती है। इस दिन भजन और भगवद गीता का पाठ किया जाता है।

'जन्म' का अर्थ है जन्म और 'अष्टमी' का अर्थ है आठवां। भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे, जिसमें उनका जन्म आठवीं तिथि को वासुदेव और यशोदा के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था।

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण राजकुमारी देवकी और उनके पति वासुदेव की आठवीं संतान थे, जो मथुरा के यादव वंश से संबंधित थे। देवकी के भाई कंस, जो उस समय मथुरा के राजा थे, ने देवकी द्वारा जन्म दिए गए सभी बच्चों को मार डाला, ताकि वह उस भविष्यवाणी से बच सकें जिसमें कहा गया था कि कंस की मृत्यु देवकी के आठवें पुत्र द्वारा की जाएगी। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तो वासुदेव शिशु कृष्ण को मथुरा के एक जिले गोकुल में अपने मित्र के घर ले गए। इसके बाद, कृष्ण का पालन-पोषण गोकुल में नंद और उनकी पत्नी यशोदा ने किया।

 जन्माष्टमी की पूजा विधि:

प्रातःकाल स्नान: भक्तगण प्रातःकाल स्नान करके पवित्र होते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।

मंदिर की सजावट: भगवान कृष्ण के मंदिर या पूजा स्थल को फूलों, रंगोली और दीपों से सजाया जाता है। भगवान कृष्ण की मूर्ति को नए वस्त्र, आभूषण और माला पहनाई जाती है।

पूजन सामग्री: पूजन के लिए विशेष सामग्री जैसे पंचामृत, फल, फूल, तुलसी दल, मक्खन और मिश्री आदि तैयार किए जाते हैं।

कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश की स्थापना की जाती है और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखकर उसका पूजन किया जाता है।

भगवान कृष्ण का अभिषेक: भगवान कृष्ण की मूर्ति का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है।

कथा और भजन: भगवान कृष्ण की जन्मकथा सुनाई जाती है और उनके भजन-कीर्तन गाए जाते हैं।

मध्यरात्रि पूजा: चूंकि भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए रात 12 बजे विशेष पूजा और आरती की जाती है।

प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भक्तों के बीच प्रसाद बांटा जाता है। मक्खन और मिश्री को भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन के रूप में प्रसाद में वितरित किया जाता है।

व्रत का पारण: अगले दिन भक्तगण व्रत का पारण करते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।

 भगवान कृष्ण की लीलाएं:

बाल लीलाएं: भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था में की गई लीलाएं, जैसे कि माखन चुराना, गोपियों के साथ रासलीला, कालिया नाग का वध, गोवर्धन पर्वत उठाना आदि, अत्यंत प्रसिद्ध हैं।

रासलीला: भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ की गई रासलीला उनकी प्रेम और भक्ति की भावना को प्रदर्शित करती है। यह लीला भगवान के प्रेममय स्वरूप का प्रतीक है।

कृष्ण-अर्जुन संवाद: महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान, जो भगवद्गीताके रूप में संकलित है, अत्यंत महत्वपूर्ण लीला है। इसमें जीवन के मूलभूत सिद्धांतों और धर्म के मार्ग का उपदेश दिया गया है।

 भगवान कृष्ण की शिक्षाएं:

कर्मयोग: भगवान कृष्ण ने गीता में कर्मयोग का उपदेश दिया, जिसमें बिना किसी फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करने की बात कही गई है।

भक्ति योग: कृष्ण भक्ति को सर्वोच्च मानते हैं और प्रेम के माध्यम से भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं।

धर्म और अधर्म का ज्ञान: श्रीकृष्ण ने धर्म और अधर्म के बीच के भेद को स्पष्ट किया और सदा धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

सर्वधर्म समभाव: कृष्ण ने सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता देने की बात कही और कहा कि सभी मार्ग अंततः एक ही ईश्वर तक पहुंचते हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

 

फ्रेंडशिप डे 2024: अपने दोस्तों को भेजें ये दिल को छु लेने वाले मैसेज, महत्वपूर्ण कोट्स और भी बहुत कुछ


हैप्पी फ्रेंडशिप डे 2024: फ्रेंडशिप डे, मानवीय संबंधों की नींव रखने के साथ ही दोस्तों के प्रति एक खास अटैच्मन्ट है जिसे याद करने का सुनहरा अवसर है।  यह एक खास ओकेजन है  जो सीमाओं, देशों और पृष्ठभूमियों से परे प्यार के बंधन, साथ रहने की खुशी और समर्थन और साथ के लिए आभार का जश्न मनाने के लिए आता है। आपसी सम्मान, विश्वास, समर्थन और साझा अनुभव इस संबंध की आधारशिला हैं। हर साल, यह खास दिन दोस्तों के बीच साझा किए जाने वाले खूबसूरत प्यार और स्नेह का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाता है। वैसे तो पूरी दुनिया फ्रेंडशिप डे मनाती है, लेकिन हर देश में इसकी तारीख अलग-अलग हो सकती है। यह दिन दोस्तों के महत्व और हमारे जीवन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को भी सम्मान और मान्यता देता है। 

 इस दिन, लोग आम तौर पर उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, संदेश भेजते हैं और एक साथ समय बिताते हैं, ये सभी मजबूत और सहायक दोस्ती के महत्व को मजबूत करने में मदद करते हैं।

फ्रेंडशिप डे 2024: Date

मीडिया रेपोर्ट्स के अनुसार भारत में, फ्रेंडशिप डे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है और इस साल अर्थात 2024 को साल का पहला रविवार 4 अगस्त को पड़ता है इसलिए फ्रेंडशिप डे 04 अगस्त को मनायाजाएगा।

मित्रता दिवस मित्रता और अपने मित्रों के साथ हमारे संबंधों का जश्न मनाने के लिए समर्पित एक विशेष दिन है। यह विभिन्न देशों में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, लेकिन सबसे व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त तिथि अगस्त का पहला रविवार है।

फ्रेंडशिप डे 2024 महत्व

मित्रता का उत्सव: यह उन मित्रों का सम्मान और सराहना करने का दिन है जो हमारे जीवन में खुशी और अर्थ जोड़ते हैं।

बंधनों को मजबूत करना: मित्रता दिवस कृतज्ञता और स्नेह व्यक्त करके मौजूदा मित्रता को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान: विभिन्न संस्कृतियाँ मित्रता दिवस को अनूठी परंपराओं के साथ मनाती हैं, जिससे वैश्विक समुदाय और समझ की भावना को बढ़ावा मिलता है।

