Chhath Puja 2025: जाने खरना का क्या है महत्त्व, कैसे और क्यों मनाते हैं?


आज अर्थात अक्टूबर 25 से नहाय खाय के साथ ही आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरम्भ हो गया . दरअसल, नहाय खाय उत्सव का पहला दिन होता है जब भक्त छठ पूजा करने के लिए पवित्र होने हेतु डुबकी लगाते हैं। आमतौर पर भक्त अपने घर के पास की नदी/तालाबों में डुबकी लगाना पसंद करते हैं।
 इस साल खरना 26 अक्टूबर (रविवार) 2025 को मनाया जा रहा है.  छठ पूजा के दूसरे दिन, जिसे खरना कहा जाता है, का विशेष महत्व है। बिना जल के व्रत के लिए फ़ास्ट करना आसान नहीं होता है और यही वजह है कि छठ के पूजा के लिए शारीरिक रूप से अतिरिक्त मानसिक रूप से भी व्रती को तैयार रहना पड़ता है.

 खरना इस प्रकार से एक महत्वपूर्ण पड़ाव है क्योंकि इस दिन व्रती महिलाएं और पुरुष छठी माता की पूजा के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। खरना के प्रसाद में गन्ने के रस में बनी खीर, दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी शामिल होती है। इस प्रसाद में नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।

खरना का महत्व निम्नलिखित है:

तन और मन की शुद्धिकरण: खरना के दिन व्रती तन और मन दोनों की शुद्धिकरण करते हैं। इस दिन व्रती स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं। प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है, जो प्रकृति के साथ जुड़ाव को दर्शाता है। 36 घंटे के निर्जला व्रत की तैयारी: खरना के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। खरना के प्रसाद से व्रती को उर्जा मिलती है, जो उन्हें निर्जला व्रत के लिए तैयार करता है।

छठी माता की पूजा: खरना के प्रसाद को छठी माता को अर्पित किया जाता है। इससे छठी माता प्रसन्न होती हैं और व्रती की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

शुद्धिकरण और स्व-तैयारी:

खरना व्रती की शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से शुद्धिकरण प्रक्रिया का प्रतीक है। खरना के दिन, वे कठोर उपवास करते हैं, शाम को केवल एक बार भोजन करते हैं, जिसमें गुड़ से बनी खीर और एक विशेष प्रकार के चावल जिसे अरवा चावल कहा जाता है, शामिल होता है। ऐसा माना जाता है कि यह सरल और शुद्ध भोजन शरीर और मन को शुद्ध करता है, उन्हें गहन भक्ति और तपस्या के लिए तैयार करता है।

छठी मैया के प्रति भक्ति और कृतज्ञता:

खरना भक्तों के लिए छठी मैया के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का समय है। वे प्रार्थना करते हैं और अनुष्ठान करते हैं, समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। खरना पर बनाई जाने वाली विशेष खीर सिर्फ एक भोजन नहीं है बल्कि देवी को एक प्रसाद है, जो उनकी अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक है।

समापन अनुष्ठान की तैयारी:

खरना छठ पूजा के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों के लिए एक तैयारी चरण के रूप में कार्य करता है, अर्थात् डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना। खरना पर सख्त उपवास और शुद्धिकरण प्रक्रिया भक्तों को अर्घ्य प्रसाद के दौरान मनाए जाने वाले 36 घंटे के निर्जला व्रत, पानी के बिना निरंतर उपवास, का सामना करने के लिए आवश्यक शारीरिक और मानसिक शक्ति विकसित करने में मदद करती है।

संक्षेप में, खरना छठ पूजा यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भक्तों की आस्था के प्रति प्रतिबद्धता, छठी मैया के प्रति उनके समर्पण और इस प्राचीन और अत्यधिक पूजनीय त्योहार के सार का प्रतीक अंतिम अनुष्ठानों के लिए उनकी तैयारी का प्रतीक है।

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

Chhath Puja 2025: सूर्य उपासना की परंपरा और इसके चार दिवसीय अनुष्ठान

 Chhath Puja 2025: आज अर्थात अक्टूबर 25 से नहाय खाय के साथ ही आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरम्भ हो गया . दरअसल, नहाय खाय उत्सव का पहला दिन होता है जब भक्त छठ पूजा करने के लिए पवित्र होने हेतु डुबकी लगाते हैं। आमतौर पर भक्त अपने घर के पास की नदी/तालाबों में डुबकी लगाना पसंद करते हैं।  वैसे तो छठ पूजा खास तौर पैर  उत्तर भारत और खासतौर से बिहार,यूपी,झारखंड में व्यापक पैमाने पर मनाया जाता है, लेकिन अब यह महज इन इलाके तक ही सीमित नहीं रहा गया है. चार चरणों में मनाया जाने वाले छठ पूजा का शुरुआत नहाय-खाय से शुरू होता है जो पारण अर्थात  भोर के अर्ध्य के साथ समापन होता है. आइये जानते हैं कि आस्था का महापर्व छठ कैसे और  किन तिथियों को इस साल मनाया जा रहा है. 

Chhath Puja Kharna Nahaaye Khaaye and other all Details

जैसा कि  आप जानते हैं कि  छठ पूजा का त्योहार नहाय-खाय से शुरू होता है. इस दिन व्रती नहाय खाय के साथ व्रत का आरंभ करती हैऔर खुद को  तथा व्रत को करने के लिए पूजा करने वाले कमरे को शुद्ध किया जाता है. 

 इसके साथ ही छठ पूजा कर आरम्भ जो जाता है जो अगले दिन यानि अगले चरण खरना में प्रवेश करता है. 

नहाय खाय- छठ पूजा की शुरुआत  नहाय खाय से होती है जो इस साल 25 अक्टूबर (शनिवार) 2025, को मनाई जाएगी.  इस दिन व्रती नहाय खाय के साथ व्रत का आरंभ करती है

खरना- खरना छठ पूजा का दूसरा चरण होता है जो नहाये खाय के बाद और संध्या अर्ध्य के ठीक पहले किया जाता है. पंचांग के अनुसार खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. 

 उगते सूर्य को अर्घ्य- इस दिन ही छठ पूजा होती है जो इस साल 27 अक्टूबर  2025 को मनाई जाएगी. संध्या अर्ध्य के लिए व्रती किसी पोखर, तालाब, नदी के किनारे घाट का निर्माण करते हैं और वही पर जाकर अपने पुरे परिवार के साथ शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. 

डूबते सूर्य को अर्घ्य- छठ पूजा का अंतिम चरण भोर का अर्ध्य होता है जो 28 अक्टूबर  2025 को मनाई जा रही है.  इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है जइसे पारण भी कहा जाता है जिसके साथ ही छठ  व्रत को पूरा हो  जाता है. 

अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।

छठ पूजा 2025: नहाय खाय के साथ ही आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरम्भ, आस्था, शुद्धता और सूर्य देव की आराधना का महापर्व

 


आज अर्थात अक्टूबर 25 से नहाय खाय के साथ ही आस्था के महापर्व छठ पूजा का आरम्भ हो गहा. दरअसल, नहाय खाय उत्सव का पहला दिन होता है जब भक्त छठ पूजा करने के लिए पवित्र होने हेतु डुबकी लगाते हैं। आमतौर पर भक्त अपने घर के पास की नदी/तालाबों में डुबकी लगाना पसंद करते हैं।

छठ पूजा, जो सूर्योपासना का एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जिसे महापर्व भी कहा जाता है, यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। जहाँ तक छठ पूजा का नियम का सवाल है, यह बहुत हीं कठिन,अनुशाषित और संयम से पूर्ण होता है. छठ पूजा को महापर्व कहा जाता है और इसके लिए काफी संयम और सफाई के साथ अनुशासन को मानना पड़ता है. 

छठ पूजा के मनाने के लिए सबसे जरुरी है कि व्रती को बिलकुल साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही छठ पूजा का प्रसाद बनाना चाहिए। खरना और संध्या अर्ध्य के साथ ही छठ महापर्व के चारों दिन जमीन पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए.क्योंकि  छठ पूजा में व्रती का बिस्तर पर सोना वर्जित माना जाता है.इसके साथ हीं व्रती के लिए छठ पूजा के समय बहुत आत्म संयम रखना चाहिए.

छठ पूजा 2025: Date

  • 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार) : नहाय-खाय  
  • 26 अक्टूबर 2025 (रविवार)  : लोखंड/ खरना 
  • 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार) : संध्याकालीन अर्घ्य
  • 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार):  प्रातःकालीन अर्घ्य
 सायं अर्ध्य  27 अक्टूबर (सोमवार) 2025  को और सुबह का अर्ध्य  28 अक्टूबर (मंगलवार) 2025 को संपन्न होगी. भक्त भगवान सूर्य के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। दूसरे और तीसरे दिन को खरना और छठ पूजा कहा जाता है - इन दिनों के दौरान महिलाएं कठिन निर्जला व्रत रखती हैं। आइये जानते हैं छठ पूजा के सभी चरणों जैसे नहाय खाय, खरना, संध्या और उषा अर्ध्य की क्या है विशेषता और महत्त्व. 

नहाय खाय: महत्व 

छठ पूजा का पहला चरण नहाय खाय होता है जिसका प्रकुख उद्देश्य होता है कि व्रती शुद्ध होकर व्रत के लिए तैयार हो जाती है। यह चरण कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है जो छठ पूजा का प्रथम चरण कहा जाता है। स्नान के बाद वे साफ कपड़े पहनते हैं। फिर वे फलाहार करते हैं। फलाहार में आमतौर पर फल, दूध, दही, आदि शामिल होते हैं। इस दिन व्रती स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं और फलाहार करते हैं। इस दिन से व्रतियों को 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।

खरना: महत्व 

छठ पूजा का दूसरा चरण खरना है जो सामान्य पंचांग के अनुसर कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। खरना का दिन एक महत्वपूर्ण दिन है जिसका प्रकुख उद्देध्य प्रतीत होता जो तियों को छठ पूजा के लिए तैयार करता है।खरना के दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और उपवास शुरू करते हैं। खरना के भोजन में खिचड़ी, गुड़, अरवा चावल, चना, मटर, मूंग, तिल, घी, आदि शामिल होते हैं। खरना के बाद व्रती शाम तक उपवास रखते हैं। यह छठ पूजा के दूसरे दिन का पहला भोजन है जो यह व्रतियों के लिए ऊर्जा का स्रोत माना है। यह व्रतियों को उपवास के लिए तैयार करता है।

खरना के दिन प्रसाद बनाने की परंपरा भी है। प्रसाद में ठेकुआ, पंचामृत, आदि शामिल होते हैं। प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है। प्रसाद को छठी मैया को अर्पित किया जाता है।

संध्या अर्घ्य : महत्व 

छठ पूजा का तीसरा चरण संध्या अर्घ्य है जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है। यह छठ पूजा का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जिसके अंतर्गत व्रती और परिवार के सभी सदस्य इस दिन व्रती सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के लिए व्रती घर के पास नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। अर्घ्य में ठेकुआ, केला, अदरक, वल, गुड़, दूध, फल, आदि शामिल होते हैं जिन्हे भगवन सूर्य को अर्ध्य देने के लिए प्रयोग किया जाता है।

संध्या अर्घ्य  छठ पूजा के तीसरे दिन की सबसे महत्वपूर्ण रस्म है जिसके अंतर्गत मान्यता है कि यह सूर्य भगवान को धन्यवाद देने का अवसर है। कहा जाता है कि डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की यह अनोखी प्ररम्परा है जो छठ में देखने को मिलती है. सामान्यता लोग उगते हुए सूर्य को ही देखना चाहते हैं लेकिन छठ में डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की  परंपरा भी शामिल है. यह व्रतियों की प्रार्थनाओं को सूर्य भगवान तक पहुंचाने का एक तरीका है।

उषा अर्घ्य: महत्व 

छठ पूजा का चौथा और अंतिम चरण उषा अर्घ्य है। यह चरण कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इस दिन व्रती सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। उषा अर्घ्य के दिन व्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। व्रती एक मिट्टी के बर्तन में चावल, गुड़, दूध, फल, आदि लेकर जाते हैं। व्रती सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती फल और मिठाई खाते हैं। उषा अर्घ्य देने के लिए व्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। उषा अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।





Chhath Puja 2025: इस प्रकार सजाएं अपना छठ घाट कि मंत्रमुग्ध हो जाए हर देखने वाला!


Chhath Puja 2025:  दिवाली के समापन के साथ हीं आस्था के महापर्व अर्थात छठ की तैयारी शुरू होती है। इस  वर्ष अर्थात Chhath 2025 का सांध्यकालीन अर्ध्य  27 अक्टूबर 2025 को तथा अस्ताचलगामी अर्थात डूबते सूर्य को मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 को अर्घ्य अपर्ण की जाएगी। 

छठ पूजा एक ऐसा पावन पर्व है जिसे भले हीं घर की महिला करती है, लेकिन उसे पूर्ण रूप  से संपन्न करवाने में पूरा परिवार केसदस्यों को लगना पड़ता है। छठ पर्व में जितनी तैयारी घर के अंदर करनी होती  है, इससे भी ज्यादा छठ  घाट के लिए करना होगा हैं जहाँ सूर्य देव और छठी मैया के लिए एक शांत और गहन आध्यात्मिक वातावरण तैयार किया जा सके। जाहिर है कि छठ घाट को सजावट और डेकोरेट करना  भी उतना हीं जरुरी होता है क्योंकि सुबह और शाम का अर्ध्य जो सूरज भगवन को दिया जाता  है,वह छठ घाट पर हीं संपन्न होता है. 


