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पांचवां आयुर्वेद दिवस: इस बार का थीम है-कोविड-19 के लिए आयुर्वेद, पाएं विस्तृत जानकारी

इस वर्ष के 'आयुर्वेद दिवस' का आयोजन कोविड-19 महामारी के प्रबंधन में आयुर्वेद की संभावित भूमिका पर केंद्रित होगा। सन् 2016 से प्रति वर्ष धन्वंतरि जयंती के दिन आयुर्वेद दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष यह दिवस 13 नवंबर 2020 को मनाया जायेगा।

आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य आयुर्वेद और उसके अद्वितीय उपचार सिद्धांतों की शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करना है। आयुर्वेद की क्षमता का उपयोग करके रोग और संबंधित मृत्यु दर को कम करने की दिशा में काम करना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम, और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में योगदान के लिए आयुर्वेद की क्षमता का उपयोग करने के साथ-साथ समाज में चिकित्सा के लिये आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना इसके उद्देश्यों में शामिल है। इस प्रकार, आयुर्वेद दिवस, उत्सव और समारोह से अधिक व्यवसाय और समाज के लिए समर्पण का एक अवसर है।

आयुष मंत्रालय ने 5वें 'आयुर्वेद दिवस' को मनाने के लिए विभिन्न गतिविधियों को आयोजित करने का निर्णय लिया है, जिसमें वर्तमान महामारी से संबंधित चिंताओं पर विशेष ध्यान दिया गया है और इस संदर्भ में आयुर्वेद रोग प्रतिरोधक क्षमता निर्माण में कैसे मदद कर सकता है।

इस वर्ष 'आयुर्वेद दिवस' पर 'कोविड-19 महामारी के लिए आयुर्वेद' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया जाएगा। इसका उद्देश्य आयुर्वेद प्रणाली की विभिन्न पहलों के माध्यम से कोविड-19 महामारी को कम करने के बारे में वर्चुअल माध्यम से सूचना प्रसार का एक अवसर है। दुनिया भर के लगभग 1.5 लाख प्रतिभागियों के वेबिनार में भाग लेने की आशा है। आयुष मंत्रालय ने विदेशों में दूतावासों/मिशनों से भी अनुरोध किया है कि वे उपयुक्त गतिविधियों के साथ आयुर्वेद दिवस का आयोजन करें, जिसमें जनता की सहभागिता हो।

वेबिनार के अलावा, आयुर्वेद दिवस को मनाने के लिए विभिन्न अन्य गतिविधियों के आयोजन की भी योजना है। अक्टूबर माह के उत्तरार्ध में बिम्स्टेक (बीआईएमएसटीईसी) और इब्सा (आईबीएसए) देशों के साथ वेबिनार के माध्यम से बातचीत आयोजित की जायेगी। इसके अलावा इस उद्योग के लिए विदेश मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और एक्जिम बैंक के सहयोग से आयुर्वेद उत्पादों के निर्यात पर वेबिनार के माध्यम से संवाद कार्यक्रम की योजना बनाई गई है।

विभिन्न राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश सरकारें आयुर्वेद दिवस आयोजन के एक भाग के रूप में 'कोविड-19 महामारी के लिए आयुर्वेद' विषय पर वेबिनार, रेडियो वार्ता, प्रश्नोत्तरी और स्वास्थ्य शिविर जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से बड़े स्तर पर प्रचार और आयुर्वेद कॉलेजों, आयुर्वेद ड्रग विनिर्माण संघों, आयुर्वेद चिकित्सा संघों, एनएचएम/एनएएम के राज्य पीएमयू और विभिन्न गतिविधियों के लिए रोटरी क्लब और लायंस क्लब जैसे एनजीओ को शामिल करने की भी योजना बनाई जा रही है।

आयुर्वेद, मानवता की मूल स्वास्थ्य परंपरा, केवल एक चिकित्सा प्रणाली नहीं है, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे सहजीवी संबंध की अभिव्यक्ति भी है। यह लिखित प्रमाणों के साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है, जिसमें बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, दोनों पर उचित ध्यान दिया जाता है।

कोरोना ने विश्व को सोशल डिस्टेंसिंग, योग, आयुर्वेद एवं पारम्परिक औषधि आदि के गुणों के बारे में अवगत करा दिया: डॉ. जितेन्द्र सिंह

