प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सद्भाव के लिए क्रोध को त्यागने की आवश्यकता पर बल देते हुए संस्कृत श्लोक का उद्धरण दिया जो निम्न प्रकार से है-
क्रोधः प्राणहरः शत्रुः क्रोधो मित्रमुखो रिपुः।
क्रोधो ह्यसिर्महातीक्ष्णः सर्व क्रोधोऽपकर्षति॥
इसका अर्थ है कि क्रोध प्राण लेने वाला शत्रु है, जो मित्र के रूप में दिखता है पर भीतर से दुश्मन होता है। क्रोध अत्यंत तीक्ष्ण (धारदार) तलवार के समान है, जो जीवन की हर अच्छाई को काट देता है।
वास्तव में उक्त श्लोक वाल्मीकि रामायण से लिए गया है जिसका चर्चा प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सद्भाव के लिए क्रोध को त्यागने की आवश्यकता बताते हुए किया है.
क्रोधः प्राणहरः शत्रु: क्रोधो मित्रमुखी रिपुः |
क्रोधो हि असिर्महातीक्ष्णः सर्वं क्रोधोपकर्षति ||
-वाल्मीकि रामायण
गुस्सा अर्थात क्रोध एक दुश्मन की तरह है जो किसी की जान ले सकता है और दोस्तों के बीच दुश्मनी का मुख्य कारण भी है। गुस्सा निश्चित रूप सेएक बहुत तेज़ तलवार की तरह है, जो हर किसी को नुकसान और अपमान पहुंचा सकता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो गुस्सा प्राणहरण करने वाले शत्रु के समान है तथा मित्रों के बीच शत्रुता होने का कारण भी होता है | क्रोध वास्तव में एक तीक्ष्ण तलवार के समान है जो सब् को अपमानित कर हानि पहुंचाता है. श्लोक का साफ अर्थ है कि हमें गुस्सा अर्थात क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण करना चाहिए.

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