Point Of View : सही लक्ष्य का चयन है सफलता का राज, लक्ष्य सेट करते समय रखे इन बातों पर ध्यान

Inspiring Thoughts Goal Motivational Quotes for Success
Point Of View : लक्ष्य का सही चयन करना और उसकी प्राप्ति के लिए मेहनत और निष्ठा महत्वपूर्ण हैं। सही लक्ष्यों का चयन करके, आप अपने जीवन में सफलता की दिशा में बढ़ सकते हैं।
 यह लक्ष्य ही हैं जो हमें अपने जीवन में अपने वजूद और वजह का आधार और बुनियाद प्रदान करता है.  लक्ष्य निर्धारण हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण क्यों है, यह सबसे आम प्रश्न है जो हमारे मन में उठता है. 

सही लक्ष्य का चयन कैसे करें:

स्वयं अध्ययन (Self-Reflection): अपनी प्राथमिक रुचियों, प्राकृतिक क्षमताओं का हमेशा आकलन करें क्योकि खुद के  अतिरिक्त कोई और आपका मुख्यांकन उतना अच्छा नहीं कर जायेगा जितना आप अपने अपने आप को करेंगे.  आपके इंटरेस्ट्स, पैशन, और क्षमताओं को पहले पहचाने और समझकर लक्ष्य तय करें।

स्वयं को समझें (Know Yourself): आखिर आपके स्वभाव, मूल्य, और लक्ष्यों को आपके अतिरिक्त कोई और उतना ईमानदारी से कैसे कर सकता है जितना ईमानदारी आप आप अपनी विशेषताओं और जरूरतों को समझेंगे । आपके स्वाभाविक प्रवृत्तियों और मूल्यों के साथ मेल खाते हुए लक्ष्य चयन करें।

स्वयं में योग्यता की पहचान (Identify Your Competence): आपकी क्षमताओं, योग्यताओं, और दक्षताओं को पहचानें और उन्हें आपके लक्ष्य के साथ मेल करने का प्रयास करें।

आधुनिकता और आगामी चुनौतियों का सामना (Relevance and Future Challenges): आपके लक्ष्य का सामर्थ्य और उसकी महत्वपूर्णता की जांच करें। आपके लक्ष्यों को आधुनिक या आगामी चुनौतियों के साथ मेलाने का समर्थन करना महत्वपूर्ण है।

दीर्घकालिक और संक्षेपिक लक्ष्यों की तैयारी (Short-term and Long-term Goals): छोटे और बड़े लक्ष्य तय करें। दीर्घकालिक लक्ष्य आपकी दिशा दिखा सकते हैं, जबकि संक्षेपिक लक्ष्य आपको निरंतर मोटीवेट कर सकते हैं।

मान्यता और संतोष (Recognition and Satisfaction): आपके लक्ष्यों की प्राप्ति पर मान्यता और संतोष को महत्वपूर्ण बनाए रखें।

सही संसाधन (Right Resources): अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सही संसाधनों का चयन करें, जैसे कि शिक्षा, अनुभव, और मेंटरशिप।

स्वतंत्रता (Autonomy): आपके लक्ष्य और उनकी प्राप्ति को लेकर आपकी स्वतंत्रता बनाए रखें।

नियमित मूल्यांकन (Regular Evaluation): अपने प्रगति को नियमित रूप से मूल्यांकित करें और जरूरत के हिसाब से अपने लक्ष्यों में सुधार करें।

लक्ष्य को पाने के लिए आपके द्वारा की जाने वाले प्रयासों को नियमित मूल्याङ्कन भी जरुरी है. इससे न केवल आपके रणनीति को जानने और समझने में मदद मिलेगी बल्कि आप परिणामों और फीडबैक पर भी नजर रख सकते हैं. यहां कुछ अतिरिक्त युक्तियां दी गई है जो आपके लक्ष्य को पाने में मदद कर सकती है-
  • अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय सीमा निर्धारित करें।
  • अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाएं।
  • अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधनों की पहचान करें।
  • अपनी प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करें।
  • अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दूसरों से मदद और समर्थन प्राप्त करें।

याद रखें दोस्तों, अपने जीवन को एक वास्तविक कारण से सक्रिय रखने के लिए, आपको अपने जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करना होगा। अपने जीवन में किसी भी मंजिल के लिए लक्ष्य निर्धारित किए बिना, आप अपने जीवन में अपनी सफलता की जांच नहीं कर सकते।


जीवन में एक लक्ष्य का होना ही आपके लिए आपके जीवन में आकर्षण पैदा करने के लिए काफी है. लक्ष्य का निर्धारण ही आपके ध्यान को निर्देशित करने में मदद करता है और आपको जीवन में उस गति को बनाए रखने में मदद करता है... यह लक्ष्यों की सेटिंग है जो आपको आपके जीवन का रोड मैप प्रदान करती है... अपना ध्यान केंद्रित करें और आत्म-निपुणता की भावना को बढ़ावा दें।

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ध्यान रखें,  जीवन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण उपहार है, इस तथ्य के बावजूद कि यह पूरी तरह से एक मुश्किलों  से भरा खेल है जो काफी चुनौतियों से भरी पड़ी है... 

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जीवन बहुत महत्वपूर्ण है और यह कीमती है और इसका उपयोग करने का एक कारण होना चाहिए. अपने जीवन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करना अंतिम और वास्तविक कारण है जो आपको अपने जीवन में प्रेरित और ऊर्जावान बनाए रखता है.

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याद रखें लक्ष्य वह अंतिम कारक है जो आपको जीने का कारण प्रदान करता है और यह आपको अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है…।

आराम की तुम भूल-भुलैया में न भूलो 

सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो 

अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलों 

उठो छलांग मार के आकाश को छू लो

तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के 

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के.

-प्रदीप 


कहने की जरुरत नहीं कि हम सभी के जीवन में काफी कुछ हासिल करना एक चुनौती की तरह है और निश्चित ही हमार सीमित समय   और साधनों के अंतर्गत विषम परिस्थितियों में काम करते हुए उसे प्राप्त करने की चुनौती होती है. 

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हमें न केवल व्यक्तिगत, बाकि प्रोफेशनल और भी लक्ष्यों को हासिल करने होते हैं जिनके सामाजिक और पारिवारिक सरोकारों से सम्बंधित  कई लक्ष्यों को प्राप्त करना है ... जाहिर है कि  इसके लिए सम्बंधित लक्ष्य का  निर्धारित करना अंतिम उपाय है जो यह सुनिश्चित करता है कि हम अपना अधिकतम लाभ उठा सकें जीवन और पूरी तरह से जियो!

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विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है..."यदि आप एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, तो इसे एक लक्ष्य से बांधें, न कि लोगों या चीजों से।"...निश्चित रूप से यह जीवन का अंतिम सत्य है कि जीवन बिना सेटिंग के लक्ष्य का कोई महत्व नहीं होता...