कोविड ने हमें एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में स्वास्थ्य के महत्व के प्रति जागरूक बनाया है और विश्व को भी सोशल डिस्टेंसिंग, सफाई, स्वच्छता, योग, आयुर्वेद एवं पारम्परिक औषधि आदि के गुणों के बारे में अवगत करा दिया।

केन्द्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एंव अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आज कहा कि कोरोना ने हमें वापस हमारे मूल भारतीय लोकाचार और अभ्यासों की ओर लौटने में सक्षम बनाया है और नमस्ते नये उत्साह के साथ प्रचलन में आ गया है। उन्होंने कहा, कोविड ने हमें एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में स्वास्थ्य के महत्व के प्रति जागरूक बनाया है और विश्व को भी सोशल डिस्टेंसिंग, सफाई, स्वच्छता, योग, आयुर्वेद एवं पारम्परिक औषधि आदि के गुणों के बारे में अवगत करा दिया। अब वे पहले की तुलना में और अधिक इस पर विश्वास करने लगे हैं और योग, आयुर्वेद इत्यादि के प्रति फिर से दिलचस्पी उत्पन्न हो गई है, जो हमेशा से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लिए महत्व का क्षेत्र रहा है। वह भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) में ‘कल्याण के लिए आंतरिक अभियांत्रिकी-प्रौद्योगिकियां’ पर सद्गुरु के साथ एक सत्र को संबोधित कर रहे थे।


डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि विशेष रूप से लॉकडाउन अवधि के दौरान, कई लोगों ने न केवल अपनी प्रतिरक्षण स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बल्कि एकाकीपन और व्यग्रता की यातनाओं से उबरने के लिए भी योग का सहारा लिया। उन्होंने कहा, कोविड के बाद के युग का एक परिणाम यह होगा कि कोरोना वायरस के खत्म हो जाने के बाद भी, जो लोग लॉकडाउन अवधि के दौरान योग के अभ्यस्त हो गए हैं, वे संभवतः अपने पूरे शेष जीवन काल में इसका अभ्यास करते रहेंगे और इस प्रकार, इसे एक जीवन पर्यन्त वरदान के रूप में बदल देंगे।


डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आम आदमी के जीवन में सुगमता लाना सुशासन का अंतिम लक्ष्य है और उन्होंने सद्गुरु के इस कथन का पुरजोर समर्थन किया कि प्रसन्न और प्रफुल्लित प्रशासक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रसन्नता का संचार करेंगे।


सद्गुरु ने अपने संबोधन में कहा कि भारत हमेशा से बिना किसी कठोर आस्था प्रणाली के साथ संतों की भूमि रहा है। इसमें कभी भी जीत की संस्कृति नहीं रही, बल्कि हमेशा से यह अन्वेषण की भूमि रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने गणतंत्र के फलने-फूलने के लिए इस लोकाचार को अनिवार्य रूप से बनाए रखना चाहिए।


सद्गुरु ने कहा कि कोरोना वायरस के लिए एक सचेत जिम्मेदार व्यवहार की आवश्यकता होती है और यह ज्ञान आम आदमी को अधिक लाभ पहुंचाने हेतु नेताओं और प्रशासकों के लिए और भी ज्यादा प्रासंगिक है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम.एन. भंडारी, आईआईपीए के उपाध्यक्ष श्री शेखर दत्त, आईआईपीए के निदेशक श्री एस.एन. त्रिपाठी, सुरभि पांडेय, अमिताभ रंजन, नवलजीत कपूर तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं आईआईपीए के संकाय ने कार्यक्रम में भाग लिया।

हेपेटाइटिस के खतरे से हर दिल्लीवासी की सुरक्षा के लिए दिल्ली सरकार कृतसंकल्प: सिसोदिया

Hepatitis Day’s virtual event, Delhi Deputy Chief Minister Manish Sisodia says Delhi Government is committed

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि हेपेटाइटिस के खतरे से हर दिल्लीवासी की सुरक्षा के लिए दिल्ली सरकार कृतसंकल्प है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में हमें स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होना पड़ेगा। श्री सिसोदिया ने स्कूलों के नए पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य जागरूकता पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि हमें भौतिक और आर्थिक विषयों के साथ ही अपने 'शरीर' और 'मन' पर भी विशेष ध्यान देना जरूरी है।