घाट की सजावट में प्रकाश, सादगी और पारंपरिक, प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है ताकि सूर्य देव और छठी मैया के लिए एक शांत और गहन आध्यात्मिक वातावरण तैयार किया जा सके। ध्यान रखें की छठ पूजा की सामग्री से भरे हुए बांस के सूप (Dala) और दौरा (टोकरी) को खास तौर पर सजाने  के लिए ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके लिए इन्हे ढकने के लिए लाल, पीले कपड़े या फूलों से हल्की सजावट की जा सकती है।

छठ घाट की प्रभावशाली और पारंपरिक सजावट के लिए कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:

दीये/मोमबत्तियाँ: यह सबसे ज़रूरी तत्व है। घाट की सीढ़ियों पर, अर्घ्य क्षेत्र के चारों ओर और घाट के किनारों पर जलते हुए मिट्टी के दीयों (दीयों) या छोटी मोमबत्तियों की कतारें लगाएँ। हज़ारों छोटे दीयों की सामूहिक चमक एक मनमोहक, पवित्र और प्रभावशाली छवि बनाती है, खासकर सूर्यास्त (संध्या अर्घ्य) और सूर्योदय (उषा अर्घ्य) के समय।

स्ट्रिंग लाइट्स (फेयरी लाइट्स): आज जबकि दिया का स्थान स्ट्रिंग लाइट और रंगीन लाईट ने  ले लिए है, मुख्य पूजा क्षेत्र, रेलिंग या आस-पास के पेड़ों की सीमा को रेखांकित करने के लिए साधारण, गर्म रंग की स्ट्रिंग लाइट्स (एलईडी फेयरी लाइट्स) का उपयोग करना ज्यादा सही होगा. खासतौर पर रात  के  अंध्रेरे में लाईट की जगमगाहट छठ घाट  की सजावट में चार चाँद लगा देता है।  

 फूलों की सजावट:  गेंदे के फूल, और फूलों की पंखुड़ियों की रंगोली से भी घाट   सजाना अच्छा लगता है. आखिर बगैर फूल के सजावट की कल्पना  भी कैसे की जा सकती है. घाट के प्रवेश द्वार पर तोरण बनाकर या पानी की ओर जाने वाले रास्ते के किनारों को सजाने के लिए गेंदे की लंबी लड़ियों का इस्तेमाल करें। त्योहार की पर्यावरण-अनुकूल भावना को ध्यान में रखते हुए, कृत्रिम रंगों के बजाय ताज़ी फूलों की पंखुड़ियों (विशेषकर गेंदा, गुलाब और कमल की पंखुड़ियों) का उपयोग करके अर्घ्य क्षेत्र के पास ज़मीन पर बड़ी, जीवंत रंगोली बनाएँ।

केले के पेड़ के डंठल: केला के फल  उसके पते और पेड़ को भी हिंदू सभ्यता  संस्कृति में शुभ माना जाता है. इसके अतिरिक्त केला को समृद्धि के प्रतीक और पवित्र स्थान को चिह्नित करने के लिए उसके प्रयोग किया  है. छठ घाट की सजावट पारंपरिक रूप से केले के पेड़ के डंठलों को अर्घ्य क्षेत्र के किनारों पर रखा जाता है।

 व्यवस्थित अर्पण क्षेत्र: सूप (टोकरियाँ) की व्यवस्था: प्रसाद को व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित करने से सबसे सुंदर छवि बनती है। अर्घ्य से पहले पानी के किनारे फलों, ठेकुआ, गन्ने और दीयों से भरी सजी हुई बाँस की टोकरियाँ (सूप या दौरा) व्यवस्थित करें, और उन्हें साफ-सुथरे और पारंपरिक तरीके से रखें।

प्रभावशाली छवि के लिए सुझाव:स्वच्छता और व्यवस्था: छठ घाट का सबसे प्रभावशाली पहलू उसकी पवित्रता और स्वच्छता है। सुनिश्चित करें कि क्षेत्र की सावधानीपूर्वक सफाई की गई हो और सभी सजावट व्यवस्थित रूप से की गई हो।

प्राकृतिक तत्वों पर ध्यान दें: चूँकि छठ प्रकृति (सूर्य, जल और पृथ्वी) को समर्पित एक त्योहार है, इसलिए प्लास्टिक या कृत्रिम सामग्रियों की बजाय बायोडिग्रेडेबल और प्राकृतिक सजावट (फूल, मिट्टी के दीये, गन्ना, फल) को प्राथमिकता दें।

शुभ रंगों का प्रयोग करें: त्योहार से जुड़े पारंपरिक, चमकीले रंगों, जैसे पीला, लाल और नारंगी, जो सूर्य और शुभता के प्रतीक हैं, को कपड़ों, फूलों और रंगोली के माध्यम से शामिल करें।

छठ पूजा 2025: इन डिज़ाइन की मदद से बनाएं खास रंगोली स्वास्तिक, कमल का फूल, मोर आदि

dipawali rangoli ka importance design tips to making
छठ पूजा 2025: भारत त्योहारों का देश है और यहाँ के हर खास आयोजन और तैयारियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है रंगोली का निर्माण। जी हाँ, रंगोली का धार्मिक महत्व है और यह देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह बुरी आत्माओं को दूर रखता है और सद्भाव को बढ़ावा देता है। रंगोली बनाने के लिए हालाँकि अनगिनत डिज़ाइन हो सकते हैं लेकिन आप खास तौर पर लक्ष्मी जी के पद चिन्ह, स्वास्तिक, कमल का फूल:,मोर:आदि को रंगोली में स्थान दे सकते हैं जिन्हे काफी शुभ और  घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. 