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अपने जीवन में हर उद्देश्य के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित किए बिना, आप किसी विशेष गंतव्य के लिए अपने प्रयासों की सफलता को कैसे माप सकते हैं। एक लक्ष्य निर्धारित करना अंतिम कारक है जो आपको उन लक्ष्यों को प्राप्त करने और पार करने के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए प्रेरित करता है जो आपके सर्वोत्तम जीवन को संभव बनाते हैं।

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यह आपके जीवन का लक्ष्य है जो आपके जीवन के लिए एक ठोस और वास्तविक कारण प्रदान करता है। जैसे कि आपके जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करने के बाद, आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने आप में एक भूख पैदा करेंगे। अपने जीवन की हर लड़ाई में आपको एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और तभी आप अपने लक्ष्य के लिए अपने आप में एक मजबूत जुनून पैदा कर सकते हैं।



Point Of View : भगवान राम के जीवन से सीखें-जीवन की चुनौतियों को स्वीकार एवं सामना करने की कला

 



Point Of View राम नवमी का पावन पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाते हैं.  जो इस साल अप्रैल 17 , 2024 को मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम और माता लक्ष्मी ने सीता के रूप मे अवतार लिया था। जिस दिन श्रीहरि ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया था, उस दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी और इसलिए इस तिथि को राम नवमी के रूप में मनाई जाती है।
 इस दिन चैत्र नवरात्रि का समापन भी होगा. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुण्य तिथियों में से एक माना जाता है। भगवान राम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है, उनका जीवन कठिनाइयों और त्याग से भरा था। 14 वर्ष का वनवास, प्रिय पत्नी सीता का अपहरण, रावण के साथ युद्ध - इन सबके बावजूद उन्होंने धैर्य, साहस और नैतिकता का परिचय दिया। 

भगवान राम का जीवन  फूलों का सेज नहीं बल्कि काँटों का ताज था लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जीवन के उच्च  मर्यादाओं का पालन करते है मर्यादा पुरुषोतम  राम के रूप मे पूजा किए जाते हैं। जीवन मे चुनौतियों का आना निश्चित होता है लेकिन उनके सामने नतमस्तक हो जाना कायरता है। आइए हम भगवान राम के जीवन से सीखते हैं कि कैसे इन चुनौतियों को स्वीकार कर उनका सामना किया जाए।

 1. कर्म पर विश्वास:

भगवान राम ने सदैव अपना कर्म निष्ठापूर्वक किया, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। उन्होंने हमें सिखाया है कि कर्म का फल हमें अवश्य मिलेगा, इसलिए हमें सदैव कर्म करते रहना चाहिए। आपको याद होगा कि राज्याभिषेक से ठीक एक दिन पहले, श्री राम को 14 साल के वनवास के लिए जाने का आदेश मिला। भगवान राम ने बिना किसी शिकायत के, प्रसन्न भाव से वह जीवन को वैसे ही स्वीकार कर अपनी नई यात्रा पर निकल पड़ते हैं।

2. धैर्य और संयम:

राजमहल मे रहने वाले भगवान राम के सामने वनवास के जीवन चुनौतियों से भरी रही होंगी इसमे किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं। अपने पत्नी सीता और भरत लक्ष्मण के साथ वनवास के दौरान अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद भगवान राम ने कभी भी धैर्य और संयम नहीं खोया। वनवास के दौरान मिलने वाले विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के दौरान उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में धैर्य और संयम बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

3. साहस और दृढ़ संकल्प:

रावण के साथ युद्ध में भगवान राम ने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है।

4. सत्य और न्याय का मार्ग:

जीवन में पैदा होने वाले विपरीत परिस्थितियों के सामने भी कभी भी भगवान राम ने सत्य और न्याय का मार्ग नहीं त्याग। सत्य के मार्ग पर चलना हमेशा से काँटों के पथ पर चलने के समान होता है और भगवान राम ने हमें सिखाया है कि जीवन में सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए, चाहे इसके लिए हमें कितने भी त्याग क्यों न करने पड़ें।

5. क्षमा और करुणा:

मर्यादा पुरुषोतम राम भगवान राम क्षमा और करुणा के प्रतीक थे और उन्होंने अपने शरण मे आने वाले आगंतुकों को कभी भी मना नहीं किया। यहाँ तक कि उन्होंने रावण के भाई विभीषण को क्षमा करने मे विलंब नहीं किया। सच तो यह है कि जीवन में क्षमा और करुणा का क्या महत्व है, यह हमे भगवान राम के जीवन से सीख सकते हैं।

6. मित्रता और सेवा:

भगवान राम ने हनुमान और सुग्रीव जैसे मित्रों का साथ पाकर हमें सिखाया है कि जीवन में सच्ची मित्रता का क्या महत्व है। उन्होंने शबरी, निषादराज आदि की सेवा करके हमें सिखाया है कि दूसरों की सेवा करने से जीवन सार्थक होता है।

7. विनम्रता और सरलता:

राजकुमार होने के बावजूद भगवान राम सदैव विनम्र और सरल रहे। उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में विनम्रता और सरलता का गुण अपनाना चाहिए। उन्होंने राजाओं से लेकर साधुओं और यहाँ तक कि जानवरों तक सभी के साथ समान व्यवहार किया।

Point Of View : ऐसे हीं नहीं पुकारते हैं भक्त प्रभु हनुमान को संकट मोचन"

Lord Hanuman and Teaching Sankatmochak Hanuman Jayanti

Point Of View : भगवान हनुमान सबसे प्रसिद्ध देवताओं में से एक हैं और ऐसी मान्यता है कि वह आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। कहा जाता है कि प्रभु हनुमान इस घोर कलयुग मे एक मात्र देवता हैं जो अपने भक्तों के द्वारा कम पूजन पर भी आसानी से उनका कल्याण करते हैं।
वैसे तो भगवन हनमान जी को भक्तगण अनगिनत नामों से पुकारते हैं,  लेकिन उन सबमे जो सबसे लोकप्रिय है वह है "संकट मोचन". ऐसी मान्यता है कि भगवन हनुमान जो खुद प्रभु राम के सेवक हैं, हमेशा से संकट में पड़ें लोगों को उबारने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं.

आप रामायण या रामचरित मानस का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि प्रभु हनुमान न केवल भगवान् राम बल्कि सभी चरित्रों चाहे वह माता सीता हो, लक्ष्मण हो, विभीषण हो, सुग्रीव हो या अन्य चरित्र। हनुमान हमेशा से उन्हें संकटों से निकालने में हमेशा आगे रहे हैं और यही वजह है कि अपने भक्तों में भगवन हनुमान संकटमोचन नाम से अधिक प्रिय भी हैं. मान्यता भी यही है कि सभी के संकट को हरने वाले भगवान् हनुमान इस घोर कलयुग में सबसे आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर भी करते हैं.

भगवान् राम के सेवा के लिए तो प्रभु हुनमान हमेशा तैयार रहते हैं. फिर वह चाहिए रावण द्वारा सीता माता का हरण किये जाने पर लंका में उनका पता लगाना हो या रावण के साथ युद्ध का प्रसंग हो, भगवन हनुमान सदैव तत्पर रहते हैं. 

अपने बड़े भाई बालि द्वारा से प्रताडित होकर सुग्रीव जहाँ पहाड़ों की कंदराओं में जीवन काट रहे थे. बड़े भाई बालि के भय से चिप कर जीवन गुजरने किए लिए विवश सुग्रीव को भगवन हनुमान ही इस संकट से निकलते हैं. सुग्रीव से भगवन राम की मित्रता करने वाले हनुमान ही हैं जो बालि का वध कर सुग्रीव को राज पाट दिलवाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. 

लंकाधिपति रावण द्वारा ठुकराए गए उसके भाई विभीषण को संकट के क्षण में भगवन हनुमान ही निकलते हैं. पहले भगवन राम से मित्रता और फिर विभीषण को लंका का राजा बनाने में हनुमान प्रमुख भूमिका निभाते हैं. 

कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण ने शनि देव को अपने दरबार में उलटा लटका कर बंधक बना लिया था. भगवन शनि देव उस समय खुद संकट में थे क्योंकि रावण के जाल से शनिदेव का निकलना आसान नहीं था. ऐसी मान्यता है कि भगवन हनुमान ने ही शनिदेव को उस संकट से उबारा था. आज भी यह कहा जाता है कि भगवन हनुमान की पूजा करने वाले भक्तों को शनि के प्रकोप से शांति मिलती है. 