मानसिक स्वास्थ्य: मित्रता को पहचानना और उसका जश्न मनाना सामाजिक समर्थन नेटवर्क को मजबूत करके मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

फ्रेंडशिप डे 2024  महत्वपूर्ण Quotes

  • अरस्तू: "दोस्त क्या है? दो शरीरों में रहने वाली एक आत्मा।"
  • राल्फ वाल्डो इमर्सन: "दोस्त होने का एकमात्र तरीका एक होना है।"
  • अल्बर्ट कैमस: "मेरे आगे मत चलो... हो सकता है मैं पीछे न चलूँ। मेरे पीछे मत चलो... हो सकता है मैं नेतृत्व न करूँ। मेरे साथ चलो... बस मेरे दोस्त बनो।"
  • हेलेन केलर: "मैं अकेले उजाले में चलने की बजाय अंधेरे में दोस्त के साथ चलना पसंद करूँगी।"
  • ऑस्कर वाइल्ड: "आखिरकार, सभी संगति का बंधन, चाहे वह विवाह में हो या दोस्ती में, बातचीत ही है।"
  • एलबर्ट हबर्ड: "एक दोस्त वह होता है जो आपके बारे में सब कुछ जानता है और फिर भी आपसे प्यार करता है।"
  • सी.एस. लुईस: "दोस्ती उस पल पैदा होती है जब एक व्यक्ति दूसरे से कहता है, 'क्या! तुम भी? मुझे लगा कि मैं अकेला हूँ।'"
  • महात्मा गांधी: "खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में खुद को खो देना।"
  • मार्क ट्वेन: "अच्छे दोस्त, अच्छी किताबें और एक सुप्त विवेक: यही आदर्श जीवन है।"
  •  हेनरी डेविड थोरो: "दोस्ती की भाषा शब्द नहीं बल्कि अर्थ है।" 
  • यहाँ कुछ हार्ट-टचिंग फ्रेंडशिप डे कोट्स दिए गए हैं जो आप अपने दोस्तों के साथ साझा कर सकते हैं:

    "दोस्ती वह नहीं है जो जीवन के समय में होती है, बल्कि वह है जो जीवन भर साथ रहती है।"

    "सच्ची दोस्ती आत्मा की असीम ऊंचाइयों तक पहुँचाती है, जहां शब्द और भावनाएँ बेमानी हो जाती हैं।"

    "एक सच्चा दोस्त वह होता है जो आपके अतीत को समझता है, आपके भविष्य में विश्वास करता है, और आपको उसी तरह स्वीकार करता है जैसे आप हैं।"

    "दोस्ती जीवन का सबसे प्यारा हिस्सा है, क्योंकि यह हमें उन क्षणों में हंसने का मौका देती है जब हम रोने के लिए तैयार होते हैं।"

    "सच्ची दोस्ती अनमोल है, और इसे दुनिया के किसी भी खजाने से तुलना नहीं की जा सकती।"

    "दोस्ती का मतलब यह नहीं है कि आप हमेशा साथ रहें, बल्कि यह है कि आप हमेशा दिल में रहें।"

    "दोस्त वे होते हैं जो आपकी आत्मा की धुन को जानते हैं और आपको वापस गाते हैं जब आप इसे भूल जाते हैं।"

    "दोस्त वे लोग हैं जो आपकी हँसी में शामिल होते हैं, आपके आँसू पोंछते हैं, और आपको जीवन के हर उतार-चढ़ाव में सहारा देते हैं।"

    "सच्ची दोस्ती समय, दूरी, और परिस्थितियों से परे होती है। यह दिल से दिल की कनेक्शन होती है।"


Sawan Somwar Vrat 2024: सावन माह का दूसरा सोमवार, जानें पूरा लिस्ट, व्रत विधि और अन्य

 


सावन, जिसे आमतौर पर श्रावण के रूप में जाना जाता है, भगवान शिव की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। हिंदुओं के बीच सावन का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। 2024 मे सावन का सुभारम्भ 22 जुलाई 2024 से हुआ और इस महीने मे कुल पाँच सोमवार पड़ेंगे।  जुलाई 29, 2024 अर्थात सावन का दूसरा सोमवार या सोमवारी है।  इसे साल का सबसे पवित्र और पवित्र महीना माना जाता है। भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की अपार भक्ति और समर्पण के साथ प्रार्थना करते हैं। इस महीने के दौरान, लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और मानते हैं कि इससे उनके जीवन में समृद्धि और खुशियाँ आएंगी।

22 जुलाई, 2024 से शुरू होने वाले इस सावन में पाँच सोमवार व्रत शामिल हैं। आप इस साल सावन 2024 के सभी सोमवार या सोमवार की सूची प्राप्त कर सकते हैं।

सावन 2024: सावन सोमवार व्रत तिथियां

  • पहला सावन सोमवार: 22 जुलाई 2024
  •  दूसरा सावन सोमवार: 29 जुलाई 2024
  • तीसरा सावन सोमवार: 5 अगस्त 2024
  • चौथा सावन सोमवार: 12 अगस्त 2024
  •  पांचवां सावन सोमवार: 19 अगस्त 2024

 श्रावण 2024: सोमवार का व्रत

श्रावण मास का पूरा दिन भगवान शिव या भगवान शंकर की पूजा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हालाँकि हिंदू पंचांग के अनुसार, पवित्र महीने सावन का सोमवार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक उत्कृष्ट दिन है। सावन महीने का सोमवार महत्वपूर्ण दिन माना जाता है जिस दिन भक्त उपवास करते हैं और इसे आमतौर पर सोमवार, या श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में जाना जाता है।

श्रावण 2024: 16 सोमवार का व्रत

कुछ भक्त लगातार 16 सोमवार का व्रत भी रखते हैं, जिसे सोलह सोमवार व्रत कहा जाता है। लोगों का मानना ​​है कि इससे उन्हें एक आदर्श जीवन साथी और एक आनंदमय विवाहित जीवन का आशीर्वाद मिलता है। कई भक्त सोलह सोमवार के लिए उपवास करते हैं, जिन्हें सोलह सोमवार के रूप में जाना जाता है, जो सावन कैलेंडर महीने के पहले सोमवार से शुरू होता है।