रंगोली बनाने से कलात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा मिलता है और समुदाय एक साथ आते हैं। इसका उपयोग पूजा कक्षों और मंदिरों में प्रसाद के रूप में भी किया जाता है, जिससे आध्यात्मिक वातावरण बढ़ता है।

इस दिन लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके, रंगोली बनाकर, दीये जलाकर और मिठाई खाकर इस त्योहार को मनाते हैं।

दीपावली में रंगोली बनाने का विशेष महत्व है। रंगोली को हिंदू धर्म में शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रंगोली बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मां लक्ष्मी का आगमन होता है। रंगोली बनाने से घर की सुंदरता भी बढ़ जाती है।

आप पारंपरिक चौथाई आकार के बजाय इस सरल अर्ध-वृत्त रंगोली पैटर्न का उपयोग कर सकते हैं। कोने में एक मध्यम आकार की उर्ली कटोरी स्थापित करने के बाद, कटोरी के चारों ओर आधा गोलाकार रंगोली बनाएं। डिज़ाइन को पूरा करने के लिए, रंगोली को भरने के लिए फूलों और पंखुड़ियों के बीच पत्तियां डालें।

दीपावली में रंगोली के कई प्रकार बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रकार हैं:

Rangoli art how to make know all about Rangoli


लक्ष्मी जी के पद चिन्ह: 

यह रंगोली सबसे लोकप्रिय रंगोली है। इसमें मां लक्ष्मी के पद चिन्ह बनाए जाते हैं।

स्वास्तिक: 

स्वास्तिक एक शुभ प्रतीक है। इसे रंगोली में बनाने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती 

कमल का फूल: 

कमल का फूल शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। इसे रंगोली में बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

मोर:

 मोर को सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। इसे रंगोली में बनाने से घर की सुंदरता बढ़ जाती है।

रंगोली बनाने के तरीके

रंगोली बनाने के लिए सबसे पहले एक साफ-सुथरा स्थान चुनें। फिर उस स्थान को रंगोली बनाने के लिए तैयार कर लें। इसके लिए आप उस स्थान पर चावल का आटा या गोबर का घोल लगा सकते हैं।

रंगोली बनाने के लिए आपको रंगों की आवश्यकता होगी। आप अपनी पसंद के रंगों का उपयोग कर सकते हैं। रंगोली बनाने के लिए आप सूखे रंगों का उपयोग कर सकते हैं या फिर रंगोली पाउडर का उपयोग कर सकते हैं।

रंगोली बनाने के लिए सबसे पहले एक सरल डिजाइन चुनें। फिर उस डिजाइन को उस स्थान पर बनाएं जिस स्थान पर आप रंगोली बनाना चाहते हैं। आप अपनी पसंद के अनुसार डिजाइन में बदलाव भी कर सकते हैं।

रंगोली बनाने के लिए आप एक रंगोली बनाने की स्टेंसिल का उपयोग भी कर सकते हैं। स्टेंसिल का उपयोग करने से आपको रंगोली बनाने में आसानी होगी।

रंगोली बनाने के बाद उसे सुखाने दें। फिर उस स्थान पर दीये जलाएं।

सुंदर रंगोली बनाने के कुछ टिप्स

  • रंगोली बनाने के लिए हमेशा साफ-सुथरे रंगों का उपयोग करें।
  • रंगोली बनाते समय सावधानी बरतें कि रंगोली में कोई गड़बड़ी न हो।
  • रंगोली बनाते समय अपनी कल्पना का उपयोग करें और कुछ अलग और आकर्षक डिजाइन बनाएं।
  • रंगोली बनाते समय समय का ध्यान रखें और उसे जल्दी-जल्दी न बनाएं।

रंगोली बनाने के लिए क्या सामग्री चाहिए?

सामान्य रूप से रंगोली बनाने की प्रमुख सामग्री है- पिसे हुए चावल का घोल, सुखाए हुए पत्तों के पाउडर से बनाया रंग, चारकोल, जलाई हुई मिट्टी, लकड़ी का बुरादा आदि। रंगोली का तीसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व पृष्ठभूमि है। रंगोली की पृष्ठभूमि के लिए साफ़ या लीपी हुई ज़मीन या दीवार का प्रयोग किया जाता है।

Chhath 2025@ रंगोली डिज़ाइन: भारतीय संस्कृति की रंगीन पहचान और शुभता का प्रतीक


Chhath 2025: त्योहारों के मौसम में रंगोली हमारे घर की सजावट का एक अहम हिस्सा है। दरअसल, रंगोली सिर्फ़ सजावट का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसे सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। रंगोली एक प्राचीन कला है जिसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और लगभग सभी घरों में त्योहारों के उत्सव के रूप में इसका पालन किया जाता है। 
यहाँ हम रंगोली बनाने की सभी नवीनतम और अपडेटेड तरकीबें बता रहे हैं, जिनमें छोटी रंगोली, दिवाली के लिए सरल रंगोली डिज़ाइन, मोर रंगोली, मोर रंगोली, लक्ष्मी पदचिन्ह रंगोली शामिल हैं, जो आपकी दिवाली के उत्सव में और भी रंग भर देंगी।


भारतीय संस्कृति और रंगोली

रंगोली को तमिलनाडु में कोलम, पश्चिम बंगाल में अल्पना, आंध्र प्रदेश में मुग्गू आदि नामों से जाना जाता है।हर रंगोली डिज़ाइन अपनी आकृति और रंगों में भारतीय परंपरा की गहराई और संस्कृति की सुंदरता को संजोए हुए होता है। यह न केवल सौंदर्य और कला का प्रतीक है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, खुशहाली और समृद्धि का भी द्योतक माना जाता है। रंगोली के रंग हमारे जीवन में उल्लास भरते हैं और देवी लक्ष्मी का स्वागत करने का शुभ संकेत देते हैं। हर रंगोली डिज़ाइन अपनी आकृति और रंगों में भारतीय परंपरा की गहराई और संस्कृति की सुंदरता को संजोए हुए होता है।

दिवाली रंगोली

आमतौर पर हम दिवाली का त्यौहार धन और पैसे की देवी मानी जाने वाली देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए मनाते हैं। रंगोली बनाना भी देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए सजावट का एक हिस्सा है। इसीलिए घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाई जाती है ताकि सकारात्मक ऊर्जा के साथ प्रभावशाली रूप मिले और देवी लक्ष्मी का स्वागत भी हो। ऐसा माना जाता है।

रंगोली बनाना

रंगोली आमतौर पर चावल के पाउडर और चाक से बनाई जाती है, हालाँकि आजकल बाज़ार में कई तरह के रंग उपलब्ध हैं, जिससे रंगोली बनाने वालों को असीमित रंगों के साथ एक अनूठी थीम के साथ रंगोली बनाने की आज़ादी मिलती है।


रंगोली बनाने के आसान तरीके

रंगोली बनाना इस बात पर निर्भर करता है कि आपने रंगोली के लिए कौन सी थीम चुनी है। हालाँकि, रंगोली विभिन्न रंगों का मिश्रण होती है और अपनी डिज़ाइन के कारण प्रभावशाली दिखती है... लेकिन आजकल रंगोली बनाना युवा लड़कियों के लिए एक जुनून बन गया है।

रंगोली के पारंपरिक डिज़ाइन

रंगोली बनाना निश्चित रूप से एक जुनून बन गया है जिसके तहत लोग रंगोली को कुछ खास बनाने के लिए उसकी थीम बनाते हैं। आमतौर पर लड़कियाँ रंगोली को प्रभावशाली बनाने के लिए देवी-देवताओं और अन्य देवताओं के चित्रों के आधार पर थीम बनाती हैं। हालाँकि, आमतौर पर रंगोली का विषय विभिन्न फूलों, अमूर्त डिज़ाइनों, कलश जैसे शुभ चिह्नों और अन्य चीज़ों पर निर्भर करता है।