ऐसे अनगिनत प्रसंग रामायण और रामचरित मानस में आपको मिलेंगे जो यह प्रमाणित करता है कि भगवन हनुमान हमेशा से आपदाग्रस्त या किसी संकट में रहने वाले चरित्रों को संकट से निकलने में सबसे आगे रहते हैं और यही कारण है कि भगवान् हनुमान हमेशा अपने भक्तों के संकट को दूर करने में तत्पर रहते हैं और इसीलिए भक्तगण उन्हें संकटमोचन के नाम से पुकारते हैं. 

Point Of View : युवा भगवान राम के जीवन से सीखें -आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज की जरूरत


आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज आज के युवाओं के लिए सबसे जरूरी  है जो न केवल उन्ही सफलता के लिए प्रेरित करती है बल्कि इससे वे इस संबंध मे भगवान राम की शिक्षाओं को अपनाकर, एक ऐसा रास्ता बना सकता है जो न केवल व्यक्तिगत सफलता की ओर ले जाता है बल्कि बड़े पैमाने पर समाज और दुनिया की भलाई की ओर भी ले जाता है।

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम का जीवन और उनका त्याग हमेशा से  लोगों के लिए आदर्श रहा है। जीवन मे तमाम उत्तार चड्डाव और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भगवान राम ने कभी भी रिश्तों के प्रति श्रद्धा, प्रेम और स्नेह का साथ कभी नहीं छोड़ा। 

भगवान राम: प्रेरणा श्रोत

सच तो यह है कि भगवान राम  का जीवन आज के युवाओं के लिए प्रेरणा श्रोत है जो जीवन मे किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में लचीलापन, परंपरा और अनुकूलनशीलता के बीच नाजुक संतुलन और आत्मनिरीक्षण की शक्ति  को  प्राप्त करने और उसे खुद पर अनुशासन के रूप के लागू करने के लिए तैयार करती है।

आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज

 भगवान राम का जीवन हमें खासकर आज के युवाओं को यह सिखाता है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और आध्यात्मिक चेतना प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

आप अगर भगवान राम  के जीवन को गंभीरता से देखेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने ने अपने जीवन में अनेक बार आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज की  और अपने जीवन के उद्देश्य और मायने को समझने का प्रयास किया। लोगों  को जीवन और धर्म का उपदेश देते हुए भी मर्यादा पुरुषोतम राम ने वनवास के दौरान उन्होंने ऋषि-मुनियों से ज्ञान प्राप्त करने का कोई मौका नहीं जाने दिए। 

स्वयं की गहन खोज

आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज के लिए भगवान राम की यात्रा केवल एक बाहरी खोज नहीं है, बल्कि स्वयं की गहन खोज है जिसके लिए वह जीवन मे आने वाले हर किसी से कुछ भी सीखने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। जीवन मे विभिन्न विपरीत परिस्थितियों  से निबटने के दौरान भी कभी भी वह धैर्य नहीं खोते  हैं साथ ही उनके निर्णय गहन आत्मनिरीक्षण और अपने कर्तव्यों के प्रति गहन जागरूकता द्वारा निर्देशित होते हैं।

 निरंतर विकर्षणों और बाहरी प्रभावों के युग में, रामायण आज के युवाओं को आत्मनिरीक्षण के लिए क्षण निकालने के लिए प्रेरित करती है। स्वयं को, अपनी प्रेरणाओं को, और व्यक्तिगत विकल्पों के प्रभाव को समझना एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया बन जाती है जो अधिक उद्देश्यपूर्ण और पूर्ण जीवन की ओर ले जा सकती है।


Point Of View : स्वयं पर विश्वास करना सीखें, आपके भीतर की क्षमता, सामने की समस्या से ज्यादा ताकतवर है

Point Of View :  प्रकृति ने हम सभी को अपने आप में बहुत ज्यादा ताकत, सूझबूझ और अपार संभावनाएं दी हैं। विश्वास करें, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर ऊर्जा का भण्डार छुपा है और हमें सिर्फ इस पर विश्वास करना है कि  हमारे अंदर की क्षमता और शक्ति के सामने समस्या और बाधा कुछ भी नहीं है। Point Of View  एक ऐसा हीं मंच है जो आपके अंदर की आग को जलाने की कोशिश करती है जो क्योंकि आपके अंदर की आग सबसे बड़ी चीज है। 

एक बार अगर हम खुद पर और अपनी अंदर छुपे सामर्थ्य पर विश्वास करना अगर सीख लें तो फिर हम सब कुछ कर सकते हैं। इस लेख के माध्यम से आप सीखेंगे कि कैसे अपनी क्षमता और ऊर्जा पर विश्वास किया जाए ताकि हम जीवन के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर कर सकें।

अपनी क्षमता पर विश्वास करना स्वयं से बात करने की प्रक्रिया है जो आत्म संदेह को दूर करने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए आवश्यक शर्त है।

 हम पड़ाव को समझे मंज़िल

 लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

 वतर्मान के मोहजाल में-

आने वाला कल न भुलाएँ।

 आओ फिर से दिया जलाएँ।

-अटल बिहारी वाजपेयी


हम समस्याओं और बाधाओं को और  भी विकराल बनाकर देखने लगते है जो  खुद को कम  आंकने की प्रक्रिआ का आरम्भ हो जाता है, जबकि जरुरी यह है कि उसके बदले में, अपने भीतर छिपी संभावनाओं और संभावनाओं को देखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए  जो इन बाधाओं को कुचलने में  आपका व्यापक हथियार हैं।

Inspiring  Thoughts: आपकी प्रसन्ता में छिपा  है जीवन की सफलता का रहस्य.... 

इस संदर्भ में रॉय टी. बेनेट के सुंदर उद्धरण को याद रखें "अपने आप पर विश्वास करें। आप जितना सोचते हैं उससे कहीं अधिक बहादुर हैं, आप जितना जानते हैं उससे कहीं अधिक प्रतिभाशाली हैं, और आप जितना सोचते हैं उससे कहीं अधिक सक्षम हैं। ”

धैर्य और आत्मविश्वास का नहीं छोड़े दामन.... मिलेगी विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता

कहने की जरूरत नहीं है कि मनुष्य इस अजीब सच से पीड़ित है कि वह जानता तो सही है लेकिन करता गलत है.... आप खुद पर और अपने  आस  पास के लोगों पर नजर डालें तो शायद यही पाएंगे....  और इसलिए हम बाधाओं से पहले अपनी क्षमता को अनदेखा कर देते हैं।

हमें अनंत क्षमता प्रदान करने में प्रकृति ने हमारे बीच कोई पक्षपात नहीं किया है। हम सभी के पास ऊर्जा और संभावनाओं के साथ महान क्षमता है और यह केवल हम ही हैं जो हमारी क्षमता और ऊर्जा की सीमा निर्धारित करते हैं। हां, बाधाओं और कठिनाइयों का महिमामंडन करना और कुछ नहीं बल्कि हमारी क्षमता की सीमा तय करना है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,

तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,

तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,

अब इससे अच्छा कोई न मौका है।

-नरेंद्र वर्मा


Inspiring Thoughts: साहस को अपनाएँ... सफलता की कहानी खुद लिखें...


