नजरिया जीने का: क्या बिहार के वर्तमान घटनाक्रम नीतीश कुमार के राजनैतिक पतन की शुरुआत है



दबाव की राजनीती के मास्टर स्ट्रोक खेलने में माहिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही खुद को विजेता मानने का मुगालता पाल सकते हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रम में उन्होंने एक बार फिर से पलटी मारने की जो कवायद किया है, वह उनके विश्वसनीयता रूपी राजनैतिक पतन का आरंभ है. जिस प्रकार से उन्होंने सत्ता के सुख के लिए गठबंधन के धर्म को भुलाकर सत्तालोलुपता दिखाई है. उसने उनके विश्वनीयता को गंभीर संकट में दाल दिया है. अगर किसी भी कीमत पर मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहना जीत का लक्षण है, तो फिर यह नीतीश कुमार को मुबारक हो, लेकिन उन्हें इसका अंदाजा शायद ही हो कि कभी प्रधान मंत्री मोदी को चुनौती देने वाले विपक्ष का एकमात्र चेहरा होने वाले नीतीश कुमार आज अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं. इतना ज्यादा कि पचास से कम लोकसभा सीटों पर सिमटने वाले कांग्रेस भी उन्हें आँख दिखा कर संयोजक तो छोड़िये, किसी पद के लायक भी नहीं समझ रही.

हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह नीतीश कुमार के राजनीतिक पतन की शुरुआत है, लेकिन इतना तो तय है कि सुशासन बाबू और विकास पुरुष की ख्याति पाए नीतीश कुमार के लिए 202 4 के बाद का समय और भी जटिल और कष्टप्रद हो सकती है। नीतीश कुमार एक अनुभवी राजनेता हैं और उन्होंने अतीत में भी कई चुनौतियों का सामना किया है और यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बिहार में राजनीतिक परिदृश्य बहुत अस्थिर है। 

यह संभव है कि नीतीश कुमार इन चुनौतियों से उबर सकें और अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकें, लेकिन, यह भी संभव है कि ये घटनाक्रम नीतीश कुमार के राजनीतिक पतन की शुरुआत हों। समय ही बताएगा कि नीतीश कुमार इन चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं और इनका उनके राजनीतिक करियर पर क्या प्रभाव पड़ता है।

खुद हीं जिम्मेदार

कहने की जरुरत नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है और इसके लिए काफी हद तक वह खुद हीं जिम्मेदार है। निश्चित हीं बिहार के वर्तमान के घटनाक्रम के बाद उनके राजनैतिक पतन की संभावनाएं बढ़ रही हैं। हालांकि नीतीश कुमार का राजनैतिक पतन इतना आसान भी नहीं हैं क्योंकि भाजपा और महागठबंधन में कम से कम बिहार में कोई टक्कर का चेहरा नहीं है. 

अगर आप देखें तो नीतीश कुमार के राजनितिक रूप से कमजोर और अस्थिर चेहरा के पीछे कई अन्य कारण भी है. 

राजद और जेडीयू के बीच बढ़ती दूरी 

इसका सबसे बड़ा कारण राजद और जेडीयू के बीच बढ़ती दूरी भी बहुत कारण है. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच राजनीतिक गठबंधन के बावजूद, दोनों दलों के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। इस दूरी का कारण कई कारक हैं, जिनमें लालू प्रसाद यादव के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप, नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले का असफल होना, और दोनों दलों के बीच चुनावी टिकटों को लेकर हुए विवाद शामिल हैं।

भाजपा का बढ़ता प्रभाव 

इसके अतिरिक्त भाजपा का बढ़ता प्रभाव भी नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है क्योंकि भाजपा के बढ़त के साथ जनता दल यू का बिहार में सिकुड़ना भी बहुत बड़ा कारन है.  बिहार में भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को बिहार में 20 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है, तो भाजपा बिहार की राजनीति में एक प्रमुख दल बन जाएगा। इस स्थिति में नीतीश कुमार की स्थिति कमजोर हो सकती है।

पार्टी में टूट की आशंका

आंतरिक विरोध और पार्टी में टूट की आशंका भी एक प्रमुख कारण है जिसके कारण नीतीश कुमार परेशानी में थे. हाल के दिनों में पार्टी के अंदर कलह और अध्यक्ष का बदला जाना भी  नीतीश कुमार की सरकार की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं।

नीतीश कुमार के राजनैतिक पतन के संभावित परिणामों में निम्नलिखित शामिल हैं:

बिहार में राजनीतिक अस्थिरता: नीतीश कुमार की हार से बिहार में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। इस स्थिति में राज्य में नए चुनाव कराने पड़ सकते हैं।

भाजपा का बिहार में वर्चस्व: भाजपा के बिहार में वर्चस्व बढ़ सकता है। इस स्थिति में राज्य में भाजपा की नीतियों का प्रभाव बढ़ेगा।

राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव: नीतीश कुमार के राजनैतिक पतन से राष्ट्रीय राजनीति में भी बदलाव हो सकता है। इस स्थिति में बिहार की राजनीति भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाएगा।

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