जैसा कि हम जानते हैं, रंगोली को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और इसलिए इसे दशहरा, गुड़ी पड़वा, नवरात्रि, होली आदि जैसे विभिन्न अवसरों पर बनाया जाता है। रंगोली बनाने के पीछे आम अवधारणा यह है कि हम अपने घर को सजाएँ और अपने जीवन के शुभ अवसरों पर शुभ और अशुभ चीज़ें बनाएँ।

Diwali 2025 Laxmi Puja : माँ लक्ष्मी विधि और आरती


माँ लक्ष्मी को समृद्धि, धन, और सुख-शांर्त की देवी माना जाता हैं और आज शुभ दीपावली के अवसर पर माँ लक्ष्मी और भगवन गणेश का पूजन किया जाता है. 

मााँ लक्ष्मी की आराधना विशेष तौर पर  धनतेरस से लेकर दीपावली को भी किया जाता है क्योंकि हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार धनतेरस और दिवाली के अवसर पर धन और वेल्थ की कामना को ध्यान में रखकर मां लक्ष्मी के  पूजन से लक्ष्मी  का वास होता है साथ ही घर मेंसुख-शांति बनी रहती है, और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पूजा की विधि 

  • माँ लक्ष्मी की पूजन के लिए कुछ तैयारियों का किया जाना जरुरी है. इसके लिए आप आप इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए-
  • स्वच्छता बनाए रखें: पूजा स्थल को स्वच्छ करें और एक कपडा बिछा कर सुन्दर माहौल बनाएं. 
  • स्नान और वस्त्र: दिवाली के दिन साफ़ सुथरा घर और माहौल बनाकर पूजा के पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • गणेश पूजन: सबसे पहले भगवन गणेश की पूजा कर व्रत का संकल्प लें।
  • माँ लक्ष्मी की पूजा: दिवाली के दिन के लिए खास तौर पर लाए गए माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति पर फू ल, दीपक, और भोग अर्पित करें ।
  •  माँ लक्ष्मी की पुजन के लिए उपयुक्त पुस्तक का पाठ  करें ।
  • आरती दीपक जलाकर मााँ लक्ष्मी की आरती करें और दीपक को चारों र्दशाओं में घुमाएं ।
  •  मााँ लक्ष्मी से धन, सुख, और समृद्धि प्राप्त करें ।

माँ लक्ष्मी की आरती 

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता.

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥


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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में उल्लिखित टिप्स/सुझाव केवल सामान्य जानकारी है जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं.ताकि आपको उस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो कि आम लोगों से अपेक्षित है. आपसे निवेदन है कि कृपया इन सुझावो को  पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए तथा अगर आपके पास इन विषयों से सम्बंधित कोई विशिष्ट प्रश्न हैं तो हमेशा सम्बंधित एक्सपर्ट से अवश्य परामर्श करें।


खजुराहो: प्रेम, कला और संस्कृति का अनोखा संगम-महत्त्व, इतिहास, विशेषता


भारत की धरोहरें विश्वभर में अपनी भव्यता और कला-कौशल के लिए जानी जाती हैं और इसमें किसी को संदेह नहीं होनी चाहिए. उन्हीं में से एक है खजुराहो जो  अपनी अद्वितीय मूर्तिकला, मंदिरों की सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. 

खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है. खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल राजवंश के दौरान हुआ था, जो 950 और 1050 के बीच अपने चरमोत्कर्ष पर था। अब केवल लगभग 20 मंदिर ही बचे हैं; ये तीन अलग-अलग समूहों में आते हैं और दो अलग-अलग धर्मों - हिंदू धर्म और जैन धर्म - से संबंधित हैं। 

खजुराहो  अपनी नागर शैली की वास्तुकला और कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है.  इन्हें पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी समूहों में विभाजित किया गया है, जिनमें महादेव मंदिर जैसे प्रसिद्ध मंदिर शामिल हैं. 

ये मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला के बीच एक आदर्श संतुलन बनाते हैं।

खजुराहो समूह: संक्षिप्त तथ्य

  • 10वीं और 11वीं शताब्दी ईस्वी में इस क्षेत्र पर शासन करने वाले चंदेल राजवंश की भारतीय मंदिर कला और वास्तुकला।
  • 1986 में यूनेस्को ने खजुराहो को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया।
  • 6 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले सुरम्य परिदृश्य में, 23 मंदिर (जिनमें एक आंशिक रूप से उत्खनित संरचना भी शामिल है) खजुराहो स्मारक समूह के पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी समूहों का निर्माण करते हैं।
  • खजुराहो को प्राचीन काल में 'खजूरपुरा' और 'खजूर वाहिका' के नाम से भी जाना जाता था।
  • खजुराहो का मतलब संस्कृत शब्द 'खर्जुरावाहक' से है, जिसका अर्थ है खजूर ले जाने वाला या खजूर के पेड़ों वाला. 
  • यह स्मारक समूह यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का एक धरोहर क्षेत्र गिना जाता है।
  • मंदिर नागर शैली में बने हैं, जिनमें ऊँचे शिखर और जटिल नक्काशी देखने को मिलती है। 
  • मंदिरों की मूर्तियों में प्रेम और यौन कला को भी बहुत सुंदर ढंग से दिखाया गया है।
छतरपुर मध्य प्रदेश राज्य की उत्तर पूर्वी सीमा में स्थित है यहाँ पर अन्य पर्यटक स्थल भी स्थित है जिनमें शामिल है-

  • चित्रगुप्त मंदिर
  • चौंसठ योगिनी
  • कंदरिया महादेव
  • लक्ष्मण मंदिर
  • चतुर्भुज मंदिर

जानिए अक्टूबर में जन्मे लोगों का स्वभाव – तर्कशक्ति, संवेदनशीलता और रचनात्मकता का संगम


अक्टूबर में जन्मे लोग: अक्टूबर महीने में जन्मे लोग कई अनोखे गुणों से युक्त होते हैं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाते हैं। अक्टूबर में जन्मे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि  इन्हें किसी भी प्रकार की कला, संगीत, चित्रकला, अभिनय, नृत्य आदि से बहुत लगाव होता है। अक्टूबर महीने में जन्मे लोग विविधताओं से भरे होते हैं और ऐसे लोग जीवन में संवेदनशील होते हैं, ये जीवन को बहुत व्यवस्थित और अनुशासन के साथ जीना पसंद करते हैं। 