इस तथ्य पर विश्वास करें कि जैसे ही आप अपने मन में यह तथ्य पैदा करते हैं कि आपके पास किसी समस्या का समाधान है या आप किसी भी कठिन परिस्थिति को संभाल सकते हैं, न केवल आपका दिमाग बल्कि पर्यावरण और प्रकृति भी आपके समाधान के तरीके प्रदान करना शुरू कर देती है। बस आपको किसी समस्या के समाधान के बारे में सोचना है, आपको समस्या का समाधान अपने संसाधनों के भीतर और निश्चित समय सीमा के साथ मिल जाएगा।

Inspiring Thoughts: डिप्रेशन और फ़्रस्ट्रेशन पर काबू पाने के लिए पाएं नेगेटिव माइंडसेट से छुटकारा

Point Of View : बेहतर कल के लिए नहीं छोड़िए आशावाद का दामन

Inspiring Thoughts: बेहतर कल के लिए नहीं छोड़िए आशावाद का दामन

नजरिया जीने का: आशावाद एक शक्तिशाली शक्ति है. यह हमें मुश्किल समय में आगे बढ़ने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है. जब हम आशावाद रखते हैं, तो हम मुश्किलों को स्वीकार करने और उनसे निपटने के लिए अधिक तैयार होते हैं. हम अधिक रचनात्मक होते हैं और नए समाधान खोजने में सक्षम होते हैं. हम अधिक दृढ़ होते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करते हैं. नजरिया जीने का एक ऐसा हीं मंच है जो आपके अंदर की आग को जलाने की कोशिश करती है जो क्योंकि आपके अंदर की आग सबसे बड़ी चीज है। 


आशावाद एक चमत्कार नहीं है. यह एक दृष्टिकोण है. यह एक विश्वास है कि चीजें बेहतर होंगी. यह एक विश्वास है कि हम अपने सपनों को प्राप्त कर सकते हैं. जब हम आशावाद रखते हैं, तो हम अपने जीवन को बेहतर बनाते हैं. हम अपने जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं. हम अपने जीवन को अधिक आनंददायक बनाते हैं.

तो, आइए हम बेहतर कल के लिए आशावाद का दामन न छोड़ें. आइए हम अपने सपनों के लिए लड़ें और कभी भी हार न मानें. आइए हम अपने जीवन को बेहतर बनाएं.

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।
किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।
भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।
-नरेंद्र वर्मा


जाहिर है, अगर जीवन है तो बाधाओं का आना स्वाभाविक है और इससे हम इनकार नहीं कर सकते।लेकिन क्या इन बाधाओं और परेशानियों से घबराकर हमें अपनी हार स्वीकार लेनी चाहिए।हाफिज नहीं। सच तो यह है कि जिंधिवमें कितनी भी विषम परिस्थितियों से हमें सामना करना पड़े, हमें आशा और उम्मीद कभी नहीबखिनी चाहिए।

विश्वास कीजिए, आशावादी होना मानव का सबसे अनुपम और प्रभावी लक्षण है जो न केवल आपके परिस्थितियों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है बल्कि एक अपेक्षाकृत अच्छे सुबह किबुम्मिद भी जगाती है।

आप इतिहास को पलट कर देख लीजिए, विपरीत और विषम परिस्थितियों से किसका सामना नहीं हुआ है। लेकिन इतिहास के पन्नों में स्थान उन्हें ही मिली है जिन्होंने अपने कर्मठता से उन परिस्थितियों से भी निकलने का रास्ता बनाया है।

किसी कवि ने क्या खूब कहा है।।
" जो कहे नही करता भी हो 
विश्वास उसी का होता है
जो युग को कर्मठता से मोडे
इतिहास उसी का होता है।"

कहने का आशय यह है कि आशावादी बने रहने में वर्तमान की परिस्थितियों से निकलने की एक उम्मीद तो जिंदा रहती है। लेकिन अगर हम निराशावाद का दामन थाम भी लेते हैं तोवक्या इससे हम स्थिति से निकल जायेंगे।।हरगिज नही।

निराशा मन में आते हीं आपकी शरीर के तमाम अंगों पर पड़ने वाले प्रभाव का कभी अध्ययन किया है। आंखों के आगे अंधेरा छाना, मस्तिष्क में अनावश्यक दर्द, अंदरूनी अंगों के कार्य पद्धति पर अनावश्यक दबाव।।।ऐसी स्थिति में जब बाहर की परिस्थितियों का सामना करने केलिए हमें अंदर से स्ट्रॉन्ग रहने की जरूरत है, हम अंदर के फ्रंट पर ही अगर खुद को निराशावादी बनाकर कमजोर हो जायेंगे तो फिर उस स्थिति से कैसे निकल पाएंगे इसका अंदाजा सहज ही लगाई जा सकती है।।

वही अगर उसी प्रकार की विषम परिस्थितियों के सामने खुद को आशावादी रखते हुए उनका सामना करने की कोशिश करो, आप खुद ही बदलाव को महसूस कर सकते हैं.

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
-अटल बिहारी वाजपेयी


सच तो यह है कि आशावादी बने रहने पर हमारी मस्तिष्क भी व्यवहारिक और प्रभावी उपाय सुझाती है साथ ही स्थितियों से निकलने के लिए स्ट्रेटजी और उनके कार्यानयन में भी हमारी मदद करती है।



Daily GK Current Affairs Sep 14 2024: भारतीय लाइट टैंक ज़ोरावर, स्पेक्ट्रम, मिशन मौसम


डीआरडीओ ने भारतीय लाइट टैंक ‘ज़ोरावर’ के सफल फील्ड फायरिंग परीक्षण किए

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय लाइट टैंक ज़ोरावर के सफल प्रारंभिक ऑटोमोटिव परीक्षण किए। यह ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनाती में सक्षम अत्यधिक बहुउपयोगी  प्लेटफ़ॉर्म है।

ज़ोरावर: Facts in Brief 

  • डीआरडीओ की इकाई सीवीआरडीई द्वारा लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के सहयोग से सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। 
  • यह एंफिबियस है. यानी जमीन पर चल सकता है, साथ ही नदियों में तैर सकता है. किसी भी तरह के जलस्रोत को पार कर सकता है. 
  • इसका वजन मात्र 25 टन है. इसमें 105 मिलिमीटर की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) भी लगा सकते हैं. 
  • इस टैंक का नाम जनरल ज़ोरावर सिंह कहलूरिया के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1841 में चीन-सिख युद्ध के समय कैलाश-मानसरोवर पर मिलिट्री एक्सपेडिशन किया था. 


ब्रिक्स साहित्य फोरम 2024 का आरंभ 11 सितंबर 2024 बुधवार को रूस के कजान में हुआ।

  • साहित्यिक ब्रिक्स के 2024 संस्करण का थीम "नए यथार्थ में विश्व साहित्य, परंपराओं, राष्ट्रीय मूल्यों और संस्कृतियों का संवाद" है।
  •  भारत का प्रतिनिधित्व साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री माधव कौशिक और साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव  ने किया।


बेस रिपेयर डिपो नजफगढ़, नई दिल्ली ने 13 सितंबर 24 को ईडब्ल्यू सम्मेलन “स्पेक्ट्रम” का सफल आयोजन किया। 


मिशन मौसम का अनावरण : वर्ष 2026 तक भारत के मौसम और जलवायु पूर्वानुमान को उन्नत करने के लिए दो हजार करोड़ की पहल

मिशन का लक्ष्य ...

