नजरिया जीने का: जानें प्रधानमंत्री ने वृक्षारोपण के चिरस्थायी लाभों खातिर किस संस्कृत श्लोक का उद्धरण दिया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने भारतीय विचार के कालातीत ज्ञान को दर्शाने वाले एक संस्कृत सुभाषितम साझा किया है। उन्होंने  वृक्षारोपण के चिरस्थायी लाभों का उल्‍लेख करते हुए संस्कृत सुभाषितम को साझा किया जिसका  अर्थ है कि जिस प्रकार फल और फूल वाले वृक्ष निकट रहने पर मनुष्य को संतुष्टि प्रदान करते हैं, उसी प्रकार वृक्ष दूर रहने पर भी उसे लगाने वाले को सभी प्रकार के लाभ प्रदान करते हैं।

"पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तिह मानवान।

वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारायन्ति पात्र च॥"

फलों और फूलों वाले वृक्ष हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है यह हमसे छिपा नहीं है. जाने अनजाने में हम  अपने निहित स्वार्थ के खातिर पर्यावरण और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुभाषितम का यह श्लोक  पूर्णत: सारगर्भित है और हमारे लिए वृक्ष की जरुरत को समझाने की सटीक कोशिश भी है.  

 श्लोक का अर्थ स्पष्ट है कि जिस प्रकार फल और फूल वाले वृक्ष निकट रहने पर मनुष्य को संतुष्टि प्रदान करते हैं, उसी प्रकार वृक्ष दूर रहने पर भी उसे लगाने वाले को सभी प्रकार के लाभ प्रदान करते हैं।

वैसे वृक्ष के परमार्थ और दूसरों को सबकुछ देने की प्रवृति के बारे में कहने की जरुरत भी नहीं हैं क्योंकि  उसे समझने के लिए निम्न श्लोक से समझा जा सकता हैं-

पुत्रपुष्यफलच्छाया मूलवल्कलदारुभिः।

गन्धनिर्यासभस्मास्थितौस्मैः कामान वितन्वते॥

वास्तव में अगर आप देखें तो वृक्ष हमारी जरूरतों को अच्छी तरह से पूरा करते हैं और वो हमें पत्र, पुष्प, फल, छाया, मूल, बल्कल, इमारती और जलाऊ लकड़ी, सुगंध, राख, गुठली और अंकुर प्रदान करके हमारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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