अगर आप अक्टूबर में जन्मे लोगों की जीवनशैली का अध्ययन करें, तो आप पाएंगे कि ये भाषा के प्रति बहुत गंभीर होने के साथ-साथ तर्क-शक्ति से भी परिपूर्ण होते हैं। अक्टूबर में जन्मे लोगों को कला से विशेष प्रेम होता है और साथ ही ये अपने जीवन में नैतिक सिद्धांतों और आदर्शवाद में दृढ़ विश्वास रखते हैं। धन-संपत्ति के मामले में ये चीजें इनके लिए ज़्यादा मायने नहीं रखतीं। आइए देखें कि प्रसिद्ध ज्योतिषी, अंकशास्त्री और राशिफल विशेषज्ञ हिमांशु रंजन शेखर द्वारा बताई गई इन लोगों की विशेषताएँ, गुण और भविष्यवाणी क्या हैं।

कला के दीवाने

अक्टूबर महीने में जन्मे लोग कला यात्राओं के प्रति बहुत गंभीर होते हैं और इन्हें किसी भी प्रकार की कला या कलात्मक चीज़ों का बहुत शौक होता है। चाहे वह संगीत हो, चित्रकला हो या शिल्पकला, जीवन में सभी प्रकार की कलात्मक चीज़ों को बहुत महत्व दिया जाता है। ऐसे लोग स्वयं भी किसी न किसी प्रकार की कला को अपने शौक के रूप में अपनाते हैं। वे अपने जीवन में कला को हर तरह से, चाहे वह पर्यावरण हो, परिवार हो या आसपास का वातावरण, बहुत महत्व देते हैं।

रहस्यमय विषयों में रुचि

अक्टूबर महीने में जन्मे लोग अध्यात्म/दार्शनिक/ज्योतिष/आदि सहित रहस्यमय विषयों के शौकीन होते हैं। ऐसे लोग रहस्यमय और गूढ़ विषयों का अध्ययन करते हैं और अक्सर इन रहस्यमय विषयों का अनुसरण करते हैं और उन्हें अपने जीवन में अपनाते हैं।

शांत स्वभाव

अक्टूबर महीने में जन्मे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने जीवन में बहुत गंभीर होते हैं। आमतौर पर वे जीवन में आने वाली परेशानियों या उपद्रवी स्थितियों से बचना चाहते हैं या खुद को उनसे अप्रभावित रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि जीवन में प्रगति के लिए शांति ही एकमात्र सही रास्ता है और वे आमतौर पर आंतरिक और बाहरी परिस्थितियों का सामना शांति और गंभीरता से करते हैं या ऐसी किसी भी चीज़ से बचते हैं जो उन्हें असंतुलित करती है या प्रभावित करती है।

संवेदनशील और गंभीर स्वभाव

अक्टूबर माह में जन्मे लोग आमतौर पर बहुत संवेदनशील और गंभीर स्वभाव के होते हैं जो इन्हे जीवन में खास और अलग बनाती है. ऐसे लोगों के लिए संवेदनशीलता या गंभीरता उनकी कमज़ोरी नहीं बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का हथियार है। ऐसा नहीं है कि वे अपने, अपने परिवार या खुद के आस-पास की उथल-पुथल या प्रतिकूल परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, बल्कि सच तो यह है कि वे गंभीरता से इन परिस्थितियों से बाहर निकलने का विकल्प और रास्ता ढूँढ़ते हैं और मिस्टर कूल की तरह सोचते हैं।

मज़बूत तर्कशक्ति

अक्टूबर माह में जन्मे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनमें मज़बूत तर्कशक्ति और समझाने की शक्ति होती है। वे आसानी से दूसरे विचारों या विचारधारा से प्रभावित नहीं होते और वे किसी भी विचारधारा को जल्दबाज़ी में आसानी से नहीं अपनाते। उनके सामने आने वाले किसी भी सिद्धांत या विचारधारा को वे अपनी तार्किकता के तराजू पर तौलते हैं और संतुष्ट होने के बाद ही उसे अपने जीवन में अपनाते हैं। लेकिन सच यह भी है कि एक बार वह किसी सिद्धांत या विचारधारा से प्रभावित हो जाए तो उसके लिए सब कुछ छोड़ देता है।

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अस्वीकरण: कृपया ध्यान दें कि लेख में बताए गए सुझाव/सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से हैं ताकि आपको इस मुद्दे के बारे में अपडेट रखा जा सके जो आम लोगों से अपेक्षित है और इन्हें पेशेवर सलाह के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए/पालन नहीं किया जाना चाहिए। हम अनुशंसा करते हैं और आपसे अनुरोध करते हैं कि यदि आपके पास एस्ट्रोलॉजी संबंधित विषय से के बारे मे कोई विशिष्ट प्रश्न हैं, तो हमेशा अपने पेशेवर सेवा प्रदाता से परामर्श करें।



नजरिया जीने का : मेरा जीवन मेरा सबसे बड़ा शिक्षक-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

Point of View: मेरा जीवन मेरा सबसे बड़ा शिक्षक-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नजरिया जीने का : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का जीवन चुनौतियों से भरा रहा है और निसंदेह उन्होंने काफी संघर्षपूर्ण जीवन जिया है. गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधान मंत्री बनने का सफर अपने आप में मोटिवेशनल और आदर्श से भरा है है. अपने संघर्ष और सफलताओं के संदर्भ में नरेंद्र मोदी के अनुसार चुनौतीपूर्ण बचपन "विपत्तियों का विश्वविद्यालय" रहा है और साथ ही उनका कहना है कि , "मेरा जीवन मेरा सबसे बड़ा शिक्षक है।"

ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जेरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर निखिल कामथ के पॉडकास्ट में जब श्री मोदी से पूछा गया कि परिस्थितियों ने किस तरह से जीवन को आकार दिया है, तो उन्होंने अपने चुनौतीपूर्ण बचपन को "विपत्तियों का विश्वविद्यालय" बताया और कहा, "मेरा जीवन मेरा सबसे बड़ा शिक्षक है।"


उन्होंने कहा कि अपने राज्य की महिलाओं के संघर्ष को देखकर, जो पानी लाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलती थीं, उन्हें स्वतंत्रता के बाद पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता से प्रेरणा मिली। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि वे योजनाओं का स्वामित्व नहीं लेते हैं, लेकिन वे राष्ट्र को लाभ पहुंचाने वाले सपनों को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं।



 उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के मार्गदर्शक सिद्धांतों को साझा किया: अथक परिश्रम करना, व्यक्तिगत लाभ की इच्छा नहीं करना और जानबूझकर गलत काम करने से बचना। उन्होंने स्वीकार किया कि गलतियाँ मानवीय हैं, लेकिन उन्होंने अच्छे इरादों के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने भाषण को याद करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वे कड़ी मेहनत से पीछे नहीं हटेंगे, वे अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करेंगे और वे गलत नीयत से कोई गलती नहीं करेंगे। वे इन तीन नियमों को अपने जीवन का मंत्र मानते हैं।