  • 50 डॉप्लर मौसम रडार(डीडब्ल्यूआर),
  •  60 रेडियो सोंडे/रेडियो विंड(आरएस आरडब्ल्यू) स्टेशन, 
  • 100 डिस्ड्रोमीटर,10 विंड प्रोफाईलर, 
  • एक शहरी टेस्ट बेड, 
  • एक प्रक्रिया टेस्ट बेड, 
  • एक महासागर अनुसंधान स्टेशन और ऊपरी वायु निगरानी के साथ 
  • 10 समुद्रीय स्वचालित मौसम स्टेशन स्थापित करना है।


ज़ोरावर: भारतीय लाइट टैंक का सफल परीक्षण, जाने खास बातें


रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय लाइट टैंक ज़ोरावर के सफल प्रारंभिक ऑटोमोटिव परीक्षण किए। यह ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनाती में सक्षम अत्यधिक बहुउपयोगी  प्लेटफ़ॉर्म है। रेगिस्तानी इलाकों में किए गए फील्ड परीक्षणों के दौरान, लाइट टैंक ने असाधारण प्रदर्शन करते हुए  सभी इच्छित उद्देश्यों को कुशलतापूर्वक पूरा किया। प्रारंभिक चरण में, टैंक के फायरिंग प्रदर्शन का कड़ाई से मूल्यांकन किया गया और इसने निर्दिष्ट लक्ष्यों पर आवश्यक सटीकता हासिल की।

ज़ोरावर: Facts in Brief 

  • डीआरडीओ की इकाई सीवीआरडीई द्वारा लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के सहयोग से सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। 
  • यह एंफिबियस है. यानी जमीन पर चल सकता है, साथ ही नदियों में तैर सकता है. किसी भी तरह के जलस्रोत को पार कर सकता है. 
  • इसका वजन मात्र 25 टन है. इसमें 105 मिलिमीटर की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) भी लगा सकते हैं. 
  • इस टैंक का नाम जनरल ज़ोरावर सिंह कहलूरिया के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1841 में चीन-सिख युद्ध के समय कैलाश-मानसरोवर पर मिलिट्री एक्सपेडिशन किया था. 

ज़ोरावर को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की इकाई, लड़ाकू वाहन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (सीवीआरडीई) द्वारा लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के सहयोग से सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) सहित अनेक भारतीय उद्योगों ने विभिन्न उप-प्रणालियों के विकास में योगदान देते हुए देश के भीतर स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षमताओं के सामर्थ्यब को प्रदर्शित किया।

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भारतीय लाइट टैंक के सफल परीक्षणों के लिए डीआरडीओ, भारतीय सेना और सभी संबद्ध उद्योग भागीदारों की सराहना की। उन्होंने इस उपलब्धि को महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों में भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर करार दिया है। 

चार धाम: जाने चार दिशाओं में स्थित इन चार महान धामों के बारे में


चार दिशाओं में हैं चार धाम: उत्तर में बद्रीनाथ, पूर्व में जगन्नाथ पुरी, दक्षिण में रामेश्वरम और पश्चिम में  द्वारका- पाएं विस्तृत जानकारी

भारत के चार धाम चार प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल हैं जो देश के चार दिशाओं में स्थित हैं। ये चार धाम जिन्हे प्रमुख तौर पर जाना जाता है-बद्रीनाथ (उत्तर दिशा), द्वारका (पश्चिम दिशा), पुरी (पूर्व दिशा) तथा रामेश्वरम (दक्षिण दिशा) का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है और इन्हें जीवन में एक बार अवश्य दर्शन करने योग्य माना जाता है। ये चार धाम तीर्थस्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी अत्यधिक हैं। यहां की यात्रा आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। आइए, इन चार धामों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

 हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार बद्रीनाथ (उत्तराखंड),द्वारका (गुजरात), जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) और रामेश्वरम (तमिलनाडू) चार धाम है जो विभिन्न देवी-देवताओं और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं.आश्चर्यजनक रूप से ये चरों धार भारत के चारों दिशाओं में स्थित है. आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परिभाषित ये चार वैष्णव तीर्थ हैं जहाँ हर हिंदू को अपने जीवन काल मे अवश्य जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इन तीर्थ स्थलों पर जाने से हिंदुओं को मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है । इसमें उत्तर दिशा मे बद्रीनाथ, पश्चिम की ओर द्वारका, पूर्व दिशा मे जगन्नाथ पुरी और दक्षिण मे रामेश्वरम धाम है। आइये जानते हैं इन प्रमुख चार धामों के बारे में विस्तृत जानकारी. 

भारत के चार धाम और सम्बंधित राज्य निम्न हैं. 

  • बद्रीनाथ (उत्तराखंड)
  • द्वारका (गुजरात)
  • जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)
  • रामेश्वरम (तमिलनाडू )


बद्रीनाथ (Badrinath): 

यह धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है  यहां बद्रीनाथ मंदिर है, जिसमें विष्णु के बद्रीनाथ रूप की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह मंदिर चार धामों में से एक है और चार धाम यात्रा का पूर्वी धाम है। बद्रीनाथ भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है. यह अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है और चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की एक चरणपादुका (पैर की छाप) स्थापित है. बद्रीनाथ मंदिर को 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बनवाया था. मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और धार्मिक स्थल भी हैं, जिनमें से कुछ हैं:

तप्त कुंड: यह एक गर्म पानी का कुंड है, जिसका पानी पवित्र माना जाता है.

नारद कुंड: यह एक पवित्र कुंड है, जिसका पानी भगवान नारद को समर्पित है.

ब्रह्म कुंड: यह एक पवित्र कुंड है, जिसका पानी भगवान ब्रह्मा को समर्पित है.

गरुड़ चट्टान: यह एक चट्टान है, जिस पर भगवान गरुड़ का पदचिह्न है.

वेद व्यास गुफा: यह एक गुफा है, जहां वेद व्यास ने महाभारत की रचना की थी.

बद्रीनाथ एक अत्यंत लोकप्रिय तीर्थस्थल है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं. मंदिर परिसर को चारों ओर से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों से घेरा हुआ है, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ा देता है. बद्रीनाथ एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक स्थान है, जहां लोग आकर आराम और शांति पा सकते हैं.

जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri): 

जगन्नाथ पुरी भारत के ओडिशा राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है. यह भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक विशाल मंदिर के लिए जाना जाता है. मंदिर को 12वीं शताब्दी में ओडिशा के राजा अनंतवर्मन ने बनवाया था. मंदिर का निर्माण लाल और सफेद बलुआ पत्थर से किया गया है और यह 135 फीट ऊंचा है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित हैं. भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है.

जगन्नाथ पुरी एक अत्यंत लोकप्रिय तीर्थस्थल है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं. मंदिर परिसर को चारों ओर से दीवारों से घेरा हुआ है और केवल हिंदू ही मंदिर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं. मंदिर के परिसर में एक विशाल रथ यात्रा होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर से बाहर निकालकर शहर के चारों ओर घुमाया जाता है. रथ यात्रा एक अत्यंत भव्य और रंगीन उत्सव है, जो लाखों लोगों को आकर्षित करती है. यह धाम ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिर चार धामों में से पश्चिमी धाम है।


रामेश्वरम् (Rameswaram):

 यह धाम तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम में श्री रामेश्वर स्वामी मंदिर है, जिसमें शिव के पृथ्वी तत्व को दर्शाने वाली ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। यह मंदिर चार धामों में से दक्षिणी धाम है। 

रामेश्वरम भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित एक द्वीप शहर है. यह शहर हिंदुओं के चार धामों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित रामेश्वरम मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. रामेश्वरम मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद किया था. मंदिर में भगवान शिव का एक लिंग स्थापित है, जिसे रामलिंगम कहा जाता है. रामेश्वरम मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं.

रामेश्वरम एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है. यह शहर रामायण के कई घटनाओं से जुड़ा हुआ है. रामेश्वरम में रामेश्वरम द्वीप, रामेश्वरम मंदिर, धनुषकोटि, सीतामीनार और रामेश्वरम रेलवे स्टेशन जैसे कई ऐतिहासिक स्थल हैं. रामेश्वरम एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है और यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं.

रामेश्वरम एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है. यह शहर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है.