श्रावण 2024: जानिए इन अन्य त्योहारों के बारे में  

सावन का महिना पूर्ण रूप से भगवान शिव कि आराधना कि लिए होता है और भक्त पूरे महीने विशेष पूजा अनुष्ठान और समारोह करते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं।  हालांकि सावन का महिना भगवान शंकर कि आराधना के अतिरिक्त की अन्य त्यौहार के लिए प्रसिद्ध है जिसमें शामिल हैं श्रावण सोमवार व्रत, हरियाली तीज, नाग पंचमी, श्रावण शिवरात्रि और रक्षा बंधन तथा अन्य हिन्दू पंचांग के अनुसार जहां श्रावण मे सोमवार को भगवान शंकर कि पूजा के लिए माना जाता है वहीं मंगलवार को भी महत्वपूर्ण माना जाता है और यह देवी पार्वती को समर्पित है।

 श्रावण 2024: काँवड़ यात्रा

सावन के महीने की शुरुआत कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी होती है। इस वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से कांवड़िए भगवान शिव को समर्पित तीर्थस्थलों पर गंगाजल (पवित्र जल) चढ़ाने के लिए जाते हैं। झारखंड स्थितः देवघर अर्थात बाबा वैद्यनाथ धाम का भी प्रमुख महत्व है जहां भक्त गण सुलतानगंज स्थितः गंगा नदी से पवित्र जल लेकर देवघर मे भगवान शंकर को जल अर्पित करते हैं। इसके बाद कांवड़िए स्थानीय शिव मंदिरों में गंगाजल चढ़ाने के लिए अपने गृहनगर लौटते हैं।

देवों के देव महादेव: जानें क्या क्या है भगवान शिव का रहस्य- त्रिपुंड, नंदी बैल, अर्धनारीश्वर, रुद्र और अन्य

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हिन्दू देवताओं में भगवान शिव को सर्वोच्च भगवान माना जाता है भगवान सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवी-देवताओं में से भी एक है. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह मान्यता है कि सावन के पावन महीने में विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने और उनके निमित्त व्रत रखने से वे अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं. बाबा भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का भी भक्तों को आशीर्वाद मिलता है। 

भगवान शिव के रहस्य 
भगवान शिव के रहस्य को समझना आसान नहीं है  और सच तो यह है कि यह एक निरंतर खोज है जो भक्तों को आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाती है। शिव पुराण और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है जिनका न कोई आदि है और न ही कोई अंत। उन्हीं के होने से ये समस्त संसार गतिमान है। जबकि विष्णु पुराण में भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के द्वारा हुआ है। भगवान शिव के निराकार रूप की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम नर्मदेश्वर शिवलिंग (Narmadeshwar Shivling) माना जाता है। भगवान शिव का रहस्य एक जटिल और बहुआयामी विषय है, जिसमें कई पहलू हैं।

विनाश और रचना का चक्र:

भगवान शिव का रहस्य विनाश और रचना का चक्र है। यह चक्र हमें जीवन के नैसर्गिक क्रम को समझने और इसके साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। भगवान शिव को अक्सर विनाश के देवता के रूप में देखा जाता है, लेकिन वे रचना के देवता भी हैं। वे 'सृष्टि चक्र' का प्रतीक हैं, जिसमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म शामिल हैं। भगवान शिव को अक्सर 'महाकाल' या 'काल' कहा जाता है, जो समय का देवता है। समय सभी चीजों को नष्ट कर देता है, और भगवान शिव इस विनाशकारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

भगवान शिव 'नाटराज' के रूप में भी जाने जाते हैं, जो 'नृत्य' के देवता हैं। उनका 'तांडव' नृत्य ब्रह्मांड के विनाश का प्रतीक है, लेकिन यह एक नए ब्रह्मांड के निर्माण का भी प्रतीक है।

 ज्ञान और ध्यान:

 ज्ञान और ध्यान जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्ञान हमें सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद करता है, और ध्यान हमें शांत और एकाग्र रहने में मदद करता है। भगवान शिव को ज्ञान और ध्यान का देवता भी माना जाता है। वे योग, तपस्या और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं। भगवान शिव को 'ज्ञान का भंडार' माना जाता है। वे 'वेद', 'शास्त्र', और 'ज्ञान' के सभी रूपों के ज्ञाता हैं। भगवान शिव 'ध्यान' के प्रतीक हैं। वे 'समाधि' की अवस्था में रहते हैं, जो 'आत्म-ज्ञान' की प्राप्ति का मार्ग है।

त्रिपुंड:

त्रिपुंड भगवान शिव के माथे पर लगाई जाने वाली तीन क्षैतिज रेखाएं हैं। यह भस्म, चंदन या मिट्टी से बनाया जा सकता है। त्रिपुंड का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है और इसे भगवान शिव के कई पहलुओं का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के माथे पर लगा त्रिपुंड तीन गुणों (सत्व, रज, तम) का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि वे इन तीनों गुणों से परे हैं।

त्रिपुंड के तीन अर्थ हैं:

सृष्टि, संरक्षण और विनाश: त्रिपुंड की तीन रेखाएं ब्रह्मांड के तीन गुणों का प्रतीक हैं: सृष्टि, संरक्षण और विनाश। भगवान शिव को इन तीनों गुणों का स्वामी माना जाता है।

अतीत, वर्तमान और भविष्य: त्रिपुंड की तीन रेखाएं भी समय के तीन पहलुओं का प्रतीक हैं: अतीत, वर्तमान और भविष्य। भगवान शिव को समय का देवता माना जाता है।

आत्मा, मन और शरीर: त्रिपुंड की तीन रेखाएं मनुष्य के तीन पहलुओं का प्रतीक हैं: आत्मा, मन और शरीर। भगवान शिव को इन तीनों पहलुओं का स्वामी माना जाता है।

 नंदी बैल:

नंदी बैल भगवान शिव का वाहन है। यह शक्ति, धैर्य और भक्ति का प्रतीक है। नंदी को आमतौर पर शिव मंदिरों के द्वार पर बैठा हुआ देखा जाता है। भगवान शिव का वाहन नंदी बैल, 'शक्ति' और 'धैर्य' का प्रतीक है।

गंगा नदी:

भगवान शिव अपनी जटाओं में गंगा नदी धारण करते हैं। यह दर्शाता है कि वे 'पवित्रता' और 'शुद्धि' का प्रतीक हैं।

अर्धनारीश्वर:

भगवान शिव 'अर्धनारीश्वर' रूप में भी दर्शाए जाते हैं, जिसमें वे आधे पुरुष और आधी स्त्री हैं। यह दर्शाता है कि वे 'स्त्री-पुरुष समानता' और 'संपूर्णता' का प्रतीक हैं।

 मृत्युंजय:

भगवान शिव को 'मृत्युंजय' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'मृत्यु को जीतने वाला'। यह दर्शाता है कि वे 'अमरता' और 'जीवन शक्ति' का प्रतीक हैं।

त्रिनेत्र:

भगवान शिव के तीन नेत्र हैं, जो 'अतीत, वर्तमान और भविष्य' का प्रतीक हैं। यह दर्शाता है कि वे 'सर्वज्ञ' और 'सर्वव्यापी' हैं।

 नाग:

भगवान शिव अपने गले में नाग धारण करते हैं। यह दर्शाता है कि वे 'विष' और 'बुराई' पर विजय प्राप्त करते हैं।

रुद्र:

भगवान शिव को 'रुद्र' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'विनाशकारी'। यह दर्शाता है कि वे 'अन्याय' और 'अधर्म' का नाश करते हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


सावन का दूसरा सोमवार 2024 : जानें क्यों भगवान् शंकर को चढ़ाते हैं बेलपत्र

Savan Somvar: Why Belpatra Used to Worship Lord Shankar

सावन सोमवार 2024 :2024 मे सावन का सुभारम्भ 22 जुलाई 2024 से हुआ और इस महीने मे कुल पाँच सोमवार पड़ेंगे।  जुलाई 29, 2024 अर्थात सावन का दूसरा सोमवार या सोमवारी है।  श्रावण में भगवान शिव की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है और हिंदुओं के बीच सावन का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की अपार भक्ति और समर्पण के साथ प्रार्थना करते हैं। वैसे तो श्रावण मास का पूरा दिन भगवान शिव या भगवान शंकर की पूजा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हालाँकि हिंदू पंचांग के अनुसार, पवित्र महीने सावन का सोमवार भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक उत्कृष्ट दिन है। सावन महीने का सोमवार महत्वपूर्ण दिन माना जाता है जिस दिन भक्त उपवास करते हैं और इसे आमतौर पर सोमवार, या श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में जाना जाता है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पूजन के तौर पर  श्रदालु  भगवान शिव के लिंग को फूल, फल पानी (जल जिसे जलाभिषेक के रूप में जाना जाता है) के साथ चढ़ाते हैं। फूल और फलों के अलावा, भक्त भगवान शिव को प्रसन्न  करने के लिए भांग और धतूरा भी चढ़ाते हैं। हालाँकि, बेलपत्र सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है जो सावन सोमवार के दिन भगवान शिव लिंग को अर्पित की जाती है। क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर को बेलपत्र क्यों चढ़ाई जाती है ?
सावन के सोमवार को भगवान् शिव की विशेष पूजा अर्चना कर और बेलपत्र अर्पित कर, भक्तजन उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है और आज भी श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है।

वैदिक शास्त्र और शिव पुराण कहते हैं कि भक्त माघ या फाल्गुन के महीने में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन बेलपत्र के साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं जो भगवान शिव को अधिक आनंद प्रदान करते हैं।

बेलपत्र को भगवान् शंकर को चढ़ाने के कारण:

पवित्रता और शुद्धता: बेलपत्र को पवित्र और शुद्ध माना जाता है। यह तीन पत्तियों वाला होता है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का प्रतीक माना जाता है। इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से तीनों देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

शिव का प्रिय: धार्मिक कथाओं के अनुसार, बेलपत्र भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे चढ़ाने से भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

एक और कारण है जिसका विभिन्न पवित्र पुस्तकों में उल्लेख किया गया है कि बेलपत्र जो तीन पत्रों (तीन पत्तों का सेट) का संग्रह है, त्रिनेत्र जैसा दिखता है ... जो भगवान शिव का दूसरा नाम है जिन्हें भगवान के रूप में जाना जाता है त्रि नेत्र के साथ (तीन आंखें।)

औषधीय गुण: बेलपत्र में औषधीय गुण होते हैं जो वातावरण को शुद्ध करते हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। यह एक प्रकार से भगवान् शिव को उनकी तपस्या और त्याग की याद दिलाने का प्रतीक भी है।

आध्यात्मिक महत्व: बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से मानसिक शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह भक्त के मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है।

 वैदिक शास्त्रों और शिव पुराण के अनुसार,ऐसी मान्यता है कि  भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा था कि जब भक्त फाल्गुन महीने (हिंदी महीने के 12 वें महीने का अंतिम महीना) में घटते चंद्रमा के 14 वें दिन उनकी पूजा करते हैं, तो  इस पूजन से उन्हे अत्यधिक प्रसन्नता प्राप्त होती है और उन श्रदालुओ और भक्तों पर  भगवन शिव काफी उदार होते हैं ।

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रक्षा बंधन 2024: इंडिया पोस्ट के साथ समय पर अपने प्रियजनों तक राखी और गिफ्ट पहुंचाने की कर लें तैयारी, पढ़ें अपडेट

Raakhi importance how to send Rakhi and gifts

रक्षा बंधन के अवसर पर, इंडिया पोस्ट आपको अपनी निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय मेल सेवाओं का उपयोग करके दुनिया भर में अपने प्रियजनों को राखी भेजने के लिए आमंत्रित गाइड्लाइन जारी किया है। तो फिर देरी किस बात कि, आप अपने प्रियजनों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं समय पर पहुंचाने के लिए, इंडिया पोस्ट गाइड लाइन के मुताबिक खुद को तैयार कर लें और  आप 31 जुलाई तक अपनी राखी शिपमेंट की योजना बना लें।

इन बातों का रखें ध्यान: 

अंतर्राष्ट्रीय मेलिंग की जटिलताओं से निपटने तथा विलंब और सीमा शुल्क संबंधी परेशानियों की संभावना को न्यूनतम करने के लिए, निम्नलिखित बातों का पालन करना आवश्यक है:

अपनी राखियों को सुरक्षित तरीके से पैक करें, ताकि उन्हें परिवहन के दौरान संभावित क्षति से बचाया जा सके।

उचित पता लेबल का उपयोग करें और सटीक ज़िप कोड/पोस्ट कोड के साथ पूरा पता साफ़-साफ़ लिखें/टाइप करें। अपने मोबाइल नंबर का उल्लेख ज़रूर करें।

