Inspiring Thoughts: सोशल मीडिया पर फैले नकारात्मक पोस्ट आपको बनाते हैं कुंठाग्रस्त, जाने कैसे करें इन नेगेटिव पोस्ट को बाय-बाय

How to Avoid Negative Posts on Social Sites
सोशल मीडिया भले हीं सबसे सशक्त माध्यम है अपनी बातों को तीव्रता के साथ फैलाने के लिए लेकिन क्या यह सच नहीं है कि हमें नेगेटिव बनाने में यह उतना हीं व्यापक भूमिका निभा रहा है। 

भले हीं आज के समय में सोशल मीडिया अपनी बातों को सेकेड में हीं लाखों लोगों तक पहुंचाने का सबसे सशक्त  माध्यम है। हालाँकि क्या यह भी एक यथार्थ नहीं है कि लोगों ने सुलभ और स्ट्रांग माध्यम को भी अपने नकारात्मक और पक्षपातपूर्ण विचारों को फैलाने के लिए दुरूपयोग ज्यादा करते हैं. 

एक तरफ इस सबसे महत्वपूर्ण और सशक्त माध्यम से लोग अच्छी बातों और सकारात्मक सोच से लोगों को मोटिवेट करने का प्रयास करते हैं वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे नेगेटिव पोस्ट को फैलाने का काम करते हैं जो न केवल निरर्थक और तथ्यहीन होते हैं बल्कि ऐसे पोस्ट आपके स्वस्थ मस्तिष्क को कुंठाग्रस्त और नकारात्मकता से भरने वाले होते हैं।

क्या ऐसा नहीं होता कि आप खुद को अपने व्यस्तता को विराम देने के लिए; सोशल मीडिया कोर मुखातिब होते हैं लेकिन कुछ सरफिरे लोगों के बेतुके और भ्रामक पोस्ट आपके अच्छे खासे मूड को हीं कबाड़ा कर देते हैं।

हालांकि इस प्रकार के भ्रामक और तथ्यहीन पोस्ट को सोशल साइट पर डालना गलत होने के साथ हीं यह साइबर क्राइम के अधीन भी आता हैं। साइबर अपराध होने की स्थिति में संबंधित एजेंसी इससे निबटने के लिए है, लेकिन हम यहां बात कर रहें है ऐसे सोशल साइट के नकारात्मक पोस्ट से होने वाले हमारे मन और मस्तिष्क की क्षति के बारे में।

राजनीतिक प्रतिद्वंतिता, वैचारिक मतभेदों का होना एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है और इससे किसी को इनकार नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या इसके लिए यह जरूरी है की हम अपने सामाजिक और वैचारिक मर्यादाओं को भी भूल जाएं।।।

लेकिन आज अगर आप देखेंगे तो सोशल साइट पर विरोध दर्ज करने के लिए लोग गाली गलौज और अश्लीलता वाले पोस्टों की भरमार हो चुकी है।

कहने की जरूरत नहीं की ऐसे बिना सिर पैर वाले और बगैर तथ्यों वाले ये निरर्थक पोस्ट आपको कुंठाग्रस्त बनाने के साथ हीं आपके स्वस्थ मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं।

हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद ने कहा है कि विचारों की समानता ही दोस्ती का मूलमंत्र होता है।।।।फिर जब ऐसे लोगो को जिन्हे हम अपने सामान्य जीवन में दोस्त बनाने के काबिल नही समझते, तो क्या इन्हे सोशल साइट पर भी दोस्त बनाकर हम रिस्क नहीं ले रहे।

सोशल साइट्स पर भी कई सारे बुद्धिमान और स्वस्थ मानसिकता; वाले विद्वान लोग मौजूद हैं जिनसे काफी कुछ सीखी जा सकती है, फिर ऐसे लोगों को फ्रैंड बनाना क्या उचित नही होगी।

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