द्वारका (Dwarka):

 यह धाम गुजरात राज्य के द्वारका जिले में स्थित है। द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर है, जिसमें श्री कृष्ण की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह मंदिर चार धामों में से एक है और चार धाम यात्रा का पश्चिमी धाम है। 

द्वारका भारत के गुजरात राज्य के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित एक प्राचीन नगर और नगरपालिका है. द्वारका गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है. यह हिन्दुओं के चारधाम में से एक है और सप्तपुरी (सबसे पवित्र प्राचीन नगर) में से भी एक है. यह श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल है और गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी माना जाता है.


द्वारका का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने मथुरा से निकाले जाने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी. द्वारका नगरी सोने और चांदी से बनी थी और यह बहुत ही समृद्ध थी. द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण ने अपने सभी भाइयों और परिवार के साथ रहकर अपना राज्य चलाया था.

द्वारका नगरी का वर्णन महाभारत के आठवें स्कंध में मिलता है. महाभारत में कहा गया है कि द्वारका नगरी एक बहुत ही सुंदर नगरी थी. द्वारका नगरी में कई मंदिर और महल थे. द्वारका नगरी में एक बहुत ही विशाल समुद्र तट भी था. द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण ने अपने सभी भाइयों और परिवार के साथ रहकर अपना राज्य चलाया था.

द्वारका नगरी आज भी एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं. द्वारका नगरी में एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसका नाम द्वारकाधीश मंदिर है. द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है. द्वारकाधीश मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है.


द्वारका नगरी एक बहुत ही पवित्र नगरी है. द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण ने अपना राज्य चलाया था और उन्होंने अपने भक्तों को बहुत सारी शिक्षाएं दी थीं. द्वारका नगरी एक बहुत ही ऐतिहासिक नगरी भी है. द्वारका नगरी में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जो आज भी मौजूद हैं.

द्वारका नगरी एक बहुत ही लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है. द्वारका नगरी में हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण के मंदिरों के अलावा, कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं. द्वारका नगरी में एक बहुत ही सुंदर समुद्र तट भी है. द्वारका नगरी एक बहुत ही शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक स्थान है.


चार धाम यात्रा का क्रम क्या है?

ऐसा माना जाता है कि यमुनोत्री से यात्रा की शुरुआत करने पर बिना किसी बाधा के आपकी चारधाम यात्रा पूर्ण हो जाती है। इसके साथ ही शास्त्रों में वर्णित है कि, यात्रा की शुरुआत पश्चिम से की जाती है और पूर्व में समाप्त होती है इसलिए भी सबसे पहले यमुनोत्री धाम के दर्शन किये जाते हैं। तीर्थयात्रा यमुनोत्री से शुरू होती है, गंगोत्री की ओर बढ़ती है, केदारनाथ पर जाती है और अंत में बद्रीनाथ में समाप्त होती है। यात्रा सड़क या हवाई मार्ग से पूरी की जा सकती है। कुछ भक्त दो धाम यात्रा या दो तीर्थस्थलों - केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थयात्रा भी करते हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा अपने ज्योतिषी या पेशेवर सुझाव प्रदाता से अवश्य परामर्श करें।


Born of Saturday: बुद्धिमान, व्यावहारिक, अनुशासनप्रिय, धुन का पक्का और भी बहुत कुछ

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Born on Saturday:

जैसा कि आप जानते हैं कि सप्ताह में सात दिन होते हैं और हर दिन का एक स्वामी ग्रह होता है। हिन्दू पंचांग और ज्योतिष के अनुसार किसी खास दिन जन्म लेने वाले व्यक्ति पर उसके स्वामी ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां हम बात करेंगे शनिवार को जन्म लेने वाले लोगों जिस दिन के देवता भगवान शनिदेव होते हैं।  शनि के प्रभाव से व्यक्ति काफी मेहनती होता है साथ ही जैसा कि शनि प्लानेट कि गति काफी धीमी होती है, वैसे ही वह धीरे-धीरे ही सही, लेकिन ये अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होते हैं. जानिये शनिवार को जन्म लेने वाले लोगों के व्यक्तित्व से जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में मोटिवेटर और एस्ट्रोलॉजर हिमांशु रंजन शेखर से.

शनिवार को जन्मे लोग दृढ़निश्चयी होने के साथ ही साथ वे मेहनती और जीवन के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुशासन प्रिय तथा बुद्धिमान और पेशेवर होते हैं जिनके लिए जीवन का खास महत्व होता है। एस्ट्रोलॉजी और विज्ञान के अनुसार शनि गृह अपने पथ पर काफी धीमी गति से घूमता है और जाहिर है कि शनिवार को जन्म लेने वाले लोगों पर शनि ग्रह का काफी इन्फ्लुएंस रहते है.  

अनुशासनप्रिय होते हैं 

वे धीमे होने के साथ  स्थिर, मेहनती, अनुशासित और दूसरों से अलग होते हैं। शनिवार को जन्मे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे  बुद्धिमान और व्यावहारिक होते हैं साथ हीं इनके जीवन में सख्त सीमाएँ  और अनुशासनप्रिय होते हैं शनिवार को जन्मे लोग शनि ग्रह के प्रभाव में पैदा होते हैं और जाहिर  है कि उनका जीवन शनि ग्रह के प्रभाव के अनुसार होता है। उनका संघर्ष निरंतर रहता है जो उन्हें मजबूत बनाता है और हर चीज से उबरने के लिए दृढ़ संकल्पित होना होता है अर्थात  उनके जीवन मे संघर्ष लगा रहता है । वे के साथ ही वे अत्यधिक अनुशासित हैं।

मेहनती और धुन का पक्का

शनि के प्रभाव से व्यक्ति काफी मेहनती और धुन का पक्का होता है. भले ही सफलता मिलने में कुछ देरी हो सकती है लेकिन वह व्यक्ति  धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होते हैं. ये लोग थोड़े गंभीर प्रवृति के होते हैं और खुलने में काफी वक्त ले ले सकते हैं.  लेकिन परिवार के लोगों के साथ इनके संबंधों में कई बार मतभेद देखने को मिलते हैं. शनिवार को जन्मे लोग हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं. वैसे इनका स्वभाव क्रोधी हो सकता है. 


क्रोधी, धैर्य की काफी कमी 
गुस्से पर काबू पाने में अक्सर ये लोग काफी असफल होते हैं और शायद यही वजह है कि इनके अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी काफी काम निभती है. ऐसे जातक अगर अपनी गुस्से पर नियंत्रण करना सीख लें तो जीवन में काफी आगे जा सकते हैं. 






प्यार व्यक्त करने में होते हैं कंजूस
जिन जातकों का जन्म शनिवार को होता है वो सामान्यत:  अंतर्मुखी प्रतिभा के धनी होते है. एकांतप्रिय होने के साथ ही वो अपनी बातों को व्यक्त करने में जल्दीबाजी कभी नहीं करते. यही वजह होता है कि प्रेम के मामलों में भी वो अपने बातों को व्यक्त नहीं कर पाते हैं. अपने प्यार का इजहार करने में काफी विलम्ब करते हैं और चाहते हैं कि  उनका पार्टनर उनके फीलिंग्स को पहचान ले... 

परिस्थितियों के गुलाम नहीं होते 
शनिवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति परिस्थितियों के स्वामी होते हैं और कभी भी उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देते.... भले ही उनके जीवन में कितने भी संघर्ष वाले दिन या संकट आये, वे उससे निकलने के लिए सही वक्त का इन्तजार करते हैं और हिम्मत नहीं हारते.... 

