नजरिया : मीडिया के प्राइम टाइम से फ्रंट बनना हो तो ठीक वरना मोदी वर्सेस कौन-आज भी यक्ष प्रश्न


2024 के आम चुनाव में भले ही I.N.D.I.A.  गठबंधन बनाकर विपक्षी दलों ने एन डी ए  पर प्रारंभिक बढ़त बनाने का ग़लतफ़हमी पाल लिया है लेकिन यह उन नेताओं को भी पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनितिक सूझबूझ इतनी कमजोर नहीं है कि वे आसानी से हार मान जायेंगे. अगर मोदी को हराना इतना आसान होता तो फिर विपक्ष को एक मंच पर आने की जरुरत क्यों पड़ती। 
एक बार फिर से 2024 के आम चुनाव को लेकर गहमा गहमी का दौर शुरू हो गया है। पी एम की दौर में नहीं होने का दंभ भरने वाले ढपोरशंखी नेताओं की दबी महत्वकांक्षा फिर से जागने लगी है। वैसे तो सदैव अपने साथ चापलूसों से घिरे रहने वाले इन नेताओं को अपना औकाद अच्छी तरह पता है लेकिन उन्हें आज भी यही लगता है कि पूर्व की  भांति आज भी वे किसी झटके से अब भी वह देवेगौड़ा या गुजराल के तरह प्रधान मंत्री की गद्दी प्राप्त कर लेंगे।

2024 वर्सेज 2014 खेला
ऐसे नेतागण आज भी यही मुगालता पालकर जी रहे हैं कि देश में गठबंधन की सरकार के दिन वापस आयेंगे। हालांकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सूझबूझ से विपक्षी नेता गण भी अच्छी तरह परिचित हैं और उन्हें भी यह मालूम है कि जिस सपने को पालकर वह 2024 में प्रधान मंत्री का ख्वाब पल रहे हैं, मोदी ने 2014 में ही उस ख्याल को जमींदोज कर दिया।

मिशन 272
मतलब साफ है कि मोदी ने मिशन 272 को ध्यान में रख कर चुनाव लडा था क्योंकि वह जानते थे कि सांप्रदायिक शक्तियों को बाहर करने के नाम पर सत्तालोभी गठबंधन बनेगा और इसलिए मोदी जी ने खुद के दाम पर बहुमत लाने के स्ट्रेटजी को आगे रखा।

गठबंधन राजनीति पर पूर्णविराम
गठबंधन की राजनीति की मजबूरी यहीं है कि एक निर्दलीय भी झारखंड जैसे राज्य का मुख्यमंत्री बन सकता है और देवेगौड़ा और गुजराल जैसे लोग देश का प्रधानमंत्री बन सकते हैं बावजूद इसके कि न तो वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में होते हैं और नहीं उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी होती है। मोदी युग ने गठबंधन बनाकर सत्ता सुख पाने वाले दिन को इतिहास बनाकर रख दिया है और यह बात प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के साथ खड़ा होने वाले नेताओं को अवश्य हीं समझ लेनी चाहिए।

मोदी के सामने विपक्षी नेताओं का बौना कद 
विपक्षी पार्टियों के नेता भले ही चुनावीं रैली या उनके प्रवक्ता टेलीविजन के स्क्रीन पर गला फाड् कर मोदी के बड़े कद को झुठलाते रहें, लेकिन  सच तो यह है कि विपक्षी पार्टियों में कोई भी नेता मोदी को टक्कर देने के लिए काफी नहीं है. 

विकास पुरुष का दंभ भरने वाले विपक्षी नेताओं का कद कभी भी उतना बड़ा नही ही पाया जितने उनके चापलूस नेतागण उन्हें बताते हैं। सच  तो यह है कि मोदी की गिनती आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर  के नेताओं में शुमार हो चूका है और वह दुनिया की राजनीती में भी अपनी छाप छोड़ते नजर आते हैं. जाहिर है कि इसमें किसी प्रायोजित मीडिया की भूमिका  नहीं है  जैसा कि उनके आलोचक बताते हैं. 



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