निकासी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सीमा शुल्क घोषणा फॉर्म पर अपने पैकेज की सामग्री का सही-सही विवरण दें।

प्रतिबंधित वस्तुएं, जैसे ज्वलनशील पदार्थ, तरल पदार्थ या शीघ्र खराब होने वाले सामान भेजने से बचें, क्योंकि उन्हें जब्त किया जा सकता है।

कस्टमज़ क्लीयरेंस और पार्सल डिलीवरी में बेहतर सुविधा हेतु, राखी से संबंधित वस्तुओं के लिए हार्मोनाइज्ड सिस्टम (एचएस) कोड शामिल करने पर विचार करें। हालांकि गैर-वाणिज्यिक शिपमेंट के लिए एचएस कोड अनिवार्य नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनके शामिल होने से कस्टमज़ प्रक्रियाओं में काफी आसानी हो सकती है।

 राखी से संबंधित उत्पादों के लिए कुछ प्रासंगिक एचएस कोड इस प्रकार हैं:

* राखी रक्षा सूत्र: 63079090

* नकली आभूषण: 71179090

* हैंड सीव्ज़ और हैंड रिड्ल्ज़(राखी सहित): 96040000

* उबली हुई मिठाइयां, चाहे भरी हुई हों या खाली: 17049020

* टॉफी, कारमेल और इसी तरह की मिठाइयां: 17049030

* ग्रीटिंग कार्ड: 49090010

इन आवश्यक दिशानिर्देशों का पालन करके और इंडिया पोस्ट की प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मेल सेवाओं का लाभ उठाकर, आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपकी राखियां सीमाओं को पार कर जाएं और विदेश में आपके प्रियजनों तक समय पर और सुरक्षित तरीके से पहुंच जाएं। (Souce PIB)

Point Of View: मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व, स्पष्ट दृष्टि और लोकप्रियता ने फेरा विपक्षी मंसूबों पर पानी

Najariya: Why Modi is Unbeatable Against Opposition

Point Of View : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार शपथ लेकर विपक्ष को यह क्लियर मैसेज दे दिया है कि वे इतनी आसानी से हार मानने वाले नही है। नरेंद्र मोदी  जिन्होंने हमेशा से चुनाव को अपने खुद के दम से न केवल भाजपा और एन डी ए , बल्कि विपक्ष के मुद्दों के स्ट्रैटिजी को भी वो खुद तैयार करने कि जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं, वो अक्सर कहा करते थे कि विपक्ष को उनके राजनीतिक सूझ बूझ पर किसी प्रकार की कोई शंका नहीं होनी चाहिए। इस बार भी बहुमत से दूर होते हुए भी बिना किसी परेशानी के जिस प्रकार से उन्होंने गठबंधन वाली सरकार शुरू किया है, उसका संदेश भी साफ है कि वो समझौता करने वाले नही हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो अपने कौशल और वाकपटुता के साथ ही राजनितिक सूझबूझ के लिए भी जाने जाते हैं.और उनकी इस खूबियों का कायल उनके विरोधी भी हैं. उनके विरोधी भी मोदी को भली भांति जानते हैं कि उन्हें हराना इतना आसान नहीं है क्योंकि मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व, स्पष्ट दृष्टि और मजबूत लोकप्रियता उन्हें और भी अजेय बनाती है.
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प्रधान मंत्री मोदी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह अपने विरोधियों को कभी कोई मौका नहीं देते हैं और उनके वार और आक्रमण की तीर में ही उनके लिए मुद्दे छुपे होते हैं। यहां तक कि उनके आलोचक भी आसानी से विपक्ष के सामने आत्मसमर्पण नहीं करने के उनके कौशल और उनके दृढ़ निश्चय की सराहना करते हैं।

 विपक्षी दलों और नेताओं के मुद्दे और गलतियाँ आम तौर पर मोदी को एक मंच प्रदान करते हैं और वे विरोधी दलों को अपने मुद्दों से हराते हैं। नरेंद्र मोदी अपने कदमों से अपने आलोचकों को प्रभावित करने की इच्छाशक्ति और कौशल के लिए जाने जाते हैं।

 यह उसके स्वभाव की विशेषता है और आसपास की चीजों से निपटने की उसकी क्षमता भी। इसलिए उनके विरोधी भी बेशक चुपचाप और कभी-कभार उनकी तारीफ करते हैं।

मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व:

  • उत्साही और प्रेरक वक्ता: मोदी अपनी ऊर्जावान और प्रेरक भाषणों के लिए जाने जाते हैं। वे जनता से जुड़ने और उन्हें प्रेरित करने में माहिर हैं।
  • मजबूत नेतृत्व: मोदी एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में देखे जाते हैं। वे अपनी नीतियों पर दृढ़ रहते हैं और कठिन परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटते।
  • लोकप्रिय छवि: मोदी एक साधारण और जमीन से जुड़े नेता के रूप में लोकप्रिय हैं। वे सोशल मीडिया का सक्रिय रूप से उपयोग करते हैं और युवाओं से जुड़ने में सफल रहे हैं।

स्पष्ट दृष्टि:

  • विकास और समृद्धि: मोदी का मुख्य लक्ष्य भारत को एक विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनाना है। उन्होंने 'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया' और 'स्वच्छ भारत अभियान' जैसे कई महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: मोदी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी बहुत गंभीर हैं। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है और भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
  • सामाजिक न्याय: मोदी सभी वर्गों के लोगों के लिए समान अवसरों की वकालत करते हैं। उन्होंने गरीबों और वंचितों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।

मजबूत लोकप्रियता:

  • चुनावी सफलता: मोदी 2014 और 2019 में लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीते। यह उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है।
  • जन समर्थन: मोदी देश भर में, विशेष रूप से युवाओं में, बहुत लोकप्रिय हैं। उनकी नीतियों और उनके नेतृत्व में लोगों का विश्वास है।
  • विश्व नेता: मोदी को एक मजबूत और प्रभावशाली विश्व नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कई देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया है और भारत की वैश्विक छवि को बेहतर बनाया है।

नरेंद्र मोदी अलग तरीके से काम करते हैं और शायद इसीलिए वे नरेंद्र मोदी हैं। 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान याद करें जब उन्होंने समारोह के दौरान सभी सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाने का फैसला किया था, जिसकी विशेषज्ञों द्वारा व्यापक रूप से सराहना की गई थी। निश्चित रूप से इन राष्ट्रों के प्रमुख को आमंत्रित करने का कदम पूरी दुनिया को स्पष्ट और प्रभावशाली संदेश दिया ।

उसके बाद तो मोदी ने देश से परे हटकर दुनिया में अपने व्यक्तित की ऐसे छाप छोड़ी की दुनिया के दिग्गज देशों की राष्ट्रपतियों को पीछा छोड़कर आज वे दुनिये के सबसे लोकप्रिय नेताओं की सूची में सर्वोच्च स्थान पर हैं. 