दृढ निश्चय के मालिक 
शनिवार को जन्म लेने वाले जातक दृढ इच्छा शक्ति के स्वामी होते हैं और अपने कार्यों को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं. अपने लक्ष्य को पाने के लिए संसाधनों की कमी हो तो भी ये इन्हे जुटाने की क्षमता रखते हैं.  जिस किसी क्षेत्र में इन्हे कार्य का अवसर प्रदान की जाए, उसमे हीं ये सफलता के नए सोपान प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं. 

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर ज्योतिषीय सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा अपने ज्योतिषी या पेशेवर ज्योतिष/कुंडली सुझाव प्रदाता से अवश्य परामर्श करें।





योग गठिया के रोगियों को पीड़ा से राहत पहुंचा सकता है योग: एम्स अध्ययन

Yoga effective for Rheumatoid Arthritis patients AIIMS

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि योगाभ्यास से गठिया (रूमेटाइड अर्थराइटिस-आरए) के रोगियों के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ सकता है। अध्ययन ने गठिया के रोगियों में सेलुलर और मोलेक्यूलर स्तर पर योग के प्रभावों की खोज की है। इससे पता चला है कि कैसे योग पीड़ा से राहत देकर गठिया के मरीजों को लाभ पहुंचा सकता है।

आरए एक पुरानी ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों में सूजन का कारण बनती है। यह जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है और इस रोग में दर्द होता है। इसके कारण फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क जैसे अन्य अंग प्रणालियां भी प्रभावित हो सकती हैं। परंपरागत रूप से, योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला, एनाटॉमी विभाग और रुमेटोलॉजी विभाग एम्स, नई दिल्ली द्वारा एक सहयोगी अध्ययन ने गठिया के रोगियों में सेलुलर और मोलेक्यूलर स्तर पर योग के प्रभावों की खोज की है। इससे पता चला है कि कैसे योग पीड़ा से राहत देकर गठिया के मरीजों को लाभ पहुंचा सकता है।

पता चला है कि योग सेलुलर क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव (ओएस) को नियंत्रित करके सूजन को कम करता है। यह प्रो- और एंटी-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को संतुलित करता है, एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ाता है, कोर्टिसोल और सीआरपी के स्तर को कम करता है तथा मेलाटोनिन के स्तर को बनाए रखता है। इसके जरिये सूजन और अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली चक्र का विघटन रुक जाता है।

मोलेक्यूलर स्तर पर, टेलोमेरेज़ एंजाइम और डीएनए में सुधार तथा कोशिका चक्र विनियमन में शामिल जीन की गतिविधि को बढ़ाकर, यह कोशिकाओं की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। इसके अतिरिक्त, योग माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन को बेहतर बनाता है, जो ऊर्जा चयापचय को बढ़ाकर और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करके टेलोमेर एट्रिशन व डीएनए क्षति से बचाता है।

डीएसटी द्वारा समर्थित, एम्स के एनाटॉमी विभाग के मोलेक्यूलर री-प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स प्रयोगशाला में डॉ. रीमा दादा और उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में दर्द में कमी, जोड़ों की गतिशीलता में सुधार, चलने-फिरने की कठिनाई में कमी और योग करने वाले रोगियों के लिए जीवन की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि दर्ज की गई। ये समस्त लाभ योग की प्रतिरक्षात्मक सहनशीलता और मोलेक्यूलर रेमिशन स्थापित करने की क्षमता में निहित हैं।

साइंटिफिक रिपोर्ट्स, 2023 में प्रकाशित अध्ययन  से पता चलता है कि योग तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, जो गठिया  के लक्षणों के लिए एक ज्ञात कारण है। कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन को कम करके, योग अप्रत्यक्ष रूप से सूजन को कम कर सकता है, माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में सुधार कर सकता है, जो ऊर्जा उत्पादन और सेलुलर स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और 𝛽-एंडोर्फिन, मस्तिष्क-व्युत्पन्न न्यूरोट्रॉफ़िक कारक (बीडीएनएफ), डीहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन (डीएचईए), मेलाटोनिन और सिरटुइन-1 (एसआईआरटी-1) के बढ़े हुए स्तरों से को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम कर सकता है। योग न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देता है और इस प्रकार रोग निवारण रणनीतियों में सहायता करता है तथा को-मॉर्बिड डिप्रेशन की गंभीरता को कम करता है।

इस शोध से गठिया रोगियों के लिए पूरक चिकित्सा के रूप में योग की क्षमता का प्रमाण मिलता है। योग न केवल दर्द और जकड़न जैसे लक्षणों को कम कर सकता है, बल्कि रोग नियंत्रण और जीवन की बेहतर गुणवत्ता में भी योगदान दे सकता है। दवाओं के विपरीत, योग के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं और यह गंभीर ऑटोइम्यून स्थितियों के प्रबंधन के लिए एक सस्ता व प्रभावी तथा स्वाभाविक विकल्प प्रदान करता है। (श्रोत: PIB)

Point Of View @पैरेंटिंग टिप्स: प्रशंसा करें, यह आपके बच्चों के आत्मविश्वास और आत्म-बोध को बढ़ाती है

Parent tips Najariya jine ka Praise increases Confidence

पैरेंटिंग टिप्स
: आप अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छे पेरन्ट बनना चाहते हैं तो उनके साथ फ़्रेंडली होने के साथ हीं उनके एफर्ट और गुड वर्क को प्रोत्साहन और प्रशंसा करना सीखें, याद रखें, आपके प्रोत्साहन और प्रशंसा के शब्दों मे वह ताकत हैं जिनकी मदद से आपके बच्चे सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने कि कोशिश करते रहने के साथ आशावादी होने की अधिक संभावना रखते हैं।

आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक 
बच्चों की परवरिश में प्रशंसा का बहुत बड़ा महत्व है। बच्चों को सच्ची और ईमानदार प्रशंसा की ज़रूरत होती है। जब वे कुछ अच्छा करें या कुछ नया सीखें, तभी उनकी प्रशंसा करें। इससे वे जान पाएंगे कि उनकी मेहनत और प्रयास की सराहना हो रही है।एक ऐसा वातावरण बनाएँ जहाँ बच्चा सुरक्षित और खुश महसूस करे। यह उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा।

कुछ बच्चों, खासकर जो दूसरों की तुलना में कम आत्मविश्वासी होते हैं, उन्हें दूसरों की तुलना में ज़्यादा प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है। जब प्रशंसा प्रयास पर केंद्रित होती है, तो बच्चे कड़ी मेहनत को अपने आप में अच्छा मानते हैं। 

सकारात्मक तरीके से करें प्रयास   

विश्वास करें, प्रशंसा आपके बच्चे के आत्मविश्वास और आत्म-बोध को बढ़ाती है। प्रशंसा का उपयोग करके, आप अपने बच्चे को दिखा रहे हैं कि खुद के बारे में सकारात्मक तरीके से कैसे सोचना और बात करना है। आप अपने बच्चे को यह सीखने में मदद कर रहे हैं कि जब वे अच्छा करते हैं तो उन्हें कैसे पहचानना है और खुद पर गर्व महसूस करना है।

तुलना से बचे

बच्चों के अंदर मानसिक रूप से क्या चल रहा है इसकी समझ भी पैरेंट को पता होना जरूरी है खासकर तब जब बच्चे किसी कुंठा या किसी दूसरे अपने सहपाठी से किए गए तुलना से परेशान होते हैं। याद रखें, बच्चों कि किसी अन्य बच्चे के साथ कि गई अनावश्यक तुलना उनको मानसिक रूप से अधिक परेशान कर सकती है।

