नजरिया जीने का: सफलता पाना है लक्ष्य तो फिर इन 6 दुर्गुणों का करें पूर्ण त्याग


षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छिता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।। 

संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ  है  कि जीवन में ऐश्वर्य या उन्नति चाहने वाले पुरुषों को छः दुर्गुणों  पर नियंत्रण रखनी चाहिए या उनका पूर्ण त्याग करनी होगी अन्यथा उनके सफलता में सदा संदेह रहती है. उक्त श्लोक  जिन छः दुर्गुणों की चर्चा  की गई है उनमें शामिल हैं-

 नींद (अधिक सोना), तन्द्रा (उंघना/सुस्ती), भय (डर), क्रोध (गुस्सा), आलस्य (सुस्ती), और दीर्घसूत्रता (किसी काम को टालने या देर करने की आदत).

दोस्तों, भारतीय शास्त्र केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। प्रस्तुत श्लोक आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था।

आज मनुष्य कड़ी मेहनत के बावजूद सफल नहीं हो पाता, क्योंकि उसके मार्ग में ये छह आंतरिक शत्रु खड़े होते हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो यह श्लोक हमें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करता है और हमें यह  बताता है कि बाहर की दुश्मनों के अपेक्षा हमें  पहलेअपने भीतरी दोषों को पहचानना और समाप्त करना होगा।

छह दोषों पर एक नजर आप देंगे तो पाएंगे कि यह सभी दुर्गुण किसी भी सफलता में सबसे बड़े बाधा हैं- नींद, नखरे, डर, गुस्सा, आलस्य, दीर्घसूत्र। 

मतलब: जो मनुष्य धन या तरक्की चाहते हैं, उन्हें इन दुर्गुणों को  सदा के लिए त्याग कर देनी चाहिए-– नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत.

छह दोष (The Six Vices):

निद्रा (Nidra): अधिक सोना, नींद में समय बिताना. अधिक नींद और सुस्ती व्यक्ति की ऊर्जा, समय और अवसर छीन लेती है।समय पर जागना और सजग रहना ही सफलता की पहली सीढ़ी है।

तन्द्रा (Tandra): ऊँघना, सुस्ती, निष्क्रियता.

भयं (Bhayam): डर, भय, जिससे आत्मविश्वास कम होता है. भय हमें प्रयास करने से रोकता है। असफलता का डर, लोगों की राय का डर—ये सब विकास के सबसे बड़े अवरोध हैं।

क्रोधः (Krodhah): गुस्सा, जो स्वभाव और चरित्र पर बुरा असर डालता है. क्रोध बुद्धि का नाश करता है। गुस्से में लिया गया एक निर्णय वर्षों की मेहनत पर पानी फेर सकता है।

आलस्यं (Aalasya): आलस्य, जो लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी कमजोरी है.आलस्य व्यक्ति को सपनों से दूर कर देता है। जो आज टालता है, वह कल पछताता है। 

दीर्घसूत्रता (Deerghasutrata): काम को टालने की आदत, जल्दी होने वाले काम में भी देर लगाना (procrastination). 

यह संक्षेप में हमें बताता है कि:

आलस्य और निद्रा अधिक मात्रा में होने से काम में बाधा आती है।

तन्द्रा से शरीर और मन सुस्त हो जाते हैं।

भय और क्रोध मन को कमजोर और अनियंत्रित बनाते हैं।

अधिक सोच-विचार (दीर्घसूत्रता) से निर्णय लेने में बाधा होती है। आज का काम कल पर छोड़ना, सफलता को हमेशा दूर ही रखता है।

इसलिए, जो व्यक्ति सफल होना चाहता है, उसे इन दोषों को छोड़ना चाहिए।


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