Point Of View: पढ़ें और भी...

रिश्ते खास हैं, इन्हे अंकुरित करें प्रेम से, जिंदा रखें संवाद से और दूर रखें गलतफहमियों से

इमोशनल हैं, तो कोई वादा नहीं करें और गुस्से में हों तो इरादा करने से परहेज करें

स्व-अनुशासन के महत्त्व को समझे और जीवन को बनाएं सार्थक 

रखें खुद पर भरोसा,आपकी जीत को कोई ताकत हार में नहीं बदल सकती

जाने क्या कहते हैं ये हस्तियां नागरिक विश्वास और समावेशी विकास के सन्दर्भ में




Point Of View : बुद्ध पूर्णिमा कब है और इसे क्यों मनाया जाता है?


Point Of View : बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वेसाक या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, इस वर्ष यह 23 मई, 2024  को मनाई जा रही है। बुद्ध पूर्णिमा खासतौर पर बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु (या परिनिर्वाण) का दिन है और इस कारण से इस महत्वपूर्ण दिवस का खास पहचान है। हिन्दू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा जो प्रत्येक माह मे मनाई जाती है, इसका खास महत्व है।  यह भारतीय और बौद्ध कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने की पूर्णिमा को आता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई के महीने में पड़ता है। 

किसी कवि ने गौतम बुद्ध के बारे मे क्या खूब लिखा है-
"गौतम के दूसरा गौतम नहीं हुआ,
निकले  तो बेशुमार हैं घरबार  छोड़कर "

बुद्ध पूर्णिमा  केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी है। यह हमें सिखाता है कि हम कैसे अच्छे जीवन जी सकते हैं और दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं। 
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी। 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और  इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था।

बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति

 बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

गौतम बुद्ध का जन्म:

गौतम बुद्ध का जन, 563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को  नेपाल के लुंबिनी, शाक्य राज्य  में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में 'कुशनारा' में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय 'कुशनारा' था। 

 बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध के नाम से जाने गए। उनके जन्म को एक दिव्य घटना के रूप में माना जाता है। कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके शरीर पर 32 शुभ लक्षण थे, जो उन्हें एक महान व्यक्ति के रूप में दर्शाते थे।

ज्ञान प्राप्ति: 

बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही बोध गया में बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।बुद्ध पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसी दिन गौतम बुद्ध को बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह घटना उन्हें 'बुद्ध' (जाग्रत) बना देती है, और इसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों के साथ साझा किया।

महापरिनिर्वाण:

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व तीसरे कारण से भी है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (वर्तमान में उत्तर प्रदेश, भारत) में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था, जो उनके जीवन के अंतिम क्षणों को दर्शाता है।

Hanuman Jayanti: हनुमान जयंती कब है? जानिए सही तिथि, पूजन विधि और महत्व


Hanuman Jayanti
: हनुमान जयंती, जिसे हनुमान जन्मोत्सव भी कहा जाता है, चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मनाई जाती है। इस साल 23/24 अप्रैल, 2024 को यह पर्व पूरे धूम धाम से मनाई जाएगी। धर्मग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं और भगवान श्री राम के प्रबल भक्त हैं। 

भगवान हनुमान का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था और देश भर में लोग हनुमान जन्मोत्सव के रूप में इस दिन को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। आम तौर पर, त्योहार चैत्र माह (अप्रैल-मई) में मनाया जाता है। 

यदि आप भारत भूमि का भ्रमण करें, तो आपको अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीकों से भगवान हनुमान की पूजा करते हुए पाएंगे। यह उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा के रूप में सबसे अधिक मनाया जाता है।

भगवान हनुमान जी व्यक्तित्व कि विशालता और उनके अनगिनत कारनामों ने हमेशा से दुनिया भर के विद्वानों, विचारकों और पौराणिक कथाओं का केंद्र बिन्दु रहा है। 

भगवान हनुमान सबसे प्रसिद्ध देवताओं में से एक हैं और ऐसी मान्यता है कि वह आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। कहा जाता है कि प्रभु हनुमान इस घोर कलयुग मे एक मात्र देवता हैं जो अपने भक्तों के द्वारा कम पूजन पर भी आसानी से उनका कल्याण करते हैं ।

हनुमान जयंती 2024: तिथि और समय

पूर्णिमा तिथि आरंभ - 23 अप्रैल, 2024 - 03:25 पूर्वाह्न

पूर्णिमा तिथि समाप्त - 24 अप्रैल, 2024 - 05:18 पूर्वाह्न

हनुमान जयंती कैसे मनाएं? 

भगवान हनुमान केसरी और अंजना के पुत्र हैं और उनका जन्म नाम अंजनेय (अंजना का पुत्र) था, लेकिन जीवन भर उन्हें उनके वीरतापूर्ण कार्यों से प्राप्त नामों से संबोधित किया गया था। 

हनुमान जयंती पर सभी भक्तगन प्रभु हनुमान को पूजन करते हैं और उनकी प्रसन्नता के लिए हम भगवान हनुमान के शुभ जन्म की पूजा करते हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के भक्ति कार्यक्रम आयोजन कि जाती है साथ ही प्रभु हनुमान की दिव्यता की पूजा करने के साथ ही उनकी बचपन की लीलाओं, वीरतापूर्ण कृत्यों को याद किया जाता है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान हनुमान अपने गुरु रामचंद्र के चरण कमलों के प्रति काफी समर्पित रहते हैं और इसलिए प्रभु राम को प्रसन्न करके भी लोग भगवान हनुमान को खुश और प्रसन्न करने के लिए मंदिरों और घरों मे पूजन आयोजित करते हैं। भगवान हनुमान की पूजा करने के दो तरीके हैं; पारंपरिक पूजा और हनुमान के गुणों का ध्यान।  

