पतझड़ भले हीं खराब मौसम या जीवन में नीरसता का पर्याय बन चुका है, लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नहीं हैं कि जीवन में पतझड़ का आना दुखों के आरंभ से है। पतझड़ में हम उसके इस संकेत को समझने को तैयार नहीं होते हैं कि हर अंत में छिपी होती है नई शुरुआत और हमें आने वाले सुनहरे भविष्य का संकेत छिपा होता है।
जरूरत इस बात की है कि जब जीवन में आए पतझड़, तब उम्मीदों के बीज बोने के लिए आप उत्साह के साथ तैयार हो जाएं।
याद रखें पतझड़ का मौसम हमें यह सिखाता है कि बहार के मौसम को छोड़ना भी ज़रूरी है क्योंकि जीवन का रीत भीं यहीं है। सुख और दुख, धूप और छांव हीं तो जीवन तो फिर बहार के बाद पतझड़ को इतना बदनाम क्यों करना।
पतझड़ तो हमें आता हैं यह सिखाने के लिएकि गिरना भी जीवन का हिस्सा है, पर फिर से खिलना हमारी ताकत है और इसके लिए हमें तैयार रहना है।
याद रखें, पतझड़ के मौसम में हर गिरा हुआ पत्ता याद दिलाता है कि नया मौसम आने वाला है और इसके साथ हीं यह संदेश भी छिपा है कि ज़िंदगी के पतझड़ में भी उम्मीद बची है क्योंकि अब बसंत दूर नहीं और उसके लिए आप तैयार हों जाएं।
किसी कवि ने कहा भी है
"दुख जाने के बाद सुख का
मूल्य और कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला हीं गाता है।"
जीवन का दस्तूर भी यही है कि पेड़ अगर पत्ते छोड़ सकता है, तो हम भी दर्द छोड़ सकते हैं और आने वाले बेहतर कल के लिए आज के अंधियारे से डरना मूर्खता और अधीरता है। याद रखें, हर पतझड़ के बाद हरियाली लौटती है, बस थोड़ा धैर्य रखना होता है।
गिरना कभी भी जीवन में हार नहीं, बल्कि बदलाव की शुरुआत है और जिसे हम जीवन का बंजर समझ रहे हैं, यह बसंत से पहले का पतझड़ है। याद रखें, जीवन में हर मौसम कुछ सिखाने आता है हां हमें उसे समझने को तैयार रहना होगा।
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