आदर्शवाद और विचारधारा के महत्व के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि "राष्ट्र प्रथम" ही हमेशा उनका मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है। उन्होंने कहा कि यह विचारधारा पारंपरिक और वैचारिक सीमाओं से परे है, जिससे उन्हें नए विचारों को अपनाने और पुराने विचारों को त्यागने की अनुमति मिलती है, यदि वे राष्ट्र के हित में हों। उन्होंने कहा कि उनका अटल मानक "राष्ट्र प्रथम" है। 

प्रधानमंत्री ने प्रभावशाली राजनीति में विचारधारा की तुलना में आदर्शवाद के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विचारधारा आवश्यक है, लेकिन सार्थक राजनीतिक प्रभाव के लिए आदर्शवाद महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का उदाहरण दिया, जहां विभिन्न विचारधाराएं स्वतंत्रता के सामान्य लक्ष्य के लिए आपस में समाहित हो गयीं। (स्रोत-PIB )

Karwa Chauth Sargi: क्या होता है सरगी, इसे कौन देता है, क्या और कब खाना चाहिए- जानें सब कुछ

Importance of sargi in Karwa chauth

Karwa Chauth Sargi: वैदिक पंचांग के अनुसार, करवा चौथ का व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है.करवा चौथ का व्रत त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है, जिसके लिए वे खास तैयारी करती है और इसके इन्तजार भी करती हैं. पति को दीर्घायु, स्वास्थ्य और खुशहाली रखने के लिए सभी सुहागिन महिलाएं इस दिन  को निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद के दर्शन के बाद व्रत का पारण करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से  मिलती है और वैवाहिक जीवन गहराई और प्रेम बना रहता है.

क्या होता है सरगी? 

इस व्रत का एक प्रमुख पड़ाव होता है जिसे सरगी के नाम से जाना जाता है. क्योंकि करवाचौथ वाले दिन एक स्त्री पूरा दिन निर्जला व्रत रखना पड़ता है इसलिए सरगी से व्रत का आरम्भ होता है. 

सरगी (सरगी थाली) सास की तरफ से अपनी बहू के लिए प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक है। करवा चौथ की सरगी व्रत से पहले सुबह का विशेष भोजन शुरू हो जाता है। यह थाली सास द्वारा तैयार की जाती है और बहू को दी जाती है.  यह थाली सास द्वारा तैयार की जाती है और बहू को दी जाती है ताकि दोनों साथ मिलकर इसे खा सकें और व्रत की शुरुआत खुशी और प्यार के साथ कर सकें।

सरगी (सरगी थाली) सास की तरफ से अपनी बहू के लिए प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक है। करवा चौथ की सरगी व्रत से पहले सुबह का विशेष भोजन शुरू हो जाता है।

सरगी क्या चीज होती है, करवा चौथ की सरगी कौन देता है, सरगी खाने के बाद क्या करना चाहिए, और करवा चौथ के दिन सरगी में क्या क्या खाना चाहिए आदि सभी सवालों के जवाब आप यहाँ प्राप्त कर सकते हैं.

सामान्यत: ऐसा माना जाता है की सरगी सास के द्वारा दी जाती है. लेकिन कई परिवारों में जब सास न हो तो घर की दूसरी बड़ी महिलाएं जैसे बड़ी ननद या जेठानी भी सरगी देती है.क्योकि करवा चौथ  दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती है इसलिए सरगी लेने का सही समय करवा चौथ के दिन सूरज निकलने से पहले सुबह तीन से चार बजे के आस-पास महिलाएं सरगी लेती हैं.

करवा चौथ के व्रत में सरगी का विशेष महत्व होता है। सरगी एक प्रकार की रस्म होती है जिसमें सास अपनी बहू को सुहाग का सामान, फल, ड्राय फ्रूट्स और मिठाई देखकर सुखी वैवाहिक जीवन जीने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। परंपरा के अनुसार, सरगी में रखे व्यंजनों को ग्रहण करके ही इस व्रत का शुभारंभ किया जाता है। यदि किसी महिला की सास ना हो तो यह रसम उसकी जेठानी या फिर बहन भी कर सकती है।

सरगी का महत्व निम्नलिखित है:

  • यह व्रत की शुरुआत का संकेत है। सरगी खाने के बाद ही महिलाएं व्रत शुरू करती हैं।
  • यह व्रत के लिए ऊर्जा प्रदान करती है। सरगी में पौष्टिक और आसानी से पचने वाले व्यंजन होते हैं जो व्रतियों को पूरे दिन ऊर्जावान बनाए रखते हैं।
  • यह सुहाग का प्रतीक है। सरगी में सुहाग का सामान होता है जो व्रतियों को सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देता है।

करवा चौथ की सरगी में आमतौर पर निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

  • फल और सब्जियां: आम, केला, जामुन, अंगूर, सेब, गाजर, मूली, खीरा, आदि।
  • ड्रायफ्रूट्स: बादाम, काजू, किशमिश, अंजीर, आदि।
  • मिठाइयां: गुलाब जामुन, लड्डू, मिठाई, आदि।
  • सुहाग का सामान: चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, सिंदूर, इत्र, आदि।

करवा चौथ की सरगी को सूर्योदय से पहले ग्रहण करना चाहिए। इसे ग्रहण करने के लिए महिलाएं हाथों में पानी लेकर सरगी की थाली को अपने सिर पर रखती हैं और सास से आशीर्वाद लेती हैं। फिर, वे थाली में रखे व्यंजनों को ग्रहण करती हैं।

FAQs

करवा चौथ की सरगी कौन देता है?

सामान्यत: ऐसा माना जाता है की सरगी सास के द्वारा दी जाती है. लेकिन कई परिवारों में जब सास न हो तो घर की दूसरी बड़ी महिलाएं जैसे बड़ी ननद या जेठानी भी सरगी देती है

सरगी क्या चीज होती है?

यह व्रत की शुरुआत का संकेत है। सरगी खाने के बाद ही महिलाएं व्रत शुरू करती हैं।

करवा चौथ के दिन सरगी में क्या क्या खाना चाहिए?