दिल्ली सचिवालय में आज हेपेटाइटिस दिवस का ई-समारोह का आयोजन हुआ। इसमें विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ के अलावा 31 स्कूलों के 700 बच्चों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंसेस ने यह आयोजन किया। आईएलबीएस के वसंत कुंज स्थित परिसर के स्टाफ भी इस ई-समारोह में शामिल हुए।

श्री सिसोदिया ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग और आईएलबीएस की टीम ने 23 साल से हेपेटाइटिस के खिलाफ जोरदार लड़ाई चलाई है। इसके लिए मेडिकल साइंस संबंधी महत्वपूर्ण कार्यों के साथ स्कूलों में जागरूकता के जरिये एक मिशन के रूप में अभियान चलाया है। इसके कारण काफी लोगों की जिंदगी बचाने में सफलता मिली है।

ई-समारोह में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि लीवर हमारे शरीर का प्रमुख अंग है। लेकिन खानपान में लापरवाही से लीवर खराब होता है जो अन्य बड़े रोगों का कारण है। श्री जैन ने दुनिया का पहला प्लाज्मा बैंक स्थापित करने के लिए आईएलबीएस टीम को बधाई दी।

कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव, स्वास्थ्य एवं वित्त विभाग के प्रधान सचिव संदीप कुमार, परिवार कल्याण निदेशक डॉ. मोनिका राणा तथा आईएलबीएस के निदेशक एसके सुरीन भी शामिल हुए।

वैज्ञानिकों ने अल्सर पैदा करने वाले गैस्ट्रिक रोगाणु का पता लगाने के लिए नया "ब्रेथप्रिंट" खोजा

सांस छोड़ना जल्द ही उस बैक्टीरिया का पता लगाने में मदद कर सकता है जो पेट को संक्रमित करते हुए गैस्ट्रेटिस के विभिन्न रूप और अंततः गैस्ट्रिक कैंसर पैदा करता है। वैज्ञानिकों ने सांस में पाया जाने वाला "ब्रेथप्रिंट" नामक एक बायोमार्कर की मदद से उस बैक्टीरिया का शीघ्र पता लगाने का एक तरीका खोज निकाला है, जो पेप्टिक अल्सर का कारण बनता है।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान एस. एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता में डॉ. माणिक प्रधान एवं उनकी शोध टीम ने हाल ही में हेलिकोबैक्टर पाइलोरी का पता लगाने के लिए मानव द्वारा छोड़े गये सांस में अर्ध-भारी पानी (एचडीओ) में इस नए बायोमार्कर को देखा है। इस टीम ने मानव सांस में विभिन्न जल आण्विक प्रजातियों के अध्ययन का उपयोग किया है।

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 इसे मानव द्वारा छोड़े गये सांस में अलग-अलग जल समस्थानिकों का पता लगाने की ‘ब्रीथोमिक्स’ विधि भी कहा जाता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित तथा तकनीकी अनुसंधान केंद्र (टीआरसी) द्वारा वित्त पोषित यह शोध हाल ही में अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (एसीएस) के ‘एनालिटिकल केमिस्ट्री’ जर्नल में प्रकाशित हुआ था।

मोतियाबिंद: INST वैज्ञानिकों ने किया सरल, सस्ती और बिना ऑपरेशन के इलाज की तकनीक विकसित

हेलिकोबैक्टर पाइलोरी, एक आम संक्रमण जो जल्दी इलाज नहीं कराये जाने पर गंभीर हो सकता है, का आमतौर पर पारंपरिक एवं दर्दनाक एंडोस्कोपी तथा बायोप्सी परीक्षणों, जोकि प्रारंभिक निदान एवं फॉलोअप के लिए उपयुक्त नहीं हैं, द्वारा पता लगाया जाता है।

धैर्य और आत्मविश्वास का नहीं छोड़े दामन.... मिलेगी विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता

हमारा गैस्ट्रोइन्स्टेस्टाईनल (जीआई) ट्रैक शरीर में पानी के उपापचय (मेटाबोलिजम) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रकृति में पानी चार समस्थानिकों के रूप में मौजूद है। यह माना जाता है कि हमारे जीआई ट्रैक में किसी भी प्रकार का खराब या असामान्य जल-अवशोषण विभिन्न गैस्ट्रिक विकारों या अल्सर, गैस्ट्रेटिस, एरोशन तथा सूजन जैसी असामान्यताओं से जुड़ा हो सकता है। लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि करने के लिए कोई स्पष्ट प्रायोगिक साक्ष्य नहीं मिला है।

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इस टीम के प्रयोगों ने व्यक्ति के पानी के सेवन की आदत के संदर्भ में मानव शरीर में अनोखे समस्थानिक-विशिष्ट जल- उपापचय के प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाए हैं। उन्होंने दिखाया है कि मानव श्वसन की प्रक्रिया के दौरान छोड़े गये जलवाष्प के अलग-अलग समस्थानिक विभिन्न गैस्ट्रिक विकारों से दृढ़ता के साथ जुड़े होते हैं।

Inspiring Thoughts: हम काम की अधिकता से नहीं, उसे बोझ समझने से थकते हैं.. बदलें इस माइंडसेट को

डॉ. प्रधान, पीएचडी छात्रों श्री मिथुन पाल एवं सुश्री सयोनी भट्टाचार्य, वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत मैती के नेतृत्व वाले इस अनुसंधान समूह ने  एएमआरआई अस्पताल, कोलकाता के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत चौधरी के सहयोग से यह दिखाया कि जीआई ट्रैक्ट में असामान्य जल अवशोषण के समस्थानिक हस्ताक्षर विभिन्न विकारों की शुरुआत का पता लगा सकते हैं।

Inspiring Thoughts: डिप्रेशन और फ़्रस्ट्रेशन पर काबू पाने के लिए पाएं नेगेटिव माइंडसेट से छुटकारा

इस टीम ने पहले ही विभिन्न गैस्ट्रिक विकारों तथा एच. पाइलोरी संक्रमण के निदान के लिए एक पेटेंट प्राप्त ‘पायरो-ब्रेथ’ उपकरण विकसित किया है, जिसके प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही है।(Source: PIB)

मोतियाबिंद: INST वैज्ञानिकों ने किया सरल, सस्ती और बिना ऑपरेशन के इलाज की तकनीक विकसित

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत आने वाले एक स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने गैर-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (गैर-दाहक या उत्तजेक दवा)-एनएसएआईडी एस्पिरिन से नैनोरोड विकसित किया है, जो एक लोकप्रिय दवा है जिसका उपयोग दर्द, बुखार, या सूजन को कम करने के लिए किया जाता है और यह मोतियाबिंद के खिलाफ एक प्रभावी गैर-आक्रामक छोटे अणु-आधारित नैनोथेरेप्यूटिक्स के रूप में भी पाया गया.

मोतियाबिंद अंधेपन का एक प्रमुख रूप है जो तब होता है जब हमारी आंखों में लेंस बनाने वाले क्रिस्टलीय प्रोटीन की संरचना बिगड़ जाती है, जिससे क्षतिग्रस्त या अव्यवस्थित प्रोटीन एकत्र होकर एक और नीली या भूरी परत बनाते हैं, जो अंततः लेंस की पारदर्शिता को प्रभावित करता है. इस प्रकार, इन समुच्चयों के गठन के साथ-साथ रोग की प्रगति के प्रारंभिक चरण में रोकना मोतियाबिंद की एक प्रमुख उपचार रणनीति है, और इस कार्य के लिए सामग्री मोतियाबिंद की रोकथाम को सस्ती और सुलभ बना सकती है.

जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री बी में प्रकाशित उनका शोध एक सस्ते और कम जटिल तरीके से मोतियाबिंद को रोकने में मदद कर सकता है. उन्होंने स्व-निर्माण की एंटी-एग्रीगेशन क्षमता का उपयोग मोतियाबिंद के खिलाफ एक प्रभावी गैर-प्रमुख छोटे अणु-आधारित नैनोटेराप्यूटिक्स के रूप में किया है.एस्पिरिन नैनोरोड क्रिस्टलीय प्रोटीन और इसके विखंडन से प्राप्त विभिन्न पेप्टाइड्स के एकत्रीकरण को रोकता है, जो मोतियाबिंद बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

 वे जैव-आणविक संबंधों के माध्यम से प्रोटीन/पेप्टाइड के एकत्रीकरण को रोकते हैं, जो बीटा-टर्न जैसे क्रिस्टलीय पेप्टाइड्स की संरचना में बदल देते हैं, जो कॉइल्स (लच्छे) और कुंडल में अमाइलॉइड बनने के लिए जिम्मेदार होते हैं. ये क्रिस्टलीन, और क्रिस्टलीन व्युत्पन्न पेप्टाइड समुच्चय के एकत्रीकरण को रोककर मोतियाबिंद बनने में रोकने के लिए पाए गए थे. उम्र बढ़ने के साथ और विभिन्न परिस्थितियों में, लेंस प्रोटीन क्रिस्टलीन समुच्चय नेत्र लेंस में अपारदर्शी संरचनाओं का निर्माण करता है, जो दृष्टि को बाधित करता है और बाद में मोतियाबिंद का कारण भी बनता है. 

संचित अल्फा-क्रिस्टलीन प्रोटीन और क्रिस्टलीन व्युत्पन्न पेप्टाइड समुच्चय वृद्ध और मोतियाबिंद मानव लेंस में लक्षित असहमति को मोतियाबिंद बनने की रोकथाम के लिए एक व्यवहार्य चिकित्सीय रणनीति माना जाता है.  एस्पिरिन नैनोरोड्स आणविक स्व-जमा होने की प्रक्रिया का उपयोग करके उत्पादित किए जाते हैं, जो आम तौर पर नैनोकणों के संश्लेषण के लिए उपयोग किए जाने वाले उच्च लागत और श्रमसाध्य भौतिक तरीकों की तुलना में एस्पिरिन नैनोरोड उत्पन्न करने के लिए कम लागत और उच्च-स्तरीय तकनीक से होता है. 

आणविक गतिकी (एमडी) अनुकरण पर आधारित कम्प्यूटेशनल अध्ययन एस्पिरिन के एंटी-एग्रीगेशन व्यवहार और आणविक पेप्टाइड्स और एस्पिरिन के बीच प्रोटीन (पेप्टाइड) की प्रकृति के आणविक तंत्र की जांच करने के लिए किए गए थे. यह देखा गया कि पेप्टाइड-एस्पिरिन (अवरोधक) अंतःक्रियाओं ने पेप्टाइड्स को द्वितीयक संरचनाओं को बीटा-टर्न से बदल दिया, जो एमाइलॉयड्स बनने के लिए जिम्मेदार हैं, विभिन्न कॉइल्स (लच्छे) और कुंडल (हेलिक्स) में, इसके एकत्रीकरण को भी रोकते हैं.इस अनुकरण ने एस्पिरिन के मॉडल मोतियाबिंद पेप्टाइड्स द्वारा अमाइलॉइड जैसे फाइब्रिल गठन के लिए एक संभावित अवरोधक के रूप में कार्य करने की क्षमता को उजागर किया है.

कई प्राकृतिक यौगिकों को पहले ही क्रिस्टलीन एकत्रीकरण के लिए संभावित एकत्रीकरण अवरोधक के रूप में चिह्नित किया गया है, लेकिन इस दिशा में गैर-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (गैर-दाहक या उत्तजेक दवा)-एनएसएआईडी जैसे एस्पिरिन उपयोगिता एक नया प्रतिमान भी स्थापित करेगी. इसके अलावा, अपने नैनो-आकार के कारण एस्पिरिन नैनोरोड्स जैव उपलब्धता, दवा की गुणवत्ता, कम विषाक्तता आदि में सुधार करेंगे. इसलिए, आई-ड्रॉप के रूप में एस्पिरिन नैनोरोड्स मोतियाबिंद के इलाज के लिए एक प्रभावी और व्यवहार्य विकल्प के रूप में कार्य करने वाला है.

प्रयोग करने में आसान और कम लागत वाले इस वैकल्पिक उपचार पद्धति से विकासशील देशों में उन रोगियों को लाभ होगा जो मोतियाबिंद के महंगे उपचार और शल्यचिकित्सा का खर्च वहन नहीं कर सकते. 
(स्त्रोत-पीआईबी )