फ़्रेंडली बनकर उसे प्रोत्साहित करें 

इसके लिए जरूरी है कि आप फ़्रेंडली बनकर उसे प्रोत्साहित करें कि नेक्स्ट टाइम वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा। यह बात और है कि वह प्रदर्शन हम पैरेंट कि ही जिम्मेदारी है लेकिन उसमें आप चुनौतीपूर्ण और सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशंसा और प्रोत्साहन का उपयोग कर सकते हैं।

परिवर्तनों को नजरंदाज नहीं करें

बच्चे के अंदर चल रहे छोटे बदलावों और परिवर्तनों को नजरंदाज नहीं करें और हमेशा उन पर ध्यान दें। उसके द्वारा किए गए किसी भी प्रयास या सुधार की प्रशंसा करें भले हीं वह छोटी से सफलता हो या लघु उपलब्धि हो, बजाय इसके कि जब तक आपका बच्चा कुछ बढ़िया न कर ले, तब तक प्रतीक्षा करें।

खूबियों की प्रशंसा करें

अपने बच्चे की खूबियों की प्रशंसा करें और अपने बच्चे को उसकी खुद की रुचियों के बारे में उत्साहित महसूस करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे आपके बच्चे में गर्व और आत्मविश्वास की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी।

स्वतंत्रता दें

 बच्चों को अपने निर्णय खुद लेने का मौका दें इससे उनके अंदर निर्णय लेने कि भावना विकसित होगी। इसके साथ ही उनमें  जिम्मेदारी और परिणाम पर विचार करने का स्कोप मिलेगा। एक पैरेंट होने के नाते यह जरूरी है कि उनके फैसलों की इज्जत करें और उसका विश्लेषण कर उसे उनसे प्रभाव को बताएं क्योंकि इससे उनका आत्म-बोध बढ़ेगा और वे आत्मनिर्भर बनेंगे।



Point Of View : जानें जन्माष्टमी कि तिथि , पूजा विधि, ‘माखन चोर’ की लीलाएं और उनकी शिक्षाएं


 

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Point Of View: जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म की याद में मनाई जाती है, जो पृथ्वी पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। इस दिन भक्तगण भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं। भगवान कृष्ण का जन्म बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, भगवान कृष्ण के भक्त प्रार्थना करते हैं, और पूरे देश में बाल कृष्ण के जीवन से प्रेरित विभिन्न अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। यह पवित्र दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार की स्थानीय परंपराओं और अनुष्ठानों के अनुसार मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म 5,000 साल पहले मथुरा शहर में राजा वासुदेव और रानी देवकी के घर हुआ था।  कृष्ण का जन्म एक महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। वे दुष्ट राजा कंस का नाश करने के लिए इस दुनिया में आए थे।

 भगवान कृष्ण का बचपन अद्भुत कहानियों से भरा पड़ा है जो हमें महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। वह एक शरारती बच्चा था, जिसे अक्सर मक्खन के प्रति अपने प्रेम के लिए जाना जाता था, जिसके कारण उसे "माखन चोर" उपनाम मिला। लेकिन इस चंचल स्वभाव के पीछे एक दिव्य प्राणी था जिसने कई चमत्कार किए और एक बच्चे के रूप में भी असाधारण ज्ञान दिखाया।

इस वर्ष अर्थात 2024 में जन्माष्टमी अगस्त 26 को मनाई जाएगी। आप यहाँ देख सकते हैं आने वाले 2030 तक जन्माष्टमी को मनाई जाने वाली तिथियाँ-

 2024 सोमवार, 26 अगस्त

2025 शुक्रवार, 15 अगस्त

2026 शुक्रवार, 4 सितंबर

2027 बुधवार, 25 अगस्त

2028 रविवार, 13 अगस्त

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 देश भर में जो लोग श्री कृष्ण जयंती मनाते हैं, वे इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के समय आधी रात तक उपवास रखते हैं। उनके जन्म के प्रतीक के रूप में, देवता की मूर्ति को एक छोटे से पालने में रखा जाता है और प्रार्थना की जाती है। इस दिन भजन और भगवद गीता का पाठ किया जाता है।

'जन्म' का अर्थ है जन्म और 'अष्टमी' का अर्थ है आठवां। भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे, जिसमें उनका जन्म आठवीं तिथि को वासुदेव और यशोदा के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था।

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण राजकुमारी देवकी और उनके पति वासुदेव की आठवीं संतान थे, जो मथुरा के यादव वंश से संबंधित थे। देवकी के भाई कंस, जो उस समय मथुरा के राजा थे, ने देवकी द्वारा जन्म दिए गए सभी बच्चों को मार डाला, ताकि वह उस भविष्यवाणी से बच सकें जिसमें कहा गया था कि कंस की मृत्यु देवकी के आठवें पुत्र द्वारा की जाएगी। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तो वासुदेव शिशु कृष्ण को मथुरा के एक जिले गोकुल में अपने मित्र के घर ले गए। इसके बाद, कृष्ण का पालन-पोषण गोकुल में नंद और उनकी पत्नी यशोदा ने किया।

 जन्माष्टमी की पूजा विधि:

प्रातःकाल स्नान: भक्तगण प्रातःकाल स्नान करके पवित्र होते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।

मंदिर की सजावट: भगवान कृष्ण के मंदिर या पूजा स्थल को फूलों, रंगोली और दीपों से सजाया जाता है। भगवान कृष्ण की मूर्ति को नए वस्त्र, आभूषण और माला पहनाई जाती है।

पूजन सामग्री: पूजन के लिए विशेष सामग्री जैसे पंचामृत, फल, फूल, तुलसी दल, मक्खन और मिश्री आदि तैयार किए जाते हैं।

कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश की स्थापना की जाती है और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखकर उसका पूजन किया जाता है।

भगवान कृष्ण का अभिषेक: भगवान कृष्ण की मूर्ति का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है।

कथा और भजन: भगवान कृष्ण की जन्मकथा सुनाई जाती है और उनके भजन-कीर्तन गाए जाते हैं।

मध्यरात्रि पूजा: चूंकि भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए रात 12 बजे विशेष पूजा और आरती की जाती है।

प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भक्तों के बीच प्रसाद बांटा जाता है। मक्खन और मिश्री को भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन के रूप में प्रसाद में वितरित किया जाता है।

व्रत का पारण: अगले दिन भक्तगण व्रत का पारण करते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।

 भगवान कृष्ण की लीलाएं:

बाल लीलाएं: भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था में की गई लीलाएं, जैसे कि माखन चुराना, गोपियों के साथ रासलीला, कालिया नाग का वध, गोवर्धन पर्वत उठाना आदि, अत्यंत प्रसिद्ध हैं।

रासलीला: भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ की गई रासलीला उनकी प्रेम और भक्ति की भावना को प्रदर्शित करती है। यह लीला भगवान के प्रेममय स्वरूप का प्रतीक है।

कृष्ण-अर्जुन संवाद: महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान, जो भगवद्गीताके रूप में संकलित है, अत्यंत महत्वपूर्ण लीला है। इसमें जीवन के मूलभूत सिद्धांतों और धर्म के मार्ग का उपदेश दिया गया है।

 भगवान कृष्ण की शिक्षाएं:

कर्मयोग: भगवान कृष्ण ने गीता में कर्मयोग का उपदेश दिया, जिसमें बिना किसी फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करने की बात कही गई है।

भक्ति योग: कृष्ण भक्ति को सर्वोच्च मानते हैं और प्रेम के माध्यम से भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं।

धर्म और अधर्म का ज्ञान: श्रीकृष्ण ने धर्म और अधर्म के बीच के भेद को स्पष्ट किया और सदा धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

सर्वधर्म समभाव: कृष्ण ने सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता देने की बात कही और कहा कि सभी मार्ग अंततः एक ही ईश्वर तक पहुंचते हैं।

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