आप इन चीजों का सरगी के रूप में ले सकते हैं जैसे फल और सब्जियां-आम, केला, जामुन, अंगूर, सेब, गाजर, मूली, खीरा, बादाम, काजू, किशमिश, अंजीर, गुलाब जामुन, लड्डू, मिठाई, आदि।


75 वेटलैंड बर्ड्स सैंक्चुअरी : रामसर स्‍थलों की सूची में 11 और आर्द्रभूमि जुड़ीं, पाएं विस्तृत जानकारी


Wetlands Birds Sanctuaries Ramsar List

एक और जहाँ देश स्वतंत्रता के 75वें वर्ष  मना रहा है ऐसे में भारत के लिए  और  उपलब्धि हासिल हुई है जहाँ 75 रामसर स्थलों को बनाने के लिए रामसर स्‍थलों की सूची में 11 और आर्द्रभूमि शामिल हो गई हैं। 11 नए स्‍थलों में तमिलनाडु में चार (4), ओडिशा में तीन (3), जम्मू और कश्मीर में दो (2) और मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र प्रत्‍येक में एक (1) शामिल हैं।

भारत में स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में देश में 13,26,677 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए कुल 75 रामसर स्थलों को बनाने के लिए रामसर स्‍थलों की सूची में 11 और आर्द्रभूमि शामिल हो गई हैं।



11 नए स्‍थलों में तमिलनाडु में चार (4), ओडिशा में तीन (3), जम्मू और कश्मीर में दो (2) और मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र प्रत्‍येक में एक (1) शामिल हैं। इन स्थलों को नामित करने से इन आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन तथा इनके संसाधनों के कौशलपूर्ण रूप से उपयोग करने में सहायता मिलेगी।
1971 में ईरान के रामसर में रामसर संधि पत्र पर हस्ताक्षर के अनुबंध करने वाले पक्षों में से भारत एक है। भारत ने 1 फरवरी, 1982 को इस पर हस्ताक्षर किए। 1982 से 2013 के दौरान, रामसर स्‍थलों की सूची में कुल 26 स्‍थलों को जोड़ा गया, हालांकि, इस दौरान 2014 से 2022 तक, देश ने रामसर स्थलों की सूची में 49 नई आर्द्रभूमि जोड़ी हैं।
 वर्ष (2022) के दौरान ही कुल 28 स्थलों को रामसर स्थल घोषित किया गया है। रामसर प्रमाण पत्र में अंकित स्‍थल की तिथि के आधार पर इस वर्ष (2022) के लिए 19 स्‍थल और पिछले वर्ष (2021) के लिए 14 स्‍थल हैं।

तमिलनाडु में अधिकतम संख्या है। रामसर स्थलों की संख्या (14), इसके पश्‍चात उत्‍तर प्रदेश में रामसर के 10 स्थल हैं। 
रामसर स्थलों के रूप में नामित 11 आर्द्रभूमियों का संक्षिप्त विवरण
आद्रभूमि का नाम-राज्‍य
  1. तंपारा झील-ओडिशा
  2. हीराकुंड जलाशय-ओडिशा
  3. अंशुपा झील-ओडिशा
  4. यशवंत सागर-मध्‍य प्रदेश
  5. चित्रांगुडी पक्षी अभ्यारण्य-तमिलनाडु
  6. सुचिन्द्रम थेरूर वेटलैंड कॉम्प्लेक्स-तमिलनाडु
  7. वडुवूर पक्षी अभयारण्य-तमिलनाडु
  8. कांजीरकुलम पक्षी अभयारण्य-तमिलनाडु
  9. ठाणे क्रीक-महाराष्‍ट्र
  10. हाइगम वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व-जम्‍मू और कश्‍मीर
  11. शालबुग वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व-जम्‍मू और कश्‍मीर

 

Point Of View करवा चौथ: जाने कैसे बनाएं पत्नी के करवाचौथ को रोमांटिक और यादगार




Point Of View :करवा चौथ उन जोड़ों के लिए एक खास दिन है, खासकर उन विवाहित महिलाओं के लिए जो अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस त्योहार से जुड़ी रस्में और परंपराएँ प्रेम, भक्ति और प्रतिबद्धता से ओतप्रोत हैं।   करवा चौथ सुहगिनो का एक प्रमुख त्यौहार है और इसके लिए प्रत्येक सुहागन कई दिनों के पहले से ही इंतजार करती है। न केवल इस त्यौहार को मनाने के लिए बल्कि पत्नियों के लिए इस पर्व का प्रत्येक मोमेंट खास होता है चाहे वह पूजा हो या फिर  सजने सवरने की तैयारी तक, सब कुछ बहुत खास होता है ।  

करवा चौथ एक हिंदू त्योहार है जो विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए मनाती हैं। करवाचौथ वाले दिन एक स्त्री पूरा दिन निर्जला व्रत करके अपने पति की लंबी आयु व उसके बेहतर स्वास्थ्य की कामना करती है। वैसे तो हर स्त्री के लियें ये व्रत महत्वपूर्ण है लेकिन लेकिन अगर शादी के बाद पहला करवा चौथ हो तो फिर बात ही कुछ और है। जब एक नई दुल्हन पूरा शृंगार करके तैयार होती है और पति के लिए सजती संवारती है वो उसके लियें बहुत खास होता है ।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने पत्नी को बताएं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं और उसकी कितनी परवाह करते हैं। करवा चौथ एक ऐसा दिन है जब आप अपने प्यार को व्यक्त कर सकते हैं और अपने रिश्ते को मजबूत कर सकते हैं।

करवा चौथ को यादगार बनाने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

प्रेम और सम्मान दिखाएं: करवा चौथ एक प्रेम और सम्मान का त्योहार है। अपने पत्नी को बताएं कि आप उसे कितना प्यार करते हैं और उसकी कितनी परवाह करते हैं। उसे एक उपहार दें, उसे एक प्यारा सा संदेश लिखें, या उसके लिए कुछ खास करें।

व्रत को आसान बनाएं: करवा चौथ एक कठिन व्रत हो सकता है, खासकर अगर आप पहली बार मना रही हों। अपने पत्नी को व्रत रखने में मदद करने के लिए कुछ कदम उठाएं। उदाहरण के लिए, आप उसे सुबह नाश्ता बना सकते हैं, उसके लिए पानी का ध्यान रख सकते हैं, या शाम को उसे व्रत तोड़ने में मदद कर सकते हैं।

एक रोमांटिक रात बनाएं: करवा चौथ एक विशेष दिन है, इसलिए इसे एक रोमांटिक रात के साथ समाप्त करें। एक साथ डिनर करें, एक फिल्म देखें, या बस बात करें और एक-दूसरे के साथ समय बिताएं।

यहां कुछ विशिष्ट विचार दिए गए हैं जो आप अपने पत्नी के करवा चौथ को यादगार बनाने के लिए कर सकते हैं:

  • उसके लिए एक खूबसूरत साड़ी या लहंगा खरीदें।
  • उसे एक खूबसूरत सा हार या झुमके दें।
  • उसके लिए एक प्रेम पत्र लिखें।
  • उसके लिए एक रोमांटिक डिनर का प्लान बनाएं।
  • उसके लिए एक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन करें।
  • उसके लिए एक सरप्राइज पार्टी का आयोजन करें।