ऐसी मान्यता है कि भगवान इस लोक मे तब तक  तक गुप्त रूप से पृथ्वी पर रहेंगे जब तक भगवान राम का नाम गाया जाएगा , महिमामंडित और स्मरण और पूजा किया जाएगा।

हनुमान जयंती 2024: अनुष्ठान

  • सबसे पहले भक्तगन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें जो कि किसी भी पूजन के आरंभ के लिए प्राथमिक शर्त होती है ।
  •  पूजन स्थल पर या किसी भी पवित्र जगह पर भगवान हनुमान की मूर्ति रखें और देसी घी का दीया जलाएं।
  •  उसके उपरांत भगवान हनुमान के मूर्ति पर लाल फूल चढ़ाएं और हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का जाप करें।
  •  हनुमान मंदिर जाएं और भगवान हनुमान को चोला चढ़ाएं जिसमें - चमेली का तेल, वस्त्र और सिन्दूर शामिल हों।
  • ज्यादातर लोग घर में सुंदर कांड का पाठ कराते हैं।
  •  इस शुभ दिन पर रामायण का पाठ करना भी लाभकारी होता है।


होली 2024/25/26: तिथि, होलिका दहन, होलाष्टक और भी बहुत कुछ

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होली 2024 तिथि (25 मार्च 2024): होली 2024, वह दिन जिसका लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं, 25 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। होली जो आमतौर पर हिंदी पंचांग के अनुसार फाल्गुन/चैत्र में मनाई जाती है, हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक त्योहार है। होली एक ऐसा अवसर है जो सभी लोगों के लिए अद्वितीय संदेश देता है और इसे बिना किसी बाधा के अमीर या गरीब के साथ मनाया जाता है और सभी पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। होली उत्सव पूरी तरह से होलिका दहन और होलाष्टक सहित महत्वपूर्ण भाग से जुड़ा हुआ है जो हर साल होली के उत्सव के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदी माह फाल्गुन की शुरुआत के साथ ही वातावरण में होली की खुशबू शुरू हो जाती है।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। होली ज्यादातर जगहों पर दो दिन मनाई जाती है, जिसके तहत पहले दिन होलिका दहन होता है और उसके बाद होली का त्योहार विधिवत मनाया जाता है।

होली 2024:

  • होलिका दहन: 24 मार्च 2024, शनिवार
  • होलाष्टक: 17 मार्च 2024, शनिवार से शुरू होकर 24 मार्च 2024, शनिवार तक
  • धुलंडी: 25 मार्च 2024, रविवार
होली तिथि: जाने आने वाले अगले साल मे कब मनाई जाएगी 
2024 25 मार्च सोमवार होली
2025 14 मार्च शुक्रवार होली
2026 3 मार्च मंगलवार होली

होलाष्टक:

कहा जाता है कि सामान्य तौर पर होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है, यानी इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करने से बचना चाहिए. यदि आप होलाष्टक के बंधन को तोड़ते हैं, तो यह 'होली' और 'अष्टक' के रूप में ध्वनि करेगा, जो आठ दिनों का प्रतीक है, होलाष्टक शुभ प्रयासों के लिए अशुभ मानी जाने वाली अवधि को चिह्नित करता है। इन दिनों के दौरान होली के एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान, होलिका दहन की तैयारी शुरू होती है।

पंचांग के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या अन्य कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।

  • होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक रहता है।
  • इस अवधि को अशुभ माना जाता है।
  • इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
  • लोग इस अवधि में धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं और दान करते हैं।

होलिका दहन-

होलिका दहन होली के उत्सव का महत्वपूर्ण घटक है जो होली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है।

होलिका दहन के दिन आमतौर पर घर की महिलाएं पूजा सामग्री लेकर परंपरा के अनुसार शाम को होने वाले होलिका दहन में अर्पित करती हैं। महिलाएं होलिका दहन स्थल की परिक्रमा करती हैं और प्रसाद चढ़ाकर पूजा करती हैं।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त:

भद्रा पूंछा: 24 मार्च 2024, 6:31 PM से 7:59 PM तक

भद्रा मुख: 24 मार्च 2024, 7:59 PM से 9:27 PM तक

होलिका दहन का समय: 9:27 PM के बाद 

होलिका दहन की विधि:

होलिका दहन के लिए एक स्थान पर लकड़ी और अन्य पदार्थों का ढेर बनाया जाता है।

ढेर के ऊपर होलिका रखी जाती है।

पूजा-अर्चना के बाद, ढेर को आग लगाई जाती है।

लोग होलिका दहन के आसपास नाचते-गाते हैं और रंगों से खेलते हैं।

होलिका दहन का महत्व:

  • होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
  • यह बुराई, नकारात्मकता और अंधकार को दूर करने का त्योहार है।
  • यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।



Basant Panchami 2024: जाने बसंत पंचमी का महत्‍व, इतिहास और कला की देवी सरस्वती की उपासना

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी कहा जाता है उनका अवतरण इसी दिन हुआ था और यही वजह  है कि माँ सरस्वती की पूजन इस दिन भक्तों द्वारा की जाती है. खास तौर पर विद्यार्थी इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। हालाँकि माँ सरस्वती को कला की देवी माना गया है और इसलिए सभी प्रकार के कला के उपासक इस दिन माँ सरस्वती अर्थात कला की देवी की पूजा करते हैं.  

 बसंत पंचमी, भारतीय हिंदू परंपराओं में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है,

 जो मुख्य रूप से माँ सरस्वती की पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसे माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो वसंत ऋतु की शुरुआत का संकेत है। यह पर्व भारतीय साहित्य, कला, और शिक्षा की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है।


बसंत पंचमी का इतिहास:

हिंदू मिथोलॉजी:

इस पर्व का मूख्य उद्देश्य माँ सरस्वती की पूजा है, जो विद्या, कला, और साहित्य की देवी हैं। हिंदू मिथोलॉजी में, बसंत पंचमी को भगवान ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती के अवतार के रूप में माना जाता है।

माँ सरस्वती की पूजा:

इस दिन विद्या, कला, और साहित्य में बढ़त के लिए लोग माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। विद्यार्थियों और कलाकारों को इस दिन उनके शिक्षकों और गुरुओं की आराधना करने का भी पर्वाह किया जाता है।

सांस्कृतिक आयोजन:

बसंत पंचमी पर स्कूलों, कॉलेजों, और सांस्कृतिक संस्थानों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो छात्रों को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखते हैं।

बसंत ऋतु का आगमन:

बसंत पंचमी का आयोजन वसंत ऋतु के आगमन के साथ जुड़ा है। इस दिन लोग पुराने और पुराने कपड़े पहनकर रंग-बिरंगी बसंती बुनाई बनाते हैं।

बसंत पंचमी के दिन लोग सरस्वती मंदिरों या नदी तटों पर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और उमड़ी खेतों में फूलों का उपहार भी चढ़ाते हैं। सारे भारतवासी इस दिन को एक नए शुरुआत का संकेत मानते हैं और नई ऊर्जा के साथ नए कार्यों की शुरुआत करते हैं।

बसंत पंचमी पर्व का इतिहास क्या है? 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि किसी भी कला के उपासक माँ सरस्वती की विशेष आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं ताकि कला के क्षेत्र में वो और भी अच्छा कर सकें. माना जाता है कि माँ सरस्वती का अवतरण इसी दिन हुआ था और यही कारण है कि भक्त इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। साथ ही इसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

बसंत पंचमी का महत्‍व

जैसा कि हम  सभी जानते हैं कि माँ सरस्वती अक्षर के साथ ही कला की देवी मानी जाती है और इस दिन किताबों और वाद्य यंत्रों की पूजा की जाती है. इसके अलावा किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए ये दिन बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन मुहूर्त का विचार किए बिना किसी भी शुभ काम की शुरुआत की जा सकती है.


Valentine Day Special: दिल को छू लेने वाले ये कोट्स भेजें अपने खास को

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वैलेंटाइन डे प्यार का त्योहार है और इस दिन प्रेमी अपने पार्टनर को प्रेम का अहसास दिलाने के लिए खास तैयारियां करते हैं । यह दिन दुनिया भर के प्रेमी जोड़ों के लिए बेहद खास होता है जहाँ प्रेमी कपल इस दिन का पुरे साल इन्तजार करते हैं। इस दिन प्रेमी जोड़े एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार का इजहार करते हैं। वे एक-दूसरे को उपहार देते हैं, रोमांटिक डिनर पर जाते हैं, या एक साथ समय बिताते हैं।

वैलेंटाइन डे हमें यह याद दिलाता है कि हमारे जीवन में प्यार कितना महत्वपूर्ण है। यह हमें अपने साथी के प्रति अपना प्यार व्यक्त करने का मौका देता है।

वैलेंटाइन डे को मनाने के कई तरीके हो सकते हैं और यह खास आपके और आपके पार्टनर की समझ और पसंद पर निर्भर करता है। आखिर आप और आपके पार्टनर को एक दूसरे से अधिक कौन समझ सकता है और इसके लिए आप खुद ही तय करें कि अपने साथी के साथ कैसे यादगार शाम बना सकते हैं. इसके लिए आप एक रोमांटिक डिनर पर जा सकते हैं, एक साथ पार्क में घूम सकते हैं, या एक साथ किसी फिल्म देख सकते हैं। आप अपने साथी को एक उपहार दे सकते हैं, या उसे एक प्यारा सा ग्रीटिंग कार्ड लिख सकते हैं।



अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आप निम्न पंक्तियों की मदद ले सकते हैं जो आपके पार्टनर को आपके लिए और भी खास बनाने में मदद करेंगी. 

1. तुम 

विश्वास मैं कैसे दूँ, 

जीने की हो प्रेरणा हो तुम 

तेरा कोई विकल्प नहीं, 

कुछ पाने का संकल्प हो तुम 

मेरे इच्छाओं की सीमा हो,

अभिलाषाओं का अंत हो तुम. 


Guru Nanak Jayanti 2023: कब है गुरु नानक जयंती और इस दिन क्यों मनाया जाता है प्रकाश पर्व?


गुरु नानक देव जयंती 2023 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाएगा, जो कि 27 नवंबर, सोमवार को है। यह सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिन का उत्सव है। 

इक ओंकार सिख धर्म के मूल दर्शन का प्रतीक है, जिसका अर्थ है 'परम शक्ति एक ही है'. गुरू नानक देव जी ने सिख समुदाय की नींव रखी थी. इसीलिए सिखों के पहले गुरू कहे जाते हैं. गुरु नानक देव जी का असली नाम 'नानक' था.

क्या होता है गुरुपर्व

गुरुपर्व (पंजाबी: ਗੁਰਪੁਰਬ (गुरुमुखी)), जिसे वैकल्पिक रूप से गुरुपर्व या गुरुपरुब के रूप में जाना जाता है, सिख परंपरा में एक गुरु के जन्म की सालगिरह का उत्सव है जिसे एक त्योहार के आयोजन द्वारा चिह्नित किया जाता है।

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को पंजाब के तलवंडी नामक गांव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में सभी धर्मों के लोगों को एकता और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया और जाति व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास किया।


गुरु नानक का जन्मदिन कैसे मनाते हैं? 

गुरु नानक देव जी की जयंती को सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। इस दिन सिख लोग गुरुद्वारों में जाकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। इसके अलावा, भजन-कीर्तन, लंगर और प्रभात फेरी जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। 

सिख लोग इस दिन का वर्षों से इन्तजार करते हैं और इस दिन को काफी उत्साह के साथ मनाते हैं. इस दिन को लोग हर साल लोग सड़कों पर आतिशबाजी और जुलूस के साथ गुरु नानक का जन्म मनाते हैं। सिख मंदिरों - गुरुद्वारों में - सिखों की पवित्र पुस्तक, गुरु ग्रंथ साहिब, को पूरा पढ़ा जाता है। मोमबत्तियाँ घरों और सार्वजनिक स्थानों जैसे कार्यालयों और दुकानों में जलाई जाती हैं। 


 गुरु नानक देव जी के अनमोल विचार

1 अहंकार, ईर्ष्या, लालच, लोभ मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देते हैं। ऐसे में इनसे दूर रहना चाहिए।"

2. हमें अपनी कमाई का दसवां हिस्सा परोपकार के लिए और अपने समय का दसवां हिस्सा प्रभु सिमरन या ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। 

3.ईश्वर एक है और हर जगह मौजूद है। सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।  ईश्वर सब जगह उपस्थित हैं। ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी बात का भय नहीं रहता है।

4. लोगों को प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यात्मिक ज्योति का संदेश देना चाहिए।

5. सत्य को जानना हर एक चीज से बड़ा है और उससे भी बड़ा है सच